सोमवार, 31 जनवरी 2022

कभी तो चाय पे बुलाया करो।


कभी तो चाय पे बुलाया करो।

  

 कभी तो चाय पे बुलाया करो, 

नजरों को नजरों से मिलाया करो।

राज दिल में जो दबी है, 

ज़ुबां पे तो लाया करो।

कभी तो चाय पे बुलाया करो॥ 


हमें परवाह हैं तेरी, 

कभी तो ये ख्याल करो।

दबी निगाहों से ही सही, 

कभी तो इजहार करो।


झूठा ही सही, 

कभी यूँ भी मुस्कुराया करो 

कभी तो चाय पे बुलाया करो ॥ 


दूर जो बैठे हो तो, 

कभी फोन भी घुमाया करो। 

बात दिल की जो भी हो, 

यूँ ही बताया करो। 


याद करते हो तो,

कभी ख़याबो में भी आया करो।

कभी तो चाय पे बुलाया करो।।

आरे!! कभी हमें भी तो चाय पे बुलाया करो।।


विनित कुमार✍️



मंगलवार, 25 जनवरी 2022

जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी से संबंधित BPSC का महत्वपूर्ण सूचना। Important information of BPSC related to District Art and Culture Officer.

यदि आप जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी का ऑनलाइन आवेदन किये है और परीक्षा के लिए प्रवेशपत्र डाउनलोड कर लिए हैं तो आपके लिए BPSC के तरफ से एक महत्वपूर्ण सूचना जारी की गई है कृपया इसे पूरा पढ़ें।

 बिहार लोक सेवा आयोग 

15 , नेहरू पथ ( बेली रोड ) , पटना -800001 

विस्तृत सूचना 

          विज्ञापन संख्या -01 / 2021 के अंतर्गत कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार के अधीन जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी (बिहार कला एवं संस्कृति सेवा) के पदों पर नियुक्ति हेतु सामान्य अध्ययन विषय की प्रारंभिक प्रतियोगिता परीक्षा दिनांक- 29.01.2022 ( शनिवार ) को 12:00 बजे मध्याह्न से 02:00 बजे अपराह्न तक पटना जिला मुख्यालय में आयोजित होगी। परीक्षा से संबंधित उम्मीदवारों के प्रवेश पत्र आयोग के वेबसाइट पर उपलब्ध है। जिन्हें डाउनलोड कर उम्मीदवार परीक्षा में भाग ले सकते है। कतिपय अभ्यर्थियों का उनके द्वारा ऑनलाइन आवेदन में अपलोड किये गये फोटो एवं हस्ताक्षर का ईमेज अस्पष्ट / अपठनीय एवं रिक्त हैं। वैसे उम्मीदवारों को सूचित किया जाता है कि वे निम्नलिखित कागजात / साक्ष्य , परीक्षा की निर्धारित तिथि 29.01.2022 को सम्बन्धित परीक्षा केन्द्र के केन्द्राधीक्षक को समर्पित करना सुनिश्चित करेंगे

1. अभ्यर्थी आयोग के वेबसाइट www.bpsc.bih.nic.in पर उपलब्ध घोषणा पत्र को पूर्ण रूप से भरकर उसमें निर्दिष्ट स्थान पर किसी राजपत्रित पदाधिकारी से अभिप्रमाणित रंगीन फोटो चिपकाऐंगें एवं निर्दिष्ट स्थान पर अपना हस्ताक्षर हिन्दी एवं अंग्रेजी में करेंगे। 

2 . राजपत्रित पदाधिकारी से अभिप्रमाणित दो रंगीन फोटो में से एक फोटो अभ्यर्थी अपने ई - प्रवेश पत्र में निर्दिष्ट स्थान के बगल में चिपकाऐंगे । दूसरा फोटो ई - प्रवेश पत्र के कार्यालय प्रति में संबंधित परीक्षा केन्द्र पर केन्द्राधीक्षक के समक्ष चिपकाऐंगे। 

3. आई.डी. प्रूफ यथा - पैन कार्ड / आधार कार्ड / ड्राइविंग लाइसेंस / वोटर आई . डी ० कार्ड / पासपोर्ट में से किसी एक की छायाप्रति, जो राजपत्रित पदाधिकारी से अभिप्रमाणित हो उसे केन्द्राधीक्षक को निश्चित रूप से समर्पित / जमा करेंगे । उक्त पहचान पत्र की मूल प्रति भी अभ्यर्थी अपने साथ रखेंगे। 

4. अभ्यर्थी से प्राप्त उपर्युक्त सभी कागजातों एवं फोटो का मिलान / सत्यापन करने के पश्चात् ही उन्हें अपने परीक्षा केन्द्र पर परीक्षा में सम्मिलित होने की अनुमति केन्द्राधीक्षक द्वारा दी जायेगी। ऐसे अभ्यर्थियों से प्राप्त सभी अभिलेखों को संबंधित केन्द्राधीक्षक बंद लिफाफे में आयोग को वापस भेजना भी सुनिश्चित करेंगे। 

5. OMR Sheet में Roll No ठीक से नहीं रंगने या Question Booklet Series अंकित नहीं करने पर OMR Sheet का मूल्यांकन नहीं होगा। उम्मीदवारों को डाक से (By Pos) प्रवेश पत्र नहीं भेजे जाएंगे। 

नोट:- विहित घोषणा पत्र आयोग के वेबसाइट www.bpsc.bih.nic.in पर उपलब्ध है।


बिहार लोक सेवा आयोग 

15. नेहरू पथ ( बेली रोड ) , पटना - 800001 

परीक्षा का नाम विज्ञापन संख्या - 01/2021 , जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी (प्रा .) प्रतियोगिता परीक्षा 

घोषणा पत्र 

अधिक जानकारी एवं फार्म का पीडीएफ फॉर्मेट प्राप्त करने के लिए बीपीएससी के ओरिजिनल वेबसाइट पर जाएं जिसका लिंक नीचे दिया गया है।

https://www.bpsc.bih.nic.in/





रविवार, 23 जनवरी 2022

जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी का प्रवेश पत्र हुआ निर्गत। The admit card of District Art and Culture Officer was issued. आर्ट एंड कल्चर ऑफीसर एडमिट कार्ड Art and Culture Officer Admit Card.

          यदि आप जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी का आवेदन किये है और परीक्षा का इंतजार कर रहे थे तो आपके लिए बहुत ही अच्छी खबर है। 


        बीपीएससी के द्वारा जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी का प्रवेश पत्र जारी कर दिया गया है जिसे आप नीचे दिए गए लिंक से आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं। 

https://onlinebpsc.bihar.gov.in/Main/logout




     प्रवेश पत्र डाउनलोड करने के लिए आपको यूजरनेम और पासवर्ड डालना होगा जो कि आपको आपके ईमेल पर बीपीएससी के द्वारा भेजा गया है जो कि फार्म भरते समय आप ईमेल दिए थे। आप अपनी ईमेल आईडी से यूजरनेम और पासवर्ड देख सकते हैं।



Find BPSC Admit Card CLICK HERE


महत्वपूर्ण सूचना (Important Terms):-

1. इस परीक्षा में उम्मीदवारों को औपबंधिक रूप से प्रवेश की अनुमति दी गयी है और, उम्मीदवारों को निर्गत प्रवेश पत्र में यह स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है। उनकी पात्रता के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय साक्षात्कार/नियुक्ति के समय आवेदन में अंकित तथ्यों की विधिवत जाँच/सत्यापन के पश्चात् किया जा सकेगा।


2. आवेदन में अंकित तथ्य किसी भी समय जाँच के क्रम में अन्यथा पाए जाने की स्थिति में सम्बन्धित उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द की जा सकती है और आयोग की इस परीक्षा अथवा इस परीक्षा सहित आगामी परीक्षाओं में उन्हें भाग लेने से वंचित किया जा सकता है।


3. परीक्षा केन्द्र परिसर जहाँ परीक्षा होनी है, में मोबाईल, ब्लुटुथ, वाई-फाई, गैजेट इलेक्ट्रोनिक पेन, पेजर आदि जैसी इलेक्ट्रोनिक सामग्री अथवा अन्य किसी प्रकार के इलेक्ट्रोनिक संचार उपकरण को लेकर जाना एवं उपयोग वर्जित है। इसकी अवहेलना किए जाने पर आयोग की इस परीक्षा सहित आगामी परीक्षाओं में भाग लेने से वंचित करते हुए अनुशासनिक/दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

Find BPSC Admit Card CLICK HERE

https://onlinebpsc.bihar.gov.in/Main/logout


परीक्षा में जाने से पूर्व इन सभी नियमों को ध्यान से पढ़ ले।


प्रारंभिक (वस्तुनिष्ठ) परीक्षा हेतु :-

अपने साथ प्रवेश पत्र सदैव रखें। इस ई-प्रवेश पत्र को सुरक्षित रखें तथा दिए गए निम्नवत् आवश्यक निर्देश अक्षरशः अनुपालन करें।

कोरोना (Covid-19) महामारी को ध्यान में रखते हुए परीक्षा केन्द्र पर पहुँचने के पहले मास्क लगाना आवश्यक है तथा परीक्षा केन्द्र के मुख्य द्वार पर Social Distancing (दो गज की दूरी) बनाते हुए अपने हाथों को Sanitize कर प्रवेश करेंगे। परीक्षा कक्ष में भी Social Distancing बनाना आवश्यक है।

निर्धारित परीक्षा केन्द्र पर परीक्षा प्रारंभ होने के एक घंटा पूर्व पहुँच जायें। परीक्षा प्रारंभ होने के बाद परीक्षा कक्ष में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जायेगी तथा परीक्षा अवधि की समाप्ति के पूर्व किसी परीक्षार्थी को परीक्षा कक्ष छोड़ने की अनुमति नहीं दी जायेगी चाहे अपना उत्तर पत्रक वीक्षक के पास जमा ही क्यों न कर दिया हो। परीक्षा केन्द्र में अपने निर्धारित स्थान पर ही बैठें। प्रश्न पुस्तिका एवं उत्तर पत्रक पर अंकित निर्देशों को ध्यान पूर्वक पढ़ें तथा उनका अक्षरशः पालन करें।

(i) उत्तर पत्रक (OMR Sheet) में निर्दिष्ट स्थान पर अभ्यर्थी अपने प्रवेश पत्र में अंकित 06 (छः) अंको वाले (Six Digits) रौल नं॰ (Roll No.) को लिखेंगे। किसी भी स्थिति में अपना रजिस्ट्रेशन नं॰ (Registration No.) नहीं लिखेंगे। नियत स्थान पर ही अपना नाम एवं अनुक्रमांक लिखेंगे।

(ii) अभ्यर्थी उत्तर पत्रक (OMR Sheet) में किसी प्रकार का चिन्ह/पहचान अंकित न करें। उत्तर पत्रक में Whitener/Blade/Eraser आदि का प्रयोग वर्जित है।

(iii) उत्तर पत्रक (OMR Sheet) में अंकित अनुदेश के अनुसार प्रत्येक वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के विरूद्व विकल्पों में से केवल एक ही विकल्प (option) को रंगेंगे। उपर्युक्त अंकित निर्देश का अनुपालन नहीं किये जाने की स्थिति में संबंधित अभ्यर्थी के उत्तर पत्रक (OMR Sheet) को अमान्य/रद्द कर दिया जायेगा।

परीक्षा भवन में अपने साथ ब्लू/ब्लैक बॉल प्वाईंट पेन के अतिरिक्त कोई अन्य सामग्री न लायें।
 
वस्तुनिष्ठ परीक्षा के उत्तर पत्रकों (OMR Sheets) में प्रश्नों के उत्तर अभ्यर्थी द्वारा मात्र ब्लू/ब्लैक बॉल प्वाईंट पेन से रंगा जाना है और किसी भी स्थिति में एक बार अंकित उत्तर का बदलाव मान्य नहीं होगा। उत्तर पत्रक में काट-कूट/परिवर्तन या पेंसिल द्वारा अंकित उत्तर को अमान्य कर दिया जायेगा। OMR Sheet एवं Roll Sheet पर Question Booklet Series निश्चित रूप से अंकित करें अन्यथा उनके OMR Sheet का मूल्यांकन नहीं किया जाएगा।

कैलकुलेटर , मोबाईल, ब्लुटुथ वाई-फाई, इलेक्ट्रोनिक पेन, पेजर, स्मार्ट वॉच आदि जैसी इलेक्ट्रोनिक सामग्री तथा Whitener/Blade/Eraser आदि पाये जाने पर संबंधित अभ्यर्थी की उम्मीदवारी रद्द कर दी जायेगी।

(i) यह प्रवेश पत्र विज्ञापन सं० 01/2021 के अंतर्गत कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार के अधीन जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी (बिहार कला एवं संस्कृति सेवा ) प्रारंभिक प्रतियोगिता परीक्षा के अधीन ऑनलाइन आवेदन में आपके द्वारा की गयी प्रविष्टि को सही मानकर जारी किया गया है।

(ii) यह प्रवेश पत्र पूर्णतः औपबंधिक है। पात्रता के संबंध में अंतिम निर्णय साक्षात्कार के समय अंकित तथ्यों से संबंधित कागजातों की विधिवत जाँच/सत्यापन के पश्चात किया जा सकेगा।

(iii) यह प्रवेश पत्र आपकी पात्रता को निर्धारित नहीं करता है। आपके द्वारा ऑनलाईन आवेदन में की गई प्रविष्टि एवं उससे संबंधित कागजात में किसी प्रकार की भिन्नता रहने पर उम्मीदवारी रद्द की जा सकती है।

किसी प्रकार के कदाचार में लिप्त पाये जाने पर संबंधित अभ्यर्थी को परीक्षा से निष्कासित कर दिया जायेगा तथा उसके विरूद्ध बिहार परीक्षा संचालन अधिनियम, 1981 प्रावधानों के अनुसार परीक्षा संयोजक/केन्द्राधीक्षक द्वारा नियमानुसार वैधानिक कार्रवाई की जायेगी।

अभ्यर्थी अपनी फोटोयुक्त पहचान पत्र यथा पैनकार्ड/ आधार कार्ड/ ड्राइविंग लाइसेंस/ वोटर आईo डीo कार्ड/ पासपोर्ट इत्यादि साथ रखेंगे। जिसे परीक्षा केन्द्र पर पहचान के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।

सभी उम्मीदवारों के लिए मास्क/फेस कवर पहनना अनिवार्य है। जिन उम्मीदवारों ने मास्क/फेस कवर नहीं पहना होगा, उन्हें परीक्षा स्थल में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। परीक्षा प्रक्रिया से जुड़े प्राधिकारियों द्वारा, सत्यापन किये जाने पर उम्मीदवारों को मास्क हटाना होगा।

परीक्षा समाप्ति के पश्चात प्रश्न पुस्तिका (Question Booklet) अभ्यर्थी को अपने साथ ले जाने की अनुमति है।

शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

बिहार का पहला 100 प्रतिशत डिजिटल बैंकिंग वाला जिला।


      बिहार का पहला 100% डिजिटल बैंकिंग वाला जिला जहानाबाद बन गया है। यह पहला ऐसा जिला है जहां पर 100% डिजिटल बैंकिंग सुविधा उपलब्ध है यहां पर कुल सक्रिय खाता 99.5 प्रतिशत है अगर करेंट खाता की बात की जाए तो जिले में करीब 14477 खाता है जिसमें से 9663 खाताधारी इंटरनेट बैंकिंग 3352 P.O.S. (Point of sale) 7197 मोबाइल बैंकिंग सेवा का प्रयोग करते हैं।

केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के द्वारा हर राज्य के एक जिले का हुआ चयन।

      रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और केंद्र सरकार के सहयोग से देश के प्रत्येक राज्य में कम से कम एक जिला को 100 प्रतिशत डिजिटल बैंकिंग सेवा वाला जिला बनाने का निर्णय 2019 में लिया गया था। बिहार में इसके तहत जहानाबाद जिले का चयन किया गया हैं।

रविवार, 16 जनवरी 2022

भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य💃

       भारत में नृत्य की जड़ें प्राचीन परंपराओं में है। इस विशाल उपमहाद्वीप में नृत्‍यों की विभिन्‍न विधाओं ने जन्‍म लिया है। जिनमें से प्रत्‍येक का संबंध देश के विभिन्‍न भागों से है। प्रत्‍येक विधा किसी विशिष्‍ट क्षेत्र से संबंधित है। भरत मुनि ने अपनी पुस्तक नाट्यशास्त्र में शास्त्रीय नृत्य का वर्णन किया है।

भारत के कुछ शास्त्रीय नृत्‍य इस प्रकार हैं :-


      भरतनाट्यम् या सधिर अट्टम मुख्य रूप से दक्षिण भारत की शास्त्रीय नृत्य शैली है। इस नृत्यकला में भावम्, रागम् और तालम् इन तीन कलाओ का समावेश होता है। 
  1. भावम् से 'भ', 
  2. रागम् से 'र' और 
  3. तालम् से 'त' लिया गया है। 
इसलिए भरतनात्यम् यह नाम अस्तित्व में आया। यह भरत मुनि के नाट्य शास्त्र (जो ४०० ई.पू. का है) पर आधारित है। वर्तमान समय में इस नृत्य शैली का मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा अभ्यास किया जाता है। इस नृत्य शैली के प्रेरणास्त्रोत चिदंबरम के प्राचीन मंदिर की मूर्तियों से आते हैं।

          कूचिपूड़ी आंध्र प्रदेश, भारत की प्रसिद्ध नृत्य शैली है। यह पूरे दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है। इस नृत्य का नाम कृष्णा जिले के दिवि तालुक में स्थित कुचिपुड़ी गाँव के ऊपर पड़ा, कहां जाता हैं कि यहां रहने वाले ब्राह्मण इस पारंपरिक नृत्य का अभ्यास करते थे।

     ओड़िसी भारतीय राज्य ओडिशा की एक शास्त्रीय नृत्य शैली है। अद्यतन काल में गुरु केलुचरण महापात्र ने इसका पुनर्विस्तार किया। ओडिसी नृत्य को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सबसे पुराने जीवित नृत्य रूपों में से एक माना जाता है। इसका जन्म मन्दिर में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य से हुआ था।

     कथकली मालाबार, कोचीन और त्रावणकोर के आस-पास प्रचलित नृत्य शैली है। यह केरल की एक सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला है। 17वीं शताब्दी में कोट्टारक्करा तंपुरान ने जिस रामनाट्टम का आविष्कार किया था उसी का विकसित रूप है- कथकली। यह रंगकला नृत्यनाट्य कला का सुंदरतम रूप है।

       मोहिनीअट्टम भारत के केरल राज्य के दो शास्त्रीय नृत्यों में से एक है, जो अभी भी काफी लोकप्रिय है केरल की एक अन्य शास्त्रीय नृत्य कथकली भी है। मोहिनीअट्टम नृत्य शब्द मोहिनी के नाम से बना है, मोहिनी रूप हिन्दुओ के देव भगवान विष्णु ने धारण इसलिए किया था ताकि बुरी ताकतों के ऊपर अच्छी ताकत की जीत हो सके।

     कथक नृत्य उत्तर भारतीय शास्त्रिय नृत्य है। कथा कहे सो कथक कहलाए। कथक शब्द का अर्थ कथा को नृत्य रूप से कथन यानी प्रस्तुत करना है। प्राचीन काल मे कथक को कुशिलव के नाम से जाना जाता था। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कथक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण-कथा और नृत्य से था।
कथक के लखनऊ घराने का जनक ईश्वरी प्रसाद को माना जाता है।


       मणिपुरी नृत्य भारत का प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है। इसका नाम इसकी उत्पत्ति स्थल के नाम पर पड़ा है। यह नृत्य मुख्यतः हिन्दू वैष्णव प्रसंगों पर आधारित होता है जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेम प्रसंग प्रमुख है। मणिपुरी नृत्‍य भारत के अन्‍य नृत्‍य रूपों से भिन्‍न है।


    सत्रीया नृत्य (असमिया: সত্ৰীয়া নৃত্য), आठ मुख्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपराओं में से एक है। यह नृत्य असम का शास्त्रीय नृत्य है। वर्ष 2000 में इस नृत्य को भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में सम्मिलित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस नृत्य के संस्थापक महान संत श्रीमनता शंकरदेव हैं।






शनिवार, 15 जनवरी 2022

मिडल क्लास के लड़के की कहानी!! "सफलता यूं ही नहीं मिलती।"

 


       बहुत ही कठिन हालातों से गुजर कर मिलती है कामयाबी और लोग एक पल में ही कह देते हैं इसकी किस्मत ही अच्छी थी.... मिडिल क्लास के सबसे निचले पायदान पर मौजूद लड़के सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे लाखों आकांक्षीयो की कहानी जो B.Ed. MBA, इंजीनियरिंग, मेडिकल एवं अन्य प्रतिष्ठित परीक्षाओं की तैयारी करने में असमर्थ हैं। वो सरकारी जॉब पाने की ओर रुख करते हैं।


उन्हें उनके घरवालों से सिर्फ महीने का मकान किराया, घर के खेत में उपजी धान का चावल एवं गेहूं का आटा, माँ के हाथ का बना आचार, गैस भराने के लिए एवं लुसेंट किताब खरीदने के रुपए ही मिल सकता है।


उनके सामने इन सीमित संसाधनों से महीने निकालने की चुनौती पहले बनी रहती है। इस दौरान खाना बनाने में कितना कम समय खर्च हो इसका भी ध्यान रखना होता है। दाल भात एवं आलु का चोखा जिसे संक्षेप में वह D.V.C. कहते हैं एक ही समय में कैसे बनता है ये सिर्फ इनको पता है। ये उनका पसंदीदा Food Flavor होता हैं।


खाना जल गया हो या सब्जी में नमक कम हो या फिर चावल पका ही न हो, खाते समय सभी का स्वागत🙏 ऐसे किया जाता है मानो किसानों की मेहनत को कद्र करने का ठेका इन्हें ही मिला हो।


मां बाप के दर्द😓 को अपने सपनों🤩 में सहेजना कोई इनसे सीखे। सीखे, इनसे सीखे।

जिस समय नए जमाने के लड़के को बाइक, आइफोन, नई फिल्म, इत्यादि। के आने का इंतजार रहता है उस समय इन्हें खान सर का क्लास, प्रतियोगिता दर्पण, वैकेंसी, रिजल्ट आदि। का इंतजार रहता है।

जहां आज भी समाज में हमे जात-पात, धर्म, संप्रदायिकता का जहर🐍 विद्यमान है वहीं इनके कमरे में एक ही थाली में विभिन्न जाति एवं धर्मों का हाथ निवाले को उठाने के लिए एक साथ मिलता है। इससे बढ़िया समाजिक सौहार्द का उदाहरण कहीं और मिल ही नहीं सकता।


कुल मिलाकर इनका एक ही लक्ष्य है परीक्षा को पास कर मां-बाप को वो सबकुछ देना जिसके लिए वो एक दिन तरसे थे।

मुझे गर्व💪 है कि मैं भी ऐसे लड़कों में से हूं जो अपने सपनो को  मंज़िल तक ले जाने  में सफल होते है।

Application for Assistant Professor -Statement of purpose Nift Online Application Form.



Statement of purpose(SOP)*

Statement of purpose(SOP) not exceeding 1000 words covering the following.

(a) Why do you wish to join NIFT?
(b) Why do you think you are suitable for the job?
(c) How will you bring value to NIFT?
(d) What has been a significant defining experience in your professional life?

      NIFT is such an organization where we can present our artistry in a better way.  Every person is complete and different in himself NIFT provides him a platform so that his entire activity can come out.  As an assistant professor, I understand that I will try to give the best education to my students by creating harmony among them.  Even before NIFT, I have served in many educational institutions but I think NIFT can prove to be a better option for me because here all the students are full of artistry in themselves, they just need a little help.  So that he can fly in the air by spreading his wings and I will give him my best efforts in this work.  Joining NIFT would be like achieving a dream for me because I have never studied in NIFT but during my studies in Arts and Crafts College Patna, I often got the privilege of going to NIFT located near Mithapur.  I remember the Fashion OLYMPIAD competition held in 2014 in which I participated in the Click-O-Mania Photography competition.  Since that competition was held in the NIFT campus, you had to submit your clicked photo.  On that day, I saw NIFT closely and learned, somewhere the urge to join and learn from it awakened in my heart from that day itself.  After doing B.F.A. and M.F.A. today I have got a chance that i can become a part of NIFT.  Whatever campus I get, I will try my best to continuously learn from it and keep teaching it to my students.  

                                                              Thank you. 


        NIFT एक ऐसी संस्था है जहां हम अपनी कलात्मकता को और बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में पूर्ण और सबसे अलग होता है NIFT उसे एक प्लेटफार्म उपलब्ध कराती है ताकि उसकी संपूर्ण गतिविधि बाहर आ सके। एक सहायक प्राध्यापक के रूप में, मैं समझता हूं कि मैं अपने छात्रों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए उन्हें बेहतर से बेहतर शिक्षा देने का प्रयास करूंगा।   NIFT से पहले भी मैं कई शिक्षण संस्थाओं में अपनी सेवा दे चुका हूं लेकिन मुझे लगता है कि NIFT मेरे लिए ज्यादा बेहतर विकल्प साबित हो सकता है क्योंकि यहां पर सभी छात्र अपने आप में संपूर्ण कलात्मकता से भरे होते हैं बस उन्हें थोड़ी सी मदद की जरूरत होती है ताकि वह अपने पंख पसार हवा में उड़ सके और मैं उन्हें इस कार्य में भरसक प्रयास करूंगा। 

      NIFT ज्वाइन करना मेरे लिए एक सपने को पाने जैसा होगा क्योंकि मैंने कभी NIFT में पढ़ाई तो नहीं कि हैं लेकिन कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना में पढ़ाई के दरम्यान अक्सर मीठापुर के पास स्थित NIFT में जाने का सौभाग्य मिलते रहता था। मुझे याद है 2014 में आयोजित फैशन ओलंपियाड प्रतियोगिता जिसमें मैंने क्लिक-ओ-मानिया फोटोग्राफी प्रतियोगिता में शामिल हुआ था। चूंकि वह प्रतियोगिता NIFT परिसर में आयोजित थी इसके अंतर्गत अपनी क्लिक की हुई फोटो को जमा करना था। उस दिन मैंने NIFT को करीब से देखा और जाना, कहीं ना कहीं इसमें शामिल होने एवं सीखने की ललक उसी दिन से मेरे दिल में जागृत हो गई। B.F.A एवं M.F.A. करने के उपरांत आज मुझे मौका मिला है कि मैं NIFT का एक अंग बन सकूं। चाहे मुझे जो भी कैंपस मिले मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं अनवरत इससे सीखता एवं अपने छात्रों को सिखाता रहूं।        

धन्यवाद।

जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी बिहार की परीक्षा की तिथि एवं समय घोषित। District Arts and Culture Officer Bihar's exam date and time declared.

 यदि आप जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी बिहार में ऑनलाइन आवेदन किए हैं और परीक्षा की तिथि, समय एवं जगह का इंतजार कर रहे थे तो आपके लिए बहुत ही अच्छी खबर है बीपीएससी (BPSC) के द्वारा इसके समय एवं परीक्षा के जगह की घोषणा हो गई है।


बिहार लोक सेवा आयोग 

15, नेहरू पथ ( बेली रोड ) , पटना -800001 

आवश्यक सूचना 

        विज्ञापन सं०- 01/2021, के अंतर्गत जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी (बिहार) कला एवं संस्कृति सेवा) के पदों पर चयन / नियुक्ति हेतु सामान्य अध्ययन विषय की प्रारंभिक प्रतियोगिता परीक्षा दिनांक -29.01.2022 (शनिवार) को 12:00 बजे मध्याह्न 02:00 बजे अपराह्न तक पटना जिला मुख्यालय में आयोजित की जायेगी। यह मानते हुए कि सभी उम्मीदवारों द्वारा विज्ञापन में उल्लिखित न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता धारण करने के आधार पर ऑनलाईन आवेदन भरा गया है एवं अर्हित है, के आलोक में प्रारंभिक परीक्षा में शामिल कराया जा रहा है। इस प्रतियोगिता परीक्षा हेतु प्रवेश पत्र परीक्षा से एक सप्ताह पूर्व आयोग के वेबसाईट www.bpsc.bih.nic.in पर उपलब्ध रहेगा, जिसे अभ्यर्थी डाउनलोड कर प्रारंभिक परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। किसी उम्मीदवार को डाक / ईमेल से प्रवेश पत्र नहीं भेजा जाएगा । कम / अधिक उम्र के आधार पर अनर्हित तथा एक उम्मीदवार का दो से अधिक ऑनलाईन आवेदनों की समाहित (Merged) सूची आयोग के वेबसाईट www.bpsc.bih.nic.in पर प्रदर्शित है। किसी उम्मीदवार को अपनी अनर्हता पर आपत्ति हो तो दिनांक 21.01.2022 की संध्या 05:00 बजे तक या उसके पूर्व संगत साक्ष्य के साथ अपना अभ्यावेदन आयोग के ईमेल bpscpat-bih@nic.in पर भेज सकते है । दिनांक 21.01.2022 के बाद प्राप्त आपत्ति अभ्यावेदन पर विचार नहीं किया जायेगा।  किसी भी स्तर पर जाँच में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता धारित करते हुए नहीं पाये जाने की स्थिति में किसी भी उम्मीदवार का आवेदन अस्वीकृत करने / उम्मीदवारी रद्द करने का अधिकार आयोग को सुरक्षित है।

 संयुक्त सचिव - 

सह - परीक्षा नियंत्रक , 

बिहार लोक सेवा आयोग , पटना


      इस परीक्षा में बहुत से ऐसे विद्यार्थी थे जिन्होंने दो बार ऑनलाइन आवेदन कर दिया था वैसे परीक्षार्थियों के रजिस्ट्रेशन नंबर को बीपीएससी के द्वारा मर्ज कर दिया गया है जिसकी पूरी लिस्ट नीचे दी गई है आप इसमें अपना नाम एवं रजिस्ट्रेशन नंबर चेक कर सकते हैं।

    इस परीक्षा के लिए ऐसे योग्य परीक्षार्थी जिनकी उम्र नहीं पूरी हो रही थी उनके नामों की सूची नीचे दी गई है इसमें आप सभी अपना नाम चेक कर सकते हैं।👇👇

Best Wishes for your Exam👍

आपकी परीक्षा के लिए शुभकामनाएं🙌


गुरुवार, 13 जनवरी 2022

اردو زبان۔ उर्दू भाषा।


 उर्दू भाषा

        बिहार में उर्दू भाषा का प्रारम्भ लगभग 13वीं 14वीं शताब्दी के मध्य से माना जाता है। किन्तु इसका विकसित रूप सत्रहवीं शताब्दी में दृष्टिगोचर हुआ। उर्दू भाषा के विकास में अरबी, फारसी, भोजपुरी तथा मगही आदि भाषाओं के साथ सूफीवाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 04 सितंबर 1937 को वायसराय की कार्यकारी परिषद् में एक विधेयक रखा गया जहाँ बिहार की भाषा हिन्दुस्तानी (उर्दू) मानी गई जिससे बिहार की अदालतों में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के स्थान पर उर्दू भाषा और फारसी लिपि को वरीयता दी गई। उर्दू भाषा में बिहार के इतिहास पर प्रथम ग्रंथ नक्शे पायदार, अली मुहम्मद शाह अजीमाबादी के द्वारा लिखा गया। 
      डॉ. अजीमउद्दीन अहमद ने अंग्रेजी कविता शैली सॉनेट का उर्दू भाषा में सर्वप्रथम प्रयोग किया था। गुल-ए-नगमा इनकी कविताओं का संकलन है। सुहेल अजीमाबादी को बिहार में प्रगतिशील उर्दू विचारधारा के मुख्य प्रचारक के रूप में जाना जाता है, जबकि काजी अब्दुल वदीद को उर्दू साहित्य में शोध को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने का श्रेय प्राप्त है। बिहार के विख्यात कवि कलीम आजिज को उर्दू शायरी को नए रूप में सजाने के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। अब्दुल समद के उपन्यास दो गज जमीन को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
      बिहार में वर्ष 1981 ई. में उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया। बिहार सरकार ने वर्ष 1972 में पटना में उर्दू अकादमी का गठन करके उर्दू के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। फुलवारी के संत इमादुद्दीन कलंदर ने आम जन के मार्गदर्शन हेतु सिराते मुस्तकीम नामक पुस्तक की रचना की।

 उर्दू : महत्वपूर्ण तथ्य

  • लिपि  उर्दू नस्तालिक लिपि में लिखि जाती है जो फारसी - अरबी लिपि का रूप है।  
  • व्याकरण उर्दू भाषा का व्याकरण पूर्णत: हिंदी भाषा के व्याकरण पर आधारित है।
  • लेखन उर्दू दाँए से बाँए लिखी जाती है। 
उर्दू के विकास में महत्वपूर्ण व्यक्तित्व 

अमिर खुसरो, मीर साहब, अली मुहम्मद शाह अजीमाबादी, कलीम आजिज आदि। 

उर्दू भाषा की प्रमुख रचनाएं

    रचनाकार                      कृति

राजा राम नारायण              मौन्जू
अब्दुल समद                दो गज जमीन
डॉ० अजीमूदीन              गुल-ए-नगमा


اردو زبان

 بہار میں اردو زبان کا آغاز 13ویں سے 14ویں صدی کے وسط میں مانا جاتا ہے۔  لیکن اس کی ترقی یافتہ شکل سترہویں صدی میں نظر آنے لگی۔  عربی، فارسی، بھوجپوری اور ماگھی جیسی دیگر زبانوں کے ساتھ ساتھ تصوف نے اردو زبان کی ترقی میں اہم کردار ادا کیا۔  04 ستمبر 1937 کو وائسرائے کی ایگزیکٹو کونسل میں ایک بل پیش کیا گیا جس میں بہار کی زبان کو ہندوستانی (اردو) مانا گیا تھا، جس میں بہار کی عدالتوں میں ہندی زبان اور دیوناگری رسم الخط کی جگہ اردو زبان اور فارسی رسم الخط کو ترجیح دی گئی تھی۔  اردو زبان میں بہار کی تاریخ پر پہلا مقالہ نقشے پیدار، علی محمد شاہ عظیم آبادی نے لکھا۔

 ڈاکٹر عظیم الدین احمد نے اردو زبان میں پہلی بار انگریزی شاعری کے انداز کا سانیٹ استعمال کیا۔  گلِ نگمہ ان کی نظموں کا مجموعہ ہے۔  سہیل عظیم آبادی کو بہار میں ترقی پسند اردو نظریے کے مرکزی پرچارک کے طور پر جانا جاتا ہے، جب کہ قاضی عبدالودود کو اردو ادب میں تحقیق کے لیے سائنسی بنیاد فراہم کرنے کا سہرا جاتا ہے۔  بہار کے مشہور شاعر کلیم عزیز کو اردو شاعری کو ایک نئے انداز سے سجانے پر پدم شری ایوارڈ سے نوازا گیا ہے۔  عبدالصمد کے ناول 'دو گج زمین' کو ساہتیہ اکادمی ایوارڈ ملا۔

 بہار میں 1981ء میں اردو کو دوسری سرکاری زبان کا درجہ دیا گیا۔  حکومت بہار نے سال 1972 میں پٹنہ میں اردو اکیڈمی قائم کرکے اردو کی ترقی میں اہم کردار ادا کیا ہے۔  پھلواری کے بزرگ عماد الدین قلندر نے عام لوگوں کی رہنمائی کے لیے سیرت مستقیم کے نام سے ایک کتاب لکھی۔


 اردو: اہم حقائق


 رسم الخط اردو نستعلیق رسم الخط میں لکھا گیا ہے جو فارسی عربی رسم الخط کی ایک شکل ہے۔

 گرامر: اردو زبان کی گرامر مکمل طور پر ہندی زبان کی گرامر پر مبنی ہے۔

 تحریر: اردو دائیں سے بائیں لکھی جاتی ہے۔

 اردو کی ترقی میں اہم شخصیات


 امیر خسرو، میر صاحب، علی محمد شاہ عظیم آبادی، کلیم عزیز وغیرہ۔


 اردو زبان کے اہم کام


 تخلیق کار کریتی۔


 راجہ رام نارائن مونجو

 عبدالصمد دو گز زمین

 ڈاکٹر عظیم الدین گل نگمہ



 

मैथिली भाषा। Maithili language


 मैथिली 

      मैथिली आर्य परिवार की भाषा है जो बिहार के अतिरिक्त पड़ोसी राज्य झारखण्ड एवं पड़ोसी देश नेपाल में भी  बोली जाती है। पहले मैथिली भाषा को मिथिलाक्षर या कैथी लिपि में लिखा जाता था जो बँगला एवं असमिया लिपियों से कुछ समानता रखती थी, परंतु वर्तमान में यह देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।

     मैथिली बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र की भाषा है, जिसका आरम्भ ज्योतीश्वर ठाकुर की रचना वर्ण रत्नाकर से माना जाता है। महाकवि विद्यापति मैथिली साहित्य के महत्वपूर्ण रचनाकार रहे हैं। कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पुरुषपरीक्षा, गोरक्षा विजय, पदावली, आदि। विद्यापति की प्रमुख रचनाएँ हैं।

      मैथिली साहित्य में वैधनाथ मिश्र (नागार्जुन) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनकी कृतियों में पत्रहीन नग्न गाछ, पारो तथा बलचनमा आदि प्रमुख हैं। मैथिली का प्रथम प्रमाण रामायण में प्राप्त होता है, जिसमें मिथिला नरेश राजा जनक की राजभाषा मैथिली थी । 

    22 दिसंबर , 2003 को 92वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत सरकार ने मैथिली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया है। यद्यपि, साहित्य अकादमी द्वारा मैथिली को साहित्यिक भाषा का दर्जा वर्ष 1965 से ही प्राप्त है।

बिहार के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी रचनाएं। Major litterateurs of Bihar and their works.


     रचनाकार                        रचनाएँ  
  • सुरेन्द्र प्रसाद मोहन            बिना डोरी के बंधन
  • निर्मल मिलिन्द।                    गीतिया
  • चन्द्रशेखर श्रीवास्तव             गुलबिया
  • अवधेश्वर अरुण               वज्जिका रामायण
  • बाणभट्ट                        कादम्बरी, हर्षचरित
  • विष्णु शर्मा                         पंचतंत्र
  • चाणक्य।                         अर्थशास्त्र
  • अश्वघोष                  बुद्धचरित, महायान श्रद्धोत्पाद संग्रह 
  • आर्यभट्ट                        आर्यभटट तंत्र
  • मंडन मिश्र                  भाव विवेक, विधि विवेक 
  • ज्योतीश्वर ठाकुर                 वर्ण रत्नाकर
  • विद्यापति    -  कीर्तिलता, कीर्तिपताका, गौरक्षा, विजय भू-परिक्रमा 

  • मुल्ला दाउद                        चंदायन
  • फणीश्वरनाथ रेणु           मैला आँचल, जुलूस, पलटू बाबू रोड 

  • रामधारी सिंह दिनकर - उर्वशी, प्राणभंग, रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, द्वन्द्वगीत, धूप - छाँव, नील कुसुम, सीपी और शंख।

  • बाबा नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र) - पारों बलचनमा, कुम्भी पाक, मिश्र यात्री, वरुण के बेटे बाबा बटेसरनाथ, रतिनाथ की चाची ।

  • राहुल सांकृत्यायन - बुद्धचर्य्या, विनय पिटक दर्शन, दिग्दर्शन । 
  • नारायण पण्डित   हितोपदेश
  • रामवृक्ष बेनीपुरी - आम्रपाली, संघमित्रा, माटी की मूरतें, चिंता के फूल ।

  • डॉ. राजेन्द्र प्रसाद - इंडिया डिवाइडेड, चम्पारण सत्याग्रह, बापू के कदमों में।

  • देवकी नंदन खत्री - चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, नौलखा हार, काजल की कोठरी

  • पं. केशवराम भट्ट                     बिहार बंधु 

  • राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह - कानों में कंगना, बिजली, राम रहीम, पुरुष और नारी, सूरदास, पूरब और पश्चिम, चुम्बन और चाँटा, अपन पराया, धर्म की धुरी ।

  • वाचस्पति मिश्र - भाष्य समिति, ब्रह्मासिद्धि टीका (तत्वसमीक्षा)
  • आचार्य शिवपूजन सहाय - देहाती दुनिया
  • उदय शंकर भट्ट - सागर, लहरें और मनुष्य
  • रांगेय राघव  - कब तक पुकारू
  • अमृत लाल नागर  - बूँद और समुद्र
  • देवेन्द्र सत्यार्थी - ब्रह्मपुत्र
  • लक्ष्मीनारायण लाल - बया का घोंसला, साँप ।
  • शैलेश मटियानी - बोरीवली से बोरीबंदर तक ।
  • राम दरश मिश्र - अलग-अलग वैतरणी 
  • शिव सागर मिश्र - दूब जनम छायी
  • बैजनाथ प्रसाद - गरजते दृष्य बदलती करवटे, कोचवान और रिक्शावाला

  • राजेन्द्र यौधेय          बिसेसरा
        बिहार की गायिका शारदा सिन्हा को लोक गीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए वर्ष 2018 के पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ये बिहार की सबसे प्रसिद्ध गायिका हैं जो भोजपुरी, मगही तथा मैथिली भाषाओं में गीत गाती हैं।

         स्वामी निरंजना नंद सरस्वती को योग के क्षेत्र में योगदान हेतु वर्ष 2017 का पद्म भूषण पुरस्कार दिया गया। 

     अभिनेता मनोज वाजपेयी को फिल्म अलीगढ़ में उत्कृष्ट अभिनय के लिए 10वाँ एशिया पैसिफिक स्क्रीन अवार्ड प्रदान किया गया।

बुधवार, 12 जनवरी 2022

बिहार सामान्य ज्ञान। Bihar General Knowledge.

 


  • बिहार का प्रथम हिन्दी समाचार पत्र बिहार बंधु था जो केशवराम भट्ट के द्वारा वर्ष 1872 में पटना से प्रकाशित हुआ।
  • गुरु प्रसाद सेन के द्वारा वर्ष 1875 में बिहार के पहले अंग्रेजी समाचार पत्र द बिहार हेराल्ड का प्रकाशन किया गया।
  • पृथक बिहार के निर्माण में पत्रिका द बिहारी (वर्ष 1906 से प्रारंभ) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसका प्रकाशन महेश प्रसाद द्वारा किया गया। 
  • बिहार का पहला हिन्दी दैनिक समाचार पत्र सर्व हितैषी वर्ष 1880 में पटना से प्रकाशित हुआ।  
  • वर्ष 1917 में द बिहारी के स्थान पर सर्चलाइट का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, जिसके प्रथम संपादक सैयद हैदर हुसैन थे। सर्चलाइट ने सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा भारत छोड़ो आंदोलन में भारतीयों के पक्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
  • दरभंगा से आर्यावर्त समाचार पत्र का प्रकाशन होता था। 
  • बिहार राज्य का पहला उर्दू समाचार पत्र नुरुल अन्वार था, जिसे आरा से मोहम्मद हाशिम द्वारा प्रकाशित किया जाता था।
  • दरभंगा से एक साहित्यिक पत्रिका किरण का प्रकाशन होता था। 
  • असहयोग आंदोलन के दौरान मजहरूल हक द्वारा पटना से द मदरलैण्ड का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया।  
  • बिहार के साहित्यकार एवं पत्रकार प्रो. अमलेंदु शेखर पाठक को मैथिली साहित्य में वर्ष 2017 के बाल साहित्य पुरस्कार हेतु चुना गया है। उन्हें यह पुरस्कार चर्चित उपन्यास लालगाछी हेतु प्रदान किया गया है।  

  • चंदन कुमार झा का चयन उनके कविता संग्रह धरतीस अकास धरि के लिए युवा पुरस्कार प्रदान किया गया।

  • मिथिला चित्रकला की कलाकार श्रीमती बौआ देवी को वर्ष 2017 में पदम श्री पुरस्कार प्रदान किया गया है। ये मिथिला चित्रकला से लगभग 60 वर्षों से जुड़ी हुई हैं।
  • 2021 में दुलारी देवी को बिहार की मशहूर लोककला मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। कर्पूरी देवी और महासुंदरी देवी के यहां बर्तन धोने व झाड़ू-पोंछा करने के दौरान ही उन्होंने पेंटिंग सीखना शुरु किया था। उनका जीवन और इस मुकाम तक पहुंचना किसी कहानी के जैसा ही है।

वज्जिका भाषा Vajjika language

 

वज्जिका 

       वज्जिका उत्तर बिहार के उस क्षेत्र की भाषा है, जहाँ भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध की जन्म भूमि एवं कर्म भूमि थी तथा विश्व के प्रथम गणतंत्र वज्जि संघ की स्थापना हुई थी। राहुल सांकृत्यायन ने इस भाषा को वज्जिका नाम दिया। उन्होंने अपने लेख मातृ भाषाओं की समस्या में भोजपुरी, मैथिली, मगही और अंगिका के साथ-साथ वज्जिका को हिन्दी के अन्तर्गत जनपदीय भाषा के रूप में स्वीकार किया। 
       प्राचीन काल के वज्जि संघ के प्रदेश को वज्जिकांचल कहा जाता है। वज्जिकांचल क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को वज्जिका की संज्ञा दी गई है। वज्जिका भाषा मुजफ्फरपुर, वैशाली, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, चम्पारण, दरभंगा, शिवहर तथा मधुबनी सहित नेपाल के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। 

अंगिका भाषा Angika Language


       अंगिका शब्द अंग से बना है। अंग प्रदेश (वर्तमान में भागलपुर के आस-पास का क्षेत्र) में बोली जाने वाली भाषा को अंगिका नाम दिया गया है, जो भारतीय आर्य भाषा है। बिहार में अंगिका भाषा भागलपुर, मुंगेर, खगड़िया, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार एवं अररिया जिले में बोली जाती है। अंगिका मैथिली की ही एक उप बोली है, जिसे भागलपुरी के नाम से भी जाना जाता है। अंगिका भाषा का प्राचीनतम उल्लेख वामन जयादित्य द्वारा रचित ग्रंथ काभिकावृति में मिलता है। 
      जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा इस भाषा को छिका छिकी की संज्ञा दी गयी। अंगिका का पहला नाटक नरेश पाण्डेय चकोर द्वारा लिखा गया था, जिसका नाम सर्वोदय समाज है। डॉ. तेज नारायण कुशवाहा ने अंगिका बोली का इतिहास लिखकर इस भाषा को लोकप्रिय बनाने में बहुमूल्य योगदान दिया है। अंगिका भाषा में निर्मित पहली फिल्म खगड़िया वाली भौजी वर्ष 2007 में प्रदर्शित की गई। 
अंगिका भाषा की रचनाएँ 

      रचनाकार                            कृति 
  • नरेश पाण्डेय                            विशाखा 
  • परशुराम ठाकुर।                  भाग्य - रेखा
  • अमरेन्द्र।                           ढोल बजै दै , बतुरू के तुतरु 
  • अभयकांत चौधरी                हमरो जीवन के हिलकोर 
  • जगदीश पाठक।                    तीरथ जतरा     
 

मगही maghahi.

 


       मगही भाषा का विकास मगधी से हुआ है जो प्राचीन काल में मगध साम्राज्य की प्रमुख भाषा थी। इसे धार्मिक भाषा के रूप में भी मान्यता प्राप्त थी क्योंकि महावीर और गौतम बुद्ध दोनों उपदेशकों ने मगधी को अपनी उपदेश की भाषा बनाया था। बुद्ध ने भाषा की प्राचीनता के प्रश्न पर स्पष्ट कहा था कि सा मागधी मूल भाषा अतः मगही मूलतः मगधी भाषा से विकसित हुई है। बिहार राज्य में यह भाषा पटना, गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, नावादा, नालंदा, अरवल, लखीसराय, शेखपुरा एवं जमुई जिले में बोली जाती है। मगही भाषा के प्रथम कवि ईशान है। महाकवि योगेश आधुनिक मगही के सबसे लोकप्रिय कवि माने जाते हैं।

       मगही का पहला महाकाव्य गौतम महाकवि योगेश द्वारा वर्ष 1960-62 के मध्य लिखा गया। मगही भाषा में विशेष योगदान हेतु वर्ष 2002 में डॉ. राम प्रसाद सिंह को साहित्य अकादमी भाषा सम्मान प्रदान किया गया। आधुनिक युग में मगही भाषा के विकास में लक्ष्मी नारायण पाठक का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सुरेश दुबे को मगही भाषा का शेली कहा जाता है। मगही भाषा के रचनाकारों में हरिहर पाठक, रामरहस्य साहेब, भैयानंद, बाबा कदमदास, चतुर्भुज मिश्र, श्रीधर मिश्र, वेदनाथ, जलगोविन्द दास आदि प्रमुख हैं। 

सिद्ध वंश की प्रारम्भिक रचनाएँ मगधी भाषा में है।

भोजपुरी Bhojpuri.

 




 भोजपुरी 

          बिहार के प्राचीन जिले भोजपुर के नाम पर भोजपुरी शब्द का निर्माण हुआ है। भोजपुरी आर्य परिवार की भाषा है, जिसका इतिहास 7 वीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है। भोजपुरी बिहार राज्य के उत्तरी एवं पश्चिमी क्षेत्रों (बक्सर, आरा, सारण, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, रोहतास) जिलों में बोली जाती है तथा पड़ोसी राज्य पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी बोली जाती है। 

       17 वीं शताब्दी में धरतीदास एवं दरियादास ने भोजपुरी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आधुनिक युग में बाबू रघुवीरनाथ, महेन्द्र मिश्रा एवं भिखारी ने इस भाषा को नई दिशा प्रदान की। 


भोजपुरी भाषा की प्रमुख रचनाएँ 

      

     रचनाकार                                      कृति 

  • भिखारी ठाकुर                                 बिदेसिया
  • हिमांशु श्रीवास्तव                             नदी फिर बह चली     
  • मधुकर मिश्र                                   अर्जुन जिंदा है
  • पं. केदारनाथ मिश्र प्रभात।                कैकेयी , ऋतुवंश , ज्वाला 
           (भोजपुरी भाषा के महाकवि) 
  • मनोरंजन जी                                फिरंगिया, बरोहिया


बिहार की क्षेत्रीय भाषाएं


       भोजपुरी भाषा भारत के अलावा मॉरीशस, त्रिनीडाड एंड टोबैगो, फिजी, गुयाना तथा सूरीनाम आदि देशों में भी बोली जाती है। वर्तमान में भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने हेतु प्रयास किए जा रहे है।

8वीं अनुसूची, 22 भाषा 

प्रारंभ = 14 

21वाँ संविधान संशोधन (1967) = 1 सिंधी 

71वाँ संविधान संशोधन (1992) = 3 (नेपाली, मणिपुरी, कोंकणी) 

92वाँ संविधान संशोधन (2003) = 4 (बोडो, डोगरी, मैथली, संथाली)  

Total = 22 भाषा 

Note :- राजस्थानी, भोजपुरी तथा अंग्रेजी को 8वीं अनुसूची में नहीं रखा गया है। 

शास्त्री (Classical) भाषा :- 1500BC 

1500 ईसा पूर्व की भाषाओं को शास्त्रीय भाषा कहा जाता है। 2004 में इन्हें मान्यता दिया गया। इनकी कुल संख्या 06 है।  कन्नड़, तेलगु, तमिल, मलयालम, उड़िया, संस्कृत 

Note:- कन्नड़, तेलगु, तमिल, मलयालम (South walor charo) को संयुक्त रूप से द्रवित भाषा कहा जाता हैं। 

  • पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान की ब्राहुई भाषा भारत के द्रवित भाषा से मेल खाती है।

मधुश्रावणी मधुबनी एवं तीज बिहार। Madhushravani Madhubani and Teej Bihar.

 


मधुश्रावणी 

             मधुश्रावणी बिहार राज्य में स्थित मिथिला के आस-पास के क्षेत्रों में मनाया जाने वाला लोक पर्व है जो सावन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी से आरम्भ होकर शुक्ल पक्ष की तृतीया को सम्पन्न होता है। मिथिला संस्कृति की यह एक अनूठी परम्परा और भक्ति का व्रत है, जिसका नवविवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व है। इस व्रत में जहाँ एक ओर नवविवाहित महिला अपनी ससुराल से आये सामान का उपयोग कर वहाँ की आर्थिक स्थिति तथा पहनावे की जानकारी लेती हैं, वहीं दूसरी ओर इस व्रत के दौरान कथा के माध्यम से उन्हें दाम्पत्य जीवन की शिक्षा दी जाती है।

तीज 

        तीज हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है जिसमें महिलाएँ वैवाहिक सम्बंधों को सुदृढ़ बनाने के लिए तथा परिवार के समग्र कल्याण के लिए निर्जला व्रत करती हैं। यह व्रत सर्वप्रथम माता पार्वती ने भगवान शिव (शंकर) के लिए रखा था। इसीलिए सौभाग्यवती महिलाएँ अपने सुहाग को अखण्ड बनाये रखने के लिए अथवा जो अविवाहित युवतियाँ हैं वे अपनी इच्छानुसार वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत रखती हैं।

पितृ पक्ष मेला गया, बिहार। Pitru Paksha Mela Gaya, Bihar.

 

       
        पितृ पक्ष मेला कृष्ण पक्ष की प्रथम तिथि से अमावस्या तक अर्थात् शारदीय नवरात्र से एक पखवाड़ा पूर्व पन्द्रह दिनों की अवधि के लिए इस मेले का आयोजन होता है, जिसे पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है। बंगाल में इसे महालया के नाम से भी जाना जाता है। इस मेले में देश-विदेश से आकर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने पूर्वजों को स्मरण कर उनके मोक्ष हेतु श्राद्ध (पिण्डदान) करते हैं।
      
       ऐसी मान्यता है कि यहाँ पिण्डदान करने से दिवंगत आत्मा को स्वर्ग मिलता है। यह पिण्डदान फल्गु नदी के किनारे विष्णुपद मन्दिर में किया जाता है। वैसे तो गया में पिण्ड दान वर्ष भर होता है परन्तु पितृ पक्ष में किये गये पिण्ड दान का विशेष महत्व है।

मंगलवार, 11 जनवरी 2022

बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ का मेला बक्सर, बिहार। Baba Brahmeshwar Nath's Fair Buxar, Bihar.

     

          बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ का मेला


          बिहार राज्य के बक्सर जिले में स्थित ब्रह्मपुर धाम के नाम से प्रसिद्ध बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ जी का मंदिर प्राचीनतम् मंदिरों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि, बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ जी का चर्चित तीर्थ स्थल भगवान शंकर के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर का दरवाजा पश्चिम मुखी है जबकि अधिकतर शिवमंदिरों का दरवाजा पूरब में होता है। यह मंदिर वर्ष में दो बार खुलता है। यहाँ शिवरात्रि एवं वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को भव्य मेले का आयोजन होता है। यह मेला वृहद पशु मेला माना जाता है, जहाँ देश के विकसित नस्ल के पशुओं की खरीद-बिक्री वृत पैमाने पर की जाती है।

        ऐसी मान्यता हैं की इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान ब्रह्मा ने किया था। वैसे नाम से भी काफी हद तक ये मालूम भी चल रहा है की ब्रह्मपुर का मतलब ब्रह्मा की नगरी। ऐसा कहा जाता है की एक बार मुस्लिम शासक गजनवी इस मंदीर को तोड़ने के लिया आया। यहाँ लोगो ने उसे ऐसा करने से मना किया और चेतावनी दी की अगर ऐसा करोगे तो भगवान शिव की तीसरी आँख खुल सकती है और वो तुम्हे नाश कर देंगे क्यों की ये मंदिर कोई व्यक्ति विशेष द्वारा निर्मित नहीं है बल्कि इस मंदिर का शिव लिंग ज़मीन से खुद निकला है और ऐसा चमत्कार है की ये हमेशा बढ़ते रहता है। इस पर गजनवी ने कहा की मुझे ऐसे भगवांन पर विश्वास नहीं है अगर वो सच में दुनिया में है तो रात भर में मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम की तरफ हो जाये (जैसा की हरेक शिव मंदिर का द्वार पूरब की तरफ ही होता है ) फिर मैं भी मान लूँगा और फिर कभी हम लोग दुबारा नहीं लौटेंगे।
         ऐसा कहा जाता है अगले सुबह में जब गजनवी मंदिर तोड़ने आया तो देखा की इस मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम में हो गया था और गजनवी देख के हद्प्रद रह गया था। आज भी इस मंदिर का द्वार पश्चिम की तरफ ही है और प्रमाण है की इस मंदिर के शिव लिंग का आकार समय-समय पर बड़ा ही होते जा रहा है। इस मंदिर को लोग बड़ा ही पवित्र मानते है और अलग जगह के लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु जरुर आते है। यहाँ पर लोग आस्था के साथ अपनी शादी भी करवाते है।


How to reach Brahmpur Dham :👇

Nearest railway station : Raghunath pur (which is only 4 k.m from shivalaya )
Nearst highway : NH 84 which goes through Brahmpur.
Pin code – 802112

राजगीर महोत्सव एवं मलमास मेला। Rajgir Festival and Malmas Fair.

राजगीर महोत्सव 

       प्राकृतिक धरोहरों एवं दृश्यों को अपने आँचल में समेटे तथा नैसर्गिक खूबसूरती का प्रतीक राजगीर न सिर्फ भारत वर्ष में बल्कि वैश्विक पर्यटन के मानचित्र पर भी प्रमुखता से प्रतिष्ठित है। यह नगरी भारतवर्ष के उन मनोरम पर्यटक स्थलियों में से एक है, जहाँ हर दिन बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते रहते हैं। इन्हीं पर्यटकों को आकर्षित करने एवं राजगीर की प्राकृतिक धरोहरों तथा विरासतों से वैश्विक जन-मानस को रू-ब-रू कराने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष राजगीर महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

         राजगीर महोत्सव ऐतिहासिकता एवं वैज्ञानिकता, परंपरा एवं आधुनिकता तथा ग्राम्य एवं नगरीय सामाजिक जीवन की संस्कृतियों का अद्भुत संगम हैं। यह महोत्सव अनेकता में एकता का संदेश देता है। जहाँ एक तरफ इस तरह के आयोजनों से देश एवं राज्य की प्रतिष्ठा बढ़ती है, वहीं दूसरी ओर पर्यटन उद्योग का विकास होने से लोगों के लिए रोजगार के नये-नये अवसर भी उत्पन्न होते हैं। 

          पूर्व में राजगीर महोत्सव तीन दिवसीय आयोजन हुआ करता था, परन्तु इसकी महत्ता एवं लोकप्रियता को देखते हुए इसे बहु दिवसीय (17 दिन) कर दिया गया है। पर्यटन विकास निगम एवं भारतीय नृत्य कला मन्दिर के सौजन्य से होने वाले इस महोत्सव का नाम राजगीर नृत्य महोत्सव रखा गया। वर्ष 1989 में इसका नाम राजगिरी नृत्य महोत्सव कर दिया गया। कुछ अपरिहार्य कारणों से वर्ष 1989 से वर्ष 1994 तक इस महोत्सव का आयोजन नहीं हो सका, परन्तु वर्ष 1995 से इस महोत्सव को पुनः प्रारंभ कर दिया गया।

मलमास मेला 

      हिन्दू पंचांग के अनुसार, 32 माह एवं 16 दिन के पश्चात् अर्थात् प्रत्येक तीसरे वर्ष एक मास अधिक होता है, जिसे अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। इस मास में राजगीर बैकुण्ठ धाम बन जाता है । इस दौरान 33 करोड़ देवी-देवता राजगीर में निवास करते हैं। मलमास के दौरान मांगलिक कार्य वर्जित होते है। इस मास में भगवान शिव और विष्णु की अराधना फलदायी मानी जाती है।

रविवार, 9 जनवरी 2022

मंदार महोत्सव भागलपुर प्रमंडल के बांका जिला, बिहार। Mandar Festival Bhagalpur Division's Banka District, Bihar.

 

मंदार महोत्सव 

        बिहार राज्य के भागलपुर प्रमण्डल एवं बांका जिले में स्थित मंदार पर्वत के समीप मकर संक्रांति के अवसर पर पाँच दिवसीय मंदार महोत्सव का आयोजन होता है। महाभारत की कथा में वर्णित है कि समुद्र मंथन के दौरान मंदार पर्वत को ही मथनी बनाया गया था। इसलिए इस पर्वत को देवताओं की जीत और दानवों के पराजय के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। 

      पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने मधु, कैटभ नामक राक्षसों को पराजित कर उसका वध किया और मधुसूदन कहलाये। मौत से पहले इन राक्षसो ने अपने संहारक भगवान विष्णु से यह वरदान लिया था कि प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के दिन वे उसे दर्शन देने मंदार आया करेंगे। उनकी इस इच्छा को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और कहा कि मैं प्रत्येक वर्ष मकर सक्रांति का अवसर पर यहां आया करूंगा। यही कारण है कि यहाँ प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें मधुसूदन भगवान की प्रतिमा को बौंसी स्थित मन्दिर से मंदार पर्वत तक की यात्रा करायी जाती है।

देव महोत्सव, औरंगाबाद बिहार। Dev Mahotsav, Aurangabad Bihar.

देव महोत्सव 

       बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित देव नामक ग्राम में एक प्राचीन सूर्य मन्दिर है जो हिन्दु धर्मावलम्बियों के लिए आस्था का प्रसिद्ध केन्द्र है। विशेषतः छठ व्रत में आस्था रखने वाले मगधवासियों के लिए इस सूर्य मन्दिर का बहुत अधिक महत्व है।

        यह सूर्य मन्दिर एक बड़े जलकुण्ड के तट पर स्थित है, जिसमें स्थापित सूर्य मूर्ति तीन रूपों में दिखाई पड़ती है। यहाँ सूर्य की मूर्ति सात घोड़े वाले रथ पर सवार है। साथ ही पीछे सूर्य की अरूणाभ प्रस्फुटित हो रही है। वर्ष 2005 से छठ व्रत के मौके पर जिला प्रशासन की ओर से देव महोत्सव का आयोजन भी होता है। ऐसे महोत्सव राज्य सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित किये जाते हैं। इस महोत्सव में मगध क्षेत्र में हुए विकास तथा मगध की सांस्कृतिक परम्परा का बहुत सुन्दर प्रदर्शन होता है। इससे देव समारोह में शामिल होने वाले लोगों को मगध की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक मान्यताओं की जानकारी मिलती है। यहाँ कला एवं संस्कृति विभाग, पर्यटन विभाग, कृषि विभाग तथा सूचना एवं जन-सम्पर्क विभाग के स्टॉलों के साथ-साथ कलाकारों का उत्तम सांस्कृतिक प्रदर्शन भी किया जाता है।

शुक्रवार, 7 जनवरी 2022

वाणावर महोत्सव जहानाबाद बिहार। Vanavar Festival Jehanabad Bihar.

 

वाणावर महोत्सव

        पर्यटन के मानचित्र पर यदि देखा जाये तो यह जहानाबाद जिले का गौरवशाली अतीत है। वाणावर को इतिहास में बराबर के नाम से भी जाना जाता है। 

     वाणावर पहाड़ी समूह प्राचीन मगध साम्राज्य के गौरवमयी विरासत का ही एक प्रतीक है, जिसके अन्तर्गत वाणावर एवं नागार्जुनी पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं। वैसे तो इन पहाड़ी समूह में मूर्तिशिल्प, भित्तिचित्र एवं ललितकला के नायाब नमूने मिलते हैं परन्तु इस पहाड़ी समूह का सर्वप्रमुख आकर्षण यहाँ की गुफाएँ हैं। इसी गुफा के समीप सिद्धेश्वरनाथ मन्दिर के दक्षिण में पतालगंगा नामक जलाशय स्थित है। ग्रेनाइट की शैलों से निर्मित ये गुफाएँ लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व बनायी गयी थीं, जिनका अलंकरण एवं उच्च कोटि की पॉलिस इसके बिल्कुल नवीन होने का एहसास दिलाते हैं।


        सावन के महीने में यहाँ एक माह तक श्रावणी मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में लोग आते हैं। सर्दी में कड़ाके की ठंड के बीच भी तीन चार माह तक विदेशी पर्यटकों और बौद्ध उपासकों से वाणवर का यह पहाड़ी इलाका गुलजार रहता है। श्रीलंका, म्यांमार, अमेरिका, जापान, भूटान, सिक्किम, चीन, आदि। देशों से बौद्ध उपासक यहाँ आते हैं। 
       वाणावर महोत्सव के माध्यम से ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों को प्रसिद्धि मिली। प्रारम्भ में यह महोत्सव दो दिनों तक ही चला, लेकिन महीनों चले प्रचार-प्रसार का नतीजा रहा कि, बोधगया और राजगीर आने वाले पर्यटकों का ध्यान इस ओर गया। सही मायने में इसके बाद से ही विदेशी पर्यटकों के यहाँ आने का सिलसिला शुरू हुआ।