शनिवार, 26 जून 2021

हम मिडिल क्लास वाले हैं, सपने देखते नहीं उसे बनाते है।

 




                  हम मिडिल क्लास वाले हैं। हम लोगों के पास गिने-चुने ही समस्याएं आती है क्योंकि हम लोग समस्या को भी भरपूर इंजॉय करते हैं। लेकिन कुछ समस्याएं ऐसी है जिसका मुझे लगता है कि यहां वर्णन करना चाहिए। 
          हमारी आधी जिंदगी झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही बीत जाती है। हमारे घरों में पनीर की सब्जी या चिकन, मटन आम तौर पर तभी बनता है, जब कोई मेहमान आ जाए। उस समय रमुआ के माई रमुआ को बोलती है कि जाओ रे.... बाजार से चिकन लेकर आओ और आने वाले मेहमान से कहती हैं। आज रुक जाई चिकन बनाव तानीs और मेहमान भी इसी चिकन और पनीर के लालच में एक दिन ज्यादा रुक जाते हैं। मिक्स वेजिटेबल की सब्जी भी तभी बनती है जब थोड़ी-थोड़ी बची सब्जियां बाद में सूखने लगती हो। हमारे यहां फ्रूटी, कोल्ड ड्रिंक, माज़ा की बोटले भी एक साथ फ्रीज में तभी नजर आते हैं जब लड़का या लड़की देखे खातिर कोई नायका मेहमान घर पर आते हैं या फिर कोई बढ़िया अपर क्लास वाला रिश्तेदार आ रहे होते है। चाय को छानते समय या नींबू का रस निकालते समय लास्ट बूंद तक निचोड़ लेना ही, हम लोगो के लिए परम सुख की अनुभूति होती है। हम लोग ना कभी रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल करते ही नही हैं। वो क्या हैं ना उसकी गंध हमें अच्छी नहीं लगती उसके बदले हम घरों में आहूत कर लेते हैं और उसे लेकर पूरा घर से लेकर द्वार तक सगरो घुमा देते हैं ससुरा एके ही बार में पूरा फ्रेशनर आ जाता हैं। अउरी ओकर सुगंध धुंआ खत्म होने तक बरकरार रहता है। हम सब के घरों में ई गेट-टुगेदर नहीं होता है, हमारे यहां तो श्री सत्यनारायण भगवान का काथा होता है। सारा फैमिली से लेकर गांव वाला जमा होता हैं और बिना प्रसाद लिए मजाल है कि कोई चला जाये।
            हमारा फैमिली बजट इतना सटीक होता है कि सैलरी अगर 05 तारीख की बजाए 06 या 07 को आये तो अंडा से लेकर राशन तक उधार लेना पड़ता है। हमारी जिंदगी, ना....ना..... बहुत महंगा है तू कमाना तब खरीदना। यही बोलने/सुनने में निकल जाती है। अमीर लोग शादी के बाद हनीमून पर कहां जाएंगे यह निर्णय लेते हैं और हम लोगों की शादी के बाद किराए के टेंट वाले, फोटोग्राफर साहब, बरतन वाले पैसा वसूली के लिए ऐसे पीछे पड़ते हैं की बस हम गांव-जवार छोड़कर भागने वाले हैं।
          अमूमन हमारे घरों में गीजर नहीं रहता क्योंकि उसकी जरूरत तो साल के 02 या 03 महीने ही पड़ती है। हमलोग वैसी सामग्री खरीदते हैं जिसका प्रयोग सालों-भर कर सकें। फिर भी यदि किसी के यहां की गीजर लग जाए तो वह उसे बंद करके तब तक नहाता रहता है, जब तक नल से ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए। AC की कल्पना तो यहां कोसों दूर रहती हैं हमारे यहां ऐसी का मतलब एयर कंडीशन नहीं अकॉर्डिंग टू क्लाइमेट होता है। हम तो उसी एटीएम में जाते हैं जो खाली मिले ताकि वहां पर 10-15 मिनट एसी का लुफ्त उठा सके या फिर ज्यादा कूलिंग चाहिए तो सीधे मॉल में चले आते हैं। पूजा या त्योंहार में किस-किस को चंदा दिया है यह हमें याद नहीं रहता है लेकिन प्रसाद कहां कहां से लाना है यह हम कभी नहीं भूलते। 
           दिन भर के कार्यों के बाद जब हम रात में सोते हैं ना हमारे सपने भी अजीब आते हैं-  पानी की टंकी भर गई है, मोटर बंद करना है। गैस पर दूध उबल गया है, चावल जल गया होगा। कल मोनुवा के स्कूल का फीस जमा करना है, दूध वाले को पैसा देना है। इसी टाइप के सपने आते हैं। हम सभी अपने दिल में अनगिनत सपने लिए बस चलते रहते है और सपने देखते नहीं उसे बनाने पर विश्वास करते हैं। हम लोगों के बीच से यदि कोई सफल हो जाए तो अमीर वर्ग वाले उसका उदाहरण अपने बच्चे को देते हैं देखो वह कितनी कठिन परिस्थितियों में था। आज फालना जगह नौकरी कर रहा है। हमें बहुत खुशी है कि हम एक मिडिल परिवार वाले हैं और उससे ज्यादा खुशी इस बात से है कि अपने सपने को पूरा कर पाए।
धन्यवाद🙏
साभार:- सोशल मीडिया

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