गुरुवार, 24 जून 2021

SEP-2 विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-2 : इन्टर्नशिप School Experience Programme -2 : Internship D.El.Ed.2nd Year. B.S.E.B. Patna.

 SEP-2 

विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-2 : इन्टर्नशिप 

School Experience Programme -2 : Internship 

           गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के केन्द्र में एक सजग, सक्रिय और प्रतिबद्ध शिक्षक का होना आवश्यक है। साथ ही यह भी जरूरी है कि वह शिक्षक स्कूली गतिविधि के विभिन्न आयामों को न सिर्फ समीक्षात्मक ढंग से समझे बल्कि वह कुशलतापूर्वक इससे जुड़ी गतिविधियों को अंजाम भी दे सके। पिछले दो-तीन दशकों में सिद्धांत और व्यवहार का अर्थपूर्ण संबंध स्थापित कर उन्हें एक दूसरे की कसौटी पर कसने की प्रक्रियाएँ लगातार बढ़ी हैं। कहने को प्रत्येक शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम में शिक्षण-अभ्यास  उसका एक अनिवार्य हिस्सा होता है, पर ऐसा कम ही हो पाता है कि शिक्षायी चिंतन को सक्रिय रूप से शिक्षण अभ्यास का हिस्सा बनाया जाए। नतीजतन शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सिद्धांतों को जपने की प्रवृत्ति तो बढ़ती ही है साथ ही शिक्षण अभ्यास एक हस्तक्षेपकारी अनुभव होने की बजाय महज एक अकादमिक कवायद बनकर रह जाती है। शिक्षण अभ्यास को शिक्षा के सिद्धांतों, शिक्षणशास्त्र व शिक्षायी चिंतन से अलग करके नहीं देखा जा सकता है। कोशिश यह है कि शिक्षण-अभ्यास के अनुभव शिक्षायी विमर्श को समझने का आधार बने तथा शिक्षायी विमर्श, शिक्षण-अभ्यास को और समीक्षात्मक बनाने में मददगार बने। 

                विद्यालय अनुभव कार्यकम से तात्पर्य है विद्यालय में होने वाले कार्यों व गतिविधियों का समग्र अनुभव। इसका मूल उद्देश्य प्रशिक्षुओं में शिक्षण अभ्यास के साथ-साथ विद्यालय से जुड़ी अन्य गतिविधियों की समझ भी विकसित करना है। साथ ही, इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षु अपने शिक्षण व विद्यालय में अपनी भूमिका के प्रति एक आलोचनात्मक व मननशील दृष्टिकोण भी विकसित कर पाएंगे। वैसे तो इस डी.एल.एड (दूरस्थ शिक्षा) कार्यक्रम के अंतर्गत उन्हीं प्रशिक्षुओं का नामांकन किया जाता है जो पहले से ही विद्यालयों में शिक्षण कर रहे हैं। अतः विद्यालय के विभिन्न आयामों का अनुभव उनको स्वतः ही हो जाता है। लेकिन क्या वे उन विद्यालयी अनुभव का प्रयोग अपने शिक्षण को बेहतर बनाने के लिए कर पाने में सक्षम हैं या नहीं, यह मुख्य सवाल है। इसलिए विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के माध्यम से उनके अनुभवों को उपयोगी एवं सार्थक बनाने पर विशेष बल दिया जाएगा।

 उद्देश्य

विद्यालय अनुभव कार्यक्रम को करने के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार से हैं:- 

  • प्रथम वर्ष के विद्यालय अनुभव कार्यकम से प्राप्त समझ को विस्तारित करना। 
  • कक्षा-कक्ष में विभिन्न विषयों के शिक्षण से सम्बंधित योजना निर्माण, शिक्षण-अभ्यास तथा अपने शिक्षण के मूल्यांकन की समझ विकसित करना। 
  • विद्यालयी विषयों के शिक्षण के अंतर्गत आनेवाली समस्याओं का एक्शन रिसर्च के माध्यम से समाधान करना। 
  • अपनी कक्षा के बच्चों के सीखने के विकास का अध्ययन करना । 
  • बच्चों के सह-शैक्षिक पक्षों के विकास का केस स्टडी करना। 
  • विद्यालय और आस-पास के समुदाय के अंतर्सम्बंध को समझना तथा उसे सुदृढ़ बनाने के लिए सामुदायिक सेवा कार्यक्रमों में भागीदारी करना।

अवधि:-

        विद्यालय अनुभव कार्यक्रम न्यूनतम सोलह (16) सप्ताह का है, जिसे द्वितीय वर्ष के उत्तरार्द्ध महीनों (Latter months) के दौरान किया जाना है। प्रशिक्षु अपने आवंटित विद्यालयों में विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के अंतर्गत निर्धारित कार्यों को करना शुरू करेंगे। सोलह में से चौदह सप्ताह का कार्यक्रम विद्यालय के अंदर की गतिविधियों के लिए तथा बाकी दो सप्ताह को समुदाय से सम्बंधित कार्यों को करने के लिए रखा गया है।

 विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के मूल्यांकन की रूपरेखा

 विद्यालय अनुभव कार्यकम -2 400 अंक का हैं।
इसके मूल्यांकन के दो चरण होंगे। 
चरण -1 के अंतर्गत मूल्यांकन में सम्बंधित प्रशिक्षण केन्द्र की प्रमुख भूमिका होगी
चरण -2 के अंतर्गत अंतसंस्थागत Inter institutional मूल्यांकन की तुलनात्मक व्यवस्था होगी। इससे प्रशिक्षण केन्द्रों के मध्य अंतःकिया को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही, प्रशिक्षुओं को भी अपने कार्य पर मेन्टर के अलावा एक अन्य विशेषज्ञ का फीडबैक मिल सकेगा। चरण -2 के निर्धारण में राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद् की प्रमुख भूमिका होगी।
 

1. शिक्षण अभ्यास (Teaching Experience)

          शिक्षण अभ्यास के क्रम में आलोचनात्मक शिक्षणशास्त्र को समझना और उसे अभ्यास क्रम का हिस्सा बनाना इस पाठ्यचर्या का प्रमुख उद्देश्य है। यहाँ ज़रूरत होती है कि हम शिक्षण-अभ्यास के क्रम में अपनी जिम्मेदारी (अकादमिक, शैक्षिक व सामाजिक) को शिक्षा के वृहत्तर परिणाम व लोकतांत्रिक समाज के संदर्भ में समझें। कक्षा के भीतर की प्रक्रिया कोई पृथक घटना नहीं है, बल्कि इसका गहरा जुड़ाव विभिन्न सामाजिक व ऐतिहासिक प्रक्रियाओं से होता है। शिक्षक अपने सार्थक कर्म के माध्यम से असमान सामाजिक व्यवस्थाओं के विरुद्ध हस्तक्षेप करता है। उसकी यह भूमिका एक सांस्कृतिक कर्मी की तरह होती है। शिक्षण-अभ्यास में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि प्रशिक्षु शिक्षक न सिर्फ शिक्षा के तकनीकी पक्ष को समझ पायें बल्कि वे अपनी हस्तक्षेपकारी भूमिका को भी साकार रूप दे सकें। कोशिश यह होनी चाहिए कि वे अनुभवों के जरिये रूढ़ीवादी समाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं को तार्किक ढंग से चुनौती दे सकें। इस क्रम में वे न सिर्फ शिक्षण योजना बनाएँ बल्कि वहाँ पढ़ाए जाने वाले विषयों पर एक आलोचनात्मक समझ भी विकसित करने की कोशिश करें। सीखने की योजना (लर्निग प्लान) को विद्यालय में कियान्वित करने से पहले उसकी तैयारी करनी होगी। तैयारी के अंतर्गत सीखने की योजना को लिखकर अपने साधनसेवी सह मेन्टर से सुझाव लेना, प्रशिक्षण केन्द्र पर प्रति विषय कम से कम एक लर्निंग प्लान का सभी प्रशिक्षुओं के सामने डेमोन्स्ट्रेशन , प्रति विषय कम से कम एक एक्शन रिसर्च को करना शामिल है। इसके अलावा विद्यालय में लर्निंग प्लान का क्रियान्वयन-प्रमुख तौर पर किया जाएगा। 

