गुरुवार, 9 सितंबर 2021

मेरी रामायण (भाग-1)

 मेरी रामायण (भाग-1) 

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हे गुरुदेव🙏 मन चिंतित और हिय व्यथित ।

तन मन धन सब मेरा व्यर्थ रानियों सहित ।।


हे राजन, ऐसे क्यों दुखी सुखे वृक्ष समान ।

अयोध्या के राजा हों क्यों ना सुखी हो ।।


राज पाठ वैभव मेरा सब है बेकारी ।

क्यों नहीं करता कोई नन्हा मम पीठ सवारी ।।


कब गुंजेगी गुमनाम महल में कोई किलकारी ।

क्या मेरी चिता को अग्नि देने वाला नहीं आएगा ।।


रघुकुल का सूर्य मेरे साथ ही अस्त हो जाएगा ।

व्यथा मेरी मुझे जर-जर कर रही ।।


गोद सुनी ना रह जाए रानियां भी डर रही ।

क्या मुझे कोई पिता या इन्हें कहेगा माता ।।


बार-बार वंदन करूं कृपया करें भाग्य विधाता ।

बोली रानियां दे हमें कोई इच्छा पूर्ति दिव्य वर ।।


तेजस्वी सुन्दर सन्तान का हों जन्म हमारे घर ।

हे गुरुदेव है नारित्व हमारा अभी अधूरा ।।


भरे सुनी कोख तों हों नारित्व पूरा ।

कमल मुख से बोले महर्षि वशिष्ठ ।।


कराओ राजन महल में कामेष्टि यज्ञ ।

गुंजेगी किलकारियां फिर सर्वज्ञ ।।


ना रहेगा कोई आधा धरा पर ।

ना अस्त होगा सूर्य रघुवंश ।।


नितिन कहे अब गुरू वचन ।

अवतरित होगे स्वयं यहां श्री अंश ।।



कवि नितिन राघव✍️


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