मंगलवार, 28 सितंबर 2021

जिउतिया व्रत की पूरी कहानी हिंदी एवं भोजपुरी भाषा में। का_हs_जिउतिया।


संतान के दीर्घायु होने की कामना के साथ स्वस्थ सुखी जीवन के लिए जिउतिया व्रत (जीवित्पुत्रिका)

          जिउतिया व्रत का उल्लेख पौराणिक ग्रंथ महाभारत के समय से ही है। जब अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से उत्तरा के गर्भ पर प्रभाव पड़ा तो भगवान श्री कृष्ण ने अपने पुण्य से एकत्रित फल के द्वारा उत्तरा के गर्भ की रक्षा की और उनके पुत्र को जीवित किया जो आगे चलकर राजा परीक्षित के नाम से विख्यात हुए। उसी समय से जीवित्पुत्रिका का व्रत किया जाने लगा।

          जिउतिया व्रत संतान के दीर्घायु होने की कामना के लिए की जाती है। यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को विशेष करके बिहार और यूपी की महिलाएं करती हैं। यूपी और बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों के नियम विधि में कुछ मामूली हेर-फेर के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है।

          लगातार तीन दिनों तक अर्थात सप्तमी से लेकर नवमी तक चलने वाले इस व्रत में प्रथम दिन नहाय खाय होता है। जिसमें सुबह दातुन से मुंह धोने के बाद सतपुतिया अथवा मड़ूवा को पानी के साथ निगलना होता है तथा कुछ क्षेत्रों में मड़ूवा के आटे की रोटी और नूनी का साग खाया जाता है। उसके बाद ही चाय, पानी और सात्विक भोजन लिया जाता है। उसके बाद अरहर या चने की दाल, चावल, सतपुतिया की सब्जी बनाई जाती है।

          रात के समय घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं शुद्ध घी में शुद्ध आटे और गुड़ के मिश्रण से ठेकुआ बनाती हैं। प्रत्येक पुरुष सदस्य के हिसाब से एक-एक ठेकुआ बनता है और उसे वहीं पर चूल्हे के पास खड़ा करके कुछ देर तक रख दिया जाता है, साथ ही साथ धूप दीप के साथ उसी स्थान पर पूजा की जाती है। इस विधि द्वारा बने ठेकूवे को आम बोलचाल की भाषा में ओठंघन कहते हैं। जिसे घर के पुरुष सदस्य अष्टमी के दिन खाते हैं।

         उसके बाद ही सबके खाने के लिए पूड़ी, सब्जी, खस्ता, ठेकूवा बनाया जाता है और खाया जाता है। रात में 12:00 बजे तक सरगही खाने का नियम है, साथ ही साथ जिउतिया कथा की मुख्य पात्र चिल्हो और सियारिन दोनों बहनों को भी सरगही खाने के लिए ठेकूवा या खस्ता दही के साथ छत पर अथवा खुले आसमान के नीचे कहीं रख दिया जाता है और पानी भी पीने के लिए दिया जाता है ताकि आम महिलाओं के जैसा ही दोनों बहनें भी अगले दिन जितिया का व्रत करें।

         रात में सरगही लेने के बाद मुंह धो लिया जाता है और अगले दिन अष्टमी को जब हम निर्जला व्रत करते हैं तो संभव हो तो नदी, पोखर (ना हो तो घर में भी) में स्नान कर लेना चाहिए साथ ही साथ पिछले साल की धागे से बनी जितिया को नदी में प्रवाह कर देना चाहिए, दिन भर निर्जला रहना होता है।

          शाम के समय नेनुआ के पत्ते पर लाल धागे (लाल मोती) में पिरोये ढोलकनुमा आकृति की जितिया (प्रत्येक संतान के हिसाब से एक-एक) जो कि सोने या चांदी की बनी होती है उसे लेकर के राजा जीमूत वाहन जो कि गंधर्वों के कम उम्र के उदार और परोपकारी राजा थे। उनका मन राजपाट में नहीं लगा तो वे पिता की सेवा करने वन चले गये। वहां उनका विवाह मल्यावती नाम की एक राजकुमारी से हुआ। एक दिन जीमूत वाहन ने एक वृद्ध महिला को विलाप करते हुए देखा तो इसका कारण पूछा।

         स्त्री ने कहा कि वह नागवंश की स्त्री है वहां प्रतिदिन पक्षी राज गरुड़ को खाने के लिए एक नाग की बलि देने की प्रतिज्ञा हुई है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बारी है। यह मेरा एकलौता पुत्र है अगर इसकी बली चढ़ गयी तो मै किसके सहारे जीवित रहूंगी। वृद्ध महिला की बात सुनकर जीमूत वाहन स्वयं को लाल कपड़े में लपेट कर उस शीला पर लेट गए जहां गरुड़ नागों की बलि लेने आते थे‌। गरुड़  जीमूत वाहन को उठाकर ले जाने लगे तो देखा कि पंजे में जिसे दबोचा गया है उसकी आंखों में आंसू तक नहीं है तो उन्होंने आश्चर्य से उसका परिचय पूछा।

