मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

मौर्य कला Mourya Kala.

       कला किसी काल के मानवीय कल्पनाओ के मृत रूप को प्रदर्शित करता है। भारतीय इतिहास में कला परंपरा का विकास सिंधु घाटी सभ्यता से ही प्रारंभ हुआ परंतु स्थाई एवं निरंतर कला परंपरा का विकास मौर्य काल से ही माना जाता है क्योंकि मौर्य काल से पूर्व लकड़ी एवं मिट्टी के कला रूपों का विकास हुआ जिसमें निरंतरता का अभाव रहा।

         मौर्य कला शैली जहां स्थानीय एवम भारतीय परंपरा शैली एवं विदेशी ईरानी शैली को सम्मिश्रित रूप से प्रदर्शित करते हैं, जबकि इस पर कहां तक ईरानी प्रभाव हैं यह एक विमर्श का विषय हैं।

 कला समीक्षकों के अनुसार मौर्य काल में समृद्ध राजनीतिक स्थिति में कला के विभिन्न रुपों का विकास हुआ। राजकीय संरक्षण में जहां स्थापत्य कला को प्रधानता दी गई वही स्थानीय लोक-कला में मूर्ति कला का अभूतपूर्व विकास हुआ। 

(1) स्थापत्य कला:- शक्तिशाली केंद्रीय शासन व्यवस्था के दौरान स्थापत्य कला के विभिन्न रूप यथा- राजप्रसाद, स्तंभ, स्तूप एवं बिहार का अभूतपूर्व विकास हुआ। 

(क) राजप्रसाद:- मौर्य काल में चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित राजप्रसाद (पाटलिपुत्र में स्थित) अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध था 80 स्तम्भो वाला सभा भवन, लकड़ी के फर्श एवं छत 140 फुट लंबा एवं 120 फुट चौड़ा राजप्रसाद की प्रमुख विशेषताएं थी। 

         यूनानी यात्री एरियन ने इसकी भव्यता की तुलना सुशा एवं एकबतना (मध्य एशिया) के राजप्रसादो से की है। चीनी यात्री फाहियान ने तो इसकी तुलना देवताओं द्वारा निर्मित राजप्रसाद से कर चुके है। मेगास्थनीज पाटलिपुत्र नगर की विशेषताओं का वर्णन अपनी पुस्तक इंडिका में किया है।

(ख) स्तम्भ:- स्तम्भ कला परंपरा का विकास भारत में मौर्य काल से ही हुआ। अशोक ने इसका निर्माण मुख्यत: धम्म के प्रचार के लिए करवाया और भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में स्थापित करवाया। इन स्तम्भो की प्रमुख विशेषताएं हैं-

  • एकाश्म पत्थर से निर्मित 
  • चुनाव एवं मथुरा के लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ। 
  • चमकदार पॉलिश का प्रयोग 
  • इसकी  संरचनात्मक विशेषता को निम्न आकृति में देखा जा सकता है-

 


  • सिंह - लौरिया नंदनगढ़, वैशाली 
  • हाथी - संकिसा (उत्तर प्रदेश) 
  • बैल - लौरिया अरेराज, रामपुरवा।
(ग) स्तूप:- स्तूप कला का निर्माण मौर्य काल से पहले से चला आ रहा था परंतु इसमें व्यवस्थित संरचनात्मक रूप मौर्य काल के दौरान ही प्राप्त हुआ। स्तूप वास्तव में बौद्ध धर्म से जुड़ा एक धार्मिक स्थल है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, अशोक ने 84000 बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था। हालांकि इसकी प्रमाणिकता संदिग्ध है। फिर भी, साची, भरहुत, केसरिया स्तूप मौर्य काल में बने प्रमुख स्तूप हैं। इसकी संरचनात्मक विशेषता को निम्न आकृति में देखा जा सकता है-

(घ) विहार:- विहार मुख्यत: भिक्षुओं के निवास केंद्र होते थे। मौर्य काल में पहाड़ों को काटकर गुफा विहारो का निर्माण कराया गया। गया के बराबर एवं नागार्जुनी पहाड़ों में गुफा विहार के प्रमाण मिलते हैं। इनका निर्माण मुख्यतः अशोक एवं उसके पौत्र दशरथ ने करवाया था। सुदामा, कर्णचौपार, गोपी, वडथिका, विश्व खोपड़ी, आदि। गुहा विहारो के उदाहरण हैं।
        ये गुहा बिहार वर्गाकार या आयताकार रूप में बने थे जिनके दीवारों एवं छत पर चमकदार पॉलिश की गई थी।

(2) मूर्तिकला:- मौर्य काल के दौरान मूर्तिकला के रूप में भी कला का अभूतपूर्व विकास हुआ। इस कला में विकसित मूर्तिकला को दो वर्गों में विभाजित कर देखा जा सकता है- 

(क) स्तम्भ के ऊपर:- स्तम्भ के ऊपर मूर्तिकला का विकास राजकीय संरक्षण में हुआ। इसमें मुख्यत: पशुओं की आकृति को प्रधानता दी गई। सिंह, हाथी, बैल, आदि। प्रमुख थे। इसमें सबसे प्रसिद्ध शेर की मूर्ति है जो सारनाथ स्तंभ से प्राप्त हुई है। चार शेरो की ये कलात्मक मूर्तिकला के अद्भुत रूप को प्रदर्शित करते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि स्वतंत्रता के उपरांत इस शेर आकृति को राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अपनाया गया तथा इसके नीचे अंकित 24 तिलियो वाले चक्र को राष्ट्रीय ध्वज🇮🇳 के मध्य अंकित किया गया।

प्रमुख स्तंभ जहां से यह पशु मूर्तियां मिली है-

  • सिंह - लौरिया नंदनगढ़, सारनाथ, वैशाली 
  • हाथी - संकिसा 
  • बैल - लौरिया अरेराज, रामपुरवा 
(ख) स्वतंत्र रूप से विकसित मूर्तिकला:-  केंद्रीय संरक्षण के अतिरिक्त मौर्य काल में स्थानीय स्तर पर भी मूर्तिकला का अभूतपूर्व विकास हुआ। स्थानीय स्तर पर निर्मित यक्ष-यक्षणियों की मूर्ति लोक प्रतीकों का सूचक थी जो आगे चलकर देवी-देवताओं के रूप में विकसित हुई। कलात्मक रूप से निर्मित यह मूर्तियां अपने आप में जीवंत प्रतीत होती है। इन पर की गई चमकदार पॉलिश इन्हें और सुंदर रूप प्रदान करते हैं। इनके प्रमुख साक्ष्यों को निम्नलिखित रूप में देख सकते हैं- 
  • दीदारगंज (पटना) - यक्षिणी की मूर्ति 
  • बुलंदी बाग (पटना) - नारी एवं बालक की मूर्ति 
  • लोहानीपुर (पटना) - जैन तीर्थंकर की मूर्ति 
  • परखम (मथुरा) - यक्ष की मूर्ति 
  • धौलि (ओडिशा) - हाथी की मूर्ति 
(3) अन्य:- स्थापत्य एवं मूर्तिकला के अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर कला के अन्य रूपों का भी विकास हुआ। मौर्य काल के दौरान निर्मित मृदभांड के कई अवशेष बिहार एवं भारत के अन्य भागों से प्राप्त हुए हैं। मौर्य काल में निर्मित उत्तरी काशी पॉलिश मृदभांड कला के सुंदर रूप को प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर निर्मित घेरेदार कुएं भी कला के विशेष रूप को प्रदर्शित करते हैं।

*आलोचना:-
  • कुछ प्रसिद्ध विद्वान जैसे- जॉन मार्शल, पर्सी ब्राउन, आदि मौर्य कला को ईरानी कला की देन के रूप में मानते हैं। 
  • मौर्यकालीन राजप्रसाद को ईरान के आखमेनिया वंश द्वारा निर्मित राजप्रसाद की नकल मानते हैं। 
  • मौर्य काल में शुरू स्तम्भ परंपरा की भी ईरानी एकदम परंपरा की नकल मानते हैं।

मौर्य कला एवं ईरानी कला में अंतर


समीक्षा/निष्कर्ष:- मौर्य काल भारतीय इतिहास में राजनैतिक एकीकरण के दौर का प्रारंभिक बिंदु माना जाता है। ठीक उसी प्रकार मौर्य काल में विकसित मौर्य कला भारतीय परंपरा का प्रस्थान बिंदु है। इस काल के दौरान विकसित कला परंपरा आज भी कला प्रेमियों के मध्य प्रेरणा का विषय बना हुआ है।



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