'कोठारी कमीशन' के शब्दों में , "स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से हमारे देश ने जिन समस्याओं का सामना किया, उनमें भाषा की समस्या सबसे अधिक जटिल रही है और अब भी है।"
स्वतन्त्र भारत में भाषा-समस्या की जटिलता के दो मुख्य कारण रहे हैं और अब भी हैं। पहला कारण यह है कि भारत, बहुभाषी देश है। सन् 1971 की जनगणना के अनुसार भारत में 1,652 मातृभाषाएँ (Mother Tongues) और 380 बोलियाँ (Dialects) हैं, जिनमें से केवल 15 को भारतीय संविधान में स्थान दिया गया है। दूसरा कारण यह है कि देश के शिक्षाविदों एवं राजनीतिज्ञों में किसी सामान्य भाषा के विषय में सदैव मत-विभिन्नता रही है; यथा-
1. महात्मा गाँधी के अनुसार, "जिस राष्ट्र के बच्चे अपनी मातृभाषा के अलावा किसी अन्य भाषा के द्वारा शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे स्वयं अपनी हत्या करते हैं।"
2. रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, “हमारे विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी भाषा अपने सम्मानपूर्ण स्थान से अपदस्थ नहीं की जा सकती है।"
3. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार , "राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी, देश की एकता से अधिक से अधिक से सहायक होगी।"
4. राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार, 'केवल शिक्षा ही नहीं, वरन् प्रशासन में भी प्रान्तीय भाषाओं को अपना स्थान प्राप्त होना चाहिए।"
5. जी. रामनाथन के अनुसार, "अहिन्दी क्षेत्रों के व्यक्ति, हिन्दी के प्रसार के सब प्रयासों का विरोध कर रहे हैं।"
सरकार के द्वारा भाषा-समस्या के समाधान का प्रयास
(Government Efforts To Solve Language Problem)
उपरिलिखित बाधाओं एवं विरोधी विचारों से हतोत्साहित न होकर, भारत सरकार ने भाषा-समस्या का समाधान करने के लिए समय-समय पर जो प्रयास किए हैं, उनका वर्णन अधोलिखित है-
1. भारतीय संविधान (Constitution of India, 1950)- 15 अगस्त, 1947 को जब भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्त की, तब उसके समक्ष अनेक समस्याएँ थीं। इनमें से एक समस्या भाषा की थी। सभी स्वतन्त्र राष्ट्रों की अपनी राजभाषा होती है। अतः स्वतन्त्र भारत की भी राजभाषा होनी आवश्यक थी। यह स्थान एवं सम्मान हिन्दी को प्रदान किया गया।
हिन्दी को यह प्रतिष्ठित स्थान अकस्मात् या संयोगवश प्राप्त नहीं हुआ। उसे यह स्थान प्राप्त करने का आधारभूत कारण था- अनेक महान् भारतीयों द्वारा हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के लिए अथक प्रयास किया जाना। इन भारतीयों में सर्वमहान् थे- लोकमान्य तिलक, स्वामी दयानन्द सरस्वती, सुभाषचन्द्र बोस, श्यामाप्रसाद मुकर्जी, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और सर्वोपरि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी गाँधीजी ने 27 दिसम्बर, 1917 को कलकत्ता में अपने एक भाषण में कहा था- "सर्वप्रथम और सर्वमहान् सेवा जो हम कर सकते हैं, वह हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में राष्ट्रीय स्थान प्रदान करना है।"
उल्लिखित महान् भारतीयों के कार्यों और महात्मा गाँधी के विचारों से अनुप्राणित होकर, विधानसभा ने 1950 के भारतीय संविधान की धारा 343 को बिना किसी मत-विभिन्नता के स्वीकार किया। इस धारा में अंकित किया गया था। (i) संघ की भाषा, देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी। (ii) संविधान के लागू होने के समय से 5 वर्ष तक संघ के सब राजकीय कार्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग किया जायेगा।
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