आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में 09 सितम्बर 1850 को हुआ था। उनके पिता गोपालचन्द्र एक अच्छे कवि थे। जिस वजह से हरिश्चन्द्र को काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। पांच वर्ष की उम्र में दोहे की रचना कर अपने पिता से सुकवि होने का आशीर्वाद पाने वाले हरिश्चन्द्र ने अठारह (18) वर्ष की उम्र में कविवचनसुधा, 23 वर्ष की उम्र में हरिश्चन्द्र पत्रिका और 24 वर्ष की उम्र में स्त्री शिक्षा के लिए बाल बोधिनी नामक पत्रिकाएँ निकाली।
साहित्यिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण वे बीस वर्ष की उम्र मे ही ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट बना दिए गए थे। वह एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार के अलावा संपादक, एवं कुशल वक्ता भी थे।
काशी के विद्वानों ने 1880 मे उन्हें 'भारतेन्दु' (भारत के चन्द्रमा) की उपाधि प्रदान की। भारतेन्दु हिन्दी में नाटक विधा तथा खड़ी बोली के जनक माने जाते हैं। साहित्य के अनेक विधाओं के समावेश से उन्होंने 75 से अधिक ग्रन्थों की रचना की, जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।
भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण के चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। विलक्षण प्रतिभा के धनी भारतेन्दु जी के वृहद साहित्यिक योगदान के कारण 1857 से 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग कहा जाता है। हिन्दी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हुये 06 जनवरी 1885 को मात्र चौंतीस (34) वर्ष की अल्पायु में ही उनका निधन हो गया। CrazyArtPhotographers की पूरी टीम की ओर से हिन्दी साहित्य के पुरोधा भारतेन्दु हरिशचन्द्र को नमन 🙏
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