संख्या
सच कहूं तो
हमारा अस्तित्व ही संख्या है।
कैदी की संख्या,
रैली की संख्या,
राशन की दुकान पर,
कतार में लगे लोगों की संख्या।
मरने वालों की संख्या,
घायलों की संख्या,
शहीदों की संख्या,
हादसे में मरने वालों की संख्या,
भूखे रहने वालों की संख्या,
बेरोजगारों की संख्या,
डूबने वालों की संख्या,
आग में जलने वालों की संख्या,
देशद्रोहियों की संख्या,
राष्ट्र-भक्तों की संख्या,
करतब दिखाने वालों की संख्या,
नाचने वालों की संख्या,
नचाने वालों की संख्या,
ओलंपिक में पदको की संख्या,
पदक दिलाने वालों की संख्या।
हमारा समूचा अस्तित्व
संख्या में उलझ कर ही रह गया है।
हम कहीं नहीं है
अगर है तो मात्र एक संख्या।
साभार:- सोशल मीडिया
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