मंगलवार, 15 जून 2021

कार्य और ज्ञान की दुनिया का जुड़ाव : पाठ्यपुस्तक-केंद्रित शिक्षण से आगे।





               प्रत्येक देश में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ऐसी शैक्षिक प्रणाली का विकास करना है जो कि प्रत्येक बच्चों में प्रतिभा और कौशलों के विकसित होने के अवसर प्रदान कर सके। अतः यह अनिवार्य है कि कार्य को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाया जाए। कार्य शिक्षा उद्देश्यपूर्ण तथा अर्थपूर्ण शारीरिक श्रम माना जाता है। यह शैक्षिक प्रक्रिया का अंतर्निहित (Ingrained) "दीर्घस्थाई" भाग है। जिसमें बच्चे आनंद और खुशी को प्रदर्शित करते हैं। कार्य शिक्षा शैक्षिक गतिविधियों में ज्ञान, समझ एवं व्यवहारिक कौशलों को शामिल करने पर भी जोर देता है।

कार्य और ज्ञान की दुनिया के जुड़ाव को निम्नलिखित कारकों (Factors, Case) के आधार पर समझा जा सकता है।

  • हाथों तथा मस्तिष्क में समन्वय द्वारा
  • शैक्षिक गतिविधियों में सामाजिक रूप से उपयोगी शारीरिक श्रम को सम्मिलित करके।
  • किसी कार्य में संलग्न रहना सीखने की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण घटक है।
  • समुदाय के लिए उपयोगी सेवाओं तथा उत्पादक कार्य के रूप में।
  • सभी पहलुओं में एक आवश्यक कारक के रूप में।
  • यह "करके सीखना'' (Learning by Doing) सिद्धांत पर आधारित होता है।
           यहाँ मुझे महात्मा गाँधी जी की बातो का स्मरण हो रहा है एक बार वो  प्रशिक्षु शिक्षकों से बातचीत के दौरान कहे थे कि- "हमें शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाने होंगे मस्तिष्क को हाथों द्वारा प्रशिक्षित करना होगा। यदि मैं कवि होता तो पांचों उंगलियों की संभावनाओं पर कविता लिखता। आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि मस्तिष्क की सब कुछ है शेष इन्द्रिया कुछ नहीं । ऐसे लोग जो केवल सामान्य शिक्षा प्राप्त करते हैं तथा हाथों को प्रशिक्षित नहीं करते उनके जीवन में संगीतमयता नहीं होती उनके शरीर के अंग प्रशिक्षित नहीं होते । केवल पुस्तकीय ज्ञान, जिज्ञासा उत्पन्न नहीं कर सकते। अतः वे अपना ध्यान एकाग्र नहीं कर पाते केवल शब्दों के माध्यम से ही दी जाने वाली शिक्षा थकान उत्पन्न करती है तथा बच्चों का ध्यान भटका देती है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार कार्य और ज्ञान की दुनिया का जुड़ाव -

         संस्कृतिक पुनः जागृति के लिए शिक्षा से शारीरिक श्रम को अलग नहीं किया जा सकता। प्रत्येक छात्र को अपने समुदाय विशेष के क्षेत्र से बाहर आकर मानव सेवा के कार्यों में सहभागिता करनी चाहिए। कार्य को शिक्षा के माध्यम के रूप में लिया जाना चाहिए, क्योंकि अनुभव मस्तिष्क की खिड़कियां होते है।

स्वमूल्यांकन:-

  1. महेश एक ऐसी पाठशाला में पढ़ता है जहां विषय आधारित शिक्षा दी जाती है जबकि सुरेश कि पाठशाला में विषयों को कार्यों से जोड़कर पढ़ाया जाता है। आपके अनुसार इन दोनों के विकास में क्या अंतर होगा। और क्यों?
  2. कार्य शिक्षा किस प्रकार बच्चों को सामुदायिक सेवा से संबंधित गतिविधियों से परिचित कराती है। उदाहरण के द्वारा समझाइए।

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