        जीमूत वाहन ने वृद्ध महिला से हुई बातों को बताया तो गरुड़ बहुत द्रवित हुए उन्होंने तब से प्रतिज्ञा की कि आज के बाद वह किसी नाग की बलि नहीं लेंगे। चूंकि जीमूत वाहन ने बच्चे को जीवनदान दिया जिससे जीवित्पुत्रिका व्रत हर महिला करती है और जीमूत वाहन की पूजा करती हैं तथा कथा सुनती है और इसी तरह दूसरी कथा चिल्हो तथा सियारिन की भी सुनी जाती है।

          कथा सुनने के बाद जितिया को पहले संतान के गले में डाला जाता है उसके बाद माताएं पहनती हैं। अगले दिन जब नवमी तिथि हो जाती है तो ही पारण का समय होता है। कुछ घंटे बाद सुबह में उड़द और चावल (जो कि रात में ही भिंगो करके रख दिया जाता है) उड़द और चावल में से पांच-पांच उड़द और पांच-पांच चावल पानी के साथ पहले चिल्हो और सियारिन को दिया जाता है फिर खुद लिया जाता है। इसी अन्न से पहले पारण किया जाता है। किसी-किसी क्षेत्र में कढ़ी, चावल, फुलवरा (दही बड़ा), पकौड़ी और चने की सब्जी बनाकर खाई जाती है।

का_हs_जिउतिया।



         जिउतिया परब हs आस्था के!! बिश्वास के!! हर साल कुआर पक्ष के अष्टमी के दिन निर्जला उपास राख के आपन सन्तान के लम्बा उमिर के कामना माई के द्वारा कईल जाला। उ उमिर के कवनो पड़ाव पर काहे ना होखस आपन संतान खातिर ओकर भावना में कवनो कमी ना लउके ला। पढ़ल लिखल बिद्वान बेटा के अनपढ़ निरक्षर माई भी अपना बेटा के भविष्य खातिर चिंतित रहेली। माई के महत्ता के, केहु बा जे नकार दिहि? माइये हवी जवन ईट पाथर से बनल मकान के घर बनावेली, गुरूजी लोग देश के भविष्य के निर्माण जरूर करेलन लेकिन माई ही ओह भविष्य के आधार के जनमावेली। माई के इहे अरदास रहेला की ओकर संतान सुखी रहँस चाहे ओकरा प्रति उनकर बेवहार कवनो दर्जा के होखे। पुरुष प्रधान समाज में बेटा के महत्व जियादे दियात रहे लेकिन अब एह भावना में धीरे-धीरे ही सही बदलाव आवे के शुरुआत हो चुकल बा। बेटा-बेटी के बिच के अंतर के खाई धीरे-धीरे पटा रहल बा।  


          जिउतिया के भुखला में रउरो अपना माई के संगे चिल्हो सियारो के कथा जरूर सुनले होखबs हमहुँ अपना माई के संगे एह कथा के सुनले बानी। पिछला जनम के कइल गइल नीमन बाउर काम के फल अगिलो जनम में जरूर भेटाला इहे एह कथा के कहनाम बा। चिल्हो के तप उनका सन्तान के दीर्घायु बनावेला ओहिजे सियारो के लालच के कारण उनका संतान के नियति के हाँथ में समाये के परेला असमय ही। कथा के अंत में सियारो भी सत्य निष्ठा से जिउतिया के बरत के करsतारी आ अपना पिछला जनम के पाप से मुक्ति पा जात बारी। अउरी लम्बा उमिर तक जिए वाला संतान के महतारी के सुख भोगे के फल भेटाताs। एह बरत के साँच मन के कइला के कारण कछु होखे चाहे ना होखे अपना बाउर करम पर अंकुश लगावे के सिख त जरुर bhetalaa। 


         जिउतिया के बरत से माई आ संतान के बिच स्नेह के बंधन के मजबूती मिलेला ओकर दोसर तोड़ बिरले ही बा। जहां संतान के मन में ई बिस्वास रहेला की ओकरा माई के तप ओकरा पर संकट ना आवे दिहि ओहिजे माई के मन में भी अपना संतान के सुरक्षा के लेके फिकिर कम होला। काहे ना रही, काहे की माई खर जिउतिया कइले बाड़ी। हमनीके भोजपुरिया भाषी गांव में अक्सर हम सुनले बानी कहत की 

"जा हो बच गइलs मरदे
तोहार माई खर जिउतिया कइले रहली हs।" 

       सत्यता केतना बा उ त भगवान जानशs लेकिन आस्था आ बिश्वास से आदमी दुरूह से दुरूह काम के भी आसानी से निकाल लेला।


        कथा सुनला के बाद अक्सर माई आँख बन कर के अंचरा हाँथ में लेके हाँथ जोड़ के कहेली 

"ये अरियार का बरियार..... जा के भगवान से कहि दिह की विश्वजीत के माई खर जिउतिया भूखल बाड़ी। हे जिउतया माई जइसे दुनिया के कुल्हिये बचवन के रक्षा करे लू ओइसहिं हमरा बचवा के नीके-नीके रखिह। उनके हमरो उमिर लाग जॉव ये माई🙏 ।"

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