विश्व के सभी समाजों में नयी परिस्थितियों व दशाओं के प्रति आग्रह रहा है लेकिन आधुनिकीकरण को प्रक्रिया उपरोक्त आग्रह से भिन्न प्रकार की है। इसके अंतर्गत औपनिवेशक राज्य, अल्पविकसित राज्य एवं समाज अपने से अधिक विकसित समाजों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक विशेषताओं को अपनाते हैं। सक्सेना (2014) ने आधुनिकीकरण व सामाजिक परिवर्तन को सम्बोधित करते हुए कहा कि कभी इसे परिवर्तन की प्रक्रिया तथा कभी इस इच्छित या आदर्श प्रकार के परिवर्तन के रूप में अर्थात् जो समाज का लक्ष्य होना चाहिए, उस ओर अग्रसर माना जाता है। वर्तमान भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में यदि आधुनिकीकरण को देखा जाये तो उदारीकरण के पश्चात् भारत में तीव्र गति से सामाजिक परिवर्तन हुए हैं। भारतीय समाज में भेदभाव के आधार पर आधारित जातिगत संस्तरीकरण में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। ग्रामीणों के मध्य शिक्षा के माध्यम से तार्किक मूल्यों का समावेश हो रहा है। लोग परम्परागत मूल्यों से किनारा करते हुए देखें जा सकते हैं। वर्तमान भारत में परम्परागत मान्यताओं व रवायतों के खिलाफ नकारात्मकता की भावना देखने को मिलती है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्तियों समूहों और समाजों में विश्व के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण और परिप्रेक्ष्य का उदय हुआ है। ये नवीन परिप्रेक्ष्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की उपलब्धियाँ से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं और इसके प्रसार ने परम्परागत समाजों की संरचना को प्रबल रूप से प्रभावित किया है। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को तीव्रता मिली है एवं कल्याण व विकास जैसे क्षेत्रों में नवीन संभावनाएँ सामने आयी हैं। इस प्रक्रिया ने धर्म निरपेक्षीकरण, औद्योगीकरण और नगरीकरण को भी प्रोत्साहन दिया है और सुदृढ़ता प्रदान की है। समकालीन युग में तृतीय विश्व के विकासशील देश आधुनिकीकरण के प्रति प्रबल रूप में आकर्षित एवं प्रक्रिया से घनिष्ठ रूप से प्रभावित दिखाई दे रहे हैं। भारत को बहु-प्रजातीय, बहु-धार्मिक, बहु-सांस्कृतिक, बहु-भाषायी व बहु क्षेत्रीय परिस्थितियों, समूहों और वर्गों में आधुनिकीकरण के प्रति स्वीकृति व ग्रहणशीलता की प्रवृत्ति भी अलग-अलग रही है और यह प्रक्रिया समान रूप से समस्त क्षेत्रों को प्रभावित नहीं कर पायी है।
आज भी भारत की दो-तिहाई जनता गाँवों में निवास करती है जो परम्परावादी हैं और प्राचीन काल से चली आ रही परम्पराओं के पक्के अनुयायी हैं। लेकिन आधुनिकता से वे भी अछूते नहीं हैं। यातायात, रेल, संचार, मोटर, समाचार पत्र, शिक्षा, प्रशासन, सामुदायिक योजनाओं आदि ने आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया है। जिससे भौतिक ही नहीं, सांस्कृतिक परिवर्तन भी हुए हैं। वहीं नए मूल्य, सम्बन्ध व अपेक्षाएँ भी जन्म ले रही हैं। वास्तव में परम्परा व ग्राम व्यवस्था में एकरूपता व स्थिरता दिखाई देती है, परन्तु उसके विभिन्न आधारभूत सिद्धान्तों में बदलाव हुए हैं और वे नये रूप को ग्रहण कर रहे हैं, परिवार, जाति, स्थानिकता, धर्म आदि के संदर्भ में भी आधुनिकीकरण हो रहा है। परिवार में व्यक्तिवाद का उभार हो रहा है जो कि पहले सामूहिकता पर आधारित थे। वर्तमान में समूह में लिंग, आयु व सम्बन्ध के आधार पर अधिकार का निर्धारण न होकर योग्यता, अनुभव और ज्ञान के आधार पर होता है। जाति के भेद में व्यवसाय, संस्तरण, कर्मकाण्ड व पवित्रता की धारणा में अपेक्षित परिवर्तन हुए हैं। विवाह से सम्बन्धित नियमों की कठोरता अभी भी विद्यमान है। जाति सुधार आंदोलनों द्वारा विभिन्न जातियों के मेलजोल बढ़ रहे हैं। जजमानी प्रथा एवं व्यवसाय में परिवर्तन हुए हैं।
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