काम और कलाएं
भारतीय कला आदर्श से ओत-प्रोत है, यहां पर कल्पना को अधिक महत्व दिया गया है, यहां के चित्रकारों ने शुरु से ही उन्मुक्त होकर अभिव्यक्ति की है। आज के लेख में हम चर्चा करेंगे पहाड़ी चित्रकला के बारे में जिसकी शुरुआत 1700 से 1900 तक मानी जाती है। पहाड़ी चित्रकला का मुख्यत: क्षेत्र पंजाब और हिमाचल की पहाड़ियां है। इस शैली की खोज सर्वप्रथम मैटकॉफ़ एवं उनके बाद डॉ० आंनद कुमार स्वामी ने 1910 में की थी। उसके उपरांत उन्होंने सर्वप्रथम सभी चित्रों को इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शित भी किया। पहाड़ी चित्रकला शैली एकमात्र ऐसी शैली है जिसका जन्म लोक कला (Folk Art) से हुआ है। इस चित्र शैली में हमें नारी का सुंदर अंकन देखने को मिलता है इसके अलावा कृष्ण-लीला से संबंधित चित्र भी निर्मित किए गए हैं। पहाड़ी चित्रकला की उपशैलियां- बसोहली/बसौली, चम्बा, कांगड़ा और गुलेर शैली में कृष्ण को भगवान् की तरह नहीं बल्कि एक आम आदमी की तरह चित्रित किया गया है। हालाँकि सभी चित्रकारों ने इन चित्रों को भारतीय रीतिकालीन साहित्य से प्रेरणा लेकर ही चित्रित किया है। ये सब ईश्वर या भगवान को मानवीय स्वरूप में ढालने की कोशिश मात्र है।
विदेशी कला इतिहास में भी सौन्दर्य की देवी वीनस को चित्रण करने के लिए किसी चर्चित वेश्या को मॉडल बनाया था।
मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है जो निम्न है:-
- धर्म
- अर्थ
- काम
- मोक्ष।
साभार:- रवींद्र दास
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