बुधवार, 22 सितंबर 2021

राष्ट्रीय चेतना के प्रखर उद्घोषक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को 113वीं जयन्ती पर सादर नमन🙏


राष्ट्रीय चेतना के प्रखर उद्घोषक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को 113वीं जयन्ती पर सादर नमन🙏

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           निराशा के अंधकार में खोई आत्मा को ज्योति प्रदान करने वाले, आत्मविश्वास और संघर्ष के कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म आज ही के दिन 23 सितम्बर 1908 को हुआ था। कविताओं में छायावाद तथा प्रगतिवादी स्वर के साथ राष्ट्रीय भावनाओं के गायक के रूप में उनकी कविता का मूल स्वर क्रांति, शौर्य व ओज है। उनका देहावसान 24 अप्रैल 1974 में हुआ परंतु उनकी कविता आज भी प्रासंगिक है।

 रामधारी सिंह  दिनकर  जी-

  के जन्म दिवस पर प्रस्तुत एक छोटी सी कविता।


 तेईस सितम्बर  सरस, सन उन्नीस सौ आठ।

रामधारी सिंह जी जन्मे, शुभ सेमरिया घाट।।


बिहार    बेगुसराय   में  है,  सेमरिया घाट।

हिन्दी का सूर्य हुवे, मिला  न  जिनका काट।।


दिनकरजी द्वार सृजित, कालजयी हर शब्द। 

वैभव  हिन्दी   का  अहा हूँ,  बर्णन निःशब्द।।


आज  जन्म जयंती  पर, संस्मरण  कर याद।

अतिहर्ष और गौरव की, सु-अनुभूति आबाद।।


        लेख के अंत में आप सभी के बीच प्रस्तुत है रामधारी सिंह दिनकर जी की एक रचना✍️


वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है 

थककर बैठ गये क्या भाई? मंजिल दूर नहीं है।

 चिनगारी बन गई लहु की बूंद गिरी जो पग से 

चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण-चिन्ह जगमग से। 

शुरू हुई आराध्य-भूमि वह, क्लान्ति नहीं रे राही 

और नहीं तो पाँव लगे हैं, क्यों पड़ने डगमग - से? 

बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है 

थककर बैठ गये क्या भाई ? मंजिल दूर नहीं है। 

रामधारी सिंह दिनकर✍️



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