शनिवार, 18 सितंबर 2021

हास्य शिरोमणि काका हाथरसी को सादर नमन🙏

 


               क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सुना है जो अपनी वसीयत में यह लिखकर जाए कि उसकी मौत पर सब जमकर हंसे, कोई आंसू ना बहाए। जी हां वो थे हमारे काका हाथरसी जिनकी जयन्ती और पुण्यतिथि दोनों आज ही के दिन यानी 18 सितंबर को है। इनकी एक व्यग्य रचना है- 

सारे जहां से अच्छा है इंडिया हमारा।

 हम भेड़-बकरी इसके यह गड़ेरिया हमारा।।

          काका के मृत्यु के दिन एक तरफ इनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो रहा था और दूसरी तरफ श्मशान में हास्य कवि सम्मेलन हो रहा था। श्मशान घाट में लाउडस्पीकर पर काका की तमाम हास्य रचनाओं को सुन आधी रात को सब लोग ठहाके मार-मार कर हंस रहे थे। उनकी वसीयत के मुताबिक उनकी शवयात्रा भी ऊंट गाड़ी पर गई। उनके घर से शमशान सिर्फ 02 किलोमीटर दूर था, मगर ये दूरी लगभग 07 घंटों में पूरी हो पाई। काका को इमरती बहुत पसन्द थी, इसलिये जगह जगह लोग उनके पार्थिव शरीर पर इमरती की मालाएं चढ़ा रहे थे।

          हास्‍य रचनाओं के महाकवि काका हाथरसी का जन्‍म आज ही के दिन 18 सितम्बर 1906 को हाथरस में हुआ। जब वे मात्र 15 दिन के थे, तभी प्लेग की महामारी में उनके पिता शिवलाल गर्ग की मौत हो गई। भयंकर ग़रीबी में भी काका ने अपना संघर्ष जारी रखते हुए छोटी-मोटी नौकरियों के साथ ही कविता रचना और संगीत शिक्षा  से अपने सृजनात्मक व्यक्तित्व को जिन्दा बनाये रखा बचपन में उनका नाम प्रभूलाल गर्ग था, लेकिन एक नाटक में उन्होंने एक काका का किरदार निभाया और बस तभी से प्रभूलाल गर्ग काका हो गए। 

        हास्य कवि के अलावा काका संगीत प्रेमी भी थे और उन्हें चित्रकारी का भी शौक था। उन्होंने कुछ दिनों चित्रशाला भी चलाई लेकिन वह भी नहीं चली तो उन्होंने संगीत कार्यालय की स्थापना कर संगीत पत्रिका भी प्रकाशित की। अपने जुनून से साहित्य जगत की बुलन्दियों तक पहुंचने वाले काका का मंचीय कवियों में एक विशिष्ट स्थान था। सैकड़ों कवि सम्मेलनों में काका ने काव्य पाठ किया और अपनी पहचान बनाई। बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी काका ने फिल्म जमुना किनारे में अभिनय भी किया। काका के व्यंग्य रचनाओं का उद्देश्य मनोरंजन हीं नही बल्कि समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर ध्यान आकृष्ट करना था। समाज पर उनकी खास नजर थी, हर चीज को वो बहुत सूक्ष्मता से देखते थे और फिर सत्ता, राजनीति, व्यक्ति और समाज के सरोकारों पर अपने दोहे, छंदों और कविताओं के जरिये खूबसूरती से कटाक्ष करते थे। हास्य रस को जीवन का टॉनिक बताने वाले काका ने जीवन भर लोगों को हंसाने का काम किया। अजीब संयोग है कि जिस दिन काका इस दुनिया में आए उसी दिन (18 सितम्बर 1995) दुनिया को छोड़ गए। अपनी विशिष्ट रचना शैली की कुंठाविहीन सहज हास्य रचनाओं से काका हाथरसी आज भी लोगों के दिलों में झूम उठते हैं। 🙏😁🙏

       लेख के अंतिम में हम काका हाथरसी की एक रचना प्रस्तुत कर रहे हैं जिसका शीर्षक है स्त्रीलिंग और पुल्लिंग। आप भी पढ़िए और ठहाके लगाइए😀


स्त्रीलिंग और पुल्लिंग।

काका से कहने लगे ठाकुर ठर्रा सिंग,
दाढ़ी स्त्रीलिंग है, ब्लाउज़ है पुल्लिंग।

ब्लाउज़ है पुल्लिंग, भयंकर ग़लती की है,
मर्दों के सिर पर टोपी पगड़ी रख दी है।

कह काका कवि पुरूष वर्ग की क़िस्मत खोटी,
मिसरानी का जूड़ा, मिसरा जी की चोटी।

दुल्हन का सिन्दूर से शोभित हुआ ललाट,
दूल्हा जी के तिलक को रोली हुई अलॉट।

रोली हुई अलॉट, टॉप्स, लॉकेट, दस्ताने,
छल्ला, बिछुआ, हार, नाम सब हैं मर्दाने।

पढ़ी लिखी या अनपढ़ देवियाँ पहने बाला,
स्त्रीलिंग ज़ंजीर गले लटकाते लाला।

लाली जी के सामने लाला पकड़ें कान,
उनका घर पुल्लिंग है, स्त्रीलिंग है दुकान।

स्त्रीलिंग दुकान, नाम सब किसने छाँटे,
काजल, पाउडर, हैं पुल्लिंग नाक के काँटे।

कह काका कवि धन्य विधाता भेद न जाना,
मूँछ मर्दों को मिली, किन्तु है नाम जनाना।

ऐसी-ऐसी सैंकड़ों अपने पास मिसाल,
काकी जी का मायका, काका की ससुराल।

काका की ससुराल, बचाओ कृष्णमुरारी,
उनका बेलन देख काँपती छड़ी हमारी।

कैसे जीत सकेंगे उनसे करके झगड़ा,
अपनी चिमटी से उनका चिमटा है तगड़ा।

मन्त्री, सन्तरी, विधायक सभी शब्द पुल्लिंग,
तो भारत सरकार फिर क्यों है स्त्रीलिंग?

क्यों है स्त्रीलिंग, समझ में बात ना आती,
नब्बे प्रतिशत मर्द, किन्तु संसद कहलाती।

काका बस में चढ़े हो गए नर से नारी,
कण्डक्टर ने कहा आ गई एक सवारी।

काका हाथरसी✍️

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