संज्ञानात्मक विकास
(Cognitive Development)
'संज्ञान' शब्द का अर्थ है- 'जानना' या 'समझना'। यह एक बौद्धिक प्रक्रिया है, इसमें विचारों के द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है। मनोवैज्ञानिक 'संज्ञान' का प्रयोग ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया के रूप में करते हैं।
संज्ञानात्मक विकास शब्द का प्रयोग मानसिक विकास के व्यापक अर्थ में किया जाता है। इस में बुद्धि के अतिरिक्त सूचना का प्रत्यक्षीकरण (perception), पहचान (recognition), प्रत्याह्वान (remembering) और व्याख्या (explanation) आदि भी आते हैं।
विकिपीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, संज्ञान में मानव की विभिन्न मानसिक गतिविधियों का समन्यवीकरण (coordination) होता है। 'संज्ञानात्मक मनोविज्ञान' शब्द का प्रयोग गुस्ताव नाइसर (Gustav Neisser) ने सन् 1967 ई० में किया था। संज्ञानात्मक विकास इस बात पर बल देता है कि मनुष्य किस प्रकार तथ्यों को ग्रहण करता है और किस प्रकार से उसका उत्तर भी देता है। संज्ञान उस मानसिक प्रक्रिया को सम्बोधित करता है, जिसमें चिन्तन, स्मरण, अधिगम और भाषा के प्रयोग का समावेश होता है। जब हम शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया में संज्ञानात्मक पक्ष पर बल देते है तो इसका अर्थ है कि हम तथ्यों और अवधारणाओं की समझ पर बल देते हैं।
यदि हम विभिन्न अवधारणाओं के मध्य के सम्बन्धों को समझ लेते हैं तो हमारी संज्ञानात्मक समझ में वृद्धि होती है। संज्ञानात्मक सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि व्यक्ति किस प्रकार सोचता है, किस प्रकार महसूस करता है और किस प्रकार व्यवहार करता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अपने अन्दर ज्ञान के सभी रूपों यथा स्मृति चिन्तन, प्रेरणा और प्रत्यक्षण को शामिल करती है।
जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया में मुख्यतः दो बातों को महत्वपूर्ण माना है :-
1. संगठन और 2. अनुकूलन।
संगठन से तात्पर्य बुद्धि में विभिन्न क्रियाएँ जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, चिंतन एवं तर्क सभी संगठित होकर करती है। एक बालक वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों के संबंध में उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएँ पृथक पृथक कार्य नहीं करती है बल्कि एक साथ संगठित होकर कार्य करती है। वातावरण के साथ समायोजन करना संगठन का ही परिणाम है। संगठन व्यक्ति एवं वातावरण के संबंध को आंतरिक रूप से प्रभावित करता है। अनुकूलन बाह्य रूप से प्रभावित करता है।
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है:-
1. संवेदिक पेशीय अवस्था (Sensory Motor) : जन्म के 2 वर्ष
2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational) : 2 से 7 वर्ष
3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational) : 7 से 11 वर्ष
4. अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational) : 11 से 18 वर्ष।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें