मथुरा शैली
(दूसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व से छठी शताब्दी ईस्वी तक)
मथुरा शैली का लगभग 800 वर्षों तक कालखंड रहा हैं। यह कला गंधार कला से भी प्राचीन है। शुंग, कुषाण एवं गुप्त काल में इस शैली की मूर्तियां बनती रही।
शुंग काल में यहां पर टेरा-कोटा की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई गई है। मथुरा शैली में निर्मित मूर्तियों के विषय जैन धर्म, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म तीनों की मूर्तियां बनी है।
मथुरा के कंकाली टीला से जैन धर्म की मूर्तियां प्राप्त होती है जो कि सफेद चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर (रेतीला पत्थर) से निर्मित है इसे भरतपुर, राजस्थान से मंगाया जाता था।
यहां से प्राप्त मूर्तियों का माध्यम टेराकोटा, पत्थर एवं हाथीदांत था लेकिन सबसे प्रमुख माध्यम पत्थर था। यहां से हमें कास्य एवं तांबा की भी प्रतिमाएं प्राप्त होती है।
मथुरा कला में निर्मित प्रथम ब्राह्मण शिल्प अर्धनारीश्वर की कल्पना की गई है।
कंकाली टीला:- यहां से खड़ी हुई अप्सराओं (जैन धर्म) की मूर्तियां प्राप्त हुई है। इसके अलावा,
बोधिसत्व मैत्रे:- अभय मुद्रा
प्रसाधिका यक्षी:- मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है।
कनिष्क की प्रतिमा:- सिर विहीन, लबादा पहने हुए। वर्तमान में मथुरा संग्रहालय में रखी गई है।
इसके अलावा सूर्य, शिव, विष्णु, चंद्रमा, कुबेर, इत्यादि की भी प्रतिमाएं प्राप्त हुई है।
मथुरा से प्राप्त जैन धर्म की मूर्तियों को 03 भागों में बांटा गया है:-
- जैन तीर्थंकरों की प्रतिमा (जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गए हैं।)
- जैन देवियों की प्रतिमा (16 देवियां जैन धर्म में मानी गई है।)
- आयागपट्ट (अयागापता या अयागपट्ट जैन धर्म में उपासना से जुड़ी एक प्रकार की वात पटिया है।)
- गंधार (02 BC - 06 AD)
- फ्रिस्टैटिग स्कल्पचर (सर्वतोभद्र) उभारदार मूर्तियों का निर्माण हुआ है।
- आध्यात्मिक भावना से ओतप्रोत
- लाल रंग के पत्थर पर सफेद रंग की चीती (बलुआ पत्थर)
- भारतीय प्रभाव
- चरम - गुप्तकाल
- यहां पर आभामंडल सादा बना है।
- सर्वप्रथम बुद्ध की मूर्ति यहीं से प्राप्त होती है।
- गंधार (50 BC - 300 AD)
- फ्रिस्टैटिग स्कल्पचर (सर्वतोभद्र) उभारदार मूर्तियों का निर्माण हुआ है।
- यथार्थ (वास्तविक) मूर्तियों का निर्माण
- शिष्ट पत्थर (काला स्लेटी)
- विदेशी प्रभाव
- चरम - कुषाण काल
- यहां पर आभामंडल अलंकित बनाया गया है।
- सर्वप्रथम आभामंडल बना।
- मथुरा
- अहिछत्रा
- कन्नौज
- राजगृह
- सारनाथ
- कौशांबी
- श्रावस्ती
- सुल्तानगंज
- सांची का मंदिर संख्या-17 यह मंदिर मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। गुप्त काल का सबसे प्राचीन मंदिर है इसमें शिखर नहीं प्राप्त है यह चपटा हैं।
- तिगवा का मंदिर मध्य प्रदेश के जबलपुर में स्थित है यह मंदिर गुप्तकालीन विष्णु को समर्पित है।
- भूमरा का शिव मंदिर मध्यप्रदेश के सतना में भगवान शिव को समर्पित है।
- नचना कुठार मंदिर मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित है एवं माता पार्वती को समर्पित है।
- भीतरगांव का मंदिर कानपुर (विक्रटेंपल) ईंटो का मंदिर है जो कि लक्ष्मण को समर्पित हैं।
- ऐरण का मंदिर मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है एवं भगवान विष्णु को समर्पित है।
- सिरपुर का मंदिर छत्तीसगढ़ में स्थित है एवं लक्ष्मण को समर्पित है।
- अहींछत्रा का मंदिर उत्तर प्रदेश के बरेली में स्थित है भगवान शिव को समर्पित है।
- मुकुंदरा का मंदिर राजस्थान, कोटा में स्थित है।
- महाबोधि मंदिर गुप्तकाल, बिहार के गया में स्थित है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें