रविवार, 14 नवंबर 2021

विद्यालय के संगठनात्मक पक्ष, उद्देश्य एवं सिद्धांत. D.El.Ed. 2nd Year S-1 B.S.E.B. Patna.

विद्यालय के संगठनात्मक पक्ष


          विद्यालय के संगठनात्मक पक्ष के अंतर्गत भौतिक एवं मानवीय तत्वों का समावेश होता है। यदि किसी विद्यालय की नींव रखनी हो तो उसके लिए जगह ,वातावरण ,जल, भवन ,फर्नीचर ,शैक्षिक साज-सज्जा, शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों आदि की व्यवस्था करनी होती है। किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हमें लक्ष्य को ध्यान में रखकर एक समग्र योजना बनानी पड़ती है तथा उस योजना को छोटे-छोटे पदों में विभक्त कर उसकी प्राप्ति के लिए हम लगातार परिश्रम करते हैं। अंत में , हम अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं। विद्यालय संगठन वह संरचना है जिसमें शिक्षक, छात्र, प्रधानाध्यापक , परीनिरीक्षक तथा अन्य व्यक्ति विद्यालय की क्रियाओं को चलाने के लिए मिलकर कार्य करते हैं एवं निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समस्त उपलब्ध भौतिक एवं मानवीय तत्वों की समुचित इंतजाम करना विद्यालय संगठन का ही कार्य होता है।

        विद्यालय संगठन के अंतर्गत न केवल उचित व्यवस्था ही आती है, बल्कि विभिन्न विद्यालय तत्वों के बीच समन्वय स्थापित करना भी इसमें समाहित है। निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमें जो भी आवश्यक हो वह कदम विद्यालय के पक्ष में उठाना पड़ता है। जैसे शिक्षकों की कमी की समस्या को हल करना विद्यालय प्रबंधन की समस्या को हल करना विद्यालय का विभागीय समस्या को हल करना विद्यालय तथा समाज के बीच की दूरी को कम करना, विद्यालय प्रबंधन , छात्र एवं शिक्षक के बीच आने वाली सारी समस्याओं का समुचित एवं व्यवस्थित हल ढूंढना इत्यादि।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संगठन एक ऐस साधन है जो शैक्षिक लक्ष्य रूपी साध्य को साधने में हमें ना केवल मदद करता है बल्कि उचित मार्ग दर्शक की भूमिका का भी निर्वहन करता है। संगठन एक ऐसा यंत्र है जिसका विधिवत संचालन करके निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

अतः हम का सकते है कि विद्यालय संगठन बालकों को समाज के लिए अनुकूलित करता है एवं एक बेहतर समाज निर्माण में अपना सर्वोत्तम देने का प्रयास करता है। चूंकि विद्यालय भी समाज का एक छोटा रूप होता है एवं समाज में जो लोग रहते हैं वह भी विद्यालय से कहीं न कही किसी रूप में जुड़े होते हैं। अत:विद्यालय संगठन का दायित्व बढ़ जाता है क्योंकि उसे एक सभ्य समाज का सभ्य नागरिक जो तैयार करना होता है 

विद्यालय संगठन के उद्देश्य 

विद्यालय की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। इसलिए विद्यालय संगठन का उद्देश्य भी इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सक्रिय योग प्रदान करना होना चाहिए। विद्यालय संगठन का उद्देश्य बालकों को ऐसे अवसर प्रदान करना है , जिसमें उनकी समस्त जन्मजात शक्तियों का सामंजस्य पूर्ण विकास संभव हो सके एवं उनकी मूल प्रवृत्तियों का उपयोग तथा रुचियां का स्वास्थ्य प्रकाशन एवं परिष्करण हो सके । बालक के संपूर्ण व्यक्तित्व का संतुलित विकास करने की दृष्टि से विद्यालय संगठन का उद्देश्य - उसके शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक एवं सामाजिक गुणों का विकास करते हुए उसे एक इस योग्य बनाना है कि वह भावी जीवन में अपने दायित्वों का निर्वाह सफलतापूर्वक एवं सच्चाई के साथ कर सके।

अत: स्पष्ट है कि विद्यालय का संगठन बालक की विकासात्मक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर करना चाहिए। समाज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विद्यालय की स्थापना करता है विद्यालय मानव जाति की अनुपम उपलब्धियों को समझो कर रखता है तथा उन्हें भावी संतति को विरासत के रूप में प्रदान करता है। इस प्रकार विद्यालय संगठन का उद्देश्य बालकों को इस प्रकार से शिक्षित करना है कि वे समाज के आदर्शों मान्यताओं विश्वासों एवं मूल्यों की रक्षा कर सकें।

विद्यालय संगठन के सिद्धांत

1. बाल केंद्रित (Child Centred) 

विद्यालय का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वोन्मुखी विकास करना है। इस दृष्टि से संगठन बाल केंद्रित होना चाहिए। यह संगठन ऐसा हो जिसके द्वारा बालकों की विभिन्न योग्यताओं ,अभिरुचियो , शक्तियों, संवेगों एवं मूल- प्रवृत्तियों को स्वास्थ् दिशा में विकसित किया जा सके। संगठन द्वारा विद्यालय में ऐसा वातावरण उत्पन्न किया जाना चाहिए जिसमें बालक शारीरिक, मानसिक , सामाजिक एवं चारित्रिक गुणों को सरलता से प्राप्त कर सके। विद्यालय की विभिन्न क्रियाओं को , उनके विकास की प्रकृति एवं गति ,उनकी व्यक्तिक विभिन्नताओ ,उनके पूर्व अनुभवो तथा उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को दृष्टिगत रखकर व्यवस्थित की जानी चाहिए । ऐसा करके प्रत्येक बालक को अपना सर्वोत्तम विकास करने के लिए उपयुक्त सुविधाएं प्रदान की जा सकेगी ।

2. समाज केन्द्रित (Society Centred)- 

संगठन बाल केंद्रित होने के साथ-साथ समाज केंद्रित भी होना चाहिए, क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य बालकों को समाज का एक सक्रिय, उपयोगी एवं कुशल सदस्य बनाना है । संगठन से बालकों के विकास संबंधी क्रियाओं के आयोजन के साथ-साथ समाज की प्रगति हेतु उचित व्यवस्था का होना भी परम आवश्यक है । संगठन के द्वारा समाज में गत्यात्मक उद्देश्य को भी अभिव्यक्त किया जाना चाहिए ,जिसमें समाज भावी प्रगति की ओर अग्रसर हो सके। अत: विद्यालय संगठन बालक की विकासात्मक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए भी समाज के आदर्शों, आकांक्षाओ,आवश्यकताओ, मूल्यों, संस्कृति आदि पर आधारित होना चाहिए।

3. लोकतंत्रीय सिद्धांत (Democratic Principle)- 

जनतंत्र की सफलता हमारे विद्यालयों पर ही निर्भर है। यह विद्यालय ही है जो जनतंत्र के स्तंभों अर्थात भावी नागरिकों का निर्माण करते हैं। बालकों में आदर्श नागरिकों की गुणों का विकास विद्यालय की व्यवस्था, क्रियाकलापों एवं परंपराओं के माध्यम से किया जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि विद्यालय का संगठन लोकतंत्र के सिद्धांतों एवं प्रक्रियाओं के अनुसार हो।

4. लोच का सिद्धांत (Principle of Flexibility) -

मानव - प्रकृति एवं समाज तथा उसकी आवश्यकताएं परिवर्तनशील है जब विद्यालय का लक्ष्य बालक एवं समाज का उचित दिशा में विकास करना है तो उनकी बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुकूल विद्यालय संगठन में समय-समय पर परिवर्तन होना भी नितांत आवश्यक है। अतः विद्यालय संगठन में लोच अथवा परिवर्तनशीलता का गुण होना चाहिए। यदि संगठन में दृढ़ता एवं एकरूपता आ गई तो यह बालक एवं स्थानीय समाज की मांगों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहेगा।

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