रविवार, 6 जून 2021

परामर्श की मुख्य रणनीतियाँ क्या है ? आप इन्हे अपने स्तर से विद्यालय मे कैसे सुलभ करायेंगे। What are the main counselling strategies ? How will you make them accessible in the school from your level.




प्रश्न.- परामर्श की मुख्य रणनीतियाँ क्या है ? आप इन्हे अपने स्तर से विद्यालय मे कैसे सुलभ करायेंगे। 

Question.- What are the main counselling strategies ? How will you make them accessible in the school from your level. 

Ans.- परामर्श (counselling) मुख्य रूप से दो व्यक्तियों के बीच संपर्क है जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कुछ समझाने में सहायता प्रदान करता है। परामर्श की प्रक्रिया में परामर्शदाता तथा परामर्श चाहने वाला दोनों आमने-सामने होते हैं तथा परामर्शदाता परामर्श प्रार्थी को उसके समस्याओं का समाधान ढूंढने में सहायता देता है।परामर्श को निर्देशन सेवाओं में विशिष्ट स्थान प्राप्त है परामर्श को निर्देशन वादियों का हृदय कहा जाता है।

मायर्स के अनुसार, परामर्श का अभिप्राय है दो व्यक्तियों का संपर्क जिसमें एक व्यक्ति को किसी प्रकार की सहायता दी जाती है।

परामर्श प्रक्रिया की रणनीतियां में निम्नलिखित प्रयासों को शामिल किया जाता है-

1 -प्रार्थी का खुद परामर्शदाता के पास सहायता हेतु जाना- इसके तहत किसी उलझन द्वंद अथवा समस्या की अवस्था में व्यक्ति खुद परामर्शदाता के पास सहायता हेतु जाता है तथा परामर्शदाता उसके लिए कोई तारीख एवं समय तय करता है।

2- पूर्व परामर्श सत्र की स्थापना- इसके तहत औपचारिक प्रॉमिस प्रक्रम शुरू करने से पहले परामर्श का सत्र तय किया जाता है। इससे पूर्व परामर्श सत्र कहते हैं यह सत्र प्रार्थी के संबंध में प्रारंभिक जानकारी प्राप्त करने हेतु रखा जाता है।

3- सौहार्दपूर्ण (cordial) संबंध की स्थापना एवं समस्या का परिचय- समस्या संबंधी प्राथमिक जानकारी हेतु प्राप्त करने से पहले यह जरूरी होता है कि प्रार्थी के संबंध सौहार्दपूर्ण संबंध की स्थापना की जाए। इसके लिए परामर्शदाता सुरक्षित, आपसी मान व विश्वास के वातावरण को तैयार करता है जिस कारण परामर्शदाता तथा प्रार्थी में मनोवैज्ञानिक नजदीकियां, सुरक्षा, निष्कपट मैत्रीपूर्ण संबंधों में बढ़ोतरी होती है और प्रार्थी अपनी समस्या के प्राथमिक व्याख्या नि:संकोच होकर करता है तथा परामर्शदाता इसके लिए जरूरी स्थिति एवं वातावरण प्रदान करता है।

3- समस्या की छानबीन– समस्या के विषय में गहन सूचनाएं प्राप्त की जाती है तथा व्यक्ति की समस्या से संबंधित अन्य साधनों से भी सूचनाएं इकट्ठी करके समस्या के संभावित कारणों का विश्लेषण तथा व्याख्या की जाती है उद्देश्य तय करके समस्या समाधान हेतु सहायक संभावित घटकों की पहचान की जाती है।

5- प्रार्थी की समस्या के घटकों तथा उसके स्वयं के विषय में अवगत कराना– इसमें प्रार्थी को खुद उसके गुणों के विषय में तथा समस्या के संभावित कारणों के विषय में जानकारी दी जाती है। प्रजातांत्रिक तरीके से समस्या के मौलिक आधारों का वार्तालाप किया जाता है। समाधान के विकल्प दर्शाए जाते हैं तथा उनकी व्याख्या की जाती है परंतु समस्या समाधान की स्वीकृति तथा उसको अपनाना अथवा ना अपनाकर पूरी तरह से प्रार्थी के विवेक पर छोड़ दिया जाता है।

6- समस्या समाधान की प्रस्तुति– इस स्थिति में समस्या के समाधान का लक्ष्य पूरा किया जाता है। ऐसी अवधारणा मानी जाती है कि परामर्श प्राप्त क्रम में प्रार्थी के पक्ष के संबंध में सकारात्मक बोध होने पर वह समस्या का वास्तविक कारण पहचान लेता है तथा समस्या समाधान को मान लेता है।

7 -परिणाम का मूल्यांकन- समस्या हेतु प्राप्त परिणाम का मूल्यांकन किया जाता है।

8- परामर्श संबंध का समापन- प्रार्थी द्वारा समस्या के समाधान की स्वीकृति के पश्चात प्रार्थी तथा परामर्शदाता के बीच परामर्श संबंध खत्म कर दिया जाता है।

9- अनुवर्ती सेवा का प्रबंध– समस्या समाधान के प्रभाव अथवा प्राप्त परिणाम की सफलता की जांच हेतु अनुवर्तन की व्यवस्था की जाती है अर्थात उसके सारे प्रोविजन को फॉलो किया जाता है।

इसकी अन्य रणनीतियों में निर्देशन आत्मक परामर्श अर्थात पूर्णतया परामर्शदाता को है महत्त्व देने की बात की जाती है।

इसके तहत परामर्शदाता परामर्शप्रार्थी के समस्याओं को

a) संश्लेषित करता है,

b) विश्लेषण करता है

c) उसके निदान

d) उसकी सफलता का अनुमान और अंत में उसका 

e)मूल्यांकन भी करता है।

         अतः इस प्रकार प्रार्थी के अंदर की नकारात्मक भावनाओं को सकारात्मक भावनाओं में परिवर्तित कर दिया जाता है तथा प्रार्थी को उसकी योग्यता क्षमताओं रुचियां अथवा अभी क्षमताओं की जानकारी हो जाती है तथा निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति हेतु एक रास्ता का निर्माण हो जाता है।

एक अध्यापक होने के नाते अपने विद्यालय में इसे मैं निम्नलिखित तरीके से सुलभ करा सकता हूं-

1– विद्यालय के सभी छात्रों से संबंधित जानकारी एकत्रित करूंगा।

2– उसके नैतिक विकास में सहायता प्रदान करूंगा।

3- छात्रों की रुचि और रुझानों का विकास करने का हर संभव प्रयास करूंगा, इसके लिए मेरा यह उत्तरदायित्व होगा कि मैं-

A) छात्रों के व्यक्तित्व का विकास करूं और इसके तहत छात्रों के पारिवारिक वातावरण उसके क्रियाकलापों तथा सहयोगियों के प्रति उनके व्यवहार के बारे में उनके माता-पिता से जानकारी प्राप्त करूंगा।

B) छात्रों को अच्छी तरह से समझने के लिए Philosophy of Guidelines. (दिशा-निर्देशों का दर्शन) की जानकारी लेनी होगी क्योंकि इससे लिए छात्रों को समझना अत्यंत आसान हो जाता है।

C-)- तत्पश्चात अध्यापक के रूप में मेरा यह आवश्यक कर्तव्य हो जाता है कि छात्रों को भिन्न-भिन्न व्यवसाय में आवश्यक निपुणता शैक्षिक योग्यता तथा भविष्य की सफलताओं आदि के संबंध में छात्रों को सूचित करूं और छात्रों के लिए व्यवसायिक भ्रमण कार्यक्रम का भी आयोजन करूंगा।

D)- एक अध्यापक होने के नाते मैं छात्रों के रूप में योग्यताओं प्रतिभा तथा आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें व्यवसाय को चुनने में मार्गदर्शन करूंगा तथा छात्रों की भावनात्मक समस्याओं को समझ कर उनका समाधान करने में सहायता प्रदान करूंगा।

     इस प्रकार मैं अपने विद्यालय में इसे आसानी से सुलभ करा सकूंगा

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