बुधवार, 30 जून 2021

S-5 विद्यालय में स्वास्थ्य, योग एवं शारीरिक शिक्षा (Health, Yoga and Physical Education in School) Hindi and English Notes D.El.Ed. 2nd Year B.S.E.B. Patna.

 

S-5 

विद्यालय में स्वास्थ्य, योग एवं शारीरिक शिक्षा 

संदर्भ 

               बच्चों के विकास के दृष्टिकोण से शारीरिक शिक्षा एक महत्वपूर्ण आयाम है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा दीर्घकालिक विकास के लक्ष्यों की कार्यसूची 2030 में खेलकूद को दीर्घकालिक विकास के लिए समर्थ बनाने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक माना गया है, तथा वैश्विक स्वास्थ्य, शिक्षा तथा सामाजिक समावेश से जुड़े उद्देश्यों की प्राप्ति में खेलकूद के बढ़ते योगदान को स्वीकार किया गया है। गुणवत्तापूर्ण खेलकूद सेवाओं तक पहुंच को अब सभी के लिए मूल अधिकार के रूप में माना जाता है। अतः विद्यालयों में नियमित खेलकूद का आयोजन, बच्चों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने का स्वाभाविक विकल्प है। आनन्ददायी गतिविधियाँ जो बच्चों को भौतिक संसार से एक सकारात्मक संबंध के अवसर प्रदान करती हैं, शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों में शामिल होनी ही चाहिए। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से बच्चे विभिन्न प्रकार की शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने के अवसर प्राप्त करते हैं तथा अवधारणाओं तथा कौशलों को विकसित कर पाते हैं जो उन्हें अपने पसन्द के खेल में हिस्सा लेने तथा अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करता है। यह उन्हें आनन्द तो देता ही है साथ ही साथ भावी जीवन में सकारात्मक प्रतिस्पर्धा के लिए भी तैयार करता है। इनके अतिरिक्त शारीरिक शिक्षा, स्वयं के प्रबंधन के कौशलों, सामाजिक तथा सहयोगात्मक कौशलों के विकास का स्वाभाविक मंच तथा अवसर भी प्रदान करता है। खेलकूद बच्चों में चरित्र निर्माण की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। यह अन्य शैक्षिक क्षेत्रों में भी बेहतर परिणामों के लिए वांछित परिस्थितियाँ तैयार करता है। विशेषकर शारीरिक शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी आदतों के विकास, टीम भावना, लोच (Softness) तथा संकल्प को दृढता प्रदान करता है। इसलिए स्वास्थ्य तथा शारीरिक शिक्षा से जुड़ी गतिविधियों के विद्यालयों में आयोजन का उद्देश्य बच्चों में समझ, नजरिये व पोषण, स्वास्थ्य व स्वच्छता से जुड़े व्यवहारों को बेहतर बनाने से होना चाहिए।इनके सफल आयोजन से न केवल व्यक्ति बल्कि परिवार तथा समाज के स्तर पर भी स्वास्थ्य में सुधार तक पहुँचने में सहायता मिलती है। इसके लिए विद्यालय में केवल प्रधानाध्यापक ही नहीं बल्कि सभी शिक्षकों को अपनी समझ स्पष्ट करते हुए वांछित तैयारी करनी होगी। सभी को जहाँ एक ओर अपने कौशलों को विकसित करने के लिए कार्य करना होगा वहीं दूसरी ओर विद्यालय में इन आयोजनों के लिए विभिन्न संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कार्य करना होगा। बिहार में खेलकूद तथा शारीरिक शिक्षा के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए इस पाठ्यक्रम में दो पहलुओं को शामिल किया गया है 

1. विद्यालयों में खेलकूद तथा शारीरिक शिक्षा विषय के क्षेत्र में, समझ तथा व्यवहार में प्रतिमान विस्थापन की आवश्यकता।

 2 विद्यालय के संपूर्ण वातावरण का अनुकूलन, जिससे खेलकूद तथा शारीरिक शिक्षा को शिक्षण अधिगम की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में शामिल किया जा सके क्योंकि यह बच्चे के सर्वागीण विकास में योगदान देता है।

उद्देश्य 

इस पाठ्यक्रम पर आधारित विषयवस्तु के शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

  • स्वास्थ्य तथा स्वच्छता की अवधारणा को शारीरिक शिक्षा तथा वर्तमान विद्यालयी वातावरण के संदर्भ में समझ सकेंगे।
  • व्यक्तिगत तथा पर्यावरणीय स्वच्छता, साफ-सफाई, प्रदूषण, सामान्य बीमारियों तथा विद्यालय एवं समुदाय में इनके रोकथाम तथा नियंत्रण के उपायों पर चिन्तन कर पाएंगे। 
  • खेलकूद के माध्यम से बच्चे के सर्वांगीण विकास की अवधारणा को समझ पाएँगे। 
  • एथेलेटिक क्षमताओं से जुड़े गति के मूल सिद्धान्तों तथा मूल कौशलों को जान पाएँगे जो कि विभिन्न खेलकूद तथा विद्यालय में इन कौशलो को छात्रों तक पहुँचाने के लिए आवश्यक है।
  • समावेशी खेलकूद तथा खेल आधारित गतिविधियों को पाठ्यचर्या से जोड़ने के लिए वांछित कौशलों तथा तकनीकों का विकास करने में सक्षम हो पाएँगे। 
  • उच्च प्राथमिक स्तर पर सुझाए गए मूल योगासनों तथा ध्यान केन्द्रन विधियाँ सीख व समझ पाएँगे 
          सीखे गए मूल योगासनों तथा ध्यान केन्द्रन विधियों के माध्यम से छात्रों को शान्त तथा सहज होने के लिए विभिन्न कौशलों को सीखने तथा इनका उपयोग दैनिक जीवन में तनावमुक्त रहने में सहायता प्रदान कर पाएंगे।


S-5

Health, yoga and physical education in school

reference

      Physical education is an important dimension from the point of view of development of children. The 2030 Agenda for Sustainable Development Goals by the United Nations recognizes sport as an important enabler of sustainable development, and recognizes the growing contribution of sport to the achievement of global health, education and social inclusion goals. is. Access to quality sports services is now considered as a fundamental right for all. Therefore, organizing regular sports in schools is a natural option to ensure all round development of children. Enjoyable activities that provide opportunities for children to have a positive relationship with the physical world must be included in the objectives of physical education. Through physical education, children get opportunities to engage in a variety of physical activities and develop concepts and skills that motivate them to participate in the sport of their choice and perform well. It not only gives them joy but also prepares them for positive competition in future life. In addition to these, physical education also provides a natural platform and opportunity for the development of self-management skills, social and cooperative skills. Sports are also important from the point of view of character building in children. It creates desired conditions for better results in other educational fields as well. In particular, physical education provides strength to the development of health habits, team spirit, softness and determination. Therefore, the purpose of organizing activities related to health and physical education in schools should be to improve understanding, attitudes and behaviors related to nutrition, health and hygiene in children. Helps to reach improvement in health. For this, not only the headmaster in the school but all the teachers will have to make the desired preparation by clarifying their understanding. While everyone will have to work to develop their skills on the one hand, on the other hand, work will have to be done to ensure the availability of various resources for these events in the school. Keeping in view the context of sports and physical education in Bihar, two aspects have been included in this course.


1. Need for paradigm shift in understanding and practice in the field of sports and physical education in schools.


2 Adaptation of the overall school environment, so as to include sports and physical education as an important feature of teaching-learning as it contributes to the all-round development of the child.


an objective

Following are the objectives of teaching the content based on this course:-
  • Understand the concept of health and hygiene in the context of physical education and the present school environment.
  • Reflect on personal and environmental hygiene, sanitation, pollution, common diseases and measures for their prevention and control in school and in the community.
  • Through sports, you will be able to understand the concept of all round development of the child.
  • Get to know the fundamentals of speed and the core skills associated with athletic abilities that are needed to pass these skills on to students in various sports and schools.
  • Be able to develop the desired skills and techniques to integrate inclusive sports and sports based activities into the curriculum.
  • Learn and understand the basic yogasanas and meditation techniques suggested at the upper primary level
          Through the core yoga Asanas and meditation techniques learned, students will be able to learn and use various skills to be calm and comfortable and help them stay stress-free in daily life.

S-4, स्वयं की समझ (Understanding the Self) Hindi & English Notes. D.El.Ed. 2nd Year. B.S.E.B. Patna.




 S-4 

स्वयं की समझ

संदर्भ 

           स्वयं या सेल्फ (Self) को हम अपने आंतरिक चिंतन से लेकर बाह्य व्यवहार के स्रोत के तौर पर समझा सकते हैं। इस संदर्भ में शिक्षकों को यह समझना जरूरी है कि एक शिक्षक या शिक्षिका के तौर पर उनका जो व्यक्तित्व निर्मित होता है उसमें उनके जीवन अनुभव, व्यक्तिगत सोच एवं सामाजिक मान्यताएं भी शामिल रहते है और इन सब के साथ वे अपनी कक्षाओं में शिक्षण का कार्य करते है। अतः इनकी व्यापक समझ हर शिक्षक को होनी चाहिए ताकि वह अपनी कक्षा-शिक्षण को प्रभावी बनाने में इनका सकारात्मक उपयोग कर सके। विद्यालय में हर शिक्षक की जो छवि बनती है, उसमें उसके तथा उसके काम के प्रति बाकि लोगों को धारणाओं का भी योगदान होता है। तभी तो किसी विद्यालय के हर शिक्षक को एक जैसा नहीं पाते है  हर किसी में कुछ ऐसी विशिष्टताएं होती है जो उसे एक अलग पहचान देती है। लेकिन अक्सर यह होता है कि अधिकतर शिक्षक स्वयं अपनी क्षमताओं के बारे में ही अनभिज्ञ रहते हैं। साथ ही उनमें कई ऐसे पूर्वाग्रह (Prejudice) भी होते है जो उनके शिक्षण और बच्चों की शिक्षा को नकारात्मक तौर से प्रभावित करते हैं। अतः आवश्यकता है कि हर शिक्षक या शिक्षिका स्वयं को पहचाने, अपने कार्यों को परखे और स्वं को सँवारे। यह विषयपत्र ऐसे अवसरों को प्रस्तुत करने का प्रयास है। यह अपेक्षा है कि सभी प्रशिक्षु अपने शिक्षण कार्य से सम्बधित विभिन्न पहलुओं के बारे में चिंतन-मनन कर पाएँगे। साथ ही, एक व्यक्ति के तौर पर अपनी धारणाओं एवं विशेषताओं का विश्लेषण कर सकेंगे। इस विषय में शिक्षक द्वारा विद्यालय में किये जानेवाले हर कार्य के ऊपर सोचना तथा उससे शिक्षक के स्वयं के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका विश्लेषण शिक्षक स्वयं कर पाए, ऐसी क्षमता को उसमें विकसित एवं सम्बर्धित (Related) करने का प्रयास इस विषयपत्र के माध्यम से किया जाएगा।

उद्देश्य

 इस पाठ्यक्रम पर आधारित विषयवस्तु के शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है:-

  • प्रशिक्षुओं को एक व्यक्ति के तौर पर अपनी क्षमता, प्रतिभा, चिंतन, धारणा तथा अभिवृति (Attitude) को पहचानने में मदद करना।

  • प्रशिओं को अपने तथा अपनी वृत्ति (Profession) के प्रति सजग बनाना।  
  • प्रशिक्षुओं को अपने जीवन लक्ष्यों के निर्धारण तथा उन्हें प्राप्त करने में मदद करना। 
  • प्रशिक्षुओं को अपने वृत्ति तथा आत्म चेतना (Self consciousness) को अभिव्यक्त करने के लिए सक्षम बनाना।

Understanding the self

reference

           We can explain the Self or Self as the source of our internal thinking to external behavior. In this context, it is necessary for teachers to understand that the personality that they form as a teacher or teacher includes their life experiences, personal thinking and social beliefs and with all this they do the work of teaching in their classrooms. is. Therefore, every teacher should have a comprehensive understanding of them so that he can use them positively in making his classroom teaching effective. In the image of every teacher in the school, the perception of others about him and his work also contributes. That's why we do not find every teacher in a school the same, everyone has some specialties that give him a different identity. But it often happens that most of the teachers remain ignorant about their own abilities. At the same time, they also have many such prejudices which negatively affect their education and children's education. Therefore, it is necessary that every teacher or teacher should recognize himself, test his work and beautify himself. This paper is an attempt to present such opportunities. It is expected that all the trainees will be able to reflect on various aspects related to their teaching work. Also, be able to analyze your perceptions and characteristics as a person. In this subject, the teacher should be able to think about every work done by the teacher in the school and what effect it has on the teacher himself, the teacher can analyze it himself, try to develop and relate such ability in him through this subject paper. will be done from


An objective


Following are the objectives of teaching the content based on this course:-

  • To help trainees to identify their potential, talent, thinking, perception and attitude as an individual.
  • To make the students aware of themselves and their profession.
  • To help trainees to set and achieve their life goals.
  • To enable trainees to express their instinct and self-consciousness.

चेतन, अचेतन और अवचेतन मन में क्या अंतर है ? What is the difference between Conscious, unconscious and subconscious Mind ? Hindi & English Notes.


चेतन मन (Conscious Mind):- जब हम कोई कार्य सक्रिय अवस्था में रहकर करते हैं तब उसे हम चेतन मन कहते हैं। मतलब हमारा मन उस समय पूरी तरह तत्पर (Active) होता है। चेतन मन को हम तत्पर दिमाग (Active Mind) भी कह सकते हैं।

उदाहरण स्वरूप,

            जब हम कोई कार्य पहली बार सीखते या करने की कोशिश करते हैं तब उस समय हमारा मन पूरी तरह चेतन अवस्था में होता है। हमारा पूरा ध्यान उस कार्य के प्रति हो जाता है इसी को हम चेतन मन कहते हैं।

Conscious Mind Controls:-

  • Always available & accessible (सुलभ) information.
  • Willpower (इच्छाशक्ति)
  • Decision Making
  • Thinking Logically
 अचेतन मन (Unconscious Mind):- यह हमारे मस्तिष्क का लगभग 50% हिस्सा होता हैं। यह वह मानसिक स्तर है जो न ही पूर्णतः चेतन होता है और ना ही पूर्णतः अवचेतन। अर्थात,
      हमारे अचेतन मन में जो भी विचार होते हैं वह चेतन स्तर पर कार्यरत नहीं होते हैं।

Unconscious Mind Controls:-
  • Data you have to dig (खोदना) to access.
  • Reoccurring thoughts (विचारों को फिर से समझना)
  • Behaviors, Habits & Feelings.
  • Recent Memories.

अवचेतन मन (Subconscious Mind):- जिसके कार्य के बारे में व्यक्ति को जानकारी नहीं रहती यह मन की स्वस्थ एवं अस्वस्थ क्रियाओं पर प्रभाव डालता है। इसका बोध व्यक्ति को आने वाले सपनों से हो सकता है।

Subconscious Mind Controls:-
  • Memories, Beliefs (मान्यताएं) & Habits from age 0-7.
  • Traumatic (दर्दनाक) Stored Events.
  • Phobias & Addictions.
  • Information that's kept hidden, locked & Resists Change. (परिवर्तन का विरोध करना).
  • Overriding (अधिभावी) more important than any other considerations.  Information stored in other two areas. अन्य दो क्षेत्रों में संग्रहीत जानकारी को ओवरराइड करना।
  • You and Your life.

Conscious Mind:- When we do any work while in an active state, then we call it conscious mind. Meaning our mind is fully active at that time. We can also call conscious mind as active mind.

For example,

When we learn or try to do something for the first time, then at that time our mind is in a completely conscious state. Our full attention becomes towards that task, this is what we call the conscious mind.

