शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

"पर्वत पुरुष" श्री दशरथ मांझी को समर्पित एक कविता।


🌸🌸पर्वत पुरुष 🌸🌸


काट लेते हैं नस आशिक,

अपने प्यार में नाकाम होकर।

मैंने देखा है एक ऐसा आशिक,

काट डाला पहाड़ जीवनसाथी से बिछड़ कर।


जान से बढ़कर चाहा जिसे,

जुदाई में बन गया पागल उसी के।

असंभव को संभव करने चल पड़ा अकेला,

अपने दिल-जिगर और मन में यह ठान के।


 खोया था दुख के सागर में,

साथी की सुनहरी यादों में तर।

 बस मन में एक बात की कसक

जिए ना कोई यह दुख झेल कर।


प्यार और जुनून का है अनमोल तोहफा,

 पहाड़ों के बीच से गुजरता हुआ यह रास्ता।

 कर्मठता का अमिट मिशाल बनकर,

'पर्वत पुरुष' के नाम से दशरथ का है वास्ता।


साभार:- सोशल मीडिया

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