शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

समास (Samas)

 


समास किसे कहते हैं ? 

परिभाषा - दो या दो से अधिक पदों के मेल से बने पद को समास कहते हैं। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं :-

 १. समास में कई पदों का मेल होता है। 

२. कई पद मिलकर एक पद बन जाते हैं। 

३. इन कई पदों के बीच का विभक्ति - चिह्न लुप्त हो जाता है। 

४. पदों में कभी पहला और कभी अन्तिम पद प्रधान होता है, कभी सभी पद प्रधान होते हैं। 

एक उदाहरण इस मिलकर हैं-

'राजपुरुष' इसमें दो पद हैं- 'राजा' और 'पुरुष' दोनों पद मिलकर एक हो गये हैं। दोनों पदों के बीच का विभक्ति-चिह्न 'का' लुप्त है। इसमें दूसरा पद 'पुरुष' प्रधान है। अतः यह पुरुष समास है । 


समास के भेद 

समास के मुख्य छह भेद हैं। 

(१) तत्पुरुष समास 

(२) कर्मधारय समास 

 (३) बहुब्रीहि समास 

(४) द्वन्द्व समास 

(५) द्विगु समास 

(६) अव्ययीभाव समास।

१. तत्पुरुष समास- इसमें पहला पद प्रायः संज्ञा या विशेषण होता है और दूसरा पद संज्ञा होता है। दूसरा पद प्रधान होता है। पहला पद में कर्त्ता को छोड़ शेष सभी कारक पद आते हैं, किन्तु समाप्त होने पर उनके विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है। 

जैसे:-

(क) कर्म - तत्पुरुष  - 

  • स्वर्ग प्राप्त - स्वर्ग (को) प्राप्त 
  • सिरतोड़ - सिर (को) तोड़ने वाला 
  • चिड़ीमार - चिड़ियों (को) मारने वाला 
(ख) करण - तत्पुरुष - 

  • पददलित - पद (से) दलित 
  • कुठाराघात - कुठार (से) आघात 
  • तुलसीकृत — तुलसी (से) किया हुआ 
(ग) सम्प्रदान - तत्पुरुष - 

  • देशभक्ति - देश (के लिए) भक्ति 
  • विद्यालय - विद्या (के लिए) आलय 
  • रसोई घर - रसोई (के लिए) घर 
(घ) अपादान - तत्पुरुष - 

  • कामचोर - काम (से) चोर 
  • जातिभ्रष्ट - जाति (से) भ्रष्ट 
  • धनहीन - धन (से) हीन 
(ङ) अधिकरण - तत्पुरुष- 

  • प्रेममग्न - प्रेम (में) मग्न 
  • दानवीर - दान (में) वीर 
  • गृहस्थ - गृह (में) स्थित

(२) कर्मधारय समास - कर्ता तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं। कर्ता अर्थात प्रथम विभक्ति के पूर्व और उत्तर पद विशेषण- विशेष रूप ही हो सकते हैं । अतः यह विशेषण विशेष्य-पदों का समास है।  

जैसे :-

नीलोत्पल - नीला है जो उत्पल (कमल) 

नीलकमल - नील है जो कमल 

परमेश्वर - परम है जो ईश्वर 

(३) बहुव्रीहि समास - इसमें कोई भी पद प्रधान नहीं होता। इसका समस्त पद किसी अन्य पद का विशेषण होता है, अर्थात् इस समस्त पद से किसी अन्य की प्रतीति होती है। 

जैसे :- 

चन्द्रशेखर - चन्द्र है शेखर (सिर) पर उसके - महादेव। 

दशानन - दस है आनन जिसके - रावण

नीलकंठ - नील है कण्ठ जिसका - शिवजी 

(४) द्वन्द्व समास - इसके सभी पद प्रधान होते हैं। इन दोनों पदों के बीच में 'और' शब्द छिपा रहता है। 

जैसे :- 

राम + कृष्ण = राम 'और' कृष्ण 

दिन + रात = दिन 'और' रात

दुख + सुख = दुख 'और' सुख 

भात + दाल = भात 'और' दाल 

(५) द्विगु समास - यह तत्पुरुष के कर्मधारय - भेद का ही समास है। तत्पुरुष का पूर्व पद विशेषण होता है, जबकि इसका पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण होता है। तत्पुरुष के नाते इसका उत्तर पद प्रधान होता है और कर्मधारय के प्रति इसका संख्या वाचक पूर्व पद उत्तर पद का विशेषण होता है और दोनों ही पद कर्ता अर्थात् प्रथम विभक्ति के होते हैं। 

जैसे :- त्रिलोकी, पंचवटी, चौराहा, दोपड, तिमाही। 

(६) अव्ययीभाव समास - इसमें पहला पद अव्यय होता है। इसका समस्त पद क्रिया विशेषण अव्यय होता है। 

जैसे :- प्रतिदिन, प्रतिमास, यथाशक्ति।

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