'लोकोक्ति' का अर्थ है 'लोक में प्रचलित उक्ति'। जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धृत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को 'कहावत' भी कहते हैं।
उदाहरण :- उस दिन बात ही बात में राम ने कहा- हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इस पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता'। यहाँ 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है 'एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता'।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर
(i) मुहावरा वाक्यांश होता है, जबकि लोकोक्ति एक पूरा वाक्य। दूसरे शब्दों में, मुहावरों में उद्देश्य और विधेय नहीं होता, जबकि लोकोक्ति में उद्देश्य और विधेय होता है।
(ii) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है, उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है।
लोकोक्तियाँ/कहावतें एवं उनके अर्थ
अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप
मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ को सँजोना
अधजल गगरी छलकत जाय
थोड़ी विद्या, धन या बल होने पर इतराना
अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना
निर्दयी या मूर्ख के आगे दुःखड़ा रोना बेकार होता है
अपनी करनी पार उतरनी
किये का फल भोगना
अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे
अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना
अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग
परस्पर संगठन या मेल न रखना
आप डूबे जग डूबा
जो स्वयं बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा समझता है
आग लगन्ते झोंपड़ा जो निकले सो लाभ
नष्ट होती हुई वस्तुओं में से जो निकल आये वह लाभ ही है
आग लगाकर जमालो दूर खड़ी
झगड़ा लगाकर अलग हो जाना
आगे नाथ न पीछे पगहा
अपना कोई न होना, घर का अकेला होना
आगे कुआँ, पीछे खाई
हर तरफ हानि की आशंका
ईंट का जवाब पत्थर
दुष्ट के साथ दुष्यता करना
आँख का अंधा नाम नयनसुख
गुण के विरुद्ध नाम
आधा तीतर आधा बटेर
बेमेल स्थिति
आप भला तो जग भला
स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा
आम का आम गुठली का दाम
सब तरह से लाभ-ही-लाभ
आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास
करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और
इतनी - सी जान, गज भर की जबान
छोटा होना पर बढ़ - बढ़कर बोलना
इस हाथ दे, उस हाथ ले
कर्मों का फल शीघ्र पाना
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं कहीं छाया
कही सुख, कहीं दुःख
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे
अपराधी ही पकड़ने वाले को डाट लगाये
ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी
बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा
ऊँची दूकान फीका पकवान
बाहर ढकोसला भीतर कुछ नहीं
ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर-घर एकै लेखा
सभी एक समान
ऊँट किस करवट बैठता है
किसकी जीत होती है
ऊँट के मुँह में जीरा
जरूरत से बहुत कम
ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी
जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना
ऊधो का लेना न माधो का देना
लटपट से अलग रहना
एक पंथ दो काज
एक नहीं, दो लाभ
एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा
बुरे का और बुरे से संग होना
उद्योगिनं पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी
उद्योगी को ही धन मिलता है
एक अनार सौ बीमार
एक वस्तु को सभी चाहनेवाले
एक तो चोरी दूसरे सीनाजोरी
दोष करके न मानना
एक म्यान में दो तलवार
एक स्थान पर दो उग्र विचार वाले
ओछे की प्रीत बालू की भीत
नीचों का प्रेम क्षणिक
ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती
अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता
कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भींगे पानी
प्रकृति विरुद्ध काम
कहाँ राजा भोज कहाँ भोजवा (गंगू) तेली
छोटे का बड़े के साथ मिलान करना
कहे खेत की, सुने खलिहान की
हुक्म कुछ और करना कुछ और
कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा
इधर-उधर से सामान जुटाकर काम करना
काला अक्षर भैंस बराबर
निरा अनपढ़
काबुल में क्या गदहे नहीं होते
अच्छे बुरे सभी जगह हैं
का वर्षा जब कृषि सुखाने
मौका बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है
काठ की हांड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती
कपट का फल अच्छा नहीं होता
किसी का घर जले, कोई तापे
दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना
खरी मजूरी चोखा काम
अच्छे मुआवजे में ही अच्छा फल प्राप्त होना
खोदा पहाड़ निकली चुहिया
कठिन परिश्रम, थोड़ा लाभ
खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा
अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को
गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध
बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं
गुड़ खाय गुलगुले से परहेज
बनावटी परहेज
गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा
पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढ़ना
गाछे कटहल, ओठे तेल
काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा
गरजे सो बरसे नहीं
बकवादी कुछ नहीं करता
गुरु गुड़, चेला चीनी
गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना
घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा
हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना
घर पर फूस नहीं, नाम धनपत
गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना
घर का भेदी लंका ढाए
आपस की फूट से हानि होती है
घर की मुर्गी दाल बराबर
घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना
घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना
दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना
घी का लड्डू टेढ़ा भला
लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो
चोर की दाढ़ी में तिनका
जो दोषी होता है वह खुद डरता रहता है
चूहे घर में दण्ड पेलते हैं
अभाव ही अभाव
चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय
महा कंजूस
उठेरे - ठठेरे बदलौअल
चालाक को चालक से काम पड़ना
ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका
एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना
तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा
जितने आदमी उतने विचार
तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे (छाती फाटे)
खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालूम हो
तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता
शेखी बघारना
तीन लोक से मथुरा न्यारी
निराला ढंग
तुम डाल-डाल तो हम पात-पात
किसी की चाल को खूब समझते हुए चलना
दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली
कम साधारण, खर्च अधिक
दूर का ढोल सुहावना
दूर से कोई चीज अच्छी लगती है।
देशी मुर्गी, विलायती बोल
बेमेल काम करना
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का
निकम्मा, व्यर्थ इधर - उधर डोलनेवाला
नक्कारखाने में तूती की आवाज
सुनवाई न होना
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी
न बड़ा प्रबंध होगा न काम होगा
रोजा बख्शाने गये, नमाज गले पड़ी
लाभ के बदले हानि
न देने के नौ बहाने
न देने के बहुत से बहाने
न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी
झगड़े के कारण को नष्ट करना
थूंक कर चाटना ठीक नहीं
देकर लेना ठीक नहीं, वचन - भंग करना, अनुचित
दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी
मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान
दाल-भात में मूसलचन्द्र
बेकार दखल देना
दुधारू गाय की दो लात भी भली
जिससे लाभ होता हो, उसकी बातें भी सह लेनी चाहिए
दूध का जला मठ्ठा भी फूंक-फूँक कर पीता है
एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना
नदी में रहकर मगर से वैर
जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना
नाच न जाने आँगन टेढ़ा
खुद तो ज्ञान नहीं रखना और सामग्री या दूसरों को दोष देना
नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च
काम साधारण, खर्च अधिक
नौ नगद, न तेरह उधार
अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा
नीम हकीम खतरे जान
अयोग्य से हानि
नाम बड़े पर दर्शन थोड़े
गुण से अधिक बड़ाई
पढ़े फारसी बेचे तेल देखो यह किस्मत (यह कुदरत) का खेल
भाग्यहीन होना
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं
पराधीनता में सुख नहीं
पहले भीतर तब देवता-पितर
पेट-पूजा सबसे प्रधान
पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची
जबरदस्ती किसी के सर पड़ना
पराये धन पर लक्ष्मीनारायण
दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना
पानी पीकर जात पूछना
कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना
पंच परमेश्वर
पाँच पंचों की राय
नाचे कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान
आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है
बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल
श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद
मूर्ख गुण की कद्र करना नहीं जानता
मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी
जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हो तो दूसरे को इसमें क्या काम
मोहरों की लूट, कोयले पर छाप
मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना
मानो तो देव, नहीं तो पत्थर
विश्वास ही फलदायक
मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते
मुफ्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ
रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी
बुरी हालत में पड़कर भी अभिमान न त्यागना
रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी
अधिक मजाक बुरा
लश्कर में ऊँट बदनाम
दोष किसी का, बदनामी किसी की
लुट में चरखा नफा
मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा
लेना-देना साढ़े बाईस
सिर्फ मोल-तोल करना
सब धान बाईस पसेरी
अच्छे-बुरे सबको एक समझना
सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को
जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना
साँप मरे पर लाठी न टूटे
अपना काम हो जाय पर कोई हानि भी न हो
सीधी उँगली से घी नहीं निकलता
सिधाई से काम नहीं होता
सारी रामायण सुन गये , सीता किसकी जोय (जोरू)
सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना
हाथ कंगन को आरसी क्या
प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या
हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार
उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए
हाथी के दाँत दिखाने के और खाने के और
बोलना कुछ करना कुछ
हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत
बेमौका
हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान
नीच का सम्मान
बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा
जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को नहीं समझ सकता
बिल्ली के भाग्य से छींका (सिकहर) टूटा
संयोग अच्छा लग गया
बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय
जैसी करनी, वैसी भरनी
बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी
भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी
बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया
बहुत बड़ा घाटा
बेकार से बेगार भली
चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना
बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह
बड़ा तो जैसा है, छोटा उससे बढ़कर है
भइ गति सौंप-छछूंदर केरी
दुविधा में पड़ना
भैंस के आगे बीन बजावे, भैंस रही पगुराय
मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।
भागते भूत की लँगोटी ही सही
जाते हुए माल में से जो मिल जाय वही बहुत है
माले मुफ्त दिले बेरहम
मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना
मियाँ की दौड़ मस्जिद तक
किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सीमित होना
मन चंगा तो कठौती में गंगा
हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक
मुँह में राम, बगल में छुरी
कपटी
मान न मान मैं तेरा मेहमान
जबरदस्ती किसी के गले पड़ना
मेढ़क को भी जुकाम
ओछे का इतराना
मार-मार कर हकीम बनाना
जबरदस्ती आगे बढाना
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