मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

धूलगढ़ बना फूलगढ़


 धूलगढ़ बना फूलगढ़

         धूल से भरा हुआ एक गॉंव था जिसमें चारों तरफ धूल ही धूल दिखाई देती थी। इस गॉंव की जमीन बंजर स्वभाव की थी। जिस कारण गॉंव में बहुत कम जमीन पर ही खेती होती थी और अधिकांश जमीन का हिस्सा खाली पड़ा रहता था। दूर-दूर तक केवल बड़े बड़े खाली मैदान दिखाई पड़ते थे जिनमें धूल उड़ती रहती थी। गॉंव के लोग बहुत गरीब थे क्योंकि वो केवल इस बंजर भूमि में उतना ही अनाज पैदा कर पाते थे जितना उनका पेट भर सके। यहॉं के बच्चे भी गॉंव के प्राथमिक विद्यालय में पॉंचवीं कक्षा तक ही पढ पाते थे क्योंकि गरीबी के कारण कोई भी अपने बच्चों को शहर पढ़ने नहीं भेज पाता था।

        लंगोटिलाल और उसकी पत्नी लुंगीदेवी ने निश्चय कर लिया कि उन्हें कुछ भी करना पड़े परन्तु वो दोनों अपने बेटे गम्छा सिंह को इतना पढ़ाएंगे की वो पढ लिखकर इस गॉंव की जमीन को सुधार सके। गम्छा सिंह चौथी कक्षा ‌में गॉंव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ रहा था। उसके मॉं-बाप उसे समझाते कि बेटा, तुझे खूब पढ़ना है और पढ लिखकर अपने गॉंव के लिए कुछ ऐसा करना है जिससे इस गॉंव की ग़रीबी दूर हो जाए, सभी बच्चे पढ सके, गॉंव तालाब, पेड़ पौधों और रंग बिरंगी फूलों से भरा हुआ हो। सभी के खेतों में अच्छी पैदावार हो सके। गम्छा सिंह तो बच्चा था, उसे अपने मॉं-बाप की कुछ ही बाते समझ में आती थी। उसे तो एक ही चीज की समझ थी कि सुबह आठ बजे विद्यालय जाना, कुछ देर पढ़ना और फिर खिचड़ी खाना तथा छुट्टी होते ही घर को दौड़ लगा देना। घर आकर थैला फेंक तुरंत दोस्तों के साथ कंचे खेलना, गित्ती-टोल खेलना, छुई-छुआ खेलना और साइकिल का टायर घुमाना। गम्छा सिंह ने पॉंचवीं कक्षा पास कर ली। आज गम्छा सिंह भी गॉंव के अन्य लोगों के बराबर पढा-लिखा बन गया था। लेकिन लंगोटिलाल ने अपनी हैसियत से बाहर जाकर अपने बेटे का प्रवेश नजदीक के कस्बे में छठवीं कक्षा में इंटर कॉलेज में करवा दिया जिसके लिए उसने अपनी पत्नी के हाथों की सोने की चुड़ियॉं गिरवी रख दी। गम्छासिंह आज पहले दिन गॉंव से बाहर पढ़ने जाने वाला था तो उसकी मॉं ने एक बार फिर से उसे वो बात बताई जिसके लिए उसे आगे पढ़ाया जा रहा है। उसकी मॉं सुबह जल्दी उठती, फिर उसके लिए पराठे बनाती थी। जिसमें से वह दो खा लेता था और दो रखकर ले जाता था। जब गॉंव में पढ़ने जाता था तो एक झोले में किताबें रखकर ले जाता था परन्तु अब वो कस्बे में जाने लगा था तो लंगोटिलाल उसके लिए बाजार से स्कूल बैग खरीदकर लाया। प्राथमिक विद्यालय में तो स्कूल यूनिफॉर्म और किताबें भी मुफ्त में मिल जाती थी लेकिन अब उसके लिए नयी यूनिफॉर्म और किताबें भी ख़रीदनी पड़ी। इस प्रकार गम्छासिंह  ने बारहवीं कक्षा पास कर ली परन्तु उसकी अब तक की पढ़ाई में होने वाले खर्चे के कारण उसकी मॉं के हाथों की चूड़ियॉं वापस नहीं लौट सकी। लंगोटिलाल और लूंगी देवी अभी हार नहीं मानने वाले थे, उन्हें तो बेटे को और पढाना था। लंगोटिलाल ने गॉंव के प्राथमिक विद्यालय के हेडमास्टर साहब से पूछा कि मेरे लड़के ने विज्ञान विषय के साथ इंटर पास कर ली है तो मैं आगे उसे किस कक्षा में पढ़ाऊं ताकि वो गॉंव की बंजर जमीन को सुधार सके और गॉंव को हरियाली तथा फूलों से भर सके। मास्टर साहब बोले कि तुम अपने लड़के का प्रवेश बी एस सी एग्रीकल्चर BSC (Agriculture) में करा दो परन्तु इसके लिए तुम्हें अपने लड़के को शहर भेजना पड़ेगा क्योंकि बी एस सी एग्रीकल्चर के कॉलेज केवल शहर में ही हैं। इसके लिए तुम्हें बहुत रूपयों कि भी जरुरत पड़ेगी क्योंकि बी सी सी में प्रवेश के लिए काफी रूपये लगते हैं और तुम्हें उसे रहने के लिए होस्टल भी दिलाना पड़ेगा और उसके रुपये अलग से देने पड़ेंगे। उनकी इन सब बातों में लंगोटिलाल को एक बात समझ में आ गई कि उसे बेटे को आगे पढ़ाने के लिए काफी रूपयों की जरूरत है। लंगोटिलाल ने लूंगी देवी के कानों के कुंडल और नाक की नथनी बेचकर गम्छासिंह का प्रवेश बी एस सी एग्रीकल्चर के प्रथम वर्ष में शहर के एक जाने माने डिग्री कॉलेज में करा दिया और एक साल के लिए हॉस्टल का इंतजाम भी करा दिया। आज जब गम्छासिंह शहर जाने वाला था तो उसे उसकी मॉं द्वारा एक बार फिर बताया गया कि उसे क्यूं पढ़ाया जा रहा है।

        पहली साल रुमाल सिंह ने पास की तो दूसरी साल के लिए उसकी मॉं का मंगलसूत्र बेचना पडा और फिर तीसरी साल के लिए लंगोटिलाल ने अपना घर ही बेच दिया। दोनों पति-पत्नी एक झोपड़ी में रहने लगे। अब गम्छासिंह की पढाई की अंतिम साल शेष थी जिसके लिए फिर से रुपयों की जरुरत थी परन्तु इस बार लंगोटिलाल के पास एक बिघा जमीन के अलावा कुछ भी बेचने को नहीं था। यदि वो इस जमीन को बेच दे तो खायेगा क्या? परन्तु लंगोटिलाल ने बीना सोचे समझे एक बिघा जमीन भी बेच दी और लडके का प्रवेश चौथे वर्ष में करा दिया। जमीन बेचने के बाद गम्छासिंह के मॉं-बाप  की स्थिति क्या हो गई है और उसे पढ़ाने के लिए उसके मॉं-बाप ने क्या क्या किया है? गम्छासिंह इन सब बातों से अनजान था। गम्छासिंह के चाचा और ताऊ ने उसके मॉं-बाप से उनके घर रहने के लिए कहा परन्तु लंगोटिलाल स्वाभिमानी प्रकृति का आदमी था इसलिए उसने अपने भाईयों के घर रहने से मना कर दिया और ये एक साल दूसरे लोगों के यहॉं पर काम कर करके बिताई। वे सुबह से शाम तक जिसके यहॉं काम करते थे उसी के यहॉं से दो वक्त की रोटी मिल जाती थी। गम्छासिंह ने बी एस सी एग्रीकल्चर का अंतिम वर्ष भी पास कर लिया और सम्पूर्ण यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान पाया। जब ये खबर उसके मॉं-बाप को मिली तो उनके खुशी के ठिकाने न थे। गॉंव के सब लोग गम्छासिंह के घर आने का इंतजार कर रहे थे। लंगोटिलाल और लूंगी देवी का सपना पूरा होने वाला था। सभी को बड़ी उम्मीद थी कि गम्छासिंह आएगा और गॉंव को हरा भरा कर देगा परन्तु यूनिवर्सिटी टॉप करने के कारण एक कृषि संस्थान ने गम्छासिंह को अच्छे पैकेज पर अपने यहॉं काम करने के लिए कहा और वह भी तैयार हो गया। जब लंगोटिलाल को यह बात पता चली तो वह अपने बेटे के पास गया और उसे समझाया कि हमने तुझे किसी कंपनी में काम करने के लिए नहीं पढ़ाया था बल्कि इसलिए पढ़ाया था ताकि तू पढ लिखकर गॉंव आए और अपने धूल से भरे गॉंव को हरा भरा कर दें। लंगोटिलाल ने कहा कि अगर तुझे पैसे ही कमाने है तो गॉंव चल वहॉं जाकर कोई ऐसा काम शुरू कर जिससे गॉंव वालों को भी रोजगार मिल सके। गम्छासिंह ने गॉंव लौटने से मना कर दिया। लंगोटिलाल उदास होकर चेहरा लटकाएं वापस लौट आया। उसकी ऐसी हालत और उसे अकेला लौट आते देखकर उसकी पत्नी और गॉंव वाले समझ गये कि उसके साथ क्या हुआ होगा? उसकी सारी उम्मीदें टूट गई। एक आदमी बोला कि बच्चों को शहर ही नहीं भेजना चाहिए। शहर की चमक में वो मॉं-बाप, घर-परिवार और गॉंव को भूल जाते हैं। गम्छासिंह ने कुछ दिनों में एक घर भी खरीद लिया और गम्छासिंह को एक लड़की पसंद आ गई जिससे वह शादी करना चाहता था। उसने अपने मॉं-बाप को फोन करके बताया कि मैं शादी करना चाहता हूॅं और आप दोनों शहर आ जाओ। लेकिन लंगोटिलाल ने कहा कि तू ही गॉंव आ जा। यही धूम धाम से शादी करेंगे। गम्छासिंह बोला कि मैं गॉंव में आकर अपनी पत्नी के सामने अपनी हॅंसी नहीं करना चाहता हूॅं। तब उसके बाप ने भी कह दिया कि तुझे शादी करनी है तो कर ले लेकिन हम शहर नहीं आयेंगे। उसने शादी कर ली। जब वह नौकरी पर जाता था तो उसकी पत्नी अकेली रह जाती थी और घर पर उसका मन नहीं लगता था। उसने ये बातें अपने पति को बताई। तब गम्छासिंह ने अपनी मॉं को फोन किया और कहा कि तुम यहॉं आ जाओ मेरे नौकरी पर जाने के बाद तौलिया अकेली रह जाती है। उसकी मॉं बोली कि अगर तू गॉंव में होता तो सारे मोहल्ले की लड़कियॉं तेरी बहू के पास ही रहती और खूब मन लगाती पर मैं शहर नहीं आ सकती। कुछ दिनों बाद गम्छासिंह को सांस की खतरनाक बिमारी हों गई। डॉक्टर ने बताया कि शहर के प्रदूषण की वजह से ऐसा हुआ है । तुम कुछ दिन गॉंवों चलें जाओ और ये दवाइयॉं खाओ जल्दी ठीक हो जाओगे। परन्तु वह गॉंव नहीं गया। अब वो इतना बिमार हों गया कि नौकरी पर भी नहीं जा पा रहा था। उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। तौलिया को ही घर भी देखना और अस्पताल भी, तौलिया बहुत परेशान हो गयी। उसने फिर अपनी सास को फोन किया और सारी बात बताई तथा आने को कहा लेकिन उसने मना कर दिया और कहा देख लो शहर का नतीजा। यदि यहॉं होते तो सारा परिवार, हम दोनों, तुम्हारे चाचा का परिवार और ताऊ का परिवार तुम्हारे पति की देखभाल में होता और सारे पड़ोसी भी और तुम्हें बिल्कुल परेशानी नहीं होती। गम्छासिंह धीरे धीरे ठीक हो गया। अब तौलिया के मॉं बनने की खबर गम्छासिंह को पता चली। उसने अपने मॉं-बाप को भी खबर सुनाई और वो दोनों खुश होकर शहर पहुंच गए। उन्होंने गम्छासिंह को समझाया कि बेटा तू तो नौकरी करने जाएगा और बहू घर पर अकेली रहेगी। बहू का ऐसी हालत में अकेला रहना ठीक नहीं है। जैसे शहर के प्रदूषण से तू बिमार हुआ था वैसे ही कही बच्चे को कोई बिमारी ना हो जाए। इसलिए हमारे साथ बहू को लेकर गॉंव की ताजी हवा में चल। तौलिया बोली आपके पास तो घर भी नहीं है । हम कहॉं रहेंगे? वो बोलें कि कुछ दिनों तक अपने चाचा के घर रह लेना और जल्दी ही कोई काम शुरू कर ये नया घर बना लेगा। लेकिन उन्होंने मना कर दिया। एक दिन गम्छासिंह नौकरी पर गया हुआ था। तौलिया के पेट में अचानक बहुत तेज दर्द होने लगा। उसने गम्छासिंह को फोन किया। वो सुनते ही वहॉं से चल दिया परन्तु रास्ते में जाम लगा था। गम्छासिंह ने फोन पर बताया कि जाम के कारण मुझे पहुंचें में देर हो जायेगी। तुम ऐसा करो किसी पड़ोसी से मदद मांगों। तौलिया दर्द से चिल्लाती हुई पड़ोसियों को आवाज देने लगी परन्तु किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला। 

      गम्छासिंह को उसने बताया कि किसी ने दरवाजा नहीं खोला। अब गम्छासिंह ने एम्बुलेंस को फोन किया परन्तु सारी एम्बुलेंस व्यस्त थीं। जब गम्छासिंह लगभग तीन घंटे बाद घर पहुंचा तो उसकी ऑंखें फटी की फटी रह गई। उसकी पत्नी फर्श पर पड़ी हुई थी और उसके मुॅंह से झाग निकल रहें थे। उसने दुनिया छोड़ने से पहले लड़के को जन्म दिया था जिसकी गर्भनाल अभी भी जुड़ी हुई थी और वो रो रहा था। गम्छासिंह ने स्वयं गर्भनाल को काट उसकी मॉं से जुड़े पवित्र बंधन से उसे अलग कर दिया। उससे भगवान ने ममता का आंचल छीन लिया इस बात से अंजान वो बालक नयी दुनिया में सांस ले रहा था। गम्छासिंह ने गॉंव में इस घटनाक्रम के बारे में विलकते हुए बताया। शीघ्र अतिशीघ्र उसके मॉं-बाप सहित सारा गॉंव वहॉं पहुंच गया। सभी गॉंवों वालों को देख गम्छासिंह की ऑंखें खुल गईं। तौलिया के मृत शरीर को गॉंव लाकर विधि विधान के साथ उसके कुछ ही घंटे के बच्चे के हाथों पंच तत्वों में विलीन करा दिया गया। गम्छासिंह के चाचा और ताऊ उन्हें अपने घर ले गए। गम्छासिंह ने अपने मॉं-बाप से माफी मॉंगी और कहा कि मैं शहर नहीं जाऊंगा तथा यही रहकर आपके सपने को पूरा करुंगा। गम्छासिंह के बेटे का नाम रुमाल सिंह रखा गया। रुमाल सिंह को कोई भी एक पल के लिए अकेला नहीं छोड़ता था। कभी उसकी अम्मा उसे अपने कुल्हे से लगाएं बगल में दबाए फिरती,कभी उसके बाबा कंधे पर उठाएं फिरते, कभी उसकी पड़ोस की बुआ और जीजी उसे गोद में लटकाएं रहती तो कभी उसके पापा उसे सिने से लगाएं रहते। अब गम्छासिंह ने शहर की नौकरी छोड़ दी और वहॉं का मकान बेचकर गॉंव में मकान बना लिया और गॉंव के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना शुरू कर दिया। पूरा परिवार अपने नये घर में रहने लगा। एक दिन गम्छासिंह सिंह अपने गॉंव की मिट्टी की जॉंच अपने जनपद के क़ृषि विभाग में कराने गया। वहॉं उसे मिट्टी में जो भी कमी थी सब पता चल गयी। उसी कमी के अनुसार उसने गॉंव की बंजर जमीन का उपचार करना शुरू कर दिया। इस प्रकार रुमाल सिंह के बड़े होने के साथ साथ गॉंव भी बडा हो रहा था। अब गॉंव में सभा आयोजित की गई जिसमें गम्छासिंह ने बताया कि हमारे गॉंव में जितनी बंजर जमीन है उसके हिसाब से गॉंव के प्रत्येक परिवार पर लगभग तीस-तीस विघा जमीन आ जायेगी। उसने कहा यदि आप बंजर जमीन को आपस में बांटने के लिए सहमत हो तो जैसे जैसे मैं बताऊं सभी अपनी अपनी जमीन का उपचार करें तो गॉंव की सारी जमीन उपजाऊ बन जायेंगी। सभी लोग सहमत हो गए। फिर क्या था? गम्छासिंह सिंह गॉंव वालों को नये नये तरीके बताता था और उसी के अनुसार सभी जमीन का उपचार करते और देखते ही देखते जमीन में फसलें पैदा होने लगी। एक दिन गम्छासिंह ने सभी गॉंवों वालों से कहा कि सभी अपने अपने पशुओं का गोबर एक स्थान पर एकत्रित करे। गॉंव वालों ने ऐसा ही किया। गम्छासिंह सिंह जिला कृषि केंद्र से केंचुए ले आया और गोबर से जैविक खाद बनाने लगा। जिसके उपयोग से सारे खेत बहुत अच्छी फसल देने लगें। इसके बाद गम्छासिंह ने गॉंव वालों की सहायता और जिला कृषि केंद्र से सहायता लेकर गॉंव में पशुशाला का निर्माण कराया। जिसमें आवारा घुमने वाले पशुओं को पकड़ पकड़ कर लाया गया और उन पशुओं को भी उसी में रखा गया जिन्हें गॉंव वाले जरुरत ना होने पर छोड़ देते थे। पशुशाला की गायों और भैंसों से दूध प्राप्त होने लगा और सांडों और कटलो से वीर्य प्राप्त होने लगा। पशु वीर्य काफी महॅंगा बिकता था और दूध से भी अच्छे पैसे प्राप्त होते थे। पशुओं से प्राप्त गोबर से जैविक खाद बनाई जाती थी जिसका प्रयोग गॉंवों के खेतों में किया जाता था और बाकी को बेच दिया जाता था। गॉंव के लिए गम्छासिंह ने एक और मॉडल तैयार किया गया। जिसके तहत गॉंवों के सभी रास्तों और छोटी छोटी गलियों के दोनों ओर तरह तरह के रंग बिरंगी फूलों के पौधे लगाए गए जिनमें चमेली, गुड़हल, गुलाब, गुलमोहर, कनेर और अन्य पौधों थे। प्रत्येक खेत के चारों कोनों पर एक एक फल का पेड़ लगाया गया जिनमें नाशपाती, जामुन, आम, पपीता, अमरुद, अनार, बेर, लीची और अन्य फलदार पौधे थे। गॉंव के प्रत्येक घर के दरवाजे पर एक और छतो पर अनेक गमलों में फूलदार पौधे लगाए गए। इस प्रकार गॉंव फूलों से भरा बहुत सुंदर सा बगीचा बन गया। गम्छासिंह सिंह ने गांव में वर्षा के पानी को एकत्रित करने के लिए चार तालाब भी खुदवाये जो बर्षा होते ही पानी से भर गये। तालाब के पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया गया। एकतरफ तो पशुशाला के कारण गॉंव दूध, पशु वीर्य और जैविक खाद का अच्छा केन्द्र बन गया था। वहीं दूसरी तरफ अनाज, फल और फूल उत्पादन का भी अच्छा केन्द्र बन गया था। पशुशाला के उत्पादों की देखरेख और गॉंव में लगे अनेक फूलों और फलों को तोड़ने और उन्हें बेचने के लिए गॉंवों के कुछ लोगों को जिम्मेदारी दी गई। खेतों में होने वाले अनाज की जिम्मेदारी खेत वाले की ही थी। फूलों से भरे होने के कारण गॉंवों की सुन्दरता की चर्चा दूर दूर तक होने लगी और दूर दूर से लोग गॉंवों को देखने आने लगें। अब कही भी पूरे गॉंवों में धूल नजर नहीं आती थी नजर आते थे तो केवल फूल।

      पशुशाला से पशुओं की भी बिक्री होने लगी। पशुओं, दूध, वीर्य, फल और फूलों को बेचकर जो भी धन आता उसमें से सभी की देखरेख में हुएं खर्चे को काटकर शेष धन को बैंक में गॉंवों के नाम से खुलवाएं गये खाते में जमा करा दिया जाता था। धीरे धीरे इस धन से गॉंवों में एक इन्टर कॉलेज का निर्माण कराया गया। गम्छासिंह सिंह को जिसका प्रधानाचार्य बनाया गया। गॉंवों के सभी बच्चों और गॉंवों से बाहर के भी गरीब बच्चों को उसमें निशुल्क शिक्षा दी जाने लगी। अन्य गॉंवों के अमीर लोगों के बच्चे भी पढ़ने लगे जिनसे कुछ मासिक शुल्क ली जाती थी जो वहॉं पढ़ाने वाले अध्यापकों को उनके वेतन के रुप में दी जाती थी। गॉंवों के इतनी तेजी से विकास और सुन्दरता की खबरें बहुत तेज हो गई और राज्य के मुख्यमंत्री साहब तक भी पहुंच गयी। मुख्यमंत्री साहब स्वयं गॉंव के भ्रमण पर आए और गॉंवों का विकास, पशुशाला, अच्छा दूध केन्द्र, वीर्य केन्द्र, इन्टर कॉलेज देखकर बहुत खुश हुएं। गॉंवों के फूलों की सुन्दरता ने तो उन्हें अन्दर तक प्रभावित कर दिया। उन्होंने पूछा कि गॉंवों को इस रुप में किसने बदला है तब गम्छासिंह ने बताया कि ये तो सभी गॉंवों वालों ने किया है परन्तु गॉंवों वालों ने लंगोटिलाल और लूंगी देवी के त्याग और गम्छासिंह के महनत की सारी कहानी मुख्यमंत्री साहब को सुनाई। लंगोटिलाल और लूंगी देवी के त्याग की कहानी सुनकर मुख्यमंत्री साहब की ऑंखें भर आई और उन्होंने लंगोटिलाल, लूंगी देवी और गम्छासिंह को राज्य का पर्यावरण का सर्वोच्च पुरस्कार तथा गॉंवों को स्वच्छता और सुन्दरता का सर्वोच्च पुरस्कार देने की घोषणा की। उन्होंने गॉंवों का नाम भी धूलगढ़ से बदलकर फूलगढ़ कर दिया।

 

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