भाग-01 में आपने पढ़ा था कि हम ट्रेन का सफर तय करके और खुरासन रोड से रात्रि में अंधेरों का सामना करते हुए निकल गए थे। अब आगे की दास्तां.......
Note:- यदि आपने भाग-01 नहीं पढ़ा है तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके, उसे पहले पढ़ लीजिये उसके उपरांत इसे पढ़िए तभी आप इस वृतांत को स्पष्ट समझ सकते हैं।
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बाइक के सफर के दरम्यान मैं उसी आजमगढ़ को खोज रहा था जो तुलसी राम ने मुर्दहिया में व्यक्त किया है। पूरी तो नहीं लेकिन फुल्की-फुल्की उसकी झांकी मुझे दिखनी शुरू हो चुकी थी, तभी सुरेंद्र जी ने थोड़ा झेंपते हुए कहा कि- यहां थोड़ी-सी सड़कों की स्थिति अच्छी नहीं है। यहां पर जो विधायक जी हैं, उनसे शिकायत करने पर वो बोलने हैं कि आप लोगों ने हमें वोट ही नहीं दिया जबकि यहां से लगातार वह 04 बार से जीत रहे हैं। मैं तो अपने ख्यालों में खोया था लेकिन फिर भी सुरेंद्र जी को जवाब देते हुए कहा कि आप लोग उन्हें नहीं बोलते की जब हम वोट ही नहीं देते हैं तो आप जीतते कैसे हैं? कुछ इसी तरह के वार्तालाप से हमारा सफर कट रहा था सड़क की स्थिति ऐसी थी कि बस आप यूँ समझिये की यदि कोई व्यक्ति दही लेकर बाइक पर बैठे तो उसका घी जरूर निकल जाएगा।
इस तरह की सड़क से मेरा पाला पहली बार नहीं पड़ रहा था जबकि आज से 15-20 साल पहले मेरे घर के ठीक सामने की सड़क भी ऐसी ही थी जब किसी को बड़हरिया से सिवान जाना होता तो तपाक से लोग यह बोलते कि एक घंटा लगेगा जबकि दूरी मात्र 14 किलोमीटर है। पहले लोग बिहार में सड़क की स्थिति को देखते हुए किसी स्थान को दूरी में नहीं बल्कि घंटा में बताते थे। मुझे लगा कि यहां भी शायद अभी भी लोग किसी स्थान की दूरी को घंटा में ही बताते हैं। मुझे प्रमाण भी उस समय मिल गया जब स्टेशन से मैंने सुरेंद्र जी से पूछा कितना दूर है तो वो बोले कि आधा घंटा लगेगा।
लगभग 45 मिनट में हम सुरेंद्र जी के घर पर थे। उस दिन मटकोर की विधि थी और बारात जाने से पूर्व लोगों को खाना खिलाया जा रहा था। अपने व्यस्त समय में से समय निकालकर सुरेंद्र जी मुझे रिसीव करने गए थे, मुझे यहां आकर यह महसूस हुआ। समय तो खाना खाने का हो चुका था लेकिन फिर भी एक परंपरा के तहत पहले नाश्ता आया नाश्ता भी इतना ज्यादा की मेरे अकेले क्या दो लोग और रहते तो तब शायद खत्म होता। नाश्ता वगैरह ला-ला कर मुझे एक व्यक्ति बहुत उत्साह से दे रहे थे मुझे लगा कि शायद उनको मैंने कहीं देखा है। फिर लगा मैं यहां तो पहली बार आया हूं तो देख कैसे सकता हूं। फिर मैंने अपना पूरा ध्यान उस लड्डू पर केंद्रित किया जो कि मुझे नाश्ते में मिला था शादी से पूर्व ही लड्डू, मन में, मेरे भी लड्डू फूटने लगे। तब उन्होंने आकर मुझे अपना परिचय देते हुए बोले कि मैं आजाद प्रसाद। मैंने सोचा कि मेरा एक दोस्त पटना में है आजाद और यहां भी आजाद। तब तक सुरेंद्र जी भी आ चुके थे उन्होंने बताया कि हम सभी BPSC की परीक्षा देने पटना गए थे और बुद्ध स्मृति पार्क के पास ग्रुप फोटो खिंचवाये थे। तब मुझे याद आ गया कि हां एक ग्रुप फोटो में हम सभी सम्मिलित हुए थे। और आजाद जी भी याद आ गए कि ये मास्क😷 में ही फोटो खिंचवा रहे थे। मैंने इन्हें बोला भी था कि आप कृपया मास्क हटा लीजिए ताकि आपका चेहरा इस ग्रुप फोटो में आ सके।