अवधि : - 

  • लगातार चौदह सप्ताह (द्वितीय वर्ष के दौरान)  
  • प्रति सप्ताह पाँच (05) दिन (सोमवार-शुक्रवार) शनिवार व रविवार को योजना निर्माण, तैयारी व परामर्श सत्र के लिये प्रशिक्षण केन्द्र पर विचार-विमर्श 
सीखने की योजना (लनिंग प्लान) : - 
  • कुल मिलाकर न्यूनतम (75) लर्निंग प्लान का निर्माण एवं शिक्षण 
  • प्रति विषय न्यूनतम पंद्रह (15) लर्निग प्लान का निर्माण एवं शिक्षण। (प्राथमिक स्तर के चार विषय तथा उच्च प्राथमिक स्तर का एक विषय , कुल मिलाकर पांच विषय) 
  • प्रति विषय न्यूनतम दो (02) लर्निग प्लान के लिखित प्रारूप का सम्बंधित साधनसेवी द्वारा समीक्षा
  • प्रति विषय न्यूनतम एक (01) लर्निग प्लान का प्रशिक्षण केन्द्र पर प्रशिक्षु द्वारा डेमोन्स्ट्रेशन-शिक्षण पर आलोचनात्मक समीक्षा 
  • प्रति विषय न्यूनतम दो (02) लर्निग प्लान का विद्यालय में शिक्षण का पर्यवेक्षण तथा समीक्षा 
  • प्रति विषय न्यूनतम एक-एक लर्निंग प्लान के लिखित प्रारूप तथा कक्षा-शिक्षण का बाह्य मूल्यांकन 
  • प्रति सप्ताह न्यूनतम पाँच (05) और अधिकतम आठ (05) लर्निग प्लान का निर्माण एवं शिक्षण 
          एक सीखने की योजना या लर्निग प्लान से तात्पर्य एक अध्याय अथवा इकाई से नहीं है। बल्कि, एक लनिंग प्लान से तात्पर्य है एक कालांश (Period) के लिये शिक्षण की रूपरेखा। एक ही अध्याय अथवा इकाई में इसके कई शीर्षकों व अवधारणाओं को लेकर कई लनिंग प्लान बनाए जा सकते हैं। लर्निंग प्लान का निर्माण कैसे किया जाए, इसकी चर्चा आप कई विषयों में समझ चुके हैं। इसकी विस्तृत चर्चा कार्यशाला के माध्यम से भी की जाएगी। प्रशिक्षु अपना स्व-मूल्यांकन कैसे करेंगे, रिफलेक्टीव डायरी कैसे लिखेंगे, इन सब की चर्चा भी कार्यशाला में की जाएगी।

बच्चों के सीखने के विकास का अध्ययन 

          हर शिक्षक या शिक्षिका का शिक्षण कार्य तभी सार्थक है जब उसके कारण बच्चों के सीखने पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हो। अतः अपने शिक्षण की समझ के साथ-साथ सभी प्रशिक्षुओं को विभिन्न विषयों में बच्चों के सीखने के विकास का आकलन करना भी आना आवश्यक है। तभी वे यह समझ पाएंगे कि उनके द्वारा शिक्षण का बच्चों के सीखने पर क्या असर पड़ा है या अपने शिक्षण में किस तरह का नवाचार करें जिससे बच्चों के सीखने में सकारात्मक बदलाव आ सके। यह प्रदत्त कार्य इसी आलोक में दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत प्रशिक्षुगण अपने-अपने विद्यालय के किसी एक कक्षा का चयन कर उसमें पढनेवाले सभी बच्चों के सीखने के स्तर को कक्षा सापेक्ष समझेंगे। इसके लिए ये विभिन्न विषयों के संदर्भ में कुछ संकेतक या सीखने की कसौटियों को ध्यान में रखकर आकलन की योजना बनाएँ तथा उसके आधार पर बच्चों के सीखने का आकलन करें। आकलन की प्रक्रिया से निकलकर आए आँकड़ों का विश्लेषण एवं रिपोर्ट के अंदर उसकी प्रस्तुति अवश्य करनी होगी। यह कार्य वे विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के शुरूआती दो सप्ताह के अंदर कर लें। यह इस प्रदत कार्य का पहला भाग होगा। यह अपेक्षा है कि प्रशिक्षुगण अपना शिक्षण-अभ्यास का अधिकतम हिस्सा इसी चयनित कक्षा में करेंगे और अपने द्वारा बनाए जानेवाले विभिन्न विषयों के 'सीखने की योजना' में उन कसौटियों का ध्यान अवश्य रखेंगे जिनके आधार पर बच्चों का आकलन किया है। ताकि बच्चों के सीखने के स्तर को और बेहतर बनाने का उद्देश्य उनके शिक्षण के केन्द्र में रहे। बारहवें-तेरहवें सप्ताह में जब शिक्षण अभ्यास का समेकन होनेवाला होगा तो प्रशिक्षुगण पुनः उस कक्षा के बच्चों का पहले निर्धारित कसौटियों पर आकलन करें। आकलन के दौरान निकलकर आए आँकड़ों का विश्लेषण एवं रिपोर्ट के अंदर उसकी प्रस्तुति अवश्य करनी होगी। यह इस प्रदत कार्य का दूसरा भाग होगा। अंत में प्रशिक्षुओं को पहले और दूसरे भाग से निकलकर आए आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण करना होगा। इसके अंतर्गत वे यह समझ पाने में समर्थ होंगे कि उनके द्वारा किए गए शिक्षण का उन बच्चों के सीखने के विकास पर कितना असर पड़ा। उपरोक्त सभी कार्यों का करके एक विस्तृत रिपोर्ट अपने प्रशिक्षण केन्द्र पर जमा करें। पूरे कार्य को करने के दौरान आप अपने साधनसेवियों, विशेषकर अपने मेंटर से अवश्य सुझाव लेते रहें।
 
3. बच्चों के सह-शैक्षिक विकास का अध्ययन 
           
           विभिन्न विषयों के शिक्षण के साथ-साथ बच्चों के सह-शैक्षिक (को-स्कोलास्टिक ) विशेषताओं को प्रोत्साहित करना भी शिक्षण कार्य का ही भाग है। बच्चों में कई तरह की सृजनात्मक क्षमताएँ होती है जो अक्सर किताबी ज्ञान पर जोर देने के कारण निखर नहीं पाती। एक तरह से देखें तो यह बच्चों के सर्वांगीण विकास के खिलाफ है। अतः शिक्षकों को ऐसी समझ होनी चाहिए जिससे वे बच्चों के सह-शैक्षिक पक्षों विकास को प्रोत्साहित कर सकें। कला, खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, सृजनात्मक कार्य आदि इसके उदाहरण हैं। इस प्रदत कार्य के अंतर्गत प्रशिक्षुओं को अपने विद्यालय के कम से कम दस बच्चों के सह-शैक्षिक पक्षों का विस्तृत अध्ययन करना होगा। यह विश्लेषण करें कि उन बच्चों के कौन से सह-शैक्षिक पक्ष बहुत मजबूत है। आप जो निष्कर्ष निकालेंगे उसके लिए तथ्य / आँकड़े / प्रमाण भी दें। साथ ही यह विश्लेषण करें कि उन सह-शैक्षिक पक्षों को आपके विद्यालयी गतिविधियों / शिक्षण के अंतर्गत कितना महत्व दिया जाता है। उपरोक्त सभी विश्लेषणों के आधार पर उन बच्चों के सह-शैक्षिक पक्षों को और निखारने के दृष्टिकोण से प्रशिक्षुगण स्वयं क्या कर सकते हैं। उसकी योजना बनाएँ तथा उसका कियान्वयन करें। अंत में इन सभी कार्यों को लेकर एक रिपोर्ट तैयार करें तथा अपने प्रशिक्षण केन्द्र पर जमा करें। पूरे कार्य को करने के दौरान आप अपने साधनसेवियों (Resource Persons), विशेषकर अपने मेंटर से अवश्य सुझाव लेते रहे।

4. सामुदायिक कार्य 

              शिक्षक का सम्बंध केवल विद्यालय के साथ ही नहीं बल्कि समुदाय के साथ भी होना उतना ही जरूरी है। अतः विद्यालय अनुभव कार्यकम के अंतर्गत प्रशिक्षुओं को अपने विद्यालय के आस-पास के समुदाय की प्रकृति, उनकी अपेक्षाएँ, चुनौतियाँ, आदि। को समझने तथा उनके बेहतरी के लिए कुछ सामुदायिक सेवा कार्यों को करना होगा। यह इसलिए भी आवश्यक है ताकि हर प्रशिक्षु अपने विद्यालय के आस-पास के समुदाय को समझे तथा उसके प्रति संवेदनशील बने। इसके अंतर्गत यह अपेक्षा है कि हर प्रशिक्षु अपने विद्यालय के आस-पास के समुदाय में कोई वैसा सामाजिक कार्य करे जिसकी जरूरत वहाँ हो। इस कार्य को प्रशिक्षु अपने विद्यालय के अन्य शिक्षकों तथा बच्चों के साथ सामुहिक रूप से कर सकते हैं। प्रशिक्षण केन्द्र के कुछ प्रशिक्षु आपस में मिलकर भी कोई सामुदायिक कार्य कर सकते है। 
         उपरोक्त सामुदायिक कार्य के साथ-साथ प्रशिक्षुओं से व्यक्तिगत तौर पर यह अपेक्षा है कि वे अपने घर के आस-पड़ोस के किसी एक परिवार का चयन कर उसके शैक्षिक स्थिति का विश्लेषण करें। यह जानने-समझने की कोशिश करें कि उस परिवार में किस तरह की शिक्षा की आकांक्षाएँ हैं, परिवार के सदस्यों ने कहाँ तक की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की है, शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्होंने किस तरह की चुनौतियों का सामना किया है, आदि। उस परिवार में शिक्षा की जो स्थिति है, उसके पीछे के कारणों का विश्लेषण करें। अपने विश्लेषण के आधार पर आप उस परिवार के आगामी शैक्षिक विकास के लिए कुछ सुझाव भी प्रस्तुत करें। उपरोक्त दोनों कार्यों को करने से पूर्व यह अपेक्षा है कि प्रशिक्षुगण इसकी चर्चा अपने साधनसेवी से जरूर कर लें। 

कालावधि:-

              विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के अंतर्गत सोलह सप्ताह में से दो सप्ताह सामुदायिक कार्य के लिए है। चतुर्थ सत्र के किसी भी दो सप्ताह में यह कार्य प्रशिक्षुओं द्वारा किया जाए तथा चतुर्थ सत्र के अंत में इसकी एक रिपोर्ट प्रशिक्षु द्वारा प्रशिक्षण केन्द्र पर जमा की जाएगी। रिपोर्ट में प्रशिक्षु इस बात को विशेष तौर पर लिखें कि उनके द्वारा किए गए सामुदायिक कार्य के कारण समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ा या पड़ने का अनुमान है। इसी रिपोर्ट के दूसरे भाग में वे अपने द्वारा किए गए किसी परिवार के शैक्षिक स्थिति का विश्लेषण भी प्रस्तुत करें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें