गुरुवार, 30 सितंबर 2021

असफ़ल😣 एक विचारणीय लेख। Failure😣 A thought provoking Article.


      वर्तमान परिदृश्य की यदि बात की जाए तो जाने या अनजाने में, हमारे समाज में, हमारे आसपास, Failure (असफ़ल) को एक शब्द नहीं बल्कि एक अस्पृश्य वर्ग (Untouchable Class) की तरह माना जाता है। लोग टॉपर्स की कामयाबी में इतने मग्न हो जाते हैं कि उनको fail छात्रों की मनोदशा से कोई मतलब ही नहीं होता। हर जगह टॉपर्स के चर्चे, वाहवाहियां और कई तरह के सेलिब्रेशन ही दिखाई पड़ता है। 

       लेकिन मेरे प्यारे दोस्तों, Failure (असफ़ल) का भी जिंदगी में अपना बहुत बड़ा महत्व है। यह आपको जीना सिखाता है, फेल होने के बाद इंसान खुद को कैसे समेटता है और फिर से दूसरे दिन जिंदगी की जद्दोजहद में लग जाता है, यह भी एक बहुत बड़ा जिंदगी का हिस्सा ही है। 

मैं खुद अपने जीवन में फेल हुआ हूँ।😣

      सबसे पहले दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर- में 2019 में Ph.D. के लिए प्रवेश परीक्षा में पहली बार में ही इंटरव्यू तक पहुँच जाना फिर बाहर हो जाना।

      उसके बाद पुनः उसकी तैयारी करना और परीक्षा पास करके फिर से इंटरव्यू देना और अंत में पुनः बाहर हो जाना, बहुत ही दुख:दायी था मेरे लिए।


       मैं तो एकदम से डिप्रेशन में चला गया था। एक दिन यूं ही सुबह-सुबह अपने कमरे से निकला तभी अचानक चेहरे पर सामने से मकरी की जालियां आ फंसी, उसे साफ करके मैं आगे बढ़ गया। कुछ देर बाद जब वापस लौट कर आया तो देखा कि उस मकरी के द्वारा फिर से जाली बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया था। यानी मैं उसके रात भर किए गए मेहनत को एक झटके में ही तोड़ दिया था फिर भी उसने बिना हार माने एवं थके उसे बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया था। मैंने सोचा मेरे जैसे न जाने कितने लोग इस रास्ते से प्रतिदिन गुजरते होंगे और इसके द्वारा निर्मित जाली को जाने-अनजाने में तोड़ देते होंगे, फिर भी इसने ना स्थान परिवर्तित किया और ना ही अपने कार्य को छोड़ा। तो हम मात्र दो बार असफल होकर कैसे अपने लक्ष्य को बदल सकते हैं। क्या हम पुनः प्रयास नहीं कर सकते? फिर मैंने अपने आप को संभाला, पुनः पढ़ाई शुरू किया और अभी तक अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। इस संघर्ष के दौरान बहुत कुछ सीखने को मिला। 

वह यह है कि, 

वास्तव में दुनिया क्या है? और हम दुनिया को क्या समझ रहे थे।

        किसी भी परीक्षा में TOP करना या Selection  पा जाना अच्छी बात है। हम कई सारे Plan बनाते हैं कि Selection होने के बाद क्या करना है। पर कोई FAIL होने के बाद क्या करना है? इसकी Planing नहीं करता। जबकि 99.5% लोगों को Competition परीक्षा में Fail होना ही है। अभी कुछ दिनों पूर्व की बात है। जवाहर नवोदय विद्यालय के द्वारा निकली नियुक्ति का परिणाम आया। 49 छात्रों ने इंटरव्यू के बाद Qualify किया था। इस सूची में मेरे कई ऐसे मित्र भी थे जिन्हें नौकरी की बहुत ज्यादा जरूरत थी। मेरा उसमें रैंक 3rd था।

 इस रैंक में भले ही मेरे मित्रों का रैंक ज्यादा हो लेकिन इस बात की खुशी हो रही थी चलो कम से कम सिलेक्शन तो हो गया। लेकिन उसके 03-04 दिन बाद फिर से एक सूची आती है और उसमें कहा जाता है की जो TOP-12 हैं, उन्हें ही विद्यालय भेजा जा रहा है और बाकी सब को प्रतीक्षा सूची में रखा गया है। इनमें से यदि कोई ज्वाइन नहीं करता हैं तो तब उन्हें बुलाया जाएगा। 

     मुझे खुशी एवं ग़म दोनों प्रतीत हो रहा था। खुशी इस बात कि थी की चलो मुझे नवोदय विद्यालय मिल रहा है और गम इस बात का था की इस विद्यालय में चयन मेरे उन सभी मित्रों का नहीं हुआ जो बहुत लंबे समय से किसी JOB की प्रतीक्षा कर रहे थे। विशेष करके कोविड-19 के समय से। लेकिन अफसोस वह सफल नहीं हो पाए थे, जिसका उनसे ज्यादा मुझे गम😥 था।


     हमें अपने Failure को भी सेलिब्रेट करना सीखना चाहिये और चाहिए की क्या सीखना पड़ेगा? हमारी जिंदगी के एक हजार (1000) खेल हैं आप सब में पास नहीं हो सकते। आपको Fail भी होना पड़ता है, ऐसा दुनिया में कोई इंसान नहीं जो कभी Fail नहीं हुआ हो। पर, इस failure होने से जो Lesson हमें सीखने को मिलता है, वो बहुत जरूरी है। उस पाठ को व्यर्थ ना जाने दें, वरना failure वापस आएगा, तब तक वापस आएगा जब तक आप उसकी सीख, सीख नहीं लेते। 

        मेरा आप सभी मित्रों से आग्रह हैं की Fail होने से घबराना नहीं है, सीखना है और अपनी कमियों को समझना है। बाकी एक हजार (1000) और रास्तों के बारे में। 100 बार गिरना है तो 100 बार उठना भी है, बस हार नहीं मानना है। खुद को कभी भी किसी से कम या छोटा नहीं समझना हैं मेरे दोस्तों..!!!!!👍


Failure😣 A thought provoking Article.

      If we talk about the present scenario, then knowingly or unknowingly, in our society, around us, 'Failure' is not considered as a word but as an untouchable class.  People get so engrossed in the success of the toppers that they don't care about the mood of the failed students.  Everywhere the discussions, applause and many types of celebrations of the toppers are visible.


