चांद परेशान था उसको ,
अभी-अभी समझा के आया हूं।
रूठकर जा रहा था, सूरज...
अपने कांधे पे रख के लाया हूं।
तुम्हारी उदासियों ने,
दिन में रात कर रखी है।
देखो,
मैं तुम्हारे लिए...
मुस्कुराती चांदनी भी लाया हूं।
इस आसमां की चादर का,
छोर नही मिला मुझे।
वरना,
झटककर पटक देता।
कुछ फूल मिल गए,
खिलखिलाते🌻
दोनो हाथों में करके बंद,
कुछ खुशबुएं लाया हूं।
अब तो,
मुस्करा दो।
वक्त भी देख रहा,
दरवाजे की ओट से छुपकर।
तुमने गुस्से में झकझोर दिया था,
जिसे।
बड़ी मुश्किल से मैं,
उसको मनाकर लाया हूं।
चांद परेशान था उसको ,
अभी-अभी समझाके आया हूं।
रूठकर जा रहा था, सूरज...
अपने कांधे पें रख के लाया हूं।
प्रशान्त✍️
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