लोकतन्त्र एक 'जीवन प्रयोग' है। इसको तभी सफल बनाया जा सकता है जब इसके मूल सिद्धान्तों को व्यवहार में लाया जाए। स्वत: प्रश्न उठता है कि-
लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्त क्या हैं?
इसके उत्तर में हम निम्नांकित सिद्धान्तों को इस लेख में प्रस्तुत कर रहे हैं:-
(अ) स्वतन्त्रता (Freedom)- स्वतन्त्रता लोकतन्त्र की आधारशिला है। इसके अभाव में मानव अपनी शक्तियों का विकास नहीं कर सकता है। लोकतन्त्र में इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्रदान की जाती हैं। जैसे:- विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता, सोचने, लिखने, वाद-विवाद करने, समालोचना करने, आदि। की स्वतन्त्रता।
भारतीय लोकतन्त्र में भी नागरिकों को विभिन्न स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई हैं। उदाहरणार्थ- बोलने की स्वतन्त्रता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, शान्तिपूर्वक सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता या संघ बनाने की स्वतन्त्रता, भारत राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतन्त्रता, भारत राज्य क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने तथा बसने की स्वतन्त्रता, कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने की स्वतन्त्रता। व्यक्ति इन स्वतन्त्रताओं का उपयोग तभी सफलतापूर्वक कर सकता है जब वह दूसरे व्यक्तियों के अधिकारों को अपने ही अधिकारों के समान मानेगा।
(ब) समानता (Equality)- समानता लोकतन्त्र का दूसरा मूल सिद्धान्त है। लोकतन्त्र में किसी प्रकार के भेदभाव के लिए व्यवस्था नहीं होती। इसमें सभी व्यक्ति समान होते हैं। चाहे वे किसी जाति, प्रजाति, लिंग, धर्म तथा वर्ग के क्यों न हों। इसमें वैयक्तिक विकास के लिए समान अवसर प्रदान करने पर बल जाता है। समान अवसर का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी रुचियों, योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुकूल विकास की पूर्ण सुविधाएँ प्राप्त हों। भारतीय लोकतन्त्र में समता के अधिकार का स्वरूप निषेधात्मक (Prohibitive) है। यह अधिकार उन सामाजिक तथा नागरिक निर्योग्यताओं को दूर करना चाहता है जिनसे भारतीय सर्वसाधारण बहुत दिनों से अपार कष्ट सह रहे हैं। भारतीय लोकतन्त्र की मान्यता है कि समान स्थिति वाले लोगों के समाज में ही लोकतन्त्र सफल हो सकता है। अतः भारतीय संविधान में अग्रांकित प्रावधान किये गये हैं-
- विधि के समक्ष सभी समान।
- किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जायेगा।
- राज्याधीन नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में समान नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।
(द) न्याय (Justice)- लोकतन्त्र में न्याय की दृष्टि से अमीर व गरीब, निर्बल व शक्तिशाली आदि सभी समान हैं। उनके साथ किसी प्रकार का कानूनी भेदभाव नहीं किया जायेगा। भारतीय लोकतन्त्र में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक न्याय की स्थापना पर बल दिया गया है। इसके लिए संविधान के चौथे भाग में अर्थात् नीति निदेशक सिद्धान्तों में प्रावधान किये गये हैं। अनुबन्ध 38 उपबन्धित करता है कि “राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था करे जिसमें सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक कार्यसाधक रूप में स्थापना तथा संरक्षण करके लोककल्याण की उन्नति का प्रयास करेगा।"
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