       But my dear friends, failure also has its own great importance in life.  It teaches you to live, how a person reconciles himself after a failure and again gets involved in the struggle of life the next day, this is also a part of a very big life.


 I myself have failed in my life.😣


    Firstly in Deen Dayal Upadhyay Gorakhpur University, Gorakhpur- in 2019 Ph.D. To reach the interview in the very first time in the entrance test then drop out.


    After that preparing for it again and passing the exam and giving interview again and finally dropped out again, was very painful for me.


       I went into 'depression' all of a sudden.  One day, when I came out of my room early in the morning, suddenly the nets of Capricorn got stuck on my face, after cleaning it I went ahead.  When he came back after some time, he saw that the work of making lattice had been started again by that Capricorn.  That is, I had broken his overnight hard work in one stroke, yet he started the work of making it without giving up and getting tired.  I thought that many people like me must have passed through this road every day and would have broken the lattice created by it knowingly or unknowingly, yet it neither changed its place nor left its function.  So how can we change our goal by just failing twice.  Can't we try again?  Then I took care of myself, started my studies again and am still struggling to reach my destination.  There was a lot to be learne during this struggle.


 that is,

 What is the world really?  And what were we to understand the world.

       Topping or getting selection in any exam is a good thing.  We make many plans that what to do after the selection.  But what to do after someone is 'FAIL'?  Doesn't plan it.  Whereas 99.5%  people have to fail in the competitive exam.  It was just a few days ago.  The result of the recruitment by Jawahar Navodaya Vidyalaya came out.  49 students had qualified after the interview.  I also had many friends on this list who were in dire need of a job.  I was ranked 3rd in it.

       Even though the rank of my friends is high in this rank, but I was happy that at least the selection happened.  But after 03-04 days again a list comes and it is said that only those who are TOP-12 are being sent to the school and all the rest are kept in the waiting list.  If any of these do not join, then they will be called.


       I felt both joy and sorrow.  I was glad that I am getting Navodaya Vidyalaya and sad that all my friends were not selected in this school who were waiting for a job for a very long time.  Especially since the time of Covid-19.  But alas, he could not succeed, which I was more sorry for than him.


    We should also learn to celebrate our failure and what should we learn?  There are a thousand (1000) games of our life, you cannot pass in all.  You also have to fail, there is no person in the world who has never failed.  But, the lesson we get to learn from having this failure is very important.  Don't let that lesson go to waste, or else the failure will come back, until you learn from it.


     I urge all of you friends that do not be afraid to fail, learn and understand your shortcomings.  About the rest of the one thousand (1000) more paths.  If you have to fall 100 times, you have to get up 100 times, just don't give up.  Never consider yourself less or less than anyone my friends..!!!!!👍

कला👨‍🎨 सीखे आसानी से।

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        मुझे उम्मीद है की हमारा यह प्रयास आप सभी को बेहतर लगा होगा और आप सभी बेहतर तरीके से कलाकृतियां बनाना सीख पाएंगे इसी आशा एवं उम्मीद के साथ मिलते हैं अगले Blogs में।
धन्यवाद🙏


















बुधवार, 29 सितंबर 2021

Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास) हिंदी एवं English Notes.

Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास) हिंदी एवं English Notes.




ऐतिहासिक काल (Historical Period)

        इसके बारे में लिखित स्रोत उपलब्ध है और इसे पढ़ा भी जा सका है। इसके अंतर्गत वैदिक काल से लेकर अभी तक का समय आता है।
  •  ऐतिहासिक काल को अध्ययन के लिए तीन भागों में विभक्त किया गया है:-
  1. पुरातात्विक 
  2. विदेशी यात्रा 
  3. साहित्य
(1).पुरातात्विक:- इसके अंतर्गत सिक्कों एवं अभिलेखों का अध्ययन किया जाता है।
Note:-
  • सिक्कों का अध्ययन न्यूमेसमेटिक्स (मुद्राशास्त्र) Numismatics कहलाता है।
  • अभिलेखों का अध्ययन एपीग्राफी (Epigraphy) कहलाता है।
  • पत्थरों को खोदकर लिखना अभिलेख कहलाता है। 
  • छोटे पत्थरों पर लिखना शिलालेख कहलाता है। 
  • स्तंभ के समान ऊंचे पत्थरों पर लिखना स्तंभ लेख कहलाता है।
(2).विदेशी यात्रा:- विदेशी यात्रियों के द्वारा वर्णन

(3).साहित्य:- लिखित स्रोत को साहित्यिक स्रोत कहते हैं। प्राचीन इतिहास की जानकारी का यह सबसे बड़ा स्रोत है। 

इसे दो भागों में विभक्त किया गया है- 

(१) धार्मिक 

(२) गैर धार्मिक

(१) धार्मिक:- इसका संबंध किसी न किसी धर्म से रहता है।

(२) गैर धार्मिक:- इसका संबंध किसी धर्म से नहीं रहता है।
जैसे:- अर्थशास्त्र।

(१) धार्मिक ग्रंथ को भी दो भागों में विभक्त किया गया है:- 

(a) ब्राम्हण (हिंदू)

(b) गैर ब्राह्मण (गैर हिंदू)

(a) ब्राम्हण (हिंदू):- वैसे ग्रंथ जिनका संबंध हिंदू धर्म से है, उसे ब्राम्हण साहित्य के अंतर्गत रखते हैं। 
जैसे:- वेद, वेदांग, पुराण, उपनिषद, महाकाव्य, इत्यादि।
  • वेदों को भलीभांति समझने के लिए वेदांग की रचना की गई है। 
  • उपनिषद का अर्थ होता है गुरु के समीप बैठ कर ज्ञान प्राप्त करना।
  • मुंडक उपनिषद में सत्यमेव जयते की चर्चा की गई है।
(b) गैर ब्राह्मण (गैर हिंदू):- वैसे स्रोत जिनका संबंध हिंदू धर्म से नहीं है, उसे ग़ैर ब्राह्मण (गैर हिंदू) कहते हैं। 
जैसे:- जैन, बौद्घ, इत्यादि।

रामायण तथा महाभारत में चित्रकला

          इन दोनों महाकाव्य का समय 600 से 500 ई० पू० माना जाता है। रामायण में कला को 'शिल्प' कहा गया है। रामायण में 'मय' नामक शिल्पी ने सीता की स्वर्ण मूर्ति का निर्माण किया था।
          महाभारत में उषा एवं अनिरुद्ध की कथा प्रसिद्ध है जिसमें चित्रकला का उल्लेख है।