Conscious Mind Controls:-

  • Always available & accessible information.
  • Willpower
  • Decision Making
  • Thinking Logically
Unconscious Mind:- It is about 50% of our brain. It is that mental level which is neither wholly conscious nor wholly subconscious. meaning,
Whatever thoughts we have in our unconscious mind are not working on the conscious level.

Unconscious Mind Controls:-

  • Data you have to dig (dig) to access.
  • Reoccurring thoughts
  • Behaviors, Habits & Feelings.
  • Recent Memories.


Subconscious Mind:- The function of which the person is not aware of, it affects the healthy and unhealthy activities of the mind. This can be realized by the dreams coming to the person.

Subconscious Mind Controls:-

  • Memories, Beliefs & Habits from age 0-7.
  • Traumatic Stored Events.
  • Phobias & Addictions.
  • Information that's kept hidden, locked & Resists Change. (opposing change).
  • Overriding is more important than any other considerations. Information stored in other two areas. Overriding the information stored in the other two fields.
  • You and Your life.

मंगलवार, 29 जून 2021

S-4, Unit-1 अपने व्यक्तित्व को समझने की जिज्ञासा (Curiosity to understand Self Personality) D.El.Ed. 2nd Year B.S.E.B. Patna.

एक व्यक्ति के रूप में स्वयं को समझना 
(KNOW YOURSELF AS A PERSON) 


अपने व्यक्तित्व को समझने की जिज्ञासा 
(Curiosity to understand Self Personality) 

            स्वयं से अवगत होना एक सचेतन (conscious) आन्तरिक प्रयास है जिसके लिये कोई भी व्यक्ति प्रयास कर सकता है। इसके द्वारा वह अपनी शक्तियों, क्षमताओं, कमजोरियों आदि को समझ सकता है। वह अपनी बाह्य क्रियाओं के प्रति भी सजग, सतर्क, जागृत, विवेकशील हो सकता है। 
       यूं तो आत्मावलोकन (Introspection) the examination or observation of one's own mental and emotional processes. स्वयं की मानसिक और भावनात्मक प्रक्रियाओं की परीक्षा या अवलोकन। द्वारा स्वयं की पहचान करना किसी के लिए भी अच्छा है, मगर यह शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों हेतु बहुत जरूरी हो जाता है। शिक्षा की प्रक्रिया शिक्षार्थी के भीतर निश्चित रूप से बहुत बदलाव लाती है। वह पहले से ज्यादा  जानने एवं समझने लगता है। शिक्षा एक तरह से व्यक्तित्व और समाज के रूपांतरण (conversion) की प्रक्रिया से ही जुड़ी हुई है, भले ही इसका स्पष्ट बोध शिक्षा से जुड़े लोगों में न हो। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आत्मावलोकन शिक्षा की प्रक्रिया में एवं शैक्षिक प्रक्रिया स्वयं की पहचान में क्या भूमिका निभा सकते हैं। 
        सीखना ज्यादा सार्थक और प्रभावशाली तभी होता है जब सीखने वाला निरन्तर अपनी समीक्षा करने की इच्छा रखता हो एवं जायजा लेते हुए चलता हो। कक्षा का माहौल हो या सीखने-सिखाने की पद्धतियाँ या फिर मूल्यांकन की रणनीतियाँ, इन्हें इस ढंग से बनाया जाना चाहिए कि वे शिक्षार्थी को पहल करने के लिए प्रेरित करें और उसे धीरे-धीरे अपने सीखने हेतु स्वयं जिम्मेदार बनाएँ। ऐसा करते हुए एक ही कक्षा में मौजूद शिक्षार्थियों की व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखना जरूरी है।
           एक शिक्षक शिक्षार्थियों में सीखने और आत्मविश्वास का जज्बा तब तक उत्पन्न नहीं कर सकता, जब तक कि वह स्वयं इन बातों को दिली (Heartwarming) तौर पर न समझता हो एवं इन्हें अमल में न लाता हो। एक शिक्षक जो शिक्षार्थियों के आत्म-विकास के काम में सहायक बनना चाहता है, अपने आप से ये सवाल पूछ सकता है कि- क्या वह एक स्पष्ट विश्वास से भरी आत्म-छवि रखता है? उसके पास किसी प्रक्रिया में डटे रहने का माद्दा, अहमियत (Materiality) कितना है? उसमें सीखने की आत्म-प्रेरणा कितनी है? क्या उसमें आलोचनात्मक और रचनात्मक तरीके से सोच-विचार की क्षमता है? क्या वह दक्षतापूर्वक किसी समस्या का समाधान कर सकता है? आत्मानुशासन और उसकी ध्यान केन्द्रित रखने की सामर्थ्य कितनी है? स्वयं की क्षमता की खोज से जुड़े इस तरह के और भी सवाल हो सकते हैं। आपके मन में और कौन-कौन से सवाल उत्पन्न हो रहे हैं आप कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं।



