शकुंतला
(1898, कैनवस पर तैल, संग्रह: श्री चित्रा आर्ट गैलरी, त्रिवेंद्रम)
बीज रूप में शकुंतला की कथा महाभारत में भी है, लेकिन जब कालीदास ने "अभिज्ञानशाकुंतलम" के रूप में इसकी पुनर्रचना की तो उनके इस नाटक को गौरव ग्रंथ होने का सौभाग्य मिला। गेटे ने भी इस नाटक की भूरी-भूरी प्रशंसा की है। रवि वर्मा के इस चित्र में ऋषि कन्या शकुंतला अपने पैर से कांटा निकालने के बहाने पीछे मुड़कर दुष्यंत को कामना भरी नज़रों से देख रही हैं।
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