बेखुदी में सनम तेरा साथ निभाता ही गया।
अपनी उलझन को यूं हर बार दबाता ही गया।।
बेरुखी थी तेरे प्यार की आगोशी।
दर्दे दिल थे फिर भी साथ निभाता ही गया।।
होंठों पे थी मुस्कान की नमी।
दिल में उठे तूफानों को संभालता ही गया।।
रेत सी फिसल रही थी जिंदगी की खुशी।
हर फिसलन पर आह को सहता ही गया।।
कोशिशें की बहुत साथ निभाने की।
हर कोशिशों पर पानी फिरता ही गया।।
रंजो गम थे मुकद्दर में शायद मेरे।
जहर घुंट को जल समझ पीता ही गया।।
तेरे प्यार को पाने की उम्मीद में हर बार।
गमें दरिया को पार करता ही गया।।
- पूनम सिंह✍️
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