 

नाम में क्या नहीं, बहुत कुछ रखा है।

 

साभार:- Facebook

          What is in a name? यानी नाम में क्या रखा है? उक्त बातें शायद आपको भी याद हो इसे कहने वाले थे सदी के महान व्यक्तित्व शेक्सपियर जी। आगे उन्होंने कहा था- गुलाब को यदि गुलाब न कह कोई दूसरे नाम से पुकारे तो क्या उस की खुशबू गुलाब जैसी नहीं रहेगी ?

          अब यहां आप ध्यान दीजिये, यदि यही बात मैं ने कही  होती  तो क्या आप लोग इतनी जल्दी मान लेते? सोचिए....🤔 सोचिए....🤔 

आप कहेंगे- नहीं। बिल्कुल नहीं!!!

           क्योंकि मेरा अभी नाम इतना ज्यादा नहीं हुआ है जितना कि उस समय शेक्सपियर जी का हो गया था।  कहने का अर्थ यह है कि कोई बातें किसके द्वारा कही गई है और उस व्यक्ति के नाम का कितना असर है यह मायने रखता हैं। मेरे हिसाब से नाम में बहुत कुछ है। जो बात किसी बड़े और मशहूर नाम से जुड़ी हो उसे हम और आप बिना प्रश्न किये मान लेते हैं। हम यह सोचने लगते हैं कि अमुक व्यक्ति ने कही है तो सही ही होगी। 
     
          मुझे कुछ दिनों पूर्व का एक वाक़्या याद आ रहा है जब हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी परीक्षा पर चर्चा कर रहे थे, बाकी आपको तो याद ही होगा। यदि याद है या मेरा इशारा किधर है। कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा।

बाकी आज के लेख✍️ की शुरुआत करते हैं......

जैसलमेर जो की भारत के राजस्थान प्रांत का एक शहर है वहां से बीकानेर बस रुट पर बीच में एक बड़ा सा गाँव है जिसका नाम है नाचने
 
वहाँ से जब कोई बस आती है तो लोग कहते है कि नाचने वाली बस आ गयी..😎 

कंडक्टर भी बस रुकते ही चिल्लाता हैं......नाचने वाली सवारियाँ उतर जाएं बस आगे तक जाएगी..😎

           भारत में जब इमरजेंसी का दौड़ चल रहा था तो उस समय  Research and Analysis Wing (RAW) का एक नौजवान अधिकारी जैसलमेर आया चूंकि रात बहुत हो चुकी थी तो वह सीधा थाने पहुँचा और ड्यूटी पर तैनात सिपाही से पूछा - थानेदार साहब कहाँ हैं?

सिपाही ने जवाब दिया- सर, थानेदार साहब नाचने गये हैं।😎

अफसर का माथा ठनका उसने पूछा- डिप्टी साहब कहाँ हैं ?
सिपाही ने विनम्रता से जवाब दिया- हुकुम🙏🏻 डिप्टी साहब भी नाचने गये हैं।😎

            अफसर को लगा, लगता है यह सिपाही बिहार में जो बंद है उसके बाद भी आसानी से मिल जाता है उसका इसने ज्यादा सेवन कर लिया है। उसने तुरन्त Superintendent of Police (S.P.) के निवास पर फोन📞 किया।

S.P. साहब हैं ?