सुरेंद्र जी के गांव में मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि गांव के चारों तरफ AC लगा दिया गया हो ठंडी-ठंडी हवा से रोम-रोम रोमांचित हो रहा था मैं तो कुछ देर के लिए मुर्दहिया को भूल सा गया था। मैं यह सोच रहा था कि इतने अच्छे परिवेश में तुलसीराम जी बचपन व्यतीत किए थे। लोग बड़े-बड़े रेस्टोरेंट में जाकर पैसे खर्च कर के मून लाइट🌛 डिनर करते हैं यहां तो मुझे फ्री में मूनलाइट🌛 डिनर मिला। वो भी इतने मान-सम्मान के साथ।
मुझे मेरे अपने बचपन की उस समय याद आ गई जब सभी के सोने के लिए खटिया लगाई जा रही थी और शायद मेरे पद एवं उनकी नजर में मेरी प्रतिष्ठा को देखते हुए मेरे लिए चौकी दी गई। मैं जिद करके खटिया पर सोया क्योंकि खटिया पर सोए हुए बरसों हो चुके थे। खटिया पर लेटे-लेटे खुली आकाश को देख रहा था और बचपन में खो चुका था तभी आजाद जी की बातों से मैं पुनः इस परिवेश में लौटा जब उन्होंने और कुछ मुझे बोलने के लिए कहा। मैं फिर से एक वक्ता और वह एक अच्छे श्रोता बन गये।
रात में इतनी अच्छी नींद आई कि कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला। सूरज अंकल भी जगा करके कब के चले गए थे। धीरे-धीरे उनकी जब तेज रोशनी शरीर पर पड़ी तो लगा कि अब उठना चाहिए। सुबह-सुबह इंसान को फ्रेश होने के लिए फ्रेश जगह ही चाहिए जो कि वहां पर्याप्त मात्रा में थी हम आजाद जी और सुरेंद्र जी साथ हो लिये।
जब बहुत देर तक मैं घूमता रहा तो आजाद जी को बोलना पड़ा कि अब चलना चाहिए। दो तीन दफा तो मैं उन्हें इग्नोर कर दिया लेकिन जब सुरेंद्र जी का कॉल आ गया तब मुझे लगा कि नहीं अब सही में लौट जाना चाहिए क्योंकि देर बहुत हो चुकी है। धीरे-धीरे मेहमानों का आगमन होते जा रहा था, शादी की सभी तैयारियां भी चल रही थी। कुछ विधि-विधान बिहार से अलग थे तो कुछ मिलते-जुलते, जिसका मैं रसास्वादन कर रहा था।
आजाद जी से वार्तालाप के दरम्यान पता चला कि वह एक अच्छा रीडर भी है एक लेखक✍️ को और क्या चाहिए एक अच्छा पढ़ने वाला जो कि मुझे आजाद जी के रूप में प्राप्त हो गए, फिर क्या था। फटाफट मैंने अपने मोबाइल में Blogs खोला और जो भी मैं टूटी-फूटी भाषा में लिखता हूं वह सब आजाद जी को पढ़ाने लगा और वह एक अच्छे रीडर की भांति पढ़ते रहे और मुझे सलाह/सुझाव देते रहे।
शाम होते-होते पूरा घर मेहमानों से भर गया और बारात निकलने की तैयारी जोर-शोर से शुरू हो गई। बिहार का फेमस लौंडा नाच भी वहां पर था। जिसे सब लोग देख एन्जॉय कर रहे थे। बरात ससमय निकली और ससमय द्वार पर पहुंच भी जाती लेकिन रास्ते में एक जगह सभी गाड़ियां खड़ी हो गई आसपास देखने पर केवल अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था और दूर से सियारों की आवाज भी सुनाई दे रही थी। मुझे तो कुछ देर के लिए ऐसा प्रतीत हुआ कि साक्षात मुर्दहिया के बीच तो नहीं आ खड़ा हुआ। तुलसीराम जी लिखते हैं जब वह रात में मुर्दहिया से होकर गुजरते थे तो सियारों की आवाज उनको अंदर तक डरा देती थी वही अनुभव मुझे भी वहां होने लगा। धीरे-धीरे लोग गाड़ियों से नीचे उतरे। उस जंगल के बीच एक छोटा सा मकान दिखा जहां पर एक बल्ब जल रहा था जो बड़ी मुश्किल से अंधेरा को दूर करने का प्रयास किया हुआ था। सभीलोग उसी की ओर जा रहे थे मैं भी उनका अनुशरण