कहानी के अनुसार,
            उषा वाणासुर की पुत्री थी जो सपने में एक राजकुमार को देखती है सुबह वह अपनी परिचारिका (Caseworker)  चित्रलेखा को इसके बारे में बताती हैं। चित्रलेखा उस समय के सारे राजकुमारो का व्यक्तिचित्र अपनी स्मृति से तैयार करती हैं। अनिरुद्ध (जो की भगवान श्रीकृष्ण का पोता था) का चित्र आते ही उषा उसे पहचान लेती है। बाद में उषा से अनिरुद्ध का विवाह संपन्न होता हैं। इस कथा से हमें उस समय की चित्रकला की पराकाष्ठा का पता चलता हैं।
          


मंगलवार, 28 सितंबर 2021

जिउतिया व्रत की पूरी कहानी हिंदी एवं भोजपुरी भाषा में। का_हs_जिउतिया।


संतान के दीर्घायु होने की कामना के साथ स्वस्थ सुखी जीवन के लिए जिउतिया व्रत (जीवित्पुत्रिका)

          जिउतिया व्रत का उल्लेख पौराणिक ग्रंथ महाभारत के समय से ही है। जब अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से उत्तरा के गर्भ पर प्रभाव पड़ा तो भगवान श्री कृष्ण ने अपने पुण्य से एकत्रित फल के द्वारा उत्तरा के गर्भ की रक्षा की और उनके पुत्र को जीवित किया जो आगे चलकर राजा परीक्षित के नाम से विख्यात हुए। उसी समय से जीवित्पुत्रिका का व्रत किया जाने लगा।

          जिउतिया व्रत संतान के दीर्घायु होने की कामना के लिए की जाती है। यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को विशेष करके बिहार और यूपी की महिलाएं करती हैं। यूपी और बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों के नियम विधि में कुछ मामूली हेर-फेर के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है।

          लगातार तीन दिनों तक अर्थात सप्तमी से लेकर नवमी तक चलने वाले इस व्रत में प्रथम दिन नहाय खाय होता है। जिसमें सुबह दातुन से मुंह धोने के बाद सतपुतिया अथवा मड़ूवा को पानी के साथ निगलना होता है तथा कुछ क्षेत्रों में मड़ूवा के आटे की रोटी और नूनी का साग खाया जाता है। उसके बाद ही चाय, पानी और सात्विक भोजन लिया जाता है। उसके बाद अरहर या चने की दाल, चावल, सतपुतिया की सब्जी बनाई जाती है।

          रात के समय घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं शुद्ध घी में शुद्ध आटे और गुड़ के मिश्रण से ठेकुआ बनाती हैं। प्रत्येक पुरुष सदस्य के हिसाब से एक-एक ठेकुआ बनता है और उसे वहीं पर चूल्हे के पास खड़ा करके कुछ देर तक रख दिया जाता है, साथ ही साथ धूप दीप के साथ उसी स्थान पर पूजा की जाती है। इस विधि द्वारा बने ठेकूवे को आम बोलचाल की भाषा में ओठंघन कहते हैं। जिसे घर के पुरुष सदस्य अष्टमी के दिन खाते हैं।

         उसके बाद ही सबके खाने के लिए पूड़ी, सब्जी, खस्ता, ठेकूवा बनाया जाता है और खाया जाता है। रात में 12:00 बजे तक सरगही खाने का नियम है, साथ ही साथ जिउतिया कथा की मुख्य पात्र चिल्हो और सियारिन दोनों बहनों को भी सरगही खाने के लिए ठेकूवा या खस्ता दही के साथ छत पर अथवा खुले आसमान के नीचे कहीं रख दिया जाता है और पानी भी पीने के लिए दिया जाता है ताकि आम महिलाओं के जैसा ही दोनों बहनें भी अगले दिन जितिया का व्रत करें।

         रात में सरगही लेने के बाद मुंह धो लिया जाता है और अगले दिन अष्टमी को जब हम निर्जला व्रत करते हैं तो संभव हो तो नदी, पोखर (ना हो तो घर में भी) में स्नान कर लेना चाहिए साथ ही साथ पिछले साल की धागे से बनी जितिया को नदी में प्रवाह कर देना चाहिए, दिन भर निर्जला रहना होता है।

          शाम के समय नेनुआ के पत्ते पर लाल धागे (लाल मोती) में पिरोये ढोलकनुमा आकृति की जितिया (प्रत्येक संतान के हिसाब से एक-एक) जो कि सोने या चांदी की बनी होती है उसे लेकर के राजा जीमूत वाहन जो कि गंधर्वों के कम उम्र के उदार और परोपकारी राजा थे। उनका मन राजपाट में नहीं लगा तो वे पिता की सेवा करने वन चले गये। वहां उनका विवाह मल्यावती नाम की एक राजकुमारी से हुआ। एक दिन जीमूत वाहन ने एक वृद्ध महिला को विलाप करते हुए देखा तो इसका कारण पूछा।

         स्त्री ने कहा कि वह नागवंश की स्त्री है वहां प्रतिदिन पक्षी राज गरुड़ को खाने के लिए एक नाग की बलि देने की प्रतिज्ञा हुई है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बारी है। यह मेरा एकलौता पुत्र है अगर इसकी बली चढ़ गयी तो मै किसके सहारे जीवित रहूंगी। वृद्ध महिला की बात सुनकर जीमूत वाहन स्वयं को लाल कपड़े में लपेट कर उस शीला पर लेट गए जहां गरुड़ नागों की बलि लेने आते थे‌। गरुड़  जीमूत वाहन को उठाकर ले जाने लगे तो देखा कि पंजे में जिसे दबोचा गया है उसकी आंखों में आंसू तक नहीं है तो उन्होंने आश्चर्य से उसका परिचय पूछा।

        जीमूत वाहन ने वृद्ध महिला से हुई बातों को बताया तो गरुड़ बहुत द्रवित हुए उन्होंने तब से प्रतिज्ञा की कि आज के बाद वह किसी नाग की बलि नहीं लेंगे। चूंकि जीमूत वाहन ने बच्चे को जीवनदान दिया जिससे जीवित्पुत्रिका व्रत हर महिला करती है और जीमूत वाहन की पूजा करती हैं तथा कथा सुनती है और इसी तरह दूसरी कथा चिल्हो तथा सियारिन की भी सुनी जाती है।

          कथा सुनने के बाद जितिया को पहले संतान के गले में डाला जाता है उसके बाद माताएं पहनती हैं। अगले दिन जब नवमी तिथि हो जाती है तो ही पारण का समय होता है। कुछ घंटे बाद सुबह में उड़द और चावल (जो कि रात में ही भिंगो करके रख दिया जाता है) उड़द और चावल में से पांच-पांच उड़द और पांच-पांच चावल पानी के साथ पहले चिल्हो और सियारिन को दिया जाता है फिर खुद लिया जाता है। इसी अन्न से पहले पारण किया जाता है। किसी-किसी क्षेत्र में कढ़ी, चावल, फुलवरा (दही बड़ा), पकौड़ी और चने की सब्जी बनाकर खाई जाती है।

का_हs_जिउतिया।



         जिउतिया परब हs आस्था के!! बिश्वास के!! हर साल कुआर पक्ष के अष्टमी के दिन निर्जला उपास राख के आपन सन्तान के लम्बा उमिर के कामना माई के द्वारा कईल जाला। उ उमिर के कवनो पड़ाव पर काहे ना होखस आपन संतान खातिर ओकर भावना में कवनो कमी ना लउके ला। पढ़ल लिखल बिद्वान बेटा के अनपढ़ निरक्षर माई भी अपना बेटा के भविष्य खातिर चिंतित रहेली। माई के महत्ता के, केहु बा जे नकार दिहि? माइये हवी जवन ईट पाथर से बनल मकान के घर बनावेली, गुरूजी लोग देश के भविष्य के निर्माण जरूर करेलन लेकिन माई ही ओह भविष्य के आधार के जनमावेली। माई के इहे अरदास रहेला की ओकर संतान सुखी रहँस चाहे ओकरा प्रति उनकर बेवहार कवनो दर्जा के होखे। पुरुष प्रधान समाज में बेटा के महत्व जियादे दियात रहे लेकिन अब एह भावना में धीरे-धीरे ही सही बदलाव आवे के शुरुआत हो चुकल बा। बेटा-बेटी के बिच के अंतर के खाई धीरे-धीरे पटा रहल बा।  


          जिउतिया के भुखला में रउरो अपना माई के संगे चिल्हो सियारो के कथा जरूर सुनले होखबs हमहुँ अपना माई के संगे एह कथा के सुनले बानी। पिछला जनम के कइल गइल नीमन बाउर काम के फल अगिलो जनम में जरूर भेटाला इहे एह कथा के कहनाम बा। चिल्हो के तप उनका सन्तान के दीर्घायु बनावेला ओहिजे सियारो के लालच के कारण उनका संतान के नियति के हाँथ में समाये के परेला असमय ही। कथा के अंत में सियारो भी सत्य निष्ठा से जिउतिया के बरत के करsतारी आ अपना पिछला जनम के पाप से मुक्ति पा जात बारी। अउरी लम्बा उमिर तक जिए वाला संतान के महतारी के सुख भोगे के फल भेटाताs। एह बरत के साँच मन के कइला के कारण कछु होखे चाहे ना होखे अपना बाउर करम पर अंकुश लगावे के सिख त जरुर bhetalaa। 


         जिउतिया के बरत से माई आ संतान के बिच स्नेह के बंधन के मजबूती मिलेला ओकर दोसर तोड़ बिरले ही बा। जहां संतान के मन में ई बिस्वास रहेला की ओकरा माई के तप ओकरा पर संकट ना आवे दिहि ओहिजे माई के मन में भी अपना संतान के सुरक्षा के लेके फिकिर कम होला। काहे ना रही, काहे की माई खर जिउतिया कइले बाड़ी। हमनीके भोजपुरिया भाषी गांव में अक्सर हम सुनले बानी कहत की 

"जा हो बच गइलs मरदे
तोहार माई खर जिउतिया कइले रहली हs।" 

       सत्यता केतना बा उ त भगवान जानशs लेकिन आस्था आ बिश्वास से आदमी दुरूह से दुरूह काम के भी आसानी से निकाल लेला।


        कथा सुनला के बाद अक्सर माई आँख बन कर के अंचरा हाँथ में लेके हाँथ जोड़ के कहेली 

"ये अरियार का बरियार..... जा के भगवान से कहि दिह की विश्वजीत के माई खर जिउतिया भूखल बाड़ी। हे जिउतया माई जइसे दुनिया के कुल्हिये बचवन के रक्षा करे लू ओइसहिं हमरा बचवा के नीके-नीके रखिह। उनके हमरो उमिर लाग जॉव ये माई🙏 ।"

सोमवार, 27 सितंबर 2021

Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास) हिंदी एवं English Notes.

Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास) हिंदी एवं English Notes.



(2). आद्यऐतिहासिक काल (Medieval Age):- इस कालखण्ड में मानव द्वारा लिखी गई लिपि को पढ़ा नहीं जा सकता हैं किंतु लिखित साक्ष्य मिले हैं। इसके अंतर्गत हम सैंधव कालीन कला (Art of Indus Valley Civilization) 2300 - 1750 BC का अध्ययन करते हैं।

सैंधव कालीन कला (Art of Indus Valley Civilization)
           
