अंग्रेज़ी में तो नाम को शार्ट करने का चलन बहुत है। राज कपूर 'R.K.' बन जाते हैं, जगदीश कुमार 'J.K.', कोई 'K.K.' है तो शाहरुख खान 'S.R.K.' कहलाते हैं। काका हाथरसी ने कल्पना की कि यही चलन यदि राजभाषा हिन्दी में लोकप्रिय हो जाये तो क्या होगा?
प्रगति राष्ट्रभाषा करे, यह विचार है नेक,
लेकिन आई सामने, विकट समस्या एक,
विकट समस्या एक, काम हिंदी में करते,
किंतु शार्ट में हस्ताक्षर, करने से डरते!
बोले ‘काशी नाथ’ ज़रा हमको बतलाना,
दोनो आँखे होते हुए, लिखूँ मैं ‘काना’?!
इसी तरह से और भी, कर सकते हैं तर्क,
प्रोफेसर या प्रिंसिपल, अफसर बाबू क्लर्क,
अफसर बाबू क्लर्क, होय गड़बड़ घोटाला,
डाक्टर ‘नाथू लाल’ करें हस्ताक्षर ‘नाला’!
कह ‘काका’ बतलाओ क्या संभव है ऐसा
लाला 'भैंरो साह' लिखें अपने को 'भैंसा'?!
परिवर्तन घनघोर हो, बदल जाएँगी कौम,
'डौंगर मल' संक्षिप्त में, लिखे जाएँगे 'डौंम',
लिखे जाएँगें 'डौंम', नाम असली खो जाएँ,
'गुप्पो मल' को शार्ट करो तो 'गुम' हो जाएँ!
उजले 'कांती लाल' किंतु कहलाएँ 'काला',
भैय्या 'भाई लाल' पुकारे जाएँ 'भाला'!
अच्छे–अच्छे नाम भी हो जाएँ बदनाम,
जब कि 'हरिहर राम' को लिखना पड़े 'हराम',
लिखना पड़े हराम, किसी का क्या कर लेंगे,
चिढ़ा-चिढ़ा कर 'गज धारी' को 'गधा' कहेंगे!
कह ‘काका’ कवि 'बाबू लाल' बनेंगे 'बाला',
पंडित 'प्यारे लाल', लिखे जाएँगे 'प्याला'!
हिंदू 'ईश्वर दत्त' हैं, वे लिक्खेंगे 'ईद',
लाला 'लीला दत्त' जी, बन जाएँगे 'लीद',
बन जाएँगे लीद, मज़े तो तब आएंगे,
'तेजपाल लीडर' जब 'तेली' कहलाएँगे!
कह काका कवि 'होली लाल' बनेंगे 'होला',
बाबू 'छोटे लाल' लिखे जाएँगे 'छोला'!
जान- बूझ कर व्यर्थ ही, क्यों होते बदनाम?
उतना दुखदायी बने, जितना लंबा नाम,
जितना लंबा नाम, रखो छोटे से छोटा,
दो अक्षर से अधिक नाम होता है खोटा!
सूक्ष्म नाम पर कभी नहीं पड़ सकता डाका,
‘काका’ को उलटो पलटो फिर भी हैं ‘काका’!!
काका हाथरसी✍️
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें