सोमवार, 8 नवंबर 2021

भारतीय शिक्षा में समुदाय की भूमिका (Role of Community in Indian Education) S-1 D.El.Ed. 2nd Year Unit-4. B.S.E.B. Patna.

       शिक्षा पर भारतीय समुदाय का प्रभाव अप्रत्यक्ष है। इस लेख में हम शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर इस प्रभाव का वर्णन कर रहे हैं:- 

(1) शिक्षा की सार्वभौमिक माँग (Universal Demand for Education)- हुमायूँ कबीर के अनुसार, भारत में शिक्षा की सार्वभौमिक माँग की गयी है। कुछ देशों ने विद्यालयों में बालक की उपस्थिति अनिवार्य मानी है। भारत में ऐसी आवश्यकता अनुभव की जा रही है। अभी तक इस बात पर बल दिया गया था कि जो बच्चे पढ़ना चाहते हों, उनके लिए स्कूल हों। 

(2) प्रारम्भिक व पूर्व-प्रारम्भिक शिक्षा का विकास (Development of Primary and Pre-Primary Education)- प्रारम्भिक और पूर्व-प्रारम्भिक शिक्षा के विकास में समुदाय का बहुत हाथ रहा है। यद्यपि प्रारम्भिक शिक्षा का दायित्व सरकार पर है, फिर भी इसके विकास में गैर-सरकारी संस्थाओं ने बहुत काम किया है। सरकार इस काम का पूरा भार धीरे-धीरे अपने ऊपर लेती जा रही है। पर पूर्व-प्रारम्भिक शिक्षा का भार और विकास अभी तक गैर-सरकारी हाथों में ही है।

(3) माध्यमिक शिक्षा का विकास (Development of Secondary Education) माध्यमिक शिक्षा के विकास में समुदाय का प्रभाव बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। यह कहना उचित ही होगा कि देश में जितने भी मिडिल और सेकण्डरी स्कूल कार्य कर रहे हैं, उनमें से अधिकांश की स्थापना और संचालन का श्रेय समुदाय को है। इस प्रकार, माध्यमिक शिक्षा के विकास में समुदाय का प्रभाव शक्तिशाली रहा है। 

(4) उच्च शिक्षा का विकास (Development of Higher Education)- उच्च शिक्षा के विकास में भारतीय समुदाय ने पर्याप्त योगदान दिया है। यद्यपि अंग्रेजों के समय में विश्वविद्यालयों की स्थापना सरकार द्वारा की जाती थी, उच्च शिक्षा, विशेष स्थानों और समुदायों की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं करती थी। अतः इसकी ओर उनता का ध्यान न जाना स्वाभाविक ही था। परन्तु महाविद्यालयों की स्थापना में जनता का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अधिकांश महाविद्यालय समुदायों द्वारा ही स्थापित किये गये हैं। 

विद्यालय व समुदाय का सम्बन्ध 

(Relationship Between School and Community) 

       विद्यालय तथा समुदाय के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये दोनों अपनी-अपनी उन्नति एवं स्थायित्व के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं। विद्यालय एक सामाजिक संस्था है। समाज स्वयं को जीवित रखने के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करता है जिनके द्वारा समाज के विचारों, मान्यताओं, आदर्शों, क्रियाकलापों, मानदण्डों तथा परम्पराओं को आने वाली सन्तति को प्रदान किया जा सके। विद्यालय, समुदाय के जीवन एवं उसकी प्रगति पर बहुत प्रभाव डालता है। विद्यालय अपने विचारों एवं कार्यों द्वारा समुदाय का पथ प्रदर्शन करके उसे प्रगति की ओर ले जाता है। समुदाय विद्यालय को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों का प्राथमिक ज्ञान प्रदान करता है। इस प्रकार दोनों एक-दूसरे को सहायता प्रदान करते रहते हैं। इन दोनों की घनिष्ठता को स्पष्ट करते हुए हुमायूँ कबीर ने लिखा है– "विद्यालय, समुदाय के जीवन का प्रतिबिम्ब है और उसे ऐसा होना ही चाहिए। अतः भारत में सार्वजनिक विद्यालयों को भारतीय जीवन के ढाँचे के अधिक निकट लाया जाना चाहिए।"

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