शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

वहाबी आंदोलन। Wahabi Movement. Wahabi Aandolan.

वहाबी आंदोलन

        वहाबी आंदोलन 1828 से प्रारंभ होकर 1888 तक चलता रहा। इस विद्रोह के प्रवर्तक रायबरेली के सैयद अहमद थे। इस आंदोलन का मुख्य केंद्र बिहार का पटना शहर था, पटना के विलायत अली और इनायत अली इस आंदोलन के प्रमुख नायक थे। यह आंदोलन मूल रूप से मुस्लिम सुधारवादी आंदोलन था जो उत्तर पश्चिम, पूर्वी भारत तथा मध्य भारत में सक्रिय था।


        सैयद अहमद इस्लाम धर्म में हुए सभी परिवर्तन तथा सुधारों के विरुद्ध थे उनकी इच्छा थी कि हजरत मोहम्मद के समय की इस्लाम धर्म को पुनः स्थापित किया जाए। सैयद अहमद पंजाब के सिक्खों और बंगाल में अंग्रेजों को अपदस्थ कर मुस्लिम शक्ति को पुनः स्थापित करने के पक्षधर थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को शस्त्र धारण करने के लिए प्रशिक्षित किया तथा वे स्वयं भी सैनिक वेशभूषा धारण किया।


       सैय्यद अहमद पेशावर पर आक्रमण कर 1830 में कुछ समय के लिए अधिकार कर लिया था और इसके अतिरिक्त सैयद अहमद ने अपने नाम के सिक्के भी चलाए थे।


        इस संगठन ने संपूर्ण भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध भावनाओं का प्रचार प्रसार किया, 1857 में इस विद्रोह का नेतृत्व पीर अली ने किया था जिन्हें कमिश्नर टेबलू ने वर्तमान एलिफिस्टन सिनेमा (पटना) के सामने एक बड़े पेड़ पर लटका कर फांसी दिलवा दी थी, ताकि जनता में दहशत फैले और इसके अतिरिक्त पीर अली के अनुनायियों को भी फांसी पर लटका दिया गया।


विद्रोह की असफलता के कारण


      1857 ईसवी के सिपाही विद्रोह में वहावी लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से विद्रोह में भाग नही लिया, बल्कि वे अंग्रेजो के खिलाफ लोगों को भड़काने का प्रयास किया। जिसके परिणाम स्वरूप 1860 के बाद अंग्रेजी हुकूमत इस विद्रोह को कुचलने में सफल रहे।

     वहाबी विद्रोह के बारे में यह कहा जाता है कि यह विद्रोह 1857 के विद्रोह की तुलना में कहीं अधिक नियोजित संगठित और सुव्यवस्थित था। 

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