बुधवार, 23 जून 2021

SEP-1 (School Experience Program-1) विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 D.El.Ed.1st Year. B.S.E.B. Patna.

 SEP-1 

विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 

School Experience Programme-1


             विद्यालय की पाठ्यचर्या में शिक्षकों के लिए हर रोज सीखने के बहुत सारे अवसर होते हैं। यदि कक्षायी शिक्षण से लेकर विद्यालय की तमाम गतिविधियों के सजग विश्लेषण का कौशल प्रशिक्षुओं में विकसित कर दिया जाए तो वे अपने कार्यों में कई नवाचार ला सकते हैं। विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के इस पहले भाग में प्रशिक्षुओं में कुछ ऐसे कौशलों को विकसित करने की अपेक्षा है जिससे ये अपने कार्य का स्वयं से विश्लेषण करके समस्याओं का समाधान कर सकें। इसके अंतर्गत प्रशिक्षुओं को न्यूनतम चार सप्ताह (लगभग 01 महीना) के लिए अपने विद्यालय में कुछ कार्यों को करना है, जिनकी रूपरेखा निम्नलिखित है:-

 SEP विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 100 अंक: इसमें पूर्णतः आंतरिक मूल्यांकन की योजना है। अर्थात प्रशिक्षुओं द्वारा किए जानेवाले अपेक्षित गतिविधियों का मूल्यांकन उसी प्रशिक्षण केन्द्र/संस्थान के साधनसेवी या प्रशिक्षकगण करेंगे। इसके अंतर्गत साधनसेवियों को लगभग समान संख्या में प्रशिक्षु आवंटित कर दिए जाएंगे। इस तरह  हर साधनसेवी के पास मेंटरिंग के लिए लगभग 15-20 प्रशिक्षु आएँगे। हर साधनसेवी सह मेंटर का यह कार्य होगा कि वह निम्नलिखित गतिविधियों को करने के लिए अपने प्रशिक्षुओं को सुझाव दें और फिर उनका मूल्यांकन करें । 

1. कक्षायी शिक्षण व गतिविधियों का अवलोकन एवं विश्लेषण

           कक्षा में हो रहे शिक्षण का अवलोकन एक जटिल कार्य है जिसमें शिक्षक और बच्चे दोनों की गतिविधियाँ साथ-साथ चलती है। अतः अवलोकन का केन्द्र केवल शिक्षक द्वारा किया जा रहा शिक्षण कार्य ही नहीं बल्कि बच्चों द्वारा की जानेवाली गतिविधियों भी होगी। इस कार्य के माध्यम से प्रत्येक प्रशिक्षु में कक्षायी शिक्षण का गहन अवलोकन करने की क्षमता का विकास करना है ताकि वे कक्षायी शिक्षण के विभिन्न आयामों की पहचान कर सके तथा उनका विश्लेषण डी.एल.एड. कार्यक्रम के विभिन्न विषयपत्रों जैसे:- F-1 समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ, F-2 बचपन और बाल विकास, F-5 भाषा की समझ और आरम्भिक भाषा विकास, F-4 विद्यालय संस्कृती, परिवर्तन और शिक्षक विकास, आदि। से प्राप्त समझ के आधार पर कर सकें।

           कक्षा के प्रत्यक्ष तत्वों का अवलोकन करना भी उतना सरल नहीं है जैसा प्रतीत होता है। इसके लिए भी कुछ अपेक्षित कौशलों की अनिवार्य आवश्यकता होती है। इस कार्य के अंतर्गत कक्षायी शिक्षण का अवलोकन मुख्यतः दो तरीकों से किया जाएगा। 

     पहला:- शुरुआती अवलोकन के लिए प्रत्येक प्रशिक्षु द्वारा अवलोकन सूची का विकास किया जाएगा जिसमें अवलोकन के विभिन्न पक्षों को दर्ज किया जाएगा। अवलोकन करने से पूर्व इस सूची को प्रत्येक प्रशिक्षु अपने मेंटर से समीक्षा करवाएंगे और प्राप्त सुझावों के आधार पर अवलोकन सूची को सम्वर्धित (Enhanced) करके विद्यालय में अवलोकन हेतु ले जाएँगे। चार सप्ताह में से दो सप्ताह का अवलोकन, प्रशिक्षु द्वारा विकसित अवलोकन सूची के आधार पर किया जाएगा। यह स्पष्ट किया जा रहा है कि प्रत्येक प्रशिक्षु को अपना अवलोकन सूची स्वयं विकसित करना है। अतः सभी के अवलोकन सूची में कुछ विभिन्नताएँ हो सकती हैं। 

             दूसरे प्रकार के अवलोकन के लिए प्रशिक्षु को सीधा-सीधा कक्षा में जाना है और यह लिखते जाना है कि कक्षा में वे क्या-क्या अवलोकित कर रहे हैं। इस प्रकार के अवलोकन के लिए कोई प्रारूप नहीं होगा। लेकिन यह अपेक्षा है कि प्रशिक्षु में अवलोकन के कुछ सामान्य बिन्दुओं की समझ पहलेवाले अवलोकन सूची के आधार पर अवलोकन करने से विकसित हो गई होगी जिसका इस्तेमाल अब वे खुले तौर पर अवलोकन करने के दौरान करेंगे। बिना किसी प्रारूप का अवलोकन तीसरे और चौथे सप्ताह के दौरान किया जाना चाहिए। 

कालावधि (Duration):- 

  • प्रथम अकादमिक वर्ष के पाँचवे, छठे, आठवें और नवें महीने में एक -एक सप्ताह 
  • प्रति सप्ताह पाँच (05) दिन (सोमवार-शुक्रवार) 
  • शनिवार व रविवारः अवलोकन का योजना निर्माण, तैयारी व परामर्श सत्र के लिये प्रशिक्षण केन्द्र पर विचार-विमर्श।
अवलोकन की अपेक्षाएं Requirements of Observation:- 

  • प्रति सप्ताह, प्रति दिन अधिकतम तीन कक्षाओं में शिक्षण का अवलोकन 
  • कक्षा 01 से 05 तक के प्रत्येक कक्षा से न्यूनतम पाँच-पाँच अवलोकन  
  • प्राथमिक स्तर के प्रत्येक कक्षा के प्रत्येक विषय से न्यूनतम एक अवलोकन 
  • अवलोकन सूची के माध्यम से न्यूनतम पंद्रह और बिना अवलोकन सूची के न्यूनतम दस अवलोकन  
  • कुल मिलकर न्यूनतम 25 कक्षाओं का अवलोकन 
  • न्यूनतम दो अवलोकन के विश्लेषण की समीक्षा मेंटर द्वारा 
        यह बेहतर होगा यदि प्रत्येक प्रशिक्षु अपने कक्षायी अवलोकन के लिए एक अलग कॉपी बनाए जिसमें प्रत्येक अवलोकन के बाद उसका विश्लेषण किया जाए। अतः केवल अवलोकन करना महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उसका उपयोगी विश्लेषण करना भी जरूरी है। अवलोकन और विश्लेषण का कार्य साथ-साथ चलना चाहिए। अर्थात, जैसे ही प्रशिक्षु किसी कक्षा का अवलोकन करके उसके प्रमुख बिन्दुओं को अपनी कॉपी में दर्ज करता या करती है। उसके बाद, उन बिन्दुओं का विश्लेषण भी किया जाना अनिवार्य है। अतः यह कतई नहीं होना चाहिए कि अवलोकन का विश्लेषण पच्चीस अवलोकन करने के बाद हो। यह अपेक्षा है कि प्रशिक्षु प्रत्येक सप्ताह अवलोकन करके तथा उनका विश्लेषण करके अपने प्रशिक्षक सह मेंटर से उसकी चर्चा करेंगे।

2. एक्शन रिसर्च, क्रिया-शोध (Action Research):-

हर शिक्षक को विद्यालय में शिक्षण के दौरान कई समस्याओं व चुनौतियों का अनुभव होता है। साथ ही उनके मन में शिक्षा से सम्बंधित कई जिज्ञासायें भी जागृत होती है। एक कुशल शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी शिक्षण समस्याओं, चुनौतियों व जिज्ञासाओं का समाधान वैज्ञानिक विधि (Scientific Method) के माध्यम से करें। अतः प्रशिक्षुओं को शिक्षण के साथ-साथ शोध-कार्य करना भी महत्त्वपूर्ण है, ताकि उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हो सके। इसी उद्देश्य के अंतर्गत, विद्यालय अनुभव कार्यक्रम में एक्शन रिसर्च को भी रखा गया है ताकि प्रशिक्षुओं में विभिन्न विषयों के अंतर्गत एक्शन रिसर्च करने की क्षमता विकसित हो सके।

