राजगीर महोत्सव
प्राकृतिक धरोहरों एवं दृश्यों को अपने आँचल में समेटे तथा नैसर्गिक खूबसूरती का प्रतीक राजगीर न सिर्फ भारत वर्ष में बल्कि वैश्विक पर्यटन के मानचित्र पर भी प्रमुखता से प्रतिष्ठित है। यह नगरी भारतवर्ष के उन मनोरम पर्यटक स्थलियों में से एक है, जहाँ हर दिन बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते रहते हैं। इन्हीं पर्यटकों को आकर्षित करने एवं राजगीर की प्राकृतिक धरोहरों तथा विरासतों से वैश्विक जन-मानस को रू-ब-रू कराने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष राजगीर महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
राजगीर महोत्सव ऐतिहासिकता एवं वैज्ञानिकता, परंपरा एवं आधुनिकता तथा ग्राम्य एवं नगरीय सामाजिक जीवन की संस्कृतियों का अद्भुत संगम हैं। यह महोत्सव अनेकता में एकता का संदेश देता है। जहाँ एक तरफ इस तरह के आयोजनों से देश एवं राज्य की प्रतिष्ठा बढ़ती है, वहीं दूसरी ओर पर्यटन उद्योग का विकास होने से लोगों के लिए रोजगार के नये-नये अवसर भी उत्पन्न होते हैं।
पूर्व में राजगीर महोत्सव तीन दिवसीय आयोजन हुआ करता था, परन्तु इसकी महत्ता एवं लोकप्रियता को देखते हुए इसे बहु दिवसीय (17 दिन) कर दिया गया है। पर्यटन विकास निगम एवं भारतीय नृत्य कला मन्दिर के सौजन्य से होने वाले इस महोत्सव का नाम राजगीर नृत्य महोत्सव रखा गया। वर्ष 1989 में इसका नाम राजगिरी नृत्य महोत्सव कर दिया गया। कुछ अपरिहार्य कारणों से वर्ष 1989 से वर्ष 1994 तक इस महोत्सव का आयोजन नहीं हो सका, परन्तु वर्ष 1995 से इस महोत्सव को पुनः प्रारंभ कर दिया गया।
मलमास मेला
हिन्दू पंचांग के अनुसार, 32 माह एवं 16 दिन के पश्चात् अर्थात् प्रत्येक तीसरे वर्ष एक मास अधिक होता है, जिसे अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। इस मास में राजगीर बैकुण्ठ धाम बन जाता है । इस दौरान 33 करोड़ देवी-देवता राजगीर में निवास करते हैं। मलमास के दौरान मांगलिक कार्य वर्जित होते है। इस मास में भगवान शिव और विष्णु की अराधना फलदायी मानी जाती है।
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