लोकतन्त्र की सफलता के लिए सबसे आवश्यक बात शिक्षा और उच्च कोटि की राजनैतिक चेतना है। यदि लोगों को राज्य के कार्यों में रुचि नहीं है और वे समाज की समस्याओं को नहीं समझते हैं, तो लोकतन्त्र केवल नाम के लिए होता है। लोकतन्त्र में जितने भी दोष बताये जाते हैं, उन सबका प्रमुख कारण शिक्षा का अभाव है। शिक्षा ही लोकतन्त्र के नागरिकों को जागरूक बनाती है और राज्य के कार्यों में उनकी रुचि उत्पन्न करती है। अतः लोकतन्त्र में शिक्षा की आवश्यकता के लिए जितना ही कहा जाए, थोड़ा है।
लोकतन्त्र का आदर्श है कि व्यक्ति और समाज एक-दूसरे की सहायता से पूर्णता को प्राप्त करें। लोकतन्त्र न तो समाज द्वारा व्यक्ति के शोषण और न व्यक्ति द्वारा समाज के हितों की अवहेलना की आज्ञा देता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि लोकतन्त्र का कार्य समाज को इस प्रकार संगठित करना है जिससे व्यक्ति अपने साथियों और समाज के लिए हितप्रद कार्यों द्वारा अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। अतः लोकतन्त्र में शिक्षा की उपेक्षा नहीं की जा सकती है, क्योंकि शिक्षा ही व्यक्ति में ज्ञान, रुचियों, आदर्शों और शक्तियों का विकास करती है। इनके विकास से ही व्यक्ति लोकतन्त्र में अपना स्थान प्राप्त करता है और उस स्थान का प्रयोग अपने को और अपने समाज को उच्च आदर्शों की ओर ले जाने के लिए करता है।
जॉन ड्यूवी (John Dewey) ने सन् 1913 में कहा था- “शिक्षा के लिए लोकतन्त्र की निष्ठा एक सुपरिचित तथ्य है। शिक्षा के अभाव में लोकतन्त्र लँगड़ा, निर्जीव तथा लचीला है और लोकतन्त्र के अभाव में शिक्षा सूखी, नीरस और मातृप्राय है।" इन दोनों में सजीव सम्बन्ध है। लोकतन्त्र स्वयं में एक शैक्षिक सिद्धान्त, शैक्षिक माप तथा नीति है। शिक्षा को एक प्रक्रिया के रूप में देखा गया है। यह वह महत्त्वपूर्ण साधन है जिसके माध्यम से वांछित सामाजिक परिवर्तनों को लाया जाता है। इस दृष्टिकोण से विद्वान् शिक्षा को सामाजिक अन्तःक्रियाओं तथा सामाजिक परिवर्तनों का परिणाम स्वीकार करते हैं। अतः शिक्षा वह साधन है जिसके माध्यम से लोकतन्त्र सामाजिक न्याय की स्थापना करता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि लोकतन्त्र के लिए शिक्षा एक आवश्यक शर्त है। इस तथ्य को और अधिक स्पष्ट रूप में समझने के लिए नीचे कुछ विद्वानों के विचारों को प्रस्तुत किया जा रहा है:-
जे. डब्ल्यू. एच. हेदरिंगटन (J. W. H. Hetherington) ने लिखा है- “लोकतन्त्रीय सरकार की माँग है- शिक्षित जनता।"
जॉन ड्यूवी के अनुसार, "लोकतन्त्र में इस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए, जिससे व्यक्तियों को सामाजिक सम्बन्ध और नियन्त्रण में व्यक्तिगत रुचि उत्पन्न हो और उनमें ऐसी मानसिक आदतों का निर्माण हो, जिनसे अव्यवस्था उत्पन्न हुए बिना सामाजिक परिवर्तन का होना सम्भव हो।"
"A democracy must have a type of education which gives individuals a personal interest in social relationship and control and habits of mind which secure social changes without introducing disorder."
–John Dewey
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