मेरी रामायण (भाग-1)
हे गुरुदेव🙏 मन चिंतित और हिय व्यथित ।
तन मन धन सब मेरा व्यर्थ रानियों सहित ।।
हे राजन, ऐसे क्यों दुखी सुखे वृक्ष समान ।
अयोध्या के राजा हों क्यों ना सुखी हो ।।
राज पाठ वैभव मेरा सब है बेकारी ।
क्यों नहीं करता कोई नन्हा मम पीठ सवारी ।।
कब गुंजेगी गुमनाम महल में कोई किलकारी ।
क्या मेरी चिता को अग्नि देने वाला नहीं आएगा ।।
रघुकुल का सूर्य मेरे साथ ही अस्त हो जाएगा ।
व्यथा मेरी मुझे जर-जर कर रही ।।
गोद सुनी ना रह जाए रानियां भी डर रही ।
क्या मुझे कोई पिता या इन्हें कहेगा माता ।।
बार-बार वंदन करूं कृपया करें भाग्य विधाता ।
बोली रानियां दे हमें कोई इच्छा पूर्ति दिव्य वर ।।
तेजस्वी सुन्दर सन्तान का हों जन्म हमारे घर ।
हे गुरुदेव है नारित्व हमारा अभी अधूरा ।।
भरे सुनी कोख तों हों नारित्व पूरा ।
कमल मुख से बोले महर्षि वशिष्ठ ।।
कराओ राजन महल में कामेष्टि यज्ञ ।
गुंजेगी किलकारियां फिर सर्वज्ञ ।।
ना रहेगा कोई आधा धरा पर ।
ना अस्त होगा सूर्य रघुवंश ।।
नितिन कहे अब गुरू वचन ।
अवतरित होगे स्वयं यहां श्री अंश ।।
कवि नितिन राघव✍️
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