       यह सभ्यता सिंधु नदी के तट पर मिली थी इसलिए इसे सिंधु सभ्यता कहते हैं। इसकी जानकारी के लिए पहली खुदाई हड़प्पा से हुई थी अतः इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है। इसकी खोज सर जॉन मार्शल के निर्देशन में रायबहादुर दयाराम साहनी एवं राखल दास (आर० डी०) बनर्जी ने की थी। यहां पर दो प्रमुख नगर प्राप्त हुए हैं- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा।
        सिंधु घाटी की कला में हमें ज्यादातर वास्तुकला एवं मूर्तिकला के साक्ष्य मिले हैं। यहां की लिपी चित्रात्मक (Pictograph) थी जिसे अभी तक पढ़ा नहीं गया है। जिस वजह से इस सभ्यता के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिल पाती हैं। चित्रकला कि यदि बात की जाए तो लाल रंग के पात्र पर काले रंग से चित्रकारी की गई है। विषय स्पष्ट नहीं है क्योंकि ज्यामितीय रूपों का प्रयोग करके चित्र का निर्माण किया गया है। कहीं-कहीं चित्रकारी के लिए लाल रंगों का भी प्रयोग हमें दिखाई देता है।
           इस सभ्यता की सर्वश्रेष्ठ कृति मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर्तकी की मूर्ति (The Dancing Girl) है जिसका आकार 10.5 CM (4.1 Inch) हैं। इसे कास्य से निर्मित किया गया है। वर्तमान में यह कलाकृति राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित है। इसके अलावा मोहनजोदड़ो से ही पुजारी की प्रतिमा (Priest King Statue) जो को सेलखड़ी पत्थर से निर्मित हैं। इसका आकार 17.5 CM (06.95 Inch) हैं। यह प्रतिमा राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में सुरक्षित हैं।
         वास्तुकला के अंतर्गत मोहनजोदड़ो से प्राप्त सबसे बड़ी इमारत विशाल अन्नागार है। जिसका आकार 45.71 मी० लंबा और 15.23 मी० चौड़ा है। इसके अलावा यहां से एक स्नानागार  भी प्राप्त हुआ है जिसका माप 11.88 मी० लंबा, 07.01 मी० चौड़ा और 2.43 मी० गहरा है।

         सिंधु घाटी की सभ्यता से अधिकतर मात्रा में पक्की मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं इसी वजह से इसे पकाई मिट्टी के बर्तनों की सभ्यता भी कहा जाता है। इसके अलावा यहां बहुत से मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
जैसे:- मातृदेवी की प्रतिमा, मोहरे, खिलौने, इत्यादि।

सिंधु सभ्यता की विशेषताएं।
  • यह सभ्यता एक नगरीय (शहरी) सभ्यता थी। 
  • यहां की सड़के एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। 
  • नालियां ढकी हुई थी। 
  • अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि एवं व्यापार था। 
  • इनका समाज मातृसत्तात्मक था। 
  • इनकी लिपि चित्रात्मक थी जिसे पढ़ा नहीं जा सका है।
  • इनके मुहरों पर सर्वाधिक एक सींग वाले जानवर का चित्र बना हैं।
  • गाय के साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। 
  • सिंधु सभ्यता के लोग लोहा से परिचित नहीं थे। 
  • सिंधु सभ्यता के विनाश का सबसे बड़ा कारण बाढ़ को माना जाता है।

Brief History of Indian Art Origin and Develop



 (2). Medieval Age:- In this calbank, the script written by humans can not be read but written evidence has been received. Under this, we study Sandhav Carpet Art (ART of Indus Valley Civilization) 2300 - 1750 BC. 

Art of Indus Valley Civilization)

         This civilization was found on the coast of the Indus River, so it says Sindhu civilization. For its information, the first excavation was from Harappa, so it is also called Harappan civilization. It was discovered by Raiabahadur Dayaram Sahni and Rakhal Das (RD) Banerjee, directing Sir John Marshall. There are two major cities here - Mohanjodro and Harappa.
           In the art of the Indus Valley, we have mostly received evidence of architecture and sculpture. Here was the scriptical pictures (Pictograph) which has not yet been read. Because of which there is no detailed information about this civilization. If the painting is talked then the red color has been painting with black. The subject is not clear because the picture has been built using geometric forms. Somewhere, the use of red colors is also visible for painting.
       The best master of this civilization is the statue of dancer received from Mohanjodo (The Dancing Girl) is 10.5 cm (4.1 inch). It has been manufactured from a crowd. Currently this artwork is safe in the National Museum, New Delhi. Apart from this, the statue of the priest (priest king statue) from Mohanjodo is manufactured from the cell. Its size is 17.5 cm (06.95 inch). This statue National Museum is safe in New Delhi.
       
       Under the architecture, the biggest building obtained from Mohanjodo is a huge administrator. Whose size is 45.71 m 0 long and 15.23 m wide. Apart from this, a minor has also been received from which 11.88 m wide, 07.01 m wide and 2.43 m.
         
         Due to the fact that the pucca pottery of the Indus Valley is received, due to this, it is also called civilization of cooked pottery. Apart from this, many mrigons have been received here.
Such as: - Statue, Pieces, Toys, etc.

Features of Indus Civilization 
  • This civilization was a urban civilization. 
  • Here the streets used to bite each other on the rights. 
  • Drains were covered. The main basis of the economy was agriculture and trade. 
  • Their society was maternal. 
  • Their script was illustrative which could not be read. 
  • The most horny animals are made on their seals. 

  • The evidence of the cow has not been received. 
  • People of Indus Civilization were not familiar with iron. 
  • Floods are considered to be the biggest reason for the destruction of the Indus Civilization.

रविवार, 26 सितंबर 2021

Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास) हिंदी एवं English Notes.

 Brief History of Indian Art Origin and Develop (भारतीय कला की उत्पत्ति और विकास का संक्षिप्त इतिहास)

   भारतीय कला की शुरुआत प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Period) से मानी जाती है जिसका अर्थ होता है- ऐतिहासिक काल से पूर्व की कला। इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन खंडों में विभाजित किया गया है।
  1. प्रागैतिहासिक (Prehistoric)   
  2. आद्यऐतिहासिक (Medieval) 
  3. ऐतिहासिक (Historic)
(1). प्रागैतिहासिक (Prehistoric):-  इतिहास का वह समय जिसमें मानव लिखना पढ़ना नहीं जानता था। इस कालखंड को पाषाण काल (Stone Age) भी कहा जाता है। भारत में प्रागैतिहासिक चित्रों की सर्वप्रथम खोज मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) में हुई थी। ऐसी चित्रों की खोज का श्रेय अंग्रेजों को जाता है।
         भारत में ऐतिहासिक शैलचित्रो की खोज सर्वप्रथम अर्चिवाल कार्लाइल 1880 ई० में एवं उसके बाद काकबर्न ने 1883 ईसवी में की थी।

प्रागैतिहासिक चित्रकला को भी चार भागों में बांटा गया है-
  1. पूर्व पाषाण काल (Megalithic Age) 30,000 - 25,000 BC (Before Christ. Before Christ refers to the period of time before the birth of Christ.)
  2. मध्य पाषाण काल (Mesolithic Age) 25,000 - 10,000 BC
  3. नवपाषाण काल (Neolithic Age) 10,000 - 5,000/3,000 BC
  4. ताम्र पाषाण काल (Chalcolithic Age or Bronze Age) 3,000 - 1,500. BC
(1).पूर्व पाषाण काल (Megalithic Age) 30,000 - 25,000 BC:- यह इतिहास का सबसे प्रारंभिक समय था। इस समय के मानव को आदिमानव (Primitive Man) कहा जाता है। मानव इस समय खानाबदोश (खाद्य संग्राहक) अर्थात पेट भरना उस का मुख्य उद्देश्य था। आखेट के दृश्य बनने शुरू हो गए थे। मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि इस समय आग की खोज की

(2).मध्य पाषाण काल (Mesolithic Age) 25,000 - 10,000 BC:- यह पुरा पाषाण काल के बाद का समय था। इस समय भीमबेटका जो कि मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है, सर्वाधिक चित्रों का निर्माण किया गया है। यहां पर 600 गुफाएं प्राप्त हुई है जिनमें से 275 गुफाओं में चित्र प्राप्त होते हैं। इसे ज़ू-रॉक-शेल्टर (Zoo Rock Shelter) भी कहा जाता है। दीवार एवं छतों पर अधिकतर चित्रों का निर्माण किया गया है।

(3).नवपाषाण काल (Neolithic Age) 10,000 - 5,000/3,000 BC:- इस काल में मानव ने स्थाई आवास बना लिया था एवं साथ-ही-साथ कृषि एवं पशुपालन के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं। चित्रकला के प्रमुख उदाहरण हमें मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) से प्राप्त हुए हैं। यहां पर घायल सूअर, हाथी का शिकार, नृत्य का दृश्य एवं हाथ के छापे प्राप्त होते हैं।
  • मिर्जापुर को सर्वप्राचीन मानव निवास स्थल माना जाता है।
(4).ताम्र पाषाण काल (Chalcolithic Age or Bronze Age) 3,000 - 1,500. BC:- यह पाषाण काल का अंतिम समय था। इस समय तांबे की खोज हुई थी जिस वजह से औद्योगिकीकरण  (Industrialization) का विकास हुआ।

प्रागैतिहासिक चित्रों की विशेषताएं
  • प्रागैतिहासिक चित्रों के विषय आखेट, पशु-पक्षी मानव एवं उनका जन-जीवन है। 
  • आदिमानव रंग को स्थाई करने के लिए जानवरों की चर्बी का प्रयोग करते थे।
  • इनके द्वारा गेरु एवं चारकोल का प्रयोग अधिकतर किया गया हैं, चित्र निर्माण के लिए।
  • लोक-कला का प्रारंभ प्रागैतिहासिक काल से माना जाता है। 
  • प्रीहिस्टोरिक इंडिया (Prehistoric India), प्रागैतिहासिक भारत (1950) जिसके लेखक स्टुअर्ट पिग्गोट (Stuart Piggott) हैं। यह एक ब्रिटिश पुरातात्विक थे इनकी पुस्तक से प्रागैतिहासिक चित्रो के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

प्रमुख प्रागैतिहासिक चित्र एवं स्थान 

  1. मयूर - आदमगढ़ (होशंगाबाद, M.P.)  
  2. घायल सुअर - भल्डरिया (मिर्जापुर) 
  3. महामहिष - आदमगढ़ (होशंगाबाद)   
  4. गैंडे का आखेट - घोड़मगर (मिर्जापुर) 
  5. पहिएदार गाड़ी - विंढम (मिर्जापुर) 
  6. बारहसिंगे का आखेट - लिखुनिया (मिर्जापुर) 
  7. आदिम वन देवी - आदमगढ़ (होशंगाबाद) 
  8. घायल भैंसा - सिंहनपुर (छत्तीसगढ़) 
  9. जिराफ समूह - आदमगढ़ पहाड़ी (होशंगाबाद) 
  10. कंगारू - सिंहनपुर (छत्तीसगढ़) 
  11. हाथी का शिकार - लिखुनिया (मिर्जापुर) 
  12. शिकार नृत्य - भीमबेटका (म.प्र .) 
  13. शहद एकत्रित करते हुए - पंचमढ़ी (म.प्र .) 
  14. अश्वारूढ़ तथा महिषारूढ़ सैनिकों का युद्ध - बोरी गुफा, पंचमढ़ी (मध्य प्रदेश)।

Brief History of Indian Art Origin and Develop


      The beginning of Indian art is considered to be from the Prehistoric period, which means art before the historical period.  The history is divided into three sections for the convenience of study.

1. Prehistoric

2. Medieval

 3. Historical

 (1). Prehistoric: - The time of history in which humans did not know how to read and write.  This period is also called the Stone Age.  The first discovery of prehistoric paintings in India was done in Mirzapur (Uttar Pradesh).  The credit for the discovery of such paintings goes to the British.

 Historical rock paintings in India were first discovered by Archival Carlyle in 1880 AD and then by Cockburn in 1883 AD.


 Prehistoric painting is also divided into four parts-

(l) Megalithic Age 30,000 - 25,000 BC (Before Christ. Before Christ refers to the period of time before the birth of Christ.)

 (II) Mesolithic Age 25,000 - 10,000 BC

 (III) Neolithic Age 10,000 - 5,000/3,000 BC

(IV) Chalcolithic Age or Bronze Age 3,000 - 1,500.  BC

 (1).Megalithic Age 30,000 - 25,000 BC: - This was the earliest time in history.  The human of this time is called 'Primitive Man'.  Humans at this time were nomads (food collectors), that is, their main purpose was to fill their stomachs.  Hunting scenes had begun.  Human's greatest achievement at this time is the discovery of fire.


 (2).Mesolithic Age 25,000 - 10,000 BC: - This was the time after the Paleolithic Age.  At present, Bhimbetka, which is located in Raisen district of Madhya Pradesh, has produced the maximum number of paintings.  600 caves have been found here, out of which pictures are found in 275 caves.  It is also called Zoo Rock Shelter.  Most of the paintings have been made on the walls and ceilings.


 (3). Neolithic Age 10,000 - 5,000/3,000 BC: - In this period, humans had made a permanent residence and at the same time there is evidence of agriculture and animal husbandry.  We have got major examples of painting from Mirzapur (Uttar Pradesh).  Here injured pigs, elephant hunting, dance scenes and hand raids are found.

  •  Mirzapur is considered to be the oldest human habitation place.

 (4). Chalcolithic Age or Bronze Age 3,000 - 1,500.  BC:- This was the last time of the Stone Age.  At this time copper was discovered, due to which industrialization developed.


  •  Features of prehistoric paintings

 The subjects of prehistoric paintings are hunting, animals, birds, humans and their life.

 Primitive humans used animal fat to stabilize the color.

 Ocher and charcoal have been mostly used by them, for making pictures.

 The origin of folk art is believed to be from prehistoric times.

 Prehistoric India, Prehistoric India (1950) authored by Stuart Piggott.  He was a British archaeologist, his book gives information about prehistoric paintings.

 


 Major Prehistoric Pictures and Places


 Peacock - Adamgarh (Hoshangabad, M.P.)

 Wounded Pig - Bhaldaria (Mirzapur)

 His Majesty - Adamgarh (Hoshangabad)

 Rhinoceros Hunt - Ghodmagar (Mirzapur)

 Wheeled Cart - Wyndham (Mirzapur)

 Reindeer hunting - Likhuniya (Mirzapur)

 Primitive Forest Goddess - Adamgarh (Hoshangabad)

 Injured buffalo - Singhanpur (Chhattisgarh)

 Giraffe Group - Adamgarh Hill (Hoshangabad)

 Kangaroo - Singhanpur (Chhattisgarh)

 Elephant Hunt - Likhunia (Mirzapur)

 Hunting Dance - Bhimbetka (M.P.)

 Collecting Honey - Panchmarhi (M.P.)

 The battle of horsemen and Mahisharudha soldiers - Bori cave, Panchmarhi (Madhya Pradesh).

शनिवार, 25 सितंबर 2021

आसान है क्या? एक कलाकार बन जाना !!! (Aashan hai Kya? Ek kalakar ban jana !!!)

आसान है क्या? एक कलाकार बन जाना !!!

रात-रात भर जागकर, चार्ट पेपर पर ड्राइंग बनाना।

शाम होते ही सीधे पटना जंक्शन, स्केचिंग करने पहुंच जाना।

सुबह उठकर, क्लासरूम की ओर दौड़ लगाना।

क्या ब्रेकफास्ट?? क्या लंच?? और क्या डिनर??, 

बस मैग्गी से ही काम चलाना।

आसान है क्या? एक कलाकार बन जाना!!!


एक खत्म हो तो दूसरे प्रोजेक्ट का, फिर से चले आना।

लाख पढ़ने पर भी पता नहीं क्यों, अच्छे नंबर नहीं आना।

हर दिन कैसे पी लें दारु, कोई ना कोई बहाना बनाना।

फिर रात-भर बैठकर, फ़ालतू का बतियाना।

आसान है क्या? एक कलाकार बन जाना!!!


टेंशन में बस चाय की चुस्कियां लगाना,

सुर ना होते हुए भी, गलत-सलत गुनगुनाना।

ख्यालों में क्लास की सबसे खुबसुरत लड़की का, बॉयफ्रेंड बन जाना।

फिर दोस्तों को उसके नाम की, बियर पिलाना।

आसान है क्या? एक कलाकार बन जाना!!!


मोटी-मोटी ड्राइंग की किताबों को, भले ही जोश में खरीद लाना।

पर स्केचिंग करने के नाम पर, एकदम से सहम जाना।

अंतिम समय में लाचार होकर, दोस्त के नोट्स से ही काम चलाना।

पांचो साल बस पास कर जाएँ, उसी का जुगाड़ लगाना।

आसान है क्या? एक कलाकार बन जाना!!!


जिंदगी की कश्मकश में, तालमेल बैठाना।

बी.एफ.ए. के बाद एम.एफ.ए. कैसे करें?, इसका जुगाड़ लगाना।

सारी डिग्रियां समेटने के बाद, नौकरी के पीछे पड़ जाना।

आसान है क्या? एक कलाकार बन जाना!!!


जिंदगी में मिलने वाली मुश्किलों को, हँसकर आत्मसात करते जाना।

जीवन तो है रंगीन, इसे और रंगीन बनाना।

जो पास में है उससे संतुष्ट हो, भविष्य के लिए नए दरवाजे तलाशना।

आसान है क्या? एक कलाकार बन जाना!!!


साभार:- सोशल मीडिया

Edit & Modified:- विश्वजीत कुमार

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शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

Still Life (स्थिर वस्तु चित्रण, जड़ पदार्थों का चित्रण) हिंदी एवं English Notes.

स्टिल लाइफ (Still - life) 


           निर्जीव वस्तु के चित्र को स्टिल लाइफ कहते हैं। विभिन्न जड़ वस्तुओं के भिन्न-भिन्न आकारों का चित्रण जिसमें उस वस्तु विशेष का आकार, रंग, रूप, कठोरता या कोमलता इत्यादि को जो भी उस वस्तु के गुण हों, सुसज्जित ढंग से चित्रण स्टील लाइफ कहलाता है। पाश्चात्य कलाकार सेजा ने सर्वप्रथम स्टिल-लाइफ बनाने की शुरुआत की।

            फूल, पत्तियो, पेड़-पौधे, सुराही, फल ,गिलास ,कप आदि वस्तुओ को पेंटिंग में दिखाना ही स्टिल लाइफ पेंटिंग कहलाता है। इनमे ज्यादातर निर्जीव वस्तुओ को ही दिखाया जाता है। एक प्रकार से हम कह सकते हैं की मृत वस्तुओ को दर्शाने के लिए स्टिल लाइफ पेंटिंग का प्रयोग किया जाता है।
    इतिहास
               लगभग 15वी शताब्दी में इजिप्ट (मिस्र) के लोगो के द्वारा अपने खाद्य पदार्थो जैसे:- मछली, अनाज, फल, सब्जी और उनकी रोज-मर्रा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओ को चित्र के माध्यम से दिखाया जाता था जो की काफी प्रचलन में था। इनके द्वारा कुछ ऐसी इमारतों को भी बनाया गया जो इनकी रोज-मर्रा की जिंदगी से जुड़े हुए थे।

      स्टिल लाइफ पेंटिंग का प्रयोग

              इस पेंटिंग का प्रयोग वास्तव में स्थिर वस्तुओ या Objects को बनाने में किया जाता है लेकिन समय के साथ इस कला के चित्रण एवं प्रयोग में हमें बदलाव देखने को प्राप्त होता हैं। आजकल इसका चित्रण चित्र खरीदारों की इच्छा के साथ होने लगा हैं एवं इसमें सजीव वस्तुओ को भी स्टिल लाइफ पेंटिंग में दर्शाया जाने लगा है। जैसे मानव आकृतियां, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, आदि।

      लेख के अंत में हम जान लेते हैं स्टील लाइफ चित्र के बारे में कुछ और बातें......

