सोमवार, 21 जून 2021

F-6 शिक्षा में जेण्डर और समावेशी परिप्रेक्ष्य D.El.Ed. 1st Year Bihar School Examination Board, Patna.


 संदर्भ

              किसी भी समाज के मानवीय होने की कसौटियों में से एक महत्वपूर्ण कसौटी यह है कि उसका दृष्टिकोण कितना समतामूलक (Egalitarian) है। समाज को समतामूलक बनाना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उददेश्य है। इस संदर्भ में, जेण्डर समानता तथा विशेष आवश्यकतावाले बच्चों को विद्यालय में सीखने के समान अवसर उपलब्ध कराने का विमर्श उभर कर आया है। यह गौर करनेवाली बात है कि स्त्री और पुरुष के बीच लिंगजनित भिन्नता प्राकृतिक है, लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक असमानता समाज द्वारा सृजित है। हमारे समाज में स्त्री और पुरुष के बीच असमानता को रचने के प्रयास बहुत पुराने और जटिल हैं, जिनकी शुरुआत बच्चे और उनके बचपन के विभिन्न संदर्भो में ही हो जाती है। शिक्षक एवं शिक्षिकाओं के लिए जेण्डर आधारित असमानता की जड़ों और उससे उपजे दृष्टिकोण को समझना अति आवश्यक है। खासकर बिहार में लड़कियों की सामाजिक स्थिति तथा उनकी शिक्षा के अनेक संदर्भ इस लिहाज से देखे जा सकते हैं। इसके साथ ही, हमारे समाज में विशेष आवश्यकतावाले बच्चों (दिव्यांगजन) की शिक्षा के प्रति भी उपेक्षा और उदासीनता देखने को मिलती है। वर्तमान शैक्षिक मान्यताओं के अनुसार यह जरूरी है कि इन बच्चों की आवश्यकताओं के प्रति हमारा विद्यालय और शिक्षक तैयार हों तथा संवेदनशील बनें। इस विषयपत्र में समावेशी अवधारणा एवं जेण्डर को विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के आलोक में समझने की कोशिश की जाएगी। साथ ही, इसकी समझ भी बनाएंगे कि समावेशी सामाजिक दृष्टिकोण एवं जेण्डर समानता के लिए शिक्षा किस प्रकार एक सशक्त माध्यम के तौर पर काम कर सकती है। 

उद्देश्य

इस पाठ्यक्रम पर आधारित विषयवस्तु के शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं :-

समाज के समावेशी परिप्रेक्ष्य की अवधारणा तथा आवश्यकता को समझना।

समाज में जेण्डर समानता की अवधारणा तथा औचित्य को समझना।

विशेष आवश्यकतावाले बच्चों (दिव्यांगजन) की आवश्यकतानुरूप शिक्षा के स्वरूप को समझना। 

विद्यालय के सीखने-सिखाने की प्रकिया को समावेशी परिप्रेक्ष्य एवं जेण्डर समानता आलोक विश्लेषित करना। 

विद्यालयी माहौल को समावेशी एवं जेण्डर समानता के अनुरूप निर्मित करने के तरीकों को समझना।

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