गुरुवार, 13 जनवरी 2022

اردو زبان۔ उर्दू भाषा।


 उर्दू भाषा

        बिहार में उर्दू भाषा का प्रारम्भ लगभग 13वीं 14वीं शताब्दी के मध्य से माना जाता है। किन्तु इसका विकसित रूप सत्रहवीं शताब्दी में दृष्टिगोचर हुआ। उर्दू भाषा के विकास में अरबी, फारसी, भोजपुरी तथा मगही आदि भाषाओं के साथ सूफीवाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 04 सितंबर 1937 को वायसराय की कार्यकारी परिषद् में एक विधेयक रखा गया जहाँ बिहार की भाषा हिन्दुस्तानी (उर्दू) मानी गई जिससे बिहार की अदालतों में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के स्थान पर उर्दू भाषा और फारसी लिपि को वरीयता दी गई। उर्दू भाषा में बिहार के इतिहास पर प्रथम ग्रंथ नक्शे पायदार, अली मुहम्मद शाह अजीमाबादी के द्वारा लिखा गया। 
      डॉ. अजीमउद्दीन अहमद ने अंग्रेजी कविता शैली सॉनेट का उर्दू भाषा में सर्वप्रथम प्रयोग किया था। गुल-ए-नगमा इनकी कविताओं का संकलन है। सुहेल अजीमाबादी को बिहार में प्रगतिशील उर्दू विचारधारा के मुख्य प्रचारक के रूप में जाना जाता है, जबकि काजी अब्दुल वदीद को उर्दू साहित्य में शोध को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने का श्रेय प्राप्त है। बिहार के विख्यात कवि कलीम आजिज को उर्दू शायरी को नए रूप में सजाने के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। अब्दुल समद के उपन्यास दो गज जमीन को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
      बिहार में वर्ष 1981 ई. में उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया। बिहार सरकार ने वर्ष 1972 में पटना में उर्दू अकादमी का गठन करके उर्दू के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। फुलवारी के संत इमादुद्दीन कलंदर ने आम जन के मार्गदर्शन हेतु सिराते मुस्तकीम नामक पुस्तक की रचना की।

 उर्दू : महत्वपूर्ण तथ्य

  • लिपि  उर्दू नस्तालिक लिपि में लिखि जाती है जो फारसी - अरबी लिपि का रूप है।  
  • व्याकरण उर्दू भाषा का व्याकरण पूर्णत: हिंदी भाषा के व्याकरण पर आधारित है।
  • लेखन उर्दू दाँए से बाँए लिखी जाती है। 
उर्दू के विकास में महत्वपूर्ण व्यक्तित्व 

अमिर खुसरो, मीर साहब, अली मुहम्मद शाह अजीमाबादी, कलीम आजिज आदि। 

उर्दू भाषा की प्रमुख रचनाएं

    रचनाकार                      कृति

राजा राम नारायण              मौन्जू
अब्दुल समद                दो गज जमीन
डॉ० अजीमूदीन              गुल-ए-नगमा


اردو زبان

 بہار میں اردو زبان کا آغاز 13ویں سے 14ویں صدی کے وسط میں مانا جاتا ہے۔  لیکن اس کی ترقی یافتہ شکل سترہویں صدی میں نظر آنے لگی۔  عربی، فارسی، بھوجپوری اور ماگھی جیسی دیگر زبانوں کے ساتھ ساتھ تصوف نے اردو زبان کی ترقی میں اہم کردار ادا کیا۔  04 ستمبر 1937 کو وائسرائے کی ایگزیکٹو کونسل میں ایک بل پیش کیا گیا جس میں بہار کی زبان کو ہندوستانی (اردو) مانا گیا تھا، جس میں بہار کی عدالتوں میں ہندی زبان اور دیوناگری رسم الخط کی جگہ اردو زبان اور فارسی رسم الخط کو ترجیح دی گئی تھی۔  اردو زبان میں بہار کی تاریخ پر پہلا مقالہ نقشے پیدار، علی محمد شاہ عظیم آبادی نے لکھا۔

 ڈاکٹر عظیم الدین احمد نے اردو زبان میں پہلی بار انگریزی شاعری کے انداز کا سانیٹ استعمال کیا۔  گلِ نگمہ ان کی نظموں کا مجموعہ ہے۔  سہیل عظیم آبادی کو بہار میں ترقی پسند اردو نظریے کے مرکزی پرچارک کے طور پر جانا جاتا ہے، جب کہ قاضی عبدالودود کو اردو ادب میں تحقیق کے لیے سائنسی بنیاد فراہم کرنے کا سہرا جاتا ہے۔  بہار کے مشہور شاعر کلیم عزیز کو اردو شاعری کو ایک نئے انداز سے سجانے پر پدم شری ایوارڈ سے نوازا گیا ہے۔  عبدالصمد کے ناول 'دو گج زمین' کو ساہتیہ اکادمی ایوارڈ ملا۔

 بہار میں 1981ء میں اردو کو دوسری سرکاری زبان کا درجہ دیا گیا۔  حکومت بہار نے سال 1972 میں پٹنہ میں اردو اکیڈمی قائم کرکے اردو کی ترقی میں اہم کردار ادا کیا ہے۔  پھلواری کے بزرگ عماد الدین قلندر نے عام لوگوں کی رہنمائی کے لیے سیرت مستقیم کے نام سے ایک کتاب لکھی۔


 اردو: اہم حقائق


 رسم الخط اردو نستعلیق رسم الخط میں لکھا گیا ہے جو فارسی عربی رسم الخط کی ایک شکل ہے۔

 گرامر: اردو زبان کی گرامر مکمل طور پر ہندی زبان کی گرامر پر مبنی ہے۔

 تحریر: اردو دائیں سے بائیں لکھی جاتی ہے۔

 اردو کی ترقی میں اہم شخصیات


 امیر خسرو، میر صاحب، علی محمد شاہ عظیم آبادی، کلیم عزیز وغیرہ۔


 اردو زبان کے اہم کام


 تخلیق کار کریتی۔


 راجہ رام نارائن مونجو

 عبدالصمد دو گز زمین

 ڈاکٹر عظیم الدین گل نگمہ



 

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