रविवार, 20 फ़रवरी 2022

पाल कला Paal Kala

 
सामान्य परिचय:-
         कला किसी भी संस्कृति की मूलभूत पहचान होती हैं। इस दृष्टि से पूर्व मध्यकालीन बिहार (08वीं - 12वीं सदी) में विकसित पाल कला का विशेष महत्व है क्योंकि इससे ना केवल मौर्य काल से विकसित हो रहे कला परंपरा को निरंतरता एवं विस्तार प्रदान किया बल्कि इसे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित एवं प्रसारित भी किया। इस काल में विकसित विभिन्न कला रूप स्थापत्य, मूर्ति एवं चित्रकला को निम्न रूप में देखा जा सकता है-

(1) स्थापत्य कला:-

     पाल कला के दौरान धार्मिक एवं निवास स्थान दोनों रूपों में स्थापत्य कला का विकास हुआ। स्थापत्य के विभिन्न रूपों को हम निम्न बिंदुओं में देख सकते हैं-

(i) महाविहार:- 

     पाल कला के दौरान महाविहारो का निर्माण, बौद्ध भिक्षुओं के निवास तथा शिक्षा के केंद्र के रूप में हुआ। महाविहारो की संरचनात्मक विशेषता को हम निम्न आकृति में देख सकते हैं-

  • खुले आंगन 
  • आंगन के पीछे 
  • बरामदे के पीछे कमरे 
  • कुछ कमरे दो मंजिलें तथा उनपर जाने के लिए सीढ़िया 
  • पक्की ईंटों से निर्मित
      पाल कला में बने कुछ महाविहारो के उदाहरण को निम्न बिंदुओं पर देख सकते हैं- 
  • उदंतपुरी महाविहार - गोपाल 
  • विक्रमशिला महाविहार - धर्मपाल 
  • सोमपुर महाविहार - धर्मपाल
(ii) चैत्य:-
        यह बौद्ध मंदिर थे एवं बौद्ध पूजा केंद्रों के रूप में प्रसिद्ध थे। चैत्यों के निर्माण की परंपरा भले ही प्राचीन हो लेकिन इसके स्वरूप में पाल कला के दौरान अत्यधिक विस्तार हुआ। साथ ही बड़ी संख्या में पाल शासकों ने चैत्यों का निर्माण करवाया। इसके कई प्रमाण बिहार के विभिन्न भागों से प्राप्त होते हैं।

(iii) मंदिर:-

           पाल शासक बौद्ध धर्म को मानते थे परंतु उन्होंने हिंदू मंदिरों के निर्माण को भी प्रोत्साहन दिया। इस काल में बने मंदिर नागर शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

पाल काल में बने कुछ हिंदू मंदिर-

  1. कहलगांव (भागलपुर) का गुफा मंदिर 
  2. गया में स्थित विष्णुपद मंदिर 
विष्णुपद मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता उसमें निर्मित अर्द्धमंडप है।

(iv) स्तूप:-

         स्तूप बौद्ध धर्म के प्रमुख धार्मिक केंद्र थे। पाल शासन के दौरान स्तूप का निर्माण किया गया। इस काल में स्तूपो की संरचना को और व्यवस्थित रूप मिला। इसकी संरचनात्मक विशेषता को निम्न आकृति में देख सकते हैं-


(2) मूर्तिकला 

       पाल कला के दौरान मूर्तिकला के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ। मूर्तियों का निर्माण कांसे एवं पत्थर दोनों रूपों में निर्मित होने लगा।

(i) कांसे की मूर्ति:- ये पाल कला की सर्वश्रेष्ठ कला उपलब्धि मानी जाती है। कांसे की मूर्तियों का निर्माण सांचे में ढालकर की जाती थी, इसमें अलंकरण की प्रधानता थी। नालंदा निवासी धीमन विठपाल दो प्रमुख मूर्तिकार थे, जो धर्मपाल एवं देवपाल के समकालीन थे। कांसे की इन मूर्तियों की कलात्मकता की तुलना चोल काल में निर्मित कांसे की नटराज मूर्ति से की जाती है। कांसे की इन मूर्तियों में बौद्ध एवं हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों का निर्माण किया गया। जिनमें बौद्ध, बोधिसत्व, विष्णु, बलराम, आदि प्रमुख है। कांसे की ये मूर्तियां नालंदा, कुरकीहार (गया), सुल्तानगंज से प्राप्त हुई है। 

(ii) पत्थर की मूर्ति:- पाल काल में कांसे के अतिरिक्त पत्थर की मूर्तियों का भी निर्माण हुआ। इन मूर्तियों का निर्माण काले बेसाल्ट पत्थर से होता था जो संथाल परगना एवं मुंगेर से प्राप्त होती थी। इन मूर्तियों में भी अलंकरण पर जोर दिया जाता था।

(iii) चित्रकला:- पाल कला में स्थापत्य एवं मूर्तिकला के साथ-साथ चित्रकला के भी विभिन्न रूपों का विकास हुआ। जिन्हें दो भागों में विभाजित कर देखा जा सकता है- 
  • पांडुलिपि चित्र:- यह चित्र मुख्यत: ताम्रपत्रो पर होता था जिसका उपयोग सजावट के लिए किया जाता था। इन चित्रों में लाल, काला, नीला, सफेद के साथ-साथ हरा रंग एवं बैगनी रंगों का प्रयोग किया जाता था। इसके प्रमुख उदाहरण "अष्टसह्रसरिक प्रज्ञापारमिता" एवं पंचरक्ष है जो वर्तमान में ब्रिटेन के कैंब्रिज संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
  • भित्तिचित्त इसका निर्माण दीवारों, गुफाओं आदि के चित्रण के लिए किया जाता था। इन चित्रों में फल-फूल, पशु, मानव तथा ज्यामितीय रूप की प्रधानता है। इसके प्रमुख उदाहरण सराय किला (नालंदा) से प्राप्त हुआ है। एक तख्ती पर महिला द्वारा श्रृंगार करते हुए अपने रूप को निहारते चित्र को प्रदर्शित किया गया है जो कला के साथ-साथ मानवीय मनोवृति को प्रदर्शित करता है।
आलोचना:-

  • स्थापत्य कला में अत्यधिक ईटों का प्रयोग हुआ है, पत्थर का प्रयोग बहुत कम दिखाई देता है। जिस वजह से इमारते स्थायित्व नहीं है। 
  • मूर्तियों में अग्रभाग पर जोर जबकि पिछला भाग पूर्णत: समतल 
  • मूर्तियों में अलंकरण की प्रधानता है जिससे वास्तविक सुंदरता का छुप जाना। 
  • कला के विभिन्न रूपों में धार्मिक विषय पर अधिक जोर तथा स्थानीयता को कम महत्व।

समीक्षा/निष्कर्ष:-

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि पाल शासन के दौरान कला के विविध रूपों का अभूतपूर्व विकास हुआ इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि त्रिपक्षीय संघर्ष में निरंतर व्यस्त होने के बावजूद भी पाल शासकों ने कला परंपरा को एक नई ऊंचाई प्रदान की।

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