मंगलवार, 22 जून 2021

F-10 पर्यावरण अध्ययन का शिक्षणशास्त्र D.El.Ed.1st Year B.S.E.B. Patna.

 


संदर्भ 
              हमारा परिवेश हमें बहुत कुछ सिखलाता है और अपने जीवन में हम प्रकृति से सीखे सिद्धान्तों व नियमों का बखूबी उपयोग करते हैं। "पर्यावरण अध्ययन" परिवेश को जानने-समझने का उपागम (Approach) है। 
        पर्यावरण अध्ययन मूलतः प्रकृति, उसका प्रभाव तथा मानवीय अन्तःक्रिया के फलस्वरूप प्रभावित प्रकृति का अध्ययन है। छोटी उम्र के बच्चों की बात करें तो हम पाते हैं कि उनके और पर्यावरण में अन्तःक्रिया समग्र रूप तथा सम्पूर्ण इकाई के रूप में होती है। इसलिए यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रारम्भ में बच्चे अपने समीपस्थ पर्यावरण की वस्तुओं और घटनाओं पर चर्चा करें, अपनी सोच और समझ को व्यक्त करें। 
          इसलिए इस स्तर पर पाठ्यवस्तु उनके अपने शरीर, परिवार, घर तथा आस-पड़ोस से संबंधित रखा जाना चाहिए। पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण के दौरान हमें बच्चों की स्थानीय परिस्थिति व वातावरण के साथ-साथ वहाँ उपलब्ध स्थानीय संसाधन का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के लिए पर्यावरण अध्ययन शिक्षण एक चुनौती है, क्योंकि यहाँ प्रकृति को ही प्रयोगशाला मानकर, कई छोटे-छोटे वैज्ञानिक प्रयोग कर उनकी जिज्ञासा और स्वयं करके सीखने, जानने-समझने के कौशल को बढ़ावा दिया जा सकता है। ऐसी स्थितियों में शिक्षक, बाल केन्द्रित एवं गतिविधि आधारित तकनीकों का उपयोग कर पर्यावरण शिक्षण को रोचक, अर्थपूर्ण एवं सार्थक कर सकते हैं। पर्यावरण अध्ययन का उद्देश्य बच्चों को प्रश्न गढ़ने व पूछने के मौके उपलब्ध कराना, उनकी जिज्ञासा को बढ़ानेवाले सवाल पूछना तथा उनकी मान्यताओं के औचित्य को समझना होना चाहिए। 
आसपास की वे सारी जैव-अजैव वस्तुएँ, परिस्थितियाँ, घटनाएँ, बल और क्रियाएँ जो हमारे जीवन को प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर प्रभावित करती हैं, पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण अध्ययन एक समावेशी विषय के रूप में स्थापित है, जिसे सामाजिक विज्ञान एवं पर्यावरण विज्ञान के आधार के स्वरूप में समझना आवश्यक है। प्राथमिक स्तर पर इसे तीन संदर्भो में समझा जा सकता है-

यथा:-

  पर्यावरण के बारे में शिक्षा। 

पर्यावरण के माध्यम से शिक्षा।

पर्यावरण के संवर्द्धन व संरक्षण के लिए शिक्षा।

          प्राथमिक स्तर पर समाज और विज्ञान के समेकित अध्ययन को पर्यावरण अध्ययन' कहा गया है। अतः इस स्तर पर विज्ञान और समाज विज्ञान के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम का प्रावधान नहीं किया जाता है। पर्यावरण अध्ययन के माध्यम से बच्चों में सामाजिक जीवन व वैज्ञानिक तथ्यों की बुनियादी समझ को विकसित करने का एक प्रयास है। प्राथमिक कक्षाओं में इसके अंतर्गत विभिन्न विषयों- विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित व भाषा आदि की अवधारणाओं को, पर्यावरण का उपयोग करते हुए इनकी आधारभूमि तैयार की जाती है। 

         पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में कुछ बुनियादी बातों पर स्पष्टता आवश्यक है। जैसे बच्चे के पर्यावरण को मात्र भौतिक पहलुओं तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए। पर्यावरण में उससे सम्बन्धित अमूर्त पहलुओं को भी शामिल किया जाए। साथ ही पर्यावरण की समझ में बच्चे की सीखने की असीम क्षमता को भी सराहा जाना चाहिए। अतः पाठ्यपुस्तक से परे बच्चों के पर्यावरण की समझ को भी शिक्षण का अंग बनाया जाना चाहिए।

उद्देश्य 

इस पाठ्यक्रम पर आधारित विषयवस्तु के शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है:- 

  • पर्यावरण अध्ययन के उद्देश्य व उसकी प्रकृति को समझते हुए बच्चों के बौद्धिक, बोधात्मक व संज्ञानात्मक क्षमता के विकास में उसके महत्व को पहचानना।
  • पर्यावरण अध्ययन में निहित अवधारणाओं व उनसे संबंधित तथ्यों का विश्लेषण करने का सामर्थ्य विकसित करना। 
  • अपने परिवेश के अनुभवों के आधार पर बच्चों में अवधारणाओं का विकास व परिष्करण के तरीके जानना व विकसित करना। 
  • कक्षा शिक्षण में संवाद व गतिनिधि के माध्यम से पर्यावरणीय प्रक्रियाओं और परिवर्तनों की व्याख्या करने की योग्यता प्राप्त करना । 
  • प्रकृति, व्यक्ति एवं समाज के विभिन्न पहलुओं की संरचना और प्रक्रियाएँ एवं उनके बीच के अंतर्सम्बंधों को जानने-समझने की जिज्ञासा व ललक उत्पन्न करना। 
  • व्यक्ति, परिवार, समुदाय, राष्ट्र एवं विश्व स्तर के मुद्दों को व्यापक संदर्भ में समझने की योग्यता विकसित करना। 
  • पर्यावरणीय परिघटनाओं में प्राकृतिक, भौगोलिक, सामाजिक , सांस्कृतिक आदि अलग-अलग पहलुओं को समझते हुए समेकित दृष्टिकोण विकसित करना। 
  • सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता के प्रति संवेदनशीलता, सहिष्णुता एवं समता-समरसता (Harmony) का भाव विकसित करना। 
  • लैंगिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विभेदों के प्रति संवेदनशील तथा समालोचनात्मक दृष्टि विकसित करना। 
  • बाल मनोविज्ञान व बच्चे कैसे सीखते हैं की समझ को व्यापक, तर्कपूर्ण एवं कमबद्ध करने का प्रयास करना। 
  • खोजी व करके सीखने की प्रवृति उत्पन्न करना तथा अंधविश्वासों एवं पूर्वाग्रहों Prejudices (Preconceived opinion that is not based on reason or actual experience) के प्रति सचेत करना। 
  • कक्षा शिक्षण व अन्य गतिविधियों द्वारा विद्यार्थियों को पर्यावरणीय समस्याओं एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाना।  
  • दुर्घटनाओं/आपदाओं के समय उचित एवं तात्कालिक निर्णय लेने की क्षमता विकसित करते हुए बचाव व निदानात्मक उपायों पर भी समझ बनाना। 
  • पर्यावरण अध्ययन शिक्षण में विभिन्न शिक्षण-विधियों के उपयोग एवं उनके विकास करने की क्षमता, बढ़ाना। 
  • स्थानीय संसाधनों का सृजनात्मक उपयोग करते हुए शिक्षण सामग्रियों का निर्णय करना एवं उनमें आवश्यकतानुसार नवाचार कर उद्देश्यपूर्ण बनाना । 
  • सतत एवं व्यापक मूल्यांकन को पर्यावरण अध्ययन के संदर्भ में समझाते हुए उसके तरीके विकसित करना।


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