करते हुए वहां चला गया। वहां पर पानी और मिठाइयां बांटी जा रही है, सब लोग ले रहे थे तो मैंने भी ले लिया। बाद में पता चला कि वही पर नाश्ता का व्यवस्था किया गया हैं क्योंकि घर यहां से कुछ दूरी पर है। मैं और आजाद जी एक ही गाड़ी में एक ही साथ बैठे हुए थे और रास्ते भर वो मेरा Blogs पढ़ते आए थे। गाड़ी से उतरने के बाद वह अंधेरे में कहीं खो गए। मैंने ढूंढने का प्रयास किया लेकिन वह नही मिलें। मैंने सोचा कि जाना तो एक ही जगह है वह किसी और गाड़ी में आ जाएंगे और मैं एक गाड़ी में बैठ फिर लड़की के द्वार पर चला गया। (संभवत उस गांव में एक और बारात आई हुई थी और उनके द्वारा भी कुछ गाड़ियां उसी जगह पर खड़ी की गई थी।) वहां पर खाने की व्यवस्था थी और खाना चल रहा था मैंने वहां पर आधे घंटे तक इंतजार किया लेकिन ना तो दूल्हा की गाड़ी आई और ना ही कोई बराती। ऐसे लोग तो वहां दिख रहे थे लेकिन पहचान का कोई नहीं था। मुझे ऐसा भी महसूस होने लगा कि कहीं मैं किसी और जगह तो नहीं आ गया। फिर भी लगा की कोई बात नहीं हम तो ठहरे एक बराती किसी बरात में सम्मिलित हो जाएंगे। सामने बफर सिस्टम में खाना परोसा जा रहा था। आराम से थाली लेकर भरपेट खाना खाया। खाना खाने के दरम्यान यह ध्यान ही नहीं रहा कि मेरा मोबाइल भी बज रहा हैं, पूरा फोकस तो खाने पर था।
खाना खाकर जब मोबाइल देखा तो पता चला कि सुरेंद्र जी और आजाद जी का कई मिस कॉल है। जब मैंने उन्हें कॉल बैक किया तो वह बोले कहां है जल्दी से वही आईये जहां पर सभी गाड़ियां रुकी हुई थी। बरात यही से चल रहा है और सभी लोग नाश्ते-झूमते आ रहे हैं। नागिन डांस🐍 के लिए आप का इंतजार हो रहा है। मैंने मन ही मन सोचा मैं तो सपेरा हूं नहीं फिर इंतजार क्यों???🤔
एक बार लगा कि नहीं जाएं फिर सोचे कि चलते हैं। कम-से-कम खाना तो पच जाएगा। फिर वहां से चले, रास्ते का पता तो नहीं चल रहा था लेकिन आवाज का अनुसरण करते हुए आगे बढ़े जा रहे थे। आखिरकार हम भी उसी ग्रुप का हिस्सा हो गए जो डीजे के पास लगातार नॉनस्टॉप नाच रहे थे। तभी किसी ने डीजे वाले को फटकार लगाते हुए कहां- अबे!!! नागिन धुन बजाओ। जैसे ही नागिन धुन बजी भाई साहब!!!! मत पूछिए, ऐसा प्रतीत होने लगा कि सारे पनिया सांप🐍 को पानी से बाहर निकालकर तपती दोपहरी🌅 में रोड पर छोड़ दिया गया है वैसे सब उछलने लगे। डांस का तो पता नहीं लेकिन इंटरटेनमेंट बहुत हो रहा था। डांस से कोसों दूर रहने वाले हम भी थोड़ा बहुत हिल लिए। वैसे भी कहा जाता है ना कि प्रत्येक व्यक्ति को बराती डांस आता ही है और जब ऐसा मौका मिला तो छोड़ना भी नहीं चाहिए। आराम से नाचते-गाते लड़की वाले के द्वार पर पहुंचे। यहां पर फिर से एक बार फरमाइश हुई नागिन डांस कि। नागिन🐍🐍 के रूप में वही, जो दो लौंडे थे वह आ गए और बाकी सब बराती बन गए सपेरे। उसके बाद जो नागिन और सपेरा की लड़ाई शुरू हुई उसका वर्णन हम क्या करें!!! आप वीडियो में स्वम् ही देख लीजिए जिसका Link नीचे दिया गया है।👇👇
बारातियों का महत्वपूर्ण कार्य अब समाप्त हो चुका है क्योंकि सब नागिन डांस🐍 करके थक चुके थे। कुछ खाने की बढ़े और कुछ जयमाला देखने लगे। जयमाला की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद फिर वही सबका फोटो सेशन। 📸 मैंने भी अपना एक ग्रुप फोटो वर-वधु के साथ खिंचवा लिया है इस उम्मीद के साथ कि शायद करिजमा एलबम में जगह मिल जाए।
धीरे-धीरे बराती जाने लगे थे केवल वही लोग रुके जो घरवाले थे या जिनका कुछ विवाह में योगदान था और विवाह की प्रक्रिया शुरू हुई जो कि लगभग सुबह तक चलती रही। एकाध-बार मुझे नींद😴 भी आई लेकिन सुरेंद्र जी ने कहां- आपको एक विधि सम्पन्न करना है। वह उस विधि का नाम भी बताएं जो कि मुझे अभी स्मरण नहीं हो रहा है। (बिहार में शादी के दरम्यान एक विधि होती है जिसे हम लोग गुड़-हथनी कहते हैं उसमें यह होता है कि एक ऐसा व्यक्ति को चुना जाता है जिसको लोग भोजपुरी में भशुर (ज्येष्ठ) कहते हैं जो कि उस दिन दुल्हन को स्पर्श करता है उसके बाद उसे जिंदगी भर दुल्हन की परछाई से भी दूर रहना होता है।) वह विधि संपन्न होने के बाद मुझे ज्ञात हुआ है कि मुझे तो सुरेंद्र जी भशुर (ज्येष्ठ) बना दिये। बाद में मेरे कुछ मित्र बता रहे थे कि जिनकी शादी हो चुकी रहती हैं वही भशुर बनता है। अब इसमें कितनी सच्चाई है यह तो मुझे नहीं पता।
अब जो हो गया सो हो गया।
मुझे तो यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अभी भी वहां पर गौना की प्रक्रिया चलती है। गौना का मतलब हुआ कि दुल्हन की विदाई कुछ दिनों के उपरांत होगी। बारातियों को विदाई करने से पूर्व दूल्हा को दुल्हन के रिश्तेदारों एवं अन्य लोगो के द्वारा कुछ गिफ्ट🎁 वगैरह देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है जोकि संपन्न हो रही थी। हंसी मजाक के तौर पर लोग दूल्हे को काजल, पाउडर या कोई भी चीज लगा देते हैं। लेकिन यह चीज हमने वहां पर कुछ ज्यादा देखी। दूल्हे के साथ उसके सभी भाई बैठे हुए थे और जो भी लोग आ रहे थे वह सभी को काजल, तेल, पाउडर, इत्यादि। को चेहरे पर लगा नही रहे थे बल्कि उड़ेल रहे थे। या यूं कह सकते हैं कि सबका फ्री में वहां पर फेशियल हो रहा था। खैर उनका ये श्रद्धा था जो वहां बैठे सभी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की भांति निभा रहे थे। थोड़ी सी बानगी आप वीडियो में देख सकते हैं।👇👇
Video के लिये यहां Click करें।
विदाई का कार्यक्रम एक दिन बाद था लेकिन मुझे उसी दिन निकलना था। आजमगढ़ से बहुत सी यादें लेकर एवं भविष्य में पुनः आने की उम्मीद के साथ जब हम वहां से निकले तो हम अकेले नहीं थे हमारे साथ थे:- विश्वजीत कुमार यानी कि मैं, सुरेंद्र प्रजापति जी, दुर्गेश प्रजापति जी, राहुल कुमार जी, सुरज कुमार जी, अनुज कुमार जी, शुभम कुमार जी, मिट्ठू कुमार जी और जिनका नाम इस लेख में सबसे ज्यादा बार आया है आजाद प्रसाद जी।
धन्यवाद🙏
विश्वजीत कुमार✍️
वाह , बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंVah Bishwajeet bhai... Aapane Apne lekhan Kaushal ke madhyam se ham sabhi ko har Soundarya ka Anubhuti karaya hai aap hamesha in sari Soundarya ko Apne shabdon ke madhyam se ham sabhi ko rasha swadan karne ke liye aapko bahut bahut dhanyawad.... Aapane apni lekhan shaili ke madhyam se shaadi ki har ghatna ko hamesha hamesha ke liye surakshit ho gaya hai aur ham log jab bhi is kahani Ko padhenge to ham sabhi ko shaadi ka har moment yad aaega ...❤️❤️
जवाब देंहटाएंPower full story
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