जानेमन अनिशा,
प्यार भरा चुम्मा।😘 पिछली बार गोड़ छू के परनाम🙏 किये थे। इस बार मन हो रहा कि तुम्हारे सामने लोट जाएं और सैंडिल छुएं। पिछले सतरह बार से प्रेम-पत्र💌 लिखते-लिखते✍️ मन लेखक और कवि हुआ जा रहा है मगर तुम हो कि पिघल ही नहीं रही हो, एकदमे से ठंडा में जमल वनस्पति डालडा हो गयी हो।
जैसे बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर तीनों एक साथ कन्याकुमारी के पास आकर मिलते हैं तुम भी उसी तरह हमसे मिली थी। दक्षिण में परमोदवा था, पश्चिम में सुनिलवा और पूरब में हम थे। एक पल को तो लगा की तुम त्रिपुरा हो गयी हो जिसे बांग्लादेश ने तीनों तरफ से घेर रखा है पर तुमने हँसते मुस्कुराते पूरब दिशा को चुना था।
उसी दिन अपन गाँव के जीन बाबा से लेकर ब्रहम बाबा ओउरी काली माई से लेके भोले बाबा तक को बताशा चढ़ाये थे, दुआर पर अगरबत्ती खोंसे थे। मनोहर बs भौजी के गोड़ रंग आये थे। धान ओसाये थे, गाय को नहलाये थे। माँ के हिस्से का गुदरा फ़ीच कर सुखाये थे....... और क्या-क्या लिखें कि उस दिन हम क्या-क्या कार्य नहीं किए थे। बस यह समझो कि पूरा दिन तुम्हारे लिए कुर्बान था।
तब से लेके आज तक जब भी पुरबारी हवा बहा है मन अनिशामय हो गया है। फूलों जैसी वो मुस्कान याद आती है। याद आता है कि कैसे तुमने दुपट्टा में उँगली लपेट कर सेकंड से भी कम समय में सभी दिशाओं को नकारकर पूरब हो जाना चुना था, की.......
हम अपने इख़्तियार की हद से गुजर गए।
चाहा तुम्हें तो प्यार की हद से गुजर गए।।
याद तो ये भी आ रहा है कि यही कोई स्कूल से लौटने का समय था। उस दिन तुम स्कूल नहीं आयी थी। शायद सब्जी काट रही थी। हमने तुम्हारे दुआरी पर खड़े होकर पूछा था- क्या काट रही हो अनिशा?
फिर क्या था.... तुम्हारी माई हँसुआ, खुरपी लेकर मुझे काटने दौड़ गयी। बोलती है कोईरी-गावां के लईका सब धैल आवारा हो गईल बाड़सन।
जानती हो अनिशा ई बात नाs गाँव के स्कूल तक पहुँच गयी। अगले दिन गणित के माटसाब बारह का स्क्वायर करके एक सौ चौयालिस डंडा पीटे थे और पीटी टीचर ने मुर्गा से लेकर शुतुरमुर्ग बनने तक का डार्विनवाद अभ्यास करवाया था।
मैं मार खाते-खाते, तुम्हारे आँखो में आँसू देखते रहा।
मुझे ये भी याद है कि उस दिन अंग्रेजी की आखिरी कक्षा थी और छुट्टी के समय तुमने उसी मरखण्ड मास्टर के कुर्सी पर चढ़कर लिखा था-
ए से अनिशा, बी से विश्वजीत ....पी से प्यार।
ये पढ़कर तो मेरे सारे दर्द दूर हो गए और आशीष जोग की एक पंक्ति याद आयी थी-
बड़ा बेदर्द है ये दर्द अब सहूँ कैसे,
है देने वाला कौन ये भी मैं कहूँ कैसे।
अच्छा सुनो, अब जाने दो। तुम्हारी यादें मन के पन्नों पर जो कैद है उसे तुम्हारे लिए चिट्ठियों📨 में कैद करके भेज रहा हूँ। इसे सीने से लगाकर अपना मान लेना।
आँसू आये तो दुपट्टे के कोरी से पोछ लेना यदि न आये तो दुपट्टा पानी से भींगाकर आँख का कोरी पोछ लेना।
तुम्हारा विश्वजीत✍️
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