 एक्शन रिसर्च का विषय:-

           एक्शन रिसर्च को कक्षा में किसी विषय (गणित, हिन्दी, अंग्रेजी, पर्यावरण अध्ययन में से किसी एक) की अवधारणा को सीखने-सिखाने से संबंधित समस्याओं के संदर्भ में लिया गया है। एक्शन रिसर्च का विषय आपके कक्षा-शिक्षण व कक्षायी गतिविधियों के अवलोकन के विश्लेषण से स्वतः ही निकल जाएगा। आप एक्शन रिसर्च के विषय के लिए बच्चों से विभिन्न विषयों की अवधारणाओं पर बातचीत, उनकी कॉपियों का विश्लेषण आदि कर सकते हैं। यदि बच्चों को किसी विषय के किसी खास अवधारणा को समझने में समस्या आ रही हो तो वह एक्शन रिसर्च का एक विषय होगा। उदाहरण के तौर पर, कई बच्चे ठीक तरह से जोड़ या घटाव नहीं कर पा रहे हैं तो उसके पीछे उनकी समझ में क्या कमी है इसकी पड़ताल करके और उसके आधार पर उन्हें पुनः समझाना व उनकी समस्या को दूर करना एक एक्शन रिसर्च होगा। यहाँ किसी भी एक विषय से एक्शन रिसर्च का केवल एक विषय चुनना है, जिसे करके रिपोर्ट बनाना होगा और प्रशिक्षण केन्द्र पर जमा करना होगा। एक्शन रिसर्च को करने के दौरान वे कक्षा शिक्षण भी कर सकते हैं। यह एक एक्शन रिसर्च का अभ्यास प्रशिक्षुओं को इसका कौशल सिखाने के लिए है। इसके बाद द्वितीय वर्ष के विभिन्न विषयों में आवश्यकतानुसार प्रशिक्षुओं को एक्शन रिसर्च निरन्तर करते रहना होगा। 

कालावधि (Duration, Period): प्रशिक्षुओं से अपेक्षा है कि वे विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 के शुरू होने के पहले महीने के अंत तक अपने एक्शन रिसर्च के विषय के बारे में प्रशिक्षण केन्द्र पर सूचित करें तथा अगले महीने से उस पर कार्य करना शुरू करें तथा उसे पूरा करके विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 के अंत में प्रशिक्षण केन्द्र पर अपने साधनसेवी सह मेंटर को जमा करें। मेंटर की यह जिम्मेवारी होगी कि वह आवश्यकतानुसार उस साधनसेवी को भी सुझाव देने या मुल्यांकन करने में शामिल करे जिस विषय का एक्शन रिसर्च प्रशिक्षु ने किया हो। 

3. विद्यालय उन्नयन योजना (School upgradation plan) 

           प्रशिक्षुओं का विद्यालय विशेष के संदर्भ में कई अनुभव रहे होंगे। उन अनुभवों में उनके विद्यालय से जुड़े तमाम आंकड़े भी शामिल होंगे। यदि उन आँकड़ों को व्यवस्थित करके विश्लेषण किया जाए तो विद्यालय के विकास में मदद मिल सकती है। अतः इस कार्य के अंतर्गत, प्रशिक्षु अपने विद्यालय के संदर्भ में आंकड़ों का योजनानुसार ये उस विद्यालय में कार्य करेंगे। विश्लेषण करके विद्यालय के लिए एक उन्नयन योजना का निर्माण करेंगे। फिर अपने द्वारा बनायी गयी योजनानुसार ये उस विद्यालय में कार्य करेंगे। 

