मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

विलेम जोसेफ लाक्वे (1738-1798) का "कला प्रशिक्षण का रूपक"

 


              विश्व चित्रकला में विलेम जोसेफ लाक्वे (1738-1798) का नाम बहुत ज्यादा परिचित नहीं है। लाक्वे का जन्म हालांकि जर्मनी में हुआ था, लेकिन उन्होंने नीदरलैंड के एम्सटर्डम में रहकर चित्र बनाये एवं अपनी कला साधना पूर्ण की। उनके चित्रों को देखकर हम चित्रकला के कुछ आधारभूत तत्वों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर पाते हैं। उनके द्वारा बनायें गए चित्रों में प्रकाश के साथ-साथ संरचना (Anatomy) और परिप्रेक्ष्य (Perspective) को समझने के लिए उनके चित्र भारतीय चित्रकला दर्शकों एवं कलाकारों को चित्र के कई पहलुओं से परिचित करा सकते हैं।

           विलेम जोसेफ लाक्वे ने 1770 में 'कला प्रशिक्षण का रूपक' ('The Metaphor of Art Training') शीर्षक से तीन चित्रों की त्रिफलक (ट्रिप्टिक) बनाया था। इन तीनों चित्रों में उन्होंने अंधेरे के बीच प्रकाश उत्स को रखकर उसके प्रभाव को नायाब ढंग से दर्शाये थे।

             उपरोक्त चित्र उन तीनो चित्रों में से शायद सबसे जटिल चित्र है, जिसमें हम चार प्रकाश उत्स को देख पाते हैं। चित्र के सामने के हिस्से में फर्श पर एक बड़ी लालटेन रखी हुई है, जिसका एक हिस्सा खुला हुआ है। हम इस लालटेन की रोशनी को फर्श पर बिखरते हुए देख पाते हैं। यहां यह गौरतलब है कि लालटेन के कांच से होकर बाहर आती रोशनी खिड़की से बाहर आती रोशनी से हल्की है। इससे यह स्पष्ट होता है कि लालटेन के कांच के पारदर्शी होने के बावजूद इस चित्र में यह पर्याप्त अवरोध पैदा कर रहा है, जिस कारण प्रकाश की तीव्रता में हमें अंतर स्पष्ट दिख रहा है। इस लालटेन के ठीक पीछे चित्र में तीन लोग मेज पर रखी एक मोमबत्ती को घेरे बैठे पूरी एकाग्रता के साथ अध्ययन कर रहे हैं। इनके पीछे थोड़ी दूर कुछ ऊंचाई पर एक महिला हाथ में मोमबत्ती लेकर खड़ी है या कमरे में प्रवेश कर रही है। इसके अलावा कुछ दूरी पर तीन लोगों का एक समूह मेज पर रखी एक मोमबत्ती की रोशनी में काम कर हुए दिखाई दे रहे है। 

          इस चित्र के सबसे महत्वपूर्ण पक्ष की यदि बात की जाए तो वह लालटेन और तीन मोमबत्तियों के आकार तथा उसके प्रकाश की तीव्रता है, जिसके जरिये चित्रकार ने लालटेन से दूर होते हुए मोमबत्तियों के प्रकाश की तीव्रता को न केवल कम से कमतर होते दिखाया है बल्कि उनके आकार को भी इसी क्रम में छोटा किया  है।

         इस प्रकार, चित्र में परिप्रेक्ष्य को इतने प्रभावी ढंग से दिखाने में चित्रकार सफल हुए हैं। जैसा कि इस चित्र के शीर्षक से पता चलता है। विलेम जोसेफ लाक्वे ने चित्रकला प्रशिक्षण में कठिन श्रम और अभ्यास की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए प्रचलित मुहावरे 'बर्निंग द मिडनाइट ऑयल' (दिन रात एक करना) को आधार बनाया है। हालांकि मुहावरे समय और स्थान तक सीमित होते हैं तथा वक्त के साथ उनकी उपयोगिता कम या ज्यादा हो सकती है, लेकिन इस चित्र में हम जिन चीजों को देख और समझ सकते हैं वे किसी देश एवं काल की सीमा में बांधे नहीं जा सकते। 

     विलेम जोसेफ लाक्वे द्वारा 1770 में बनाया गया यह चित्र ढाई सौ वर्ष बाद आज भी हमें चित्रों को समझने के संदर्भ में एक दृष्टि देता है जो किसी देश विशेष या समय से बंधी हुई नहीं है।


अशोक भौमिक✍️

चित्रकार

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