शारीरिक ताक़त व बहादुरी के लिए एक मिसाल के रूप में गामा पहलवान की 144वीं जयन्ती पर आज गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें याद किया है।
शायद ही कोई ऐसा खेल-प्रेमी हो, जिसने गामा पहलवान का नाम न सुना हो। 5 फीट 7 इंच लंबाई और 200 पाउंड वजन के 'रुस्तम-ए-ज़मां' गामा का असली नाम ग़ुलाम मुहम्मद बख्श था। गामा का जन्म 22 मई 1878 को गांव जब्बोवाल अमृतसर के एक कश्मीरी परिवार में हुआ था। छह साल की उम्र में उनके पिता प्रसिद्ध पहलवान मोहम्मद अजीज बक्श के देहांत हो जाने के बाद उनके नाना नून पहलवान और चाचा इदा ने उनकी देखभाल की और उन्होंने ही गामा पहलवान को कुश्ती में पहली बार प्रशिक्षण दिया। दस वर्ष की उम्र में ही पहलवानी शुरू कर उन्होंने जोधपुर में आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लिया था। उस प्रतियोगिता में जोधपुर के महाराजा गामा के प्रदर्शन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गामा को विजेता घोषित कर दिया। इसके बाद, दतिया के महाराजा ने उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए अपने साथ रख लिया। गामा प्रशिक्षण के दौरान प्रतिदिन 40 पहलवानों के साथ अखाड़ा में कुश्ती किया करते थे और एक दिन में 5000 उठक-बैठक और 3000 दंड किया करते थे। सतरह साल की उम्र में गामा ने तत्कालीन भारतीय कुश्ती चैम्पियन रहीम बख्श सुल्तानीवाला कश्मीरी पहलवान को चुनौती दे डाली, जो कि गुजरांवाला, पंजाब, पाकिस्तान से थे। 7 फीट ऊँचाई वाले रहीम बख्श से कुश्ती का मुकाबला कई घंटों तक चला और अंततः यह प्रतियोगिता ड्रॉ रही। रहीम बख्श सुल्तानीवाला के साथ उनका मुकाबला गामा के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण था। वर्ष 1910 तक, रहीम बख्श सुल्तानीवाला को छोड़कर गामा ने उन सभी प्रमुख भारतीय पहलवानों को हराया जिन्होंने उनसे कुश्ती की। गामा पहलवान ने पचास साल तक पहलवानी में लगभग पांच हजार कुश्तियां लड़ीं लेकिन एक भी कुश्ती में उन्हें कोई नहीं हरा सका। उन्होने इंगलैंड जाकर विश्वस्तर के बड़े पहलवानो को हराया ओर बुल बेल्ट का खिताब भारत लेकर आये। पश्चिमी देशों के अपने दौरे के दौरान, गामा ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पहलवानों को हराया। जैसे कि- फ्रांस के मॉरिस देरिज़, संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉक” बेंजामिन रोलर, स्वीडन के जॅसी पीटरसन (विश्व चैंपियन) और स्विट्जरलैंड के जोहान लेम (यूरोपियन चैंपियन)। उस समय के सबसे बड़े पहलवान अमेरिका के जैविस्को को उन्होने सिर्फ डेढ़ मिनट मे चारो खाने चित कर दिया था और तभी उन्हें विश्व के महानतम पहलवानों में गिना जाता है। दुनिया के कई प्रसिद्ध पहलवानों को हराने के बाद, गामा ने उन लोगों के लिए एक चुनौती जारी की जो “विश्व चैंपियन” के शीर्षक का दावा करते थे। जिसमें जापान का जूडो पहलवान ‘तारो मियाकी’, रूस का ‘जॉर्ज हॅकेन्शमित’, अमरीका का ‘फ़ॅन्क गॉश’ शामिल थे। हालांकि, उनमें से किसी ने भी उनके निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया। वर्ष 1922 में, इंग्लैंड के ‘प्रिंस ऑफ़ वेल्स’ ने भारत यात्रा के दौरान गामा को चाँदी का एक बेशक़ीमती ‘गदा’ (ग़ुर्ज) उपहार स्वरूप प्रदान किया था। वर्ष 1947 में, भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद वह पाकिस्तान चले गए थे, पचास साल के करियर में अविजित रहने के बाद 23 मई 1960 को लाहौर में दिल की और अस्थमा की पुरानी बीमारी के बाद गामा की मृत्यु हुई। जिस 95 किलो के पत्थर से गामा पहलवान वर्जिश किया करते थे वह पटियाला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑव स्पोर्ट्स म्यूजियम में आज भी सुरक्षित रखा है। गामा की उपलब्धियाँ इतनी आश्चर्यजनक एवं अविश्वसनीय हैं कि साधारणत: लोगों को विश्वास नहीं होता कि गामा पहलवान वास्तव में हुए थे। मार्शल आर्ट्स के बादशाह कहे जाने वाले ब्रूस ली गामा पहलवान के बहुत बड़े फैन थे और गामा पहलवान के दिनचर्या का पालन किया करते थे।
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