                 स्टिल लाइफ पेंटिग वास्तव में वे चित्र होते है जो की निर्जीव हो या मानव के रोजाना जीवन में प्रयोग की जाती हो। जिनका मानव जीवन में विशेष महत्त्व हो जिनके बिना मानव जीवन जीना दूभर हो जाये। उदाहारण के तौर पर गिलास, कप-प्लेट, डेस्क, कुर्सी, बिस्तर, मर्तबान, घर, घड़ा, फल, फूल, गुलदस्ता, चाय की केतली, इत्यादि। ये वो वस्तुए होती है जो की घरो में आसानी से मिल जाती है और जिनको महसुस एवं चित्रण करना आसान होता हैं। इन सभी वस्तुओं का अंकन स्टील लाइफ कहलाता है।

      Still - life


              Pictures of inanimate objects are called still life.  The depiction of different shapes of different inert objects, in which the size, colour, form, hardness or softness of that particular object, etc., whatever are the properties of that object, is called steel life.  Western artist Seja was the first to start making still-life.

                 Showing flowers, leaves, trees, plants, jugs, fruits, glasses, cups etc. in the painting is called still life painting.  Most of these inanimate objects are shown.  In a way we can say that still life painting is used to depict dead things.

       History

                 In about the 15th century, the people of Egypt used to show their food items such as: - fish, grains, fruits, vegetables and their daily use items through pictures, which was quite in vogue.  Some such buildings were also built by them which were related to their everyday life.


       Use of still life painting

           This painting is actually used to make stationary objects, but with time we get to see changes in the depiction and use of this art.  Nowadays its depiction is being done with the desire of picture buyers and living things are also being depicted in still life painting.  Such as human figures, animals and birds, trees and plants, etc.


       At the end of the article, we know some more things about Steel Life Chitra......


            Still life paintings are actually those pictures which are inanimate or used in daily life of human beings.  Those who have special importance in human life, without which it becomes difficult to live human life.  For example glass, cup-plate, desk, chair, bed, jar, house, pitcher, fruit, flower, bouquet, tea kettle, etc.  These are those things which are easily found in homes and which are easy to feel and depict.  The marking of all these things is called steel life.

      हम सभी हैं एक "संख्या"

       संख्या


      सच कहूं तो

       हमारा अस्तित्व ही संख्या है।

      कैदी की संख्या,

      रैली की संख्या, 

      राशन की दुकान पर,

       कतार में लगे लोगों की संख्या।

      मरने वालों की संख्या, 

      घायलों की संख्या,

      शहीदों की संख्या,

      हादसे में मरने वालों की संख्या,

      भूखे रहने वालों की संख्या,

       बेरोजगारों की संख्या,

       डूबने वालों की संख्या,

      आग में जलने वालों की संख्या,

       देशद्रोहियों की संख्या,

      राष्ट्र-भक्तों की संख्या, 

      करतब दिखाने वालों की संख्या,

      नाचने वालों की संख्या,

      नचाने वालों की संख्या,

      ओलंपिक में पदको की संख्या,

      पदक दिलाने वालों की संख्या।


       हमारा समूचा अस्तित्व 

      संख्या में उलझ कर ही रह गया है।

       हम कहीं नहीं है 

      अगर है तो मात्र एक संख्या।

      साभार:- सोशल मीडिया


      गुरुवार, 23 सितंबर 2021

      शब्द-शब्द का खेल।

      शब्द



      शब्द रचे जाते हैं,

       शब्द गढ़े जाते हैं,

        शब्द मढ़े जाते हैं,

         शब्द लिखे जाते हैं,

          शब्द पढ़े जाते हैं,

           शब्द बोले जाते हैं,

            शब्द तौले जाते हैं,

             शब्द टटोले जाते हैं,

              और शब्द खंगाले भी जाते हैं,

                                                                           इस प्रकार से,

      शब्द बनते हैं,

       शब्द संवरते हैं,

        शब्द सुधरते हैं,

         शब्द निखरते हैं,

          शब्द हंसाते हैं,

            शब्द रूलाते हैं,

          शब्द मनाते हैं,

             शब्द मुस्कुराते हैं,

              शब्द खिलखिलाते हैं,

               शब्द गुदगुदाते हैं, 

                शब्द मुखर हो जाते हैं, 

                 शब्द प्रखर हो जाते हैं, 

                  शब्द मधुर भी हो जाते हैं।

                                                                                         इतना कुछ होने के बाद भी

      शब्द चुभते हैं,

       शब्द बिकते हैं,

        शब्द रूठते हैं,

         शब्द घाव देते हैं,

          शब्द ताव देते हैं,

       शब्द लड़ते हैं,

        शब्द झगड़ते हैं,

        शब्द बिगड़ते हैं,

        शब्द बिखरते हैं, 

           शब्द सिहरते भी हैं

                                                   परन्तु

      शब्द कभी मरते नहीं

       शब्द कभी थकते नहीं

        शब्द कभी रुकते नहीं

         शब्द कभी चुकते नहीं

                                                      ...अतएव

      शब्दों से खेले नहीं

       बिन सोचे बोले नहीं

        शब्दों को मान दें

        शब्दों को सम्मान दें

         शब्दों पर ध्यान दें

          शब्दों को पहचान दें

           ऊँची लंबी उड़ान दें

            शब्दों को आत्मसात करें

             उनसे उनकी बात करें,

              शब्दों का अविष्कार करें

                गहन सार्थक विचार करें

                                                                    ...क्योंकि

      शब्द अनमोल हैं

       ज़ुबाँ से निकले बोल हैं

        शब्दों में धार होती है

         शब्दों की महिमा अपार होती है

          शब्दों का विशाल भंडार होता है

      और 

                                                           सच तो यह है कि

      शब्दों का भी अपना एक संसार है।

      शब्दों को सम्मान दें🙏.

      धन्यवाद। 

      साभार:- सोशल मीडिया