कला के तत्व (Elements of Art)
कला के तत्व मुख्य रूप से छ: होते हैं-
- रेखा
- आकृति (रूप)
- वर्ण (रंग)
- तान
- वयन (पोत)
- अन्तराल।
रेखा (Line)
अपने साधारण रूप में रेखा ज्यामितीय होती है किन्तु जब रेखा का प्रयोग कलाकृतियों के निर्माण हेतु किया जाता है तो इसका रूप प्रतीकात्मक (symbolic) हो जाता है। उसके माध्यम से कलाकार अपने विभिन्न भावों की अभिव्यक्ति करते है। सर्वप्रथम मानव द्वारा आत्माभिव्यक्ति रेखाओं के माध्यम से ही प्रस्तुत की गई हैं जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें मध्यप्रदेश के भीमबेटका की गुफाओं में प्राप्त होता है। इस प्रकार हम पाते हैं कि प्रारम्भ से ही अभिव्यक्ति का मूलाधार रेखा ही रही है।
भारतीय चित्रकला रेखा प्रधान है। अतः अजन्ता से लेकर बंगाल स्कूल तक के कलाकारों द्वारा रेखाओं के अनुपम सौन्दर्य को बिखेरा गया। परम्परागत कलाओं में भी रेखाओं के गूढ़तम सौन्दर्य की दृष्टि को देखा जा सकता है।
सामान्यतः रेखा के दो भेद माने गये हैं-
(i) सरल रेखा (ii) वक्र रेखा
रेखा की परिभाषा-
"रेखा दो बिन्दुओं या दो सीमाओ के बीच की दूरी है जो बहुत सूक्ष्म होती है और गति की दिशा निर्देश करती है।
"कभी-कभी दो या अधिक बिन्दुओं के बीच वास्तविक रेखा न होते हुए भी रेखीय प्रभाव आ जाता है इस प्रकार की रेखायें अनुभूत रेखायें (felt lines) कहलाती हैं।
रेखा के प्रकार एवं प्रभाव-
रेखाओं का अपना एक प्रतीकात्मक महत्व रहा है। प्रत्येक प्रकार की रेखायें अपना अस्तित्व रखती है तथा उसमें एक अर्थ निहित होता है।
(i) सीधी लम्बवत् रेखा (straight vertical line)- यह रेखा सीधी लम्बवत् होती है। इस रेखा के मुख्य प्रभाव आकांक्षा, गौरव, स्थायित्व व शाश्वतता आदि है।
(ii) क्षैतिज रेखा (Horizontal line)- इस रेखा का मुख्य गुण लम्बवत् रेखा को आधार प्रदान करना होता है। इसका मुख्य प्रभाव विश्राम, स्थिरता, शान्ति, मौन व सन्तुलन है।
(iii) कोणीय रेखायें (Angular lines)- यह रेखा एक कोण से निकली हुई होती है इसका प्रभाव व्याकुलता, संघर्ष, आघात, बेचैनी, असुरक्षा तथा अस्पष्टता है।
(iv) कर्णवत् रेखायें (Cochlear lines)- आड़ी या तिरछी रेखा को कर्णवत् रेखा कहते हैं। इस रेखा के मुख्य प्रभाव नाटकीयता या प्रबल स्पंदन (strong flutter), उत्तेजना, बेचैनी तथा व्याकुलता है।
(v) एक पुंजीय रेखा (A capital line)- एक पुंज से निकलने वाली रेखायें एक पुंजीय रेखायें कहलाती हैं। इस रेखा के मुख्य प्रभाव एकता, शक्ति, अभिलाषा, शोभा, लवलीनता (Loveliness) स्वदेश प्रेम और प्रसार (Spreading) हैं।
(vi) वर्तुल या चक्राकार रेखायें (Circular lines)- इस प्रकार की रेखाएं भ्रम पैदा करती है। इसका मुख्य प्रभाव संघर्ष, उत्तेजना, विस्मय एवं शक्ति हैं।
(vii) प्रवाही रेखायें (flowing lines)- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस प्रकार की रेखाएं धाराप्रवाह होती है। इसका मुख्य प्रभाव गति, लावण्य तथा माधुर्य हैं।
आकृति (रूप)
रूप वह क्षेत्र है जिसका अपना निश्चित आकार तथा वर्ण होता है। रूप का निर्माण छोटे-छोटे बिन्दुओं से होता है किन्तु यदि इन बिन्दुओं को क्रमानुसार केवल एक ही दिशा में बढ़ाया जाये तो रेखा का निर्माण होता है। अतः रूप निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि इन छोटे-छोटे बिन्दुओं को सभी दिशाओं में आवश्यकतानुसार रखा जाये। यह बिन्दु बिखरी हुई अवस्था में नहीं होने चाहिए यदि ऐसा होगा तो किसी भी रूप का निर्माण नहीं होगा अतः इन बिन्दुओं को आपस में निश्चित आकार में जोड़कर इनका अंकन करना चाहिए तभी रूप का निर्माण होगा।
प्रत्येक कलाकार चित्रों में मौलिकता के सृजन के लिए विभिन्न प्रकार के रूपों का प्रयोग करता है जो एक दूसरे से पृथक होते हैं।
