शनिवार, 11 सितंबर 2021

विज्ञान एवं कला का अद्भुत मिश्रण तेलंगाना स्थित रामप्पा मंदिर।

            आप सभी को नमस्कार🙏 मेरा नाम विश्वजीत कुमार है और मैं भी आप लोगों की तरह जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी के पद पर निकली नियुक्ति की तैयारी कर रहा हूं तो मैंने सोचा कि क्यों ना हम साथ मिलकर तैयारी करें। इसलिए मैंने यह Blog लिखना शुरू किया है जिसमें प्रारंभिक परीक्षा के सभी महत्वपूर्ण विषय को पूरा कराया जाएगा। आज के इस लेख में हम तेलंगाना के रामप्पा मंदिर जिसको हाल ही में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची (World Heritage site) में शामिल किया गया है, इसके बारे में चर्चा करेंगे।

गौरवशाली अतीत का जीवित प्रमाणः सांस्कृतिक धरोहर के साथ भारत का रामप्पा मंदिर।

       तेलंगाना के रामप्पा मंदिर को हाल ही में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची (World Heritage site) में शामिल किया गया है। भारत के लिए यह गौरव का पल था तो विश्व के वैज्ञानियों के लिए एक अचंभा भी था। लगभग 800 साल पहले निर्मित रामप्पा मंदिर केवल एक सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं बल्कि यह ज्ञान-विज्ञान से पूर्ण भारत के गौरवशाली अतीत का जीवित प्रमाण भी है। यह पत्थरों पर उकेरा हुआ एक महाकाव्य है जो 800 वर्षों से भारत की वास्तुकला और विज्ञान की गाथा प्रस्तुत कर रहा है। 

       1213 ई० में तत्कालीन काकतीय वंश के राजा गणपति देव के मन में एक शिव मंदिर बनाने की प्रेरणा जगी। यह जिम्मेदारी उन्होंने सौंपी वास्तुकार रामप्पा को। उन्होंने अपने राजा की इच्छा को ऐसे साकार किया कि राजा को ही मोहित कर लिया। राजा इतना मोहित हुए कि उन्होंने मंदिर का नामकरण रामप्पा के ही नाम से कर दिया। आखिर राजा मोहित होते भी क्यों नहीं, रामप्पा ने राजा के भावों को बेजान पत्थरों पर उकेर कर करीब 40 वर्षों की मेहनत से उसे एक सुमधुर गीत जो बना दिया था। जी हां, रामप्पा ने 40 वर्षों में जो बनाया था वह केवल मंदिर नहीं था, वह विज्ञान का सार और कला का भंडार था। यह कलाकृति एक शिव मंदिर है जिसे रुद्रेश्वर मंदिर भी कहा जाता है।

       किसी शिल्पकार के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि उसके द्वारा बनाया गया मंदिर उसके नाम से ही जाना जाए। मशहूर खोजकर्ता मार्को पोलो ने जब इसे देखा था तो इसे 'मदिरों की आकाशगंगा का सबसे चमकीला सितारा' कहा था। दरअसल जब इस मंदिर का अध्ययन किया गया तो वैज्ञानियों और पुरातत्वेत्ताओं के लिए यह तय करना मुश्किल हो गया कि इसका कला पक्ष भारी है या इसका तकनीकी पक्ष।

      छह फुट ऊंचे सितारे के आकार के प्लेटफार्म पर बनाए गए एक हजार पिलर वाले इस मंदिर की नींव सैंडस्टोन पत्थर से तैयार की गई हैं एवं इसकी नींव में बालू भरी हुई है जो इसके भूकंपरोधी होने का प्रमाण है। इसे सैंडबॉक्स तकनीक कहा जाता है जो भूकंप के दौरान धरती के कंपन की तीव्रता को कम करके इसकी रक्षा करता है। इसके अलावा मंदिर की मूर्तियों और छत के अंदर बेसाल्ट पत्थर प्रयोग किया गया हैं। अब यह वाकई में आश्चर्यजनक है कि वह पत्थर जिसे डायमंड इलेक्ट्रानिक मशीन से ही काटा जा सकता है, वह भी केवल एक इंच प्रति घंटे के दर से। कल्पना कीजिए🤔 कि आज से 800 साल पहले भारत के पास केवल ऐसी तकनीक ही नहीं थी, बल्कि कला भी बेजोड़ थी। 

       इस मंदिर की छत और खंभों पर भी इतनी बारीक कारीगरी की गई है जो आज भी मुश्किल प्रतीत होती है क्योंकि उन पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियों की कटाई और चमक देखते ही बनती है। कला की बारीकी की इससे बेहतर और क्या मिसाल हो सकती है कि मूर्ति पर उसके द्वारा पहने गए आभूषण की छाया तक उकेरी गई है। आज भी इन मूर्तियों की चमक सुरक्षित है। इससे भी बड़ी बात यह है कि पत्थरों की ये मूर्तियां 3D हैं। 

        शिव जी के इस मंदिर में नंदी की मूर्ति इस प्रकार से बनाई गई है कि लगता है कि नंदी बस चलने ही वाले है। मंदिर की छत पर शिव जी की कहानियां उकेरी गई हैं तो दीवारों पर रामायण और महाभारत की। मंदिर में मौजूद शिवलिंग के तो कहने ही क्या? वह अंधेरे में भी चमकता है। आज एक बार फिर भारत की सनातन संस्कृति की चमक विश्व भर में फैल रही है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें