मंगलवार, 10 मई 2022

कला का इतिहास, शुंग काल 185 ई० पू० - 72 ई० पू० (History of Art, Shunga period 185 BC - 72 BC) Online Class Notes 09/05/2022.

  शुंग काल 185 ई० पू० - 72 ई० पू० 
(Shunga period 185 BC - 72 BC)


       शुंग राजवंश को ब्राह्मण राजवंश भी कहा जाता है इसके संस्थापक पुष्यमित्र शुंग हैं। यह उत्तर भारत का राजवंश था। मौर्य काल के अंतिम राजा/शासक बैद्रथ को मारकर पुष्यमित्र शुंग ने मगध की गद्दी पर 185 ई०पू० अपने नाम से एक राजवंश चलाया जिसका नाम था- शुंग राजवंश 

Note:- शुंग राजवंश मूलतः हिंदू राजवंश था।

यह भारत का प्रथम ब्राह्मण राजवंश था किंतु उनके शासनकाल में बौद्ध, हिंदू एवं जैन तीनों धर्मों की मूर्तियां बनाई गई। चपटे डॉल वाली आकृती इस काल की पहचान है। जैसे:- सांची एवं भरहुत में निर्मित कलाकृतियां।

भरहुत स्तूप 
185 ईसवी पूर्व - 80 ईसवी पूर्व 


      यह स्तूप मध्य प्रदेश के सतना/नंगोंद जिले में निर्मित है, इसकी खोज 1876/73 में जनरल कनिघम के द्वारा किया गया था। इसका व्यास 60 फीट है। इसका संग्रह कोलकाता संग्रहालय में रखा गया है। इनके शासनकाल में प्रथम मूर्ति कला केंद्र सांची था जबकि दूसरा केंद्र भरहुत था। इस स्तूप के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है।

     कनिघम ने अपनी खोज के उपरांत यहां पर 40 जातक कथाओं के साथ 06 बुद्ध के जीवन संबंधी घटनाओं का एवं 40 यक्ष और यक्षणी की प्रतिमा का वर्णन किये है।

Note:- जातक कथाओं की कुल संख्या 547 है।

    सांची एवं भरहुत की कला काष्ठ कला का विकसित रूप जान पड़ता है। सांची एवं भरहुत की कला लोक कला पर आधारित है। यहां से प्राप्त दो दृश्य से प्रसिद्ध है:- 
  1. माया देवी का स्वप्न 
  2. जेतवन दान
        यहां पर व्यंग संबंधित दृश्य भी देखने को मिलते हैं जिन्हें पत्थरों पर मूर्ति के रूप में उकेरा गया है।
जैसे:-
  • गाजे-बाजे के साथ बंदरों को दिखाया गया है। 
  • दांत को संडासे एवं रस्सी की मदद से निकालते दिखाया गया है। 

प्राप्त 40 यक्ष और यक्षणी की प्रतिमा में कुछ प्रसिद्ध है जो निम्न है:-

यक्ष की प्रतिमा 
  • सुप्रवास 
  • कुबेर 
  • सूचीलीना 
  • आजकालक

यक्षणी की प्रतिमा 
  • सीरिमा 
  • सुदर्शना 
  • सुबहा 
  • चूलकोवां 
  • मित्रवेशी 
  • आलमबूमा

शुंग सातवाहन राजवंश 
(225 ईसवी पूर्व - 220 ई०)

      इसकी स्थापना सिमुक नामक व्यक्ति ने की थी कान्हेरी, पितल्खोरा, भाजा, कारले, उदयगिरी, खंडदशी, आदि चैत्यों का निर्माण इस समय हुआ था।
   इन चैत्यों के साथ कुछ स्तूपो का भी निर्माण किया गया।

अमरावती स्तूप 
(200 ई० पू०)

    अमरावती स्तूप आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिला में कृष्णा नदी के पास में स्थित है। इसका प्राचीन नाम "धान्यकटक" है। इसकी खोज कर्नल मैकेंजी के द्वारा 1797 ई० की गई थी।

     इसका निर्माण चुना पत्थर (Lime Stone) संगरमरमर किया गया है। यह स्तूप हीनयान एवं महायान दोनों धर्मों से संबंधित है। 

     अमरावती स्तूप में मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में लेख प्राप्त होता है। बौद्ध धर्म की हीनयान एवं महायान दोनों धर्मों से संबंधित आकृतियों का निर्माण यहां पर किया गया है। 
जैसे:- 
  • चरण चिन्हों की पूजा 
  • आदमकद बुद्ध 
Note:- यहां पर पहले प्रतीकात्मक मूर्तियां बनी उसके उपरांत यथार्थपरक।

नागार्जुन स्तूप 

       यह हल्के काले रंग के पत्थरों से निर्मित किया गया था। आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित है। इसकी खोज 1927/1959 में लॉग हॉस्ट के द्वारा की गई थी। यहां की कला पर यूनानी एवं रोमन प्रभाव हमें दिखाई देता है। 

यह स्तूप हल्के काले मुलायम संगमरमर से बनाया गया था। 

नेल कोंडपल्ली स्तूप 

     यह स्तूप दूसरी शताब्दी ई० में आंध्र प्रदेश के जिले खम्माम (स्थान मुद्दडी) में लाल रंग के पत्थर से निर्मित किया गया है। यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा स्तूप है, यहां से भगवान बुद्ध की 09 प्रतिमाएं प्राप्त होती है।


भाजा चैत्य गुफा 
(200 ई०पू०)

     महाराष्ट्र के पुणे जिले में इंद्राणी नदी के तट पर यह गुफा मंदिर स्थित है। यहां से कुल 22 गुफाएं  प्राप्त हुई हैं। जिसमें से 19 गुफाएं बिहार हैं बाकी बची तीन गुफा चैत्य हैं। 

यही से हमे इंद्र और सूर्य की प्रतिमा प्राप्त होती है। इसे दक्षिण भारत का सबसे प्राचीन चैत्य माना गया है।

कार्ले गुफा 
(दूसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व)

       महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट श्रृंखला में स्थित दक्षिण भारत का सबसे अच्छा एवं भव्य चैत्य कार्ले गुफा हैं। यहां पर प्राप्त कुल गुफाओं की संख्या 04 है। एक चैत्य एवं 03 विहार।

       यहां पर पंक्तिबंध बैठे 37 बुद्ध मूर्तियां प्राप्त हुई है और पंक्तिबंध हाथियों की प्रतिमा भी बनाई गई है। कार्ले का प्राचीन नाम बालूराका है। 

नासीक गुफा 
(ईसवी पूर्व दूसरी शताब्दी से सातवीं शताब्दी ई० तक)

       यहां से 17 गुफाएं प्राप्त हुई हैं जिनमें से 16 विहार एवं एक चैत्य हैं।

कान्हेरी गुफा
(प्रथम शताब्दी ईस्वी पूर्व से नवी शताब्दी ईस्वी तक)


      महाराष्ट्र के ठाणे या मुंबई से कान्हेरी गुफाएं प्राप्त हुई है, यहां पर कुल 109 गुफाएं मिलती हैं। इन गुफाओं का निर्माण प्रथम शताब्दी ईस्वी पूर्व से नवी शताब्दी ईस्वी तक माना जाता है। यहां से 11 मुखी बुद्ध की प्रतिमा भी प्राप्त हुई है।

पितल्खोरा गुफा 

      महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से 13 गुफाएं प्राप्त हुई है। यह गुफ़ा मंदिर सतमाला पहाड़ पर स्थित है। इसी गुफा पर कान्हा नामक चित्रकार के नाम का उल्लेख है।

उदयगिरि एवं खंडगिरि 

      उड़ीसा के भुवनेश्वर नामक स्थान से ये गुफाएं प्राप्त हुई है। इसका निर्माण चेदि वंश तथा शुंग वंशीय सम्राट खारवेल (कलिंग राजा) के द्वारा किया गया था। इनका संबंध जैन धर्म से है।

      इसके अलावा कुछ अन्य गुफाएं हैं:- रानीनूर गुफा, गणेश गुफा, हाथी गुफा, इत्यादि।

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