ट्रेन की यात्रायें तो आप सभी ने बहुत की होंगी, मैंने भी की हैं लेकिन कुछ यात्रायें ऐसी होती है जो इंसान के लिए ज्यादा रोमांचक और विस्मयकारी हो जाती है। एक ऐसी ही यात्रा के बारे में हम आज के इस लेख में चर्चा करेंगे।
DSSSB (दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड) की परीक्षा की तिथि आ गई थी उक्त परीक्षा 30 नवंबर को दिल्ली में आयोजित होने वाली थी इसके लिए मैंने अपनी सुविधानुसार सहरसा से न्यू दिल्ली जाने एवं आने का टिकट बनवा लिया था ताकि कही कोई परेशानी ना हो। लेकिन जब परेशानी लिखा होता है तो आप लाख प्रयत्न कर ले आपको उसे झेलना ही पड़ता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ परिस्थिति ऐसी बन गई कि मैं उस समय पटना में था और मैं सोच रहा था कि ट्रेन को यही से पकड़ लूंगा अच्छी बात यह थी कि वह ट्रेन हाजीपुर होकर जा रही थी। जैसा आप सोचते होंगे मैंने भी सोचा कि कोई बात नहीं बोर्डिंग चेंज कर लेंगे और हाजीपुर में बैठ जाएंगे। उक्त बातें सोच कर मैं निश्चिंत हो गया।
ट्रेन पकड़ने से 02-04 दिन पहले सोचा कि अब बोर्डिंग चेंज कर लेता हूं लेकिन जैसे बोर्डिंग चेंज करने गया बार-बार मोबाइल पर यह संदेश प्रज्वल्लित हो रहा था।
जब मैंने google बाबा से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कुछ ये जवाब दिया।👇
इसका अर्थ एवं मतलब जानने के लिए कई लोगों से बात की यहां तक कि मेरे एक मित्र जो कि रेलवे में कार्य करते हैं उनसे भी मदद मांगी ताकि कम-से-कम मेरा बोर्डिंग चेंज हो जाए उन्होंने भरसक प्रयास किया लेकिन वो सफल नहीं रहे। मुझे ऐसा लग रहा था की सहरसा जाकर ही ट्रेन पकड़ना होगा। यदि मैं हाजीपुर से ट्रेन पकड़ता तो, तब तक यात्रा टिकट परीक्षक महोदय यानी कि Travelling Ticket Examiner (T.T.E.) मुझे अनुपस्थित जान कर मेरा टिकट किसी और को दे चुके होते। खैर, जैसे हर बीमारी का इलाज होता है वैसे ही हर समस्या का समाधान होता है। मैंने भी इस समस्या का समाधान ढूंढ़ निकाला। वो समाधान ऐसे था कि पाटलिपुत्र से एक ट्रेन सहरसा जा रही थी मैं उस ट्रैन में बैठ हाजीपुर होते हुए सहरसा जाता और फिर अपनी ट्रेन में सहरसा से बैठ हाजीपुर होते हुए दिल्ली प्रस्थान करता। यह समाधान तो बहुत आसान लग रहा था लेकिन इसमें समस्या यह थी कि जब तक मैं सहरसा पहुंचता तब तक वह ट्रेन सहरसा से निकल चुकी होती। अब मैं वैसा विकल्प ढूढ़ने लगा जब दोनों ट्रैन एक दूसरे को कुछ समय के लिए अंतराल पर मिले और वैसा संयोग मुझे बेगूसराय में मिला क्योंकि वो ट्रेन और मेरी ट्रेन के बीच लगभग 02 घंटे का फ़ासला था। उसके उपरांत मैंने पाटलिपुत्र से बेगूसराय तक का सफर तय किया। बेगूसराय में 02 घंटे इंतजार करना बहुत मुश्किल लग रहा था इसलिए थोड़ा स्टेशन के बाहर घूमने का मन बनायें।
मैं पहली बार बेगूसराय स्टेशन पर आया था शायद इसी वजह से स्टेशन के बाहर का नजारा मेरे लिए अद्भुत एवं नया था वहां मुझे कुछ विशेष खाद्य पदार्थ मिले जो कि स्वाद एवं सेहत के दृष्टिकोण से काफी अच्छे थे। उसे मैंने अपनी आगे की यात्रा के लिए खरीद कर बैग में रख लिया ताकि यहां से सफर अच्छे से बीत सकें।
मेरी जो दिल्ली की यात्रा सहरसा से शुरू होने वाली थी अब वह बेगूसराय से शुरू हो रही थी। मेरे पास बहुत ज्यादा सामान तो नहीं था लेकिन साथ में बैग के साथ एक पेंटिंग थी जिसे बहुत ही सावधानी पूर्वक लेकर जाना था। मैंने उसे अपनी सीट के किनारे खड़ी करके ले जा रहा था ताकि वह अच्छे से जा सकें। अगले दिन मेरी परीक्षा थी तो सोचा कि कुछ किताबें देख लेता हूँ और कला की जो बुक अपने साथ लेकर जा रहा था उसे निकाल कर देखने लगा। मेरी सीट Reservation against Cancellation. (RAC) थी मेरे सीट के ऊपर एक दिल्ली का लड़का यात्रा कर रहा था पता नहीं उसे क्या सूझी वह अपनी सीट के ऊपर से एकदम झांकते हुए बोला- भैया आप शिक्षक का एग्जाम देने जा रहे हैं क्या?
मैं उसकी भविष्यवाणी से चौक गया। मैंने उसकी ओर देखा और कहा- हां
उसके बाद उसने एक-एक करके कई प्रश्न पूछने शुरू कर दिए जैसे- शिक्षक कैसे बनते हैं? वेतन कितना मिलता है? बनने के लिए योग्यता क्या होनी चाहिए? इत्यादि।
मुझे यहां
उपनिषद की याद आने लगी। जिसका अर्थ होता है-
ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु के समीप बैठना। और मैंने अपने पहले कई लेखो में यह बता चुका हूं कि मैं किसी को चेला (शिष्य) बनाता ही नहीं हूं मैं सबको गुरु ही बनाता हूं ताकी मैं सब से ज्ञान प्राप्त कर संकु। जब गुरु पास बैठा हो तो ज्ञान और भी सार्थक हो जाता है। उसे मैंने अपनी सीट पर बैठाया और मेरी सीट पर जो RAC वाले अंकल थे मैंने उसे उसकी सीट पर भेज दिया और उसके बाद उससे लंबी वार्तालाप हुई। इस दरम्यान मुझे पता चला कि वो 11वीं कक्षा का छात्र और दिल्ली में रहता है ऐसे है बिहार का। बात-चीत के दरम्यान मैंने उसे अपने सोशल मीडिया के कार्य जैसे-
यूट्यूब पर वीडियो बनाना, Blogs लिखना, इत्यादि। कार्यो के बारे में बताया जिससे वो काफी प्रभावित होता हुआ दिख रहा था।
पिछले कुछ दिनों से मेरी ट्रेन की यात्रायें बढ़ गई थी और मेरे साथ ऐसा पहली बार हो रहा था कि यात्रा के दरम्यान कोई ना कोई वस्तु मेरी ट्रेन में छुट जा रही थी। शायद इसी वजह से इस यात्रा में मैं ज्यादा सतर्क था और कोशिश कर रहा था कि कम-से-कम मेरी यह यात्रा अच्छे से बीते। दिल्ली पहुंचने से पूर्व ही मैंने अपनी बैग सीट पर रख ली और एक-एक करके सभी सामानो को उसमे रख लिया ताकि पुरानी घटनाएं मेरे साथ परावर्तित ना हो। तय समय पर ट्रेन मुझे दिल्ली छोड़ दी। उसके उपरांत रात में सोने से पूर्व मैंने सोचा कि कल तो मेरी परीक्षा है इसलिए एक बार कला की किताब देख लेता हूं जब बैग खोला तो उसमें से किताब नदारद थी। पुनः अपने आप को उस ट्रेन में ले गया जिससे यात्रा की थी और पता करने की कोशिश की, कि गलती कहां हुई तो स्मरण आया कि किताब पढ़ने के उपरांत मैंने उसे सीट पर रख दिया था और सीट के साइड से वो किताब सीट के नीचे गिर गया थी और मैंने अपना बैग सीट के नीचे से पहले ही निकाल लिया था जिस वजह से ट्रेन से उतरने के दरम्यान सीट के नीचे देखा ही नहीं बल्कि सीट के ऊपर रखे बैग को लेकर ट्रैन से नीचे उतर आए और कला की किताब ट्रैन में ही रह गई।😥
मेरी यह ट्रेन की यात्रा शुरुआत से लेकर अंत तक सुखद नही रही।
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