चंद्रगुप्त मौर्य का राजप्रसाद
पाटलिपुत्र (पटना), बिहार
पाटलिपुत्र का बुलंदी बाग तथा कुम्हरार की खुदाई कराई गई, यहां से लकड़ी का विशाल भवन प्राप्त होता है। यह लकड़ीया कश्मीर से मंगाई गई थी। इस को प्रकाश में लाने का श्रेय स्पूनर को जाता है।
इस राजप्रासाद की तारीफ़ विभिन्न विद्वानों ने की है।
फाह्यान:- संसार के मनुष्य इसे नहीं बना सकते इसे असुरों के द्वारा बनाया गया है।
मेगास्थनीज:- इस दुनिया में इस राजमहल के समान, इस राजमहल से बड़ा एवं सुंदर कुछ भी नहीं।
Note:- बिहार के गया में अशोक के द्वारा एक विहार बनवाया गया था जो कालांतर में उसके स्थान पर बौद्ध मंदिर बना। वर्तमान में इसे बौद्धगया मंदिर के नाम से जाना जाता है।
बराबर की गुफाएं
मौर्य कालीन पॉलिश इस गुफा में प्राप्त हुई है। यह गुफाएं बिहार के गया जिले में स्थित बराबर पहाड़ी पर ग्रेनाइट पत्थर को काटकर 04 गुफाओ का निर्माण किया गया है। इसकी खोज 1785 ईo में हैरिंगटन ने की थी। E.M. फॉरेस्टर की पुस्तक "ए पैसेज टू इंडिया" में इसी क्षेत्र को आधार बनाया गया है।
बराबर पहाड़ी से प्राप्त 04 गुफाऐं निम्न हैं -
- सुदामा गुफा:- यह सबसे प्राचीन गुफा है। यह गुफा 13 फुट 03 इंच लंबी और चौड़ी है। इसकी छत्ते ढोलाकार निर्मित की गई है।
- कर्ण चौपड़ गुफा
- विश्व झोपड़ी गुफा
- लोमस ऋषि गुफा:- यह यहां की सबसे बड़ी गुफा है। इसलिए इसे आधुनिक गुफाएं भी कहते है। इसके मेहराब पर हाथियों की पंक्तियां बनी है। सर्वप्रथम अलंकित मेहराब लोमस ऋषि गुफा से प्राप्त होते है।
यह बिहार के गया जिले में स्थित नागार्जुनी पहाड़ी पर बनी हैँ यहां पहाड़ को काटकर अशोक के पौत्र दशरथ के द्वारा 03 गुफाओं का निर्माण किया गया था।
नागार्जुनी पहाड़ी पर बनी 03 गुफाएं निम्न हैं -
- गोपीका/गोपी गुफा:- यह सबसे बड़ी गुफा है।
- बहिज गुफा
- पदथीन गुफा
अशोक कालीन स्तूप
पुस्तक दिव्यवदान एवं महावंश नामक ग्रंथों में उल्लेख किया गया है कि अशोक ने 84,000 स्तूपों का पूरे भारतवर्ष में निर्माण कराया था। जिसमे बौद्धगया का स्तूप, सांची का स्तूप तथा सारनाथ का धर्मराजिका भी शामिल है।
Note:- 200 के नोट पर सांची के स्तूप की आकृति बनाई गई है।
सांची का स्तूप 250 ईo पू o
प्रारंभिक स्तूपों में सांची का स्तूप बहुत प्रसिद्ध है।यह स्तूप मध्य प्रदेश के विदिशा के पास रायसेन जिले के साँची नामक स्थान पर है। सांची का पुराना/प्राचीन नाम ककनाबोट/ककंदबोट है।
इसकी खोज 1818 ईo में जनरल रायलट के द्वारा की गई थी। इनका निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। इसका व्यास 122 फुट एवं ऊंचाई 54 फुट है। इन स्तूपो का निर्माण अशोक ने करवाया था।
तोरण द्वार
तोरण द्वार को लाइमस्टोन (चूना पत्थर) से निर्माण किया गया है। तोरण द्वार को बाद में बनाया गया था। तोरण द्वारो की रचना (प्रवेश द्वार) प्रथम शताब्दी ईस्वी पूर्व हुई थी।
सबसे पहले (सबसे प्राचीन) दक्षिणी प्रवेश द्वार, सबसे बाद में (आधुनिक) पश्चिम प्रवेश द्वार । इसकी ऊंचाई 34 फीट होती थी और भगवान बुद्ध के जीवन घटना एवं जातक कथा तथा शालभंजिका का अंकन है।
Note:- यहां पर भगवान बुद्ध की मूर्ति के स्थान पर प्रतीकों को बनाया गया है।
- दक्षिणी तोरण द्वार (प्राचीन) 34 फुट ऊँची (लाइमस्टोन से निर्मित)
- गज लक्ष्मी की मूर्ति (श्रीदेवी)
- सम्राट अशोक की राम ग्राम यात्रा
- उत्तरी तोरण द्वार
- बेसान्तर जातक कथा
- छंदक जातक कथा
- जेतवन दान
- पूर्वी तोरण द्वार
- सात बुद्ध की तपस्यचर्या
- महाभिनिष्क्रमण
- पश्चिमी तोरण द्वार बाद (आधुनिक)
- असिथयों के लिए युद्ध
- महाकवि जातक
नोट:- वास्तव में शालभंजिका भगवान बुद्ध की मां है जो शाल वृक्ष को पकड़ कर भगवान बुद्ध को जन्म दे रही है।
मौर्य काल की कला
मौर्य काल में दो कला प्रसिद्ध थी:-
(1). लोक कला:-
चामर धारीणी यक्षी/दीदारगंज यक्षिणी की प्रतिमा/चामर गृहणी
(2).दरबारी कला:-
गुफा, शिल्प स्तम्भ, राजप्रसाद
पटना के दीदारगंज से प्राप्त 05 Fit.02 Inch लम्बी भूरे दानेदार पत्थर में बनी है जिसके ऊपर शीशे से चमकदार पॉलिश की गई है इसे मौर्यकालीन प्राप्त प्रतिमाओं में शीर्षतम में से एक है, इसके दाहिने हाथ में चामर दिखाया गया है।
राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली के निदेशक डॉo लक्ष्मण प्रसाद निहारे ने इसे भारतीय कला की मोनालिसा कहां है।
यह चुनार पत्थर से बनाई गई प्रतिमा है, यह प्रतिमा पहले पटना संग्रहालय में स्थापित थी किन्तु वर्तमान में इसे बिहार संग्रहालय में रखा गया है।
यक्ष और यक्षणी की प्रतिमा रामकिंकर बैज के द्वारा बनाई गई है। 24 फुट लम्बी पत्थर से ज्यामितिये आकार में निर्मित यह मूर्तिशिल्प आरबीआई, नई दिल्ली के सामने प्रदर्शित है।
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