प्रश्न:- निम्नलिखित गुफाओं को उनके कालक्रम में लगाये।
- लोमस ऋषि गुफा (मौर्य काल)
- अजंता गुफा
- उदयगिरि गुफा (गुप्त काल)
- सोन भंडार गुफा (प्राक मौर्य काल)
Ans.- (4)➡️(1)➡️(2)➡️(3)
प्रश्न:- निम्नलिखित गुफाओं को उनके कालक्रम में लगाये।
- लोमस ऋषि गुफा (मौर्य काल)
- अजंता गुफा
- उदयगिरि गुफा (गुप्त काल)
- कार्ले गुफ़ा
Ans.- (1)➡️(4)➡️(2)➡️(3)
कुषाण काल 25 ई० पू० - 200 ई०
इस राजवंश की स्थापना/संस्थापक कुजुल वुड फिसेस ने की थी यह मूलतः यूनान के निवासी थे एवं बौद्ध धर्म को मानने वाले थे। लगभग 50 ईसवी पूर्व मध्य एशिया से शकों का दूसरा झुंड भारत की ओर आया।
Note:- कुषाण राजवंश भारत में स्थापित होने वाला प्रथम विदेशी राजवंश था।
जिमवुड फिशेष, हुबिस्क, कुजुल वुड फिसेस एवं कनिष्क ये सभी कुषाण काल के शासक थे। इन सभी में कनिष्क सबसे महत्वपूर्ण राजा था। इसके द्वारा 78 ई० में शक संवत की शुरुआत की गई थी। यह महायान धर्म का अनुयाई था। इसके समय कुंडलवन, कश्मीर में चौथी बौद्ध संगति का आयोजन किया गया। इसी वक्त धर्म दो भागों में विभक्त हो गया- हीनयान और महायान।
महायान धर्म की उत्पत्ति कनिष्क के शासनकाल में हुई। महायान धर्म में भगवान बुद्ध की मूर्ति बनने लगी थी एवं उन्हें भगवान का दर्जा प्रदान किया गया।
कनिष्क के शासन काल में कुषाण की दो राजधानी थी।
- पेशावर/पुरुषपुर (गंधार क्षेत्र)
- मथुरा
- गंधार शैली (यूनानी कलाकार)
- मथुरा शैली (भारतीय कलाकार)
- गंधार शैली (यूनानी कलाकार):- यहां से 50,000 मूर्तियां प्राप्त हुई है जो कि यूनानी शैली में बनी है जिनमें विषय तो भारतीय लेकिन शैली यूनानी रही जिससे एक नई शैली का विकास हुआ, जिसे हम लोग गंधार शैली कहते हैं। इस शैली की विषय वस्तु भारतीय तथा इसकी विधि विदेशी (यूनानी) थी। अतः यह एक मिश्रित शैली रही जिसके अन्य नाम है-
- indo-greek शैली/स्टाइल
- भारतीय युनानी शैली
- इंडो हेलेनिस्टिक शैली
- ग्रीको बुद्धिस्ट शैली
- इंडो ग्रीको रोमन✔️
- ग्रीको रोमन❌
- गंधार क्षेत्र
- सिंधु क्षेत्र
- पेशावर क्षेत्र
- काबुल पंजाब का क्षेत्र है।
इन मूर्तियों की आंखें भारतीय शैली में बनी है यानी अधखुली है। मूर्तियों के केश-विन्यास दो प्रकार के हैं-
- छोटे-छोटे घुंघराले
- लंबे-लंबे लहरदार
यह भी एक भारतीय शैली है।
हाथों की विभिन्न मुद्रा जैसे:- आशीर्वाद भारतीय है बाकी चीजें विदेशी है।
गंधार शैली में भगवान बुद्ध को यूनानी देवता अपोलो के समान बनाया गया है एवं शरीर पर जो कपड़े बनाए गए हैं वह यूनानी प्रभाव में बनाए गए हैं। यानी मोटे-मोटे सिलवटें लिए हुए। आभामंडल बनाने की शुरुआत गंधार शैली से ही हुई।
गंधार शैली में एमिसिएटेट बुद्धा (तपस्वी बुद्धा) की मूर्ति बनाई गई है। इस शैली में यर्थाथपरक मूर्तियां बनाई गई है जिसका उदाहरण हमें एमिसिएटेट बुद्धा के रूप में प्राप्त होता है। यहां पर बुद्ध के जीवन से संबंधित 61 दृश्य को दिखाया गया है। जिनमें से कुछ निम्न हैं-
- महाभिनिष्क्रमण:- यह मूर्ति शिल्प कोलकाता संग्रहालय में सुरक्षित है।
- बुद्ध का जन्म:- इस मूर्तिशिल्प में महामाया शाल वृक्ष की टहनी पकड़े हुए खड़ी है। देवराज इंद्र को कपड़े देते हुए दर्शाया गया हैं। इनके पीछे ब्रम्हा जी खड़े हैं। इनके पास प्रजापति गौतमी को भी दिखाया गया है।
- एमिसिएटेट बुद्धा (तपस्वी बुद्धा) यह मूर्ति शिल्प पेशेवर संग्रहालय में संरक्षित है।
गंधार शैली में तीन बोधिसत्व को बनाया गया है-
- बोधिसत्व मंजूश्री
- बोधिसत्व मैत्रे (भविष्य में आने वाले बुद्ध)
- बोधिसत्व अवलोकितेश्वर
Note:- गंधार शैली के मानवाकार को 05 ताल में बांटा गया है।
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