रूपों के आकार के आधार पर उन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है -
(i) सम्मात्रिक रूप (ii) असम्मात्रिक रूप
(i) सम्मात्रिक रूप:- यह वह रूप है जो दायीं तथा बायी दोनों ओर से एक समान होते हैं। जैसे- वृत्त, घन, आयत, गिलास आदि।
(ii) असम्मात्रिक रूप:- यह वह रूप है जिसका दूसरा भाग पहले भाग से विपरीत आकृति का होता है। जैसे- विषम कोण, चतुर्भुज, त्रिभुज, केतली तथा सुराही आदि। यह रूप देखने में अधिक रुचिकर लगते हैं।
इसके अतिरिक्त चित्र में रूप के महत्व के आधार पर दो भाग किये गये हैं-
(a) सक्रिय रूप (b) सहायक रूप
(a) सक्रिय रूप:- यह वह रूप है जो चित्र की प्रधान आकृति होती है, जिसे कलाकार अधिक महत्व देता है।
(b) सहायक रूप:- यह वह रूप है जो सक्रिय रूपों को बल देने के लिए चित्रित किये जाते हैं। किसी भी चित्र में भित्र-भित्र प्रकार के रूपों के भिन्न-भिन्न प्रभाव होते हैं।
रूपों के प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं-
(1) आयताकार- स्थायित्व, शक्ति, आदि।
(2) त्रिभुजाकार- विकास, सुरक्षा आदि।
(3) वृत्ताकार गति, आकर्षण आदि।
(4) अंडाकार- लावण्य, सौन्दर्य आदि।
वर्ण
वास्तव में वर्ण प्रकाश का गुण है। प्रकाश की किरणों द्वारा ही हम किसी वस्तु के रंग को देख सकते हैं। जब वस्तु से टकराकर प्रकाश आँख में रेटीना पर पड़ता है तो रेटीना के पार्श्व में रोड्स तथा कोन्स ग्रन्थियाँ चेतन हो आती है, जिसके परिणामस्वरूप हम वस्तु के वर्ण को देख पाते हैं।
मुख्य रंग लाल, पीला व नीला माने जाते हैं जो स्वाभाविक रूप से प्राप्त होते हैं तथा अन्य रंग के मिश्रण से प्राप्त नहीं होते।
वर्ण गुण
वर्ण के मुख्यतः तीन गुण होते हैं-
- रंगत ( Hue )
- मान ( Value )
- सघनता ( Intensity )
(2) मान (Value):- यह रंगत के हल्के व गहरेपन का द्योतक है जैसे- गहरा लाल तथा हल्का लाल। यदि किसी रंग में सफेद रंग मिला दिया जाये तो उस रंग का मान बढ़ जाता है और यदि किसी रंग में काला रंग मिला दिया जाये तो उस रंग का मान कम हो जाता है। इस प्रकार सफेद व काले की मात्रा किसी एक रंग में मिलाकर एक ही रंगत के विभिन्न मान प्राप्त किये जा सकते हैं।
(3) सघनता (intensity):- यह रंग की शुद्धता का परिचायक है। जितना अधिक वर्ण शुद्ध होगा उतना ही उसका घनत्व होगा। अधिक घनत्व वाले वर्ण चमकदार होते हैं तथा मिश्रित वर्गों में सघनता कम हो जाती है। किसी भी वर्ण में तटस्थ रंग या धूमिल रंग मिलाकर वर्ण की सघनता को कम किया जा सकता है।
तान (Tone)
तान रंगत के हल्के व गहरेपन को कहते हैं। यह रंगत में सफेद तथा काले के परिणाम का द्योतक है। किसी भी वर्ण में सफेद व काले की मात्रा के अन्तर से उसके अनेक तान प्राप्त कर सकते हैं।
तानों को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया है
(1) छाया (Dark)
(2) मध्यम प्रकाश (Middle Light)
(3) प्रकाश (Light)
चित्र में तान का महत्व
किसी भी चित्र के संयोजन में कलाकार की व्यक्तिगत भावनाओं का बड़ा महत्व होता है जिन्हें व्यक्त करने में चित्रकला के मूलाधार तत्वों का भी बड़ा महत्व है क्योंकि कला के प्रत्येक तत्व रूप, रेखा, रंग, तान आदि विभिन्न भावनाओं को प्रकट करने की क्षमता रखते हैं इनमें तान का भी महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि किसी चित्र में रंग द्वारा अपनी भावना प्रकट करते समय उस रंग के तान का बहुत महत्व है। तान के प्रयोग से ही द्विआयामी धरातल पर त्रिआयामी गुण उत्पन्न किया जा सकता है। इसके द्वारा वस्तु अथवा आकार के वास्तविक परिणाम तथा आयतन का आभास हो जाता है।
जैसे लाल रंग के विभिन्न तानों का प्रयोग करके जहाँ कोई प्रफुल्लता पूर्ण दृश्य बनाया जा सकता है वही लाल रंग में काले रंग का मिश्रण करके उसकी सघनता को कम करके लाल रंग की इस निम्न तान से उदासीन वातावरण का निर्माण किया जा सकता है। रंग वही है किन्तु तान के परिवर्तन से भाव परिवर्तित हो गया।
वयन (पोत)
धरातल का गुण पोत कहलाता है । इसको हम बुनावट भी कहते हैं। अतः प्रत्येक वस्तु में अन्तर पोत के माध्यम से किया जाता है। धरातल का स्वरूप पृथक्-पृथक् हो सकता है। जैसे खुरदुरा तथा चिकना आदि।
पोत को दो प्रकार से अनुभव किया जाता है:-
(1) चाक्षुष
(2) अनुभूतिजन्य।
साधारणतः पोत के तीन प्रकार माने गये है:-
(1) प्राप्त
(2) अनुकृत
(3) सृजित।
(1) प्राप्त या कल्पित पोत:- प्राप्त पोत प्रकृति तथा मानव निर्मित वस्तुओं में होता है। प्राप्त पोत शिला, भित्ति, कपड़ा तथा ताड़पत्र आदि चित्रों में स्वतः ही दिखाई पड़ता है।
(2) अनुकृत पोत:- अनुकरण पद्धति द्वारा निर्मित पोत अनुकृत पोत कहलाता है। अनुकृत पोत के प्रभाव से द्वि-आयामी धरातल पर त्रिआयामी प्रभाव उत्पन्न किये जा सकते हैं। कम्पनी शैली के चित्रों में अनुकृत पोत का उदाहरण दृष्टव्य हैं।
(3) सृजित पोत सृजित पोत यंत्रो तथा साधनों की सहायता से सृजित किए जाते हैं। इस प्रकार सृजित पोत का प्रभाव चित्र को क्रियाशीलता प्रदान करता है।
अन्तराल (Space)
"चित्रकार जिस चित्र भूमि पर चित्रों का अंकन करता है, वह स्पष्टता द्विआयामी होती है उसे ही हम अन्तराल कहते है।"
अतः हम कह सकते हैं कि ,
"चित्रकार का वह क्षेत्र जिस पर वह रूपो का निर्माण करता है, अन्तराल कहलाता है।"
अन्तराल का महत्व
कला के सभी तत्व अन्तराल से किसी न किसी प्रकार से सम्बन्धित होते हैं। अन्तराल में सभी प्रकार के रूपों को संयोजित किया जा सकता है। अन्तराल न केवल रूप तत्वों को संयोजित करने का स्थान मात्र है अपितु चित्रतल पर भिन्न-भिन्न प्रभावों को प्रस्तुत करने में पूर्णतः सहायक है।
अन्तराल का विभाजन दो प्रकार से किया जा सकता है:-
(i) सम विभाजन (ii) असम विभाजन
(i) सम विभाजन:- रेखाओं के माध्यम से चित्रभूमि को इस प्रकार विभाजित करना कि दाएँ तथा बाएँ तल समान हों। इस विभाजन द्वारा चित्र में शक्ति तथा सन्तुलन के भाव को प्रदर्शित किया जाता है।
(ii) असम विभाजन:- चित्रभूमि को कल्पना के आधार पर विभाजित करना असम विभाजन कहलाता है। इस विभाजन द्वारा चित्र में गति तथा तनाव को प्रदर्शित किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त इसमें द्विआयामी चित्रतल पर कलाकार वस्तु का त्रि-आयामी प्रभाव दिखाने में समर्थ होता है। वस्तुओं में निकटता, दूरी अथवा घनत्व का आभास परिप्रेक्ष्य द्वारा अन्तराल में संयोजित किया जा सकता है।
सक्रीय एवं सहायक अंतराल:- चित्र में सबसे अधिक आकर्षित करने वाला स्थान सक्रिय अंतराल कहलाता है। इसमें चित्र की प्रधान एवं महत्वपूर्ण आकृतियां संयोजित की जाती है। चित्र का वह शेष भाग जो पृष्ठभूमि के रूप में रहता है सहायक अंतराल कहलाता है। ये दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं मुख्य आकृति के आधार पर ही सहायक आकृति को सुनिश्चित किया जाता है।
Elements of Art
The elements of art are mainly six-
(1) Line
(2) shape (form)
(3) colour
(4) Tone
(5) Texture
(6) Space.
Line
In its simple form, the line is geometric, but when the line is used for the construction of artworks, its form becomes symbolic. Artists express their various emotions through it. For the first time, self-expression has been presented by humans through lines, whose direct example is found in the caves of Bhimbetka in Madhya Pradesh. Thus we find that from the very beginning the foundation of the expression has been the line.
Indian painting is line dominant. Therefore, the unique beauty of lines was scattered by the artists from Ajanta to Bengal School. Even in the traditional arts, the vision of the deepest beauty of the lines can be seen.
Generally two distinctions of the line are considered-
(i) straight line (ii) curved line
Definition of line
"Line is the distance between two points or two boundaries which is very subtle and gives direction of motion.
"Sometimes a linear effect occurs even though there is no real line between two or more points, such lines are called felt lines.
Line types and effects
The lines have a symbolic significance of their own. Each type of line has its own existence and a meaning is inherent in it.
(i) Straight vertical line – This line is straight vertical. The main effects of this line are aspiration, pride, permanence and eternity etc.
(ii) Horizontal line - The main property of this line is to provide a base to the vertical line. Its main effect is relaxation, stability, peace, silence and balance.
(iii) Angular lines - This line is derived from an angle, its effect is anxiety, conflict, shock, restlessness, insecurity and ambiguity.
(iv) Cochlear lines - A horizontal or slanting line is called a cochlear line. The main effects of this line are dramatic or strong flutter, excitement, restlessness and agitation.
(v) A capital line – The lines coming out of a single beam are called capital lines. The main effects of this line are unity, strength, desire, beauty, loveliness, love for the country and spreading.
(vi) Circular lines - These types of lines create confusion. Its main effects are conflict, excitement, astonishment and power.
(vii) Flowing lines - As the name suggests, these types of lines are fluent. Its main effects are speed, elegance and melody.
Shape (form)
Form is that area which has its own definite shape and character. Form is formed by small points, but if these points are extended in one direction only, then a line is formed. Therefore, for the formation of the form, it is necessary that these small points should be kept in all the directions as per the requirement. These points should not be in a scattered state, if this happens, then no form will be formed, so these points should be marked by adding them together in a definite shape, only then the form will be formed.
Each artist uses a variety of forms that are different from each other to create originality in paintings.
On the basis of the shape of the forms they can be divided into two parts -
(i) Symmetrical form (ii) Anomalistic form
(i) Symmetrical form:- It is the form which is the same on both the right and left sides. For example- circle, cube, rectangle, glass etc.
(ii) Asymmetric form:- It is the form whose second part is opposite to the first part. For example, odd angles, quadrilaterals, triangles, kettle and jug etc. This look looks more interesting.
Apart from this, two parts have been made on the basis of importance of form in the picture-
(a) Active form (b) Auxiliary form
(a) Active form:- It is the form which is the principal figure of the picture, which the artist gives more importance to.
(b) Auxiliary forms:- It is the forms which are depicted to emphasize the active forms. Different types of forms in any picture have different effects.
The major effects of forms are as follows-
(1) Rectangular- durability, strength, etc.
(2) Triangular- development, security etc.
(3) Circular- motion, attraction etc.
(4) Oval - beauty, etc.
Colour
In fact, color is the quality of light. We can see the color of an object only by the rays of light. When light hits the retina in the eye after hitting the object, the Rhodes and Cones glands on the side of the retina become conscious, as a result of which we are able to see the color of the object.
The main colors are considered to be red, yellow and blue which are naturally obtained and are not obtained by mixing other colors.
Colour Attribute
There are mainly three qualities of colour-
(1) Hue
(2) Value
(3) Intensity
(1) Hue: - The nature of color is called hue, such as - yellowness, redness, blueness etc. It is considered to be that quality of color, with the help of which the audience can know the difference between yellow, red and blue.
(2) Value: - It is indicative of the lightness and depth of the complexion, such as dark red and light red. If white color is added to a color then the value of that color increases and if black color is added to any color then the value of that color decreases. In this way different values of the same tone can be obtained by mixing the quantity of white and black in any one colour.
(3) Intensity:- It refers to the purity of the color. The more pure the color, the higher will be its density. Colors with higher density are brighter and in mixed classes the concentration decreases. The intensity of the color can be reduced by adding a neutral color or a faint color to any color.
Tone
Tone refers to the lightness and depth. It signifies the result of white and black in color. By the difference in the amount of white and black in any color, many tones of it can be obtained.
The strings are mainly divided into three parts.
(1) Dark
(2) Middle Light
(3) Light
Importance of tone in picture
The individual feelings of the artist are of great importance in the composition of any painting, in which the basic elements of painting are also of great importance in expressing because each element of art has the ability to express different emotions like form, line, color, tone etc. Tone also has an important place in these because the tone of that color is of great importance while expressing one's feeling through color in a picture. Three-dimensional properties can be produced on a two-dimensional surface only by the use of tan. By this, the actual result and volume of the object or shape are perceived.
Just as by using different tones of red color, where a cheerful scene can be created, by mixing black color in red color and reducing its intensity, a neutral atmosphere can be created from this low tone of red color. The color is the same, but with the change of tone, the sentiment has changed.
Texture
The property of the surface is called the texture. We also call this weaving. Therefore, the difference between each object is done through the texture. The shape of the surface can be different. Like rough and smooth etc.
The texture is experienced in two ways:-
(1) visual
(2) empirical.
Generally three types of texture are considered:-
(1) received
(2) imitated
(3) created.
(1) Received or imagined texture: - The received texture is in nature and man-made things. The received texture rock, wall, cloth and palm leaf etc. are automatically visible in the pictures.
(2) Simulated texture:- A texture made by imitation method is called an imitation texture. Three-dimensional effects can be produced on a two-dimensional surface with the effect of a simulated texture. An example of an imitated ship is seen in Company style paintings.
(3) Created texture:- Created texture are created with the help of machines and means. The effect of the texture thus created gives action to the picture.
Space
"The picture on which the painter marks the pictures on the ground, that clarity is two dimensional, that is what we call an Space."
Hence we can say that,
"The area of the painter on which he creates the forms is called the Space."
Importance of Space
All the elements of art are related in some way to the Space. All kinds of forms can be combined in the interval. The Space is not only a place to combine the form elements, but it is completely helpful in presenting different effects on the picture plane.
Space can be divided in two ways:-
(i) Equal Partition (ii) Unequal Partition
(i) Equal Partition:- To divide the landscape by the lines of equal division in such a way that the right and left planes are equal. By this division, the sense of strength and balance is displayed in the picture.
(ii) Unequal Partition: The division of Chitrabhoomi on the basis of imagination is called Unequal Partition. Motion and tension can be represented in the diagram by this division.
Apart from this, the artist is able to show the three-dimensional effect of the object on the two-dimensional picture plane. The perception of proximity, distance or density in objects can be combined by perspective in intervals.
Active and Auxiliary Interval:-
The most attractive place in the picture is called the active interval. In this, the main and important figures of the picture are combined. The remaining part of the picture that remains as the background is called the auxiliary gap. These two influence each other, the auxiliary figure is ensured on the basis of the main figure.
Bahut hi sahi, sundar
जवाब देंहटाएंor saaf vyakhya de rakhi h
I need know Principal of arts so please
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