कालावधि: इसकी प्रक्रिया के लिये प्रशिक्षु विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 के दौरान का समय लेंगे तथा अपने विद्यालय के वास्तविक स्थिति का विश्लेषण कर उसके आधार पर अपने विद्यालय के लिये उन्नयन योजना का निर्माण करेंगे। फिर उस योजना में दिए गए कार्यों को पूरा करने का प्रयास करेंगे। ऐसी व्यवस्था बने कि दूसरे सत्र के पहले महीने में प्रशिक्षुगण अपने विद्यालय की स्थिति का विश्लेषण कर उसके विकास के लिए एक उन्नयन योजना बना लें। फिर आगामी चार -पाँच महीने उस योजना के आधार पर कार्य करें और विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 की समाप्ति पर एक समग्र रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

4. विद्यालय में बच्चों से बातचीत का विश्लेषण 

       विद्यालय में उत्साही और भयमुक्त माहौल के निर्माण हेतु, शिक्षकगणों और बच्चों के मध्य निरन्तर संवाद होना जरूरी है। अक्सर शिक्षकगणों और बच्चों के बीच की बातचीत केवल कक्षा-कक्ष के सवालों-जवाबों तक ही सिमट कर रह जाती है, जिसके कारण शिक्षकों का बच्चों के साथ वैसा सम्पर्क नहीं बन पाता है जिससे वे अभिप्रेरित हो सकें और अपने चुनौतियों को शिक्षकों से साझा कर सकें। 

        इस कार्य के अंतर्गत, प्रशिक्षु को अपने विद्यालय के किसी भी कक्षा के बच्चों के एक समूह के साथ सामान्य बातचीत करनी है जो किसी विषय के शिक्षण से सम्बंधित न हो। ऐसे संवाद का विषय बच्चों के समूह के मुताबिक और उनके पसन्द का हो। स्कूल के बाहर के किसी प्रसंग, किसी तात्कालीन घटना, कल घर पर क्या किया, गांव-शहर में होनेवाले किसी आयोजन, त्योहार, आदि। से सम्बंधित किसी भी प्रसंग पर खुली बातचीत की जाए। ध्यान रहे कि यह बातचीत सवाल-जवाब का स्वरूप ना ले ले। जिसमें शिक्षक सवालकर्ता हो जाए और बच्चे जवाब देते रहें। जिस प्रकार बच्चे कोई बात कर रहे हो, ऐसा होना चाहिए कि शिक्षक या शिक्षिका भी उसमें समान रूप से भागेदारी निभाए।

          इस तरह प्रत्येक प्रशिक्षु अपने विद्यालय के बच्चों से न्यूनतम दो चर्चाएं करेंगे और उस चर्चा में बच्चों ने क्या-क्या साझा किया और उसके आधार पर बच्चों के विषय में प्रशिक्षु ने क्या जाना-समझा। इसपर एक रिपोर्ट बनाकर द्वितीय सत्र के अंत में प्रशिक्षण केन्द्र पर अपने निर्धारित साधनसेवी को जमा कराएंगे। विश्लेषण के दौरान, प्रशिक्षु अपनी उस समझ का इस्तेमाल जरूर करें जो उन्होंने डी.एल.एड. कार्यक्रम के आधार विषयपत्रों जैसे- F-1 'समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ', F-2 'बचपन और बाल विकास, F-5 'भाषा की समझ और आरम्भिक भाषा विकास', F-4 'विद्यालय संस्कृति, परिवर्तन और शिक्षक विकास' आदि। के माध्यम से पाया है। 


विद्यालय अनुभव कार्यकम-1 के अंतर्गत किए गए प्रदत्त कार्य केवल डी.एल.एड. कार्यक्रम के दौरान औपचारिक तौर पर करने के लिए नहीं है। बल्कि मूल उद्देश्य यह है कि ये सभी कार्य प्रशिक्षुओं के विद्यालयी कामकाज के स्वाभाविक हिस्से बन जाएँ । अतः अपेक्षा है कि हर प्रशिक्षु अपने विद्यालय में शिक्षण पर्यन्त इनका निरन्तर प्रयोग करते रहेंगे , जिसके पीछे कोई औपचारिक निर्देश नहीं बल्कि अपने शिक्षण के प्रति संवेदनशीलता एवं प्रतिबद्धता की अभिप्रेरणा होगी।

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