Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास) हिंदी एवं English Notes.
ऐतिहासिक काल (Historical Period)
इसके बारे में लिखित स्रोत उपलब्ध है और इसे पढ़ा भी जा सका है। इसके अंतर्गत वैदिक काल से लेकर अभी तक का समय आता है।
- ऐतिहासिक काल को अध्ययन के लिए तीन भागों में विभक्त किया गया है:-
- पुरातात्विक
- विदेशी यात्रा
- साहित्य
(1).पुरातात्विक:- इसके अंतर्गत सिक्कों एवं अभिलेखों का अध्ययन किया जाता है।
Note:-
- सिक्कों का अध्ययन न्यूमेसमेटिक्स (मुद्राशास्त्र) Numismatics कहलाता है।
- अभिलेखों का अध्ययन एपीग्राफी (Epigraphy) कहलाता है।
- पत्थरों को खोदकर लिखना अभिलेख कहलाता है।
- छोटे पत्थरों पर लिखना शिलालेख कहलाता है।
- स्तंभ के समान ऊंचे पत्थरों पर लिखना स्तंभ लेख कहलाता है।
(2).विदेशी यात्रा:- विदेशी यात्रियों के द्वारा वर्णन
(3).साहित्य:- लिखित स्रोत को साहित्यिक स्रोत कहते हैं। प्राचीन इतिहास की जानकारी का यह सबसे बड़ा स्रोत है।
इसे दो भागों में विभक्त किया गया है-
(१) धार्मिक
(२) गैर धार्मिक
(१) धार्मिक:- इसका संबंध किसी न किसी धर्म से रहता है।
(२) गैर धार्मिक:- इसका संबंध किसी धर्म से नहीं रहता है।
जैसे:- अर्थशास्त्र।
(१) धार्मिक ग्रंथ को भी दो भागों में विभक्त किया गया है:-
(a) ब्राम्हण (हिंदू)
(b) गैर ब्राह्मण (गैर हिंदू)
(a) ब्राम्हण (हिंदू):- वैसे ग्रंथ जिनका संबंध हिंदू धर्म से है, उसे ब्राम्हण साहित्य के अंतर्गत रखते हैं।
जैसे:- वेद, वेदांग, पुराण, उपनिषद, महाकाव्य, इत्यादि।
- वेदों को भलीभांति समझने के लिए वेदांग की रचना की गई है।
- उपनिषद का अर्थ होता है गुरु के समीप बैठ कर ज्ञान प्राप्त करना।
- मुंडक उपनिषद में सत्यमेव जयते की चर्चा की गई है।
(b) गैर ब्राह्मण (गैर हिंदू):- वैसे स्रोत जिनका संबंध हिंदू धर्म से नहीं है, उसे ग़ैर ब्राह्मण (गैर हिंदू) कहते हैं।
जैसे:- जैन, बौद्घ, इत्यादि।
रामायण तथा महाभारत में चित्रकला
इन दोनों महाकाव्य का समय 600 से 500 ई० पू० माना जाता है। रामायण में कला को 'शिल्प' कहा गया है। रामायण में 'मय' नामक शिल्पी ने सीता की स्वर्ण मूर्ति का निर्माण किया था।
महाभारत में उषा एवं अनिरुद्ध की कथा प्रसिद्ध है जिसमें चित्रकला का उल्लेख है।
कहानी के अनुसार,
उषा वाणासुर की पुत्री थी जो सपने में एक राजकुमार को देखती है सुबह वह अपनी परिचारिका (Caseworker) चित्रलेखा को इसके बारे में बताती हैं। चित्रलेखा उस समय के सारे राजकुमारो का व्यक्तिचित्र अपनी स्मृति से तैयार करती हैं। अनिरुद्ध (जो की भगवान श्रीकृष्ण का पोता था) का चित्र आते ही उषा उसे पहचान लेती है। बाद में उषा से अनिरुद्ध का विवाह संपन्न होता हैं। इस कथा से हमें उस समय की चित्रकला की पराकाष्ठा का पता चलता हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें