भगवान महावीर और उनसे जुड़े साधु-संतों ने मनुष्य को अध्यात्म के राह पर चलते हुए जीवन जीने की सीख दी। हिंसा और पाप कर्मों से मुक्त रहने को कहा। ऐसी ही एक कहानी है भगवान महावीर की पहली शिष्या चंदनबाला की। जिन्हें पूर्व जन्मों के कर्मों का फल भोगना पड़ा।
भगवान महावीर के साधना काल के दौरान राजकुमारी चंदनबाला हुईं। उन्होंने राजा के युद्ध हारने के बाद राज्य छोड़ दिया। वे एक मानव तस्कर के चंगुल में फंस गईं और उन्हें एक सेठ को बेच दिया गया। लेकिन सेठ चंदनबाला को घर लाकर बेटी की तरह पालने लगा। सेठ की पत्नी उससे नाराज थी और एक बार जब सेठ बाहर गया तो उसने चंदनबाला का सिर मुंडकर उसे बेडियों से जकड़ तहखाने में कैद कर दिया। सेठ जब लौटा तो उसने पत्नी के द्वारा कैद चंदनबाला को तहखाने से बहार निकाला। इसी वक्त भगवान महावीर स्वामी अपना उपवास खत्म कर लौट रहे थे। उनकी इच्छा थी कि एक सिर मुंडाकर दरवाजे पर खड़ी महिला उनके व्रत का पारणा करवाए। जैसे ही वे आगे बढ़े तो उन्हें चंदनबाला मिली और उन्होंने व्रत का पारणा किया। उन्होंने चंदनबाला से कहा कि तुमने जो कष्ट झेला वह पूर्व जन्म का परिणाम है। इसके साथ ही धर्म मार्ग पर चलने के लिए चंदनबाला ने दीक्षा ली और भगवान महावीर स्वामी की पहली शिष्या बनीं।
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