उधर से जवाब मिला नाचने गये हैं!!!

लेकिन नाचने कहाँ गए हैं, ये तो बताइए ?

बताया न नाचने गए हैं, सुबह तक आ जायेंगे। तब आप फोन कीजिएगा उधर से नींद में ही किसी ने कहा।

कलेक्टर के घर फोन लगाया वहाँ भी यही जवाब मिला, साहब तो नाचने गये हैं।

अफसर के दिमाग का दही बिना जोड़न का ही बनने लगा। उसने बड़बड़ाते हुए कहा- ये हो क्या रहा है इधर इस जिले में ?? अचानक से सभी के सभी नाचने चले गए वो भी इमरजेंसी में।

वही पास खड़ा मुंशी बहुत देर से सारी बाते ध्यान से सुन रहा था।  वो धीरे से बोला- हुकुम🙏 बात ऐसी है ना कि दिल्ली से आज कोई मिनिस्टर साहब नाचने आये हैं। इसलिये सब अफसर लोग भी नाचने गये हैं..!!

🤪🤪🤣🤣😂😂😂

साभार:- Facebook
लेख:- Bishwajeet Verma


B.Ed. 2nd Year, Pedagogy of Mathematics (C- 7b) Previous Question Paper -2019. Munger University, Munger.

 











सोमवार, 28 जून 2021

आज मिथिला नगरिया निहाल सखियां। चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां।। Aaj Mithla Nagariya Nihal sakhiya Charo dulha me Badka kamal Sakhiya. Lyrics with Video.





आजs मिथिला नगरिया निहाल सखियां। 
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां।। 


आजs मिथिला नगरिया निहाल सखियां।
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां।।

शेषमणि मुड़िया कुंडल सोहे कनवां,
कारी-कारी कजरारी जुल्मी नयनवां।-२

लाल चंदन सोहे इनके गाल सखियां।
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां।।

श्यामल गोरे-गोरे जुड़िया जहान रे,
अखियां से देख ली नाs सुन ली ना कान रे।-२

जुगे-जुगे जीयेs जोड़ी बेमिसाल सखियां।
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखिया।।

गगन मगनs आज मगन बाs धरतीया,
देखी-देखी दूल्हा जी के सांवर सुरतियां।-२

बाल, वृद्ध नर-नारी सब बेहाल सखियां,
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां।।


जेकरा लागी जोगी-मुनि जप-तप कईले,
से मोरेs मिथिला में मौरी पहन के अइले।-२

आज लोढ़ा से सैदाई इनके गाल सखियां।
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां।

आज मिथिला नगरिया निहाल सखियां।
चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखियां।।

शनिवार, 26 जून 2021

हम मिडिल क्लास वाले हैं, सपने देखते नहीं उसे बनाते है।

 




                  हम मिडिल क्लास वाले हैं। हम लोगों के पास गिने-चुने ही समस्याएं आती है क्योंकि हम लोग समस्या को भी भरपूर इंजॉय करते हैं। लेकिन कुछ समस्याएं ऐसी है जिसका मुझे लगता है कि यहां वर्णन करना चाहिए। 
          हमारी आधी जिंदगी झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही बीत जाती है। हमारे घरों में पनीर की सब्जी या चिकन, मटन आम तौर पर तभी बनता है, जब कोई मेहमान आ जाए। उस समय रमुआ के माई रमुआ को बोलती है कि जाओ रे.... बाजार से चिकन लेकर आओ और आने वाले मेहमान से कहती हैं। आज रुक जाई चिकन बनाव तानीs और मेहमान भी इसी चिकन और पनीर के लालच में एक दिन ज्यादा रुक जाते हैं। मिक्स वेजिटेबल की सब्जी भी तभी बनती है जब थोड़ी-थोड़ी बची सब्जियां बाद में सूखने लगती हो। हमारे यहां फ्रूटी, कोल्ड ड्रिंक, माज़ा की बोटले भी एक साथ फ्रीज में तभी नजर आते हैं जब लड़का या लड़की देखे खातिर कोई नायका मेहमान घर पर आते हैं या फिर कोई बढ़िया अपर क्लास वाला रिश्तेदार आ रहे होते है। चाय को छानते समय या नींबू का रस निकालते समय लास्ट बूंद तक निचोड़ लेना ही, हम लोगो के लिए परम सुख की अनुभूति होती है। हम लोग ना कभी रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल करते ही नही हैं। वो क्या हैं ना उसकी गंध हमें अच्छी नहीं लगती उसके बदले हम घरों में आहूत कर लेते हैं और उसे लेकर पूरा घर से लेकर द्वार तक सगरो घुमा देते हैं ससुरा एके ही बार में पूरा फ्रेशनर आ जाता हैं। अउरी ओकर सुगंध धुंआ खत्म होने तक बरकरार रहता है। हम सब के घरों में ई गेट-टुगेदर नहीं होता है, हमारे यहां तो श्री सत्यनारायण भगवान का काथा होता है। सारा फैमिली से लेकर गांव वाला जमा होता हैं और बिना प्रसाद लिए मजाल है कि कोई चला जाये।
            हमारा फैमिली बजट इतना सटीक होता है कि सैलरी अगर 05 तारीख की बजाए 06 या 07 को आये तो अंडा से लेकर राशन तक उधार लेना पड़ता है। हमारी जिंदगी, ना....ना..... बहुत महंगा है तू कमाना तब खरीदना। यही बोलने/सुनने में निकल जाती है। अमीर लोग शादी के बाद हनीमून पर कहां जाएंगे यह निर्णय लेते हैं और हम लोगों की शादी के बाद किराए के टेंट वाले, फोटोग्राफर साहब, बरतन वाले पैसा वसूली के लिए ऐसे पीछे पड़ते हैं की बस हम गांव-जवार छोड़कर भागने वाले हैं।
          अमूमन हमारे घरों में गीजर नहीं रहता क्योंकि उसकी जरूरत तो साल के 02 या 03 महीने ही पड़ती है। हमलोग वैसी सामग्री खरीदते हैं जिसका प्रयोग सालों-भर कर सकें। फिर भी यदि किसी के यहां की गीजर लग जाए तो वह उसे बंद करके तब तक नहाता रहता है, जब तक नल से ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए। AC की कल्पना तो यहां कोसों दूर रहती हैं हमारे यहां ऐसी का मतलब एयर कंडीशन नहीं अकॉर्डिंग टू क्लाइमेट होता है। हम तो उसी एटीएम में जाते हैं जो खाली मिले ताकि वहां पर 10-15 मिनट एसी का लुफ्त उठा सके या फिर ज्यादा कूलिंग चाहिए तो सीधे मॉल में चले आते हैं। पूजा या त्योंहार में किस-किस को चंदा दिया है यह हमें याद नहीं रहता है लेकिन प्रसाद कहां कहां से लाना है यह हम कभी नहीं भूलते। 
           दिन भर के कार्यों के बाद जब हम रात में सोते हैं ना हमारे सपने भी अजीब आते हैं-  पानी की टंकी भर गई है, मोटर बंद करना है। गैस पर दूध उबल गया है, चावल जल गया होगा। कल मोनुवा के स्कूल का फीस जमा करना है, दूध वाले को पैसा देना है। इसी टाइप के सपने आते हैं। हम सभी अपने दिल में अनगिनत सपने लिए बस चलते रहते है और सपने देखते नहीं उसे बनाने पर विश्वास करते हैं। हम लोगों के बीच से यदि कोई सफल हो जाए तो अमीर वर्ग वाले उसका उदाहरण अपने बच्चे को देते हैं देखो वह कितनी कठिन परिस्थितियों में था। आज फालना जगह नौकरी कर रहा है। हमें बहुत खुशी है कि हम एक मिडिल परिवार वाले हैं और उससे ज्यादा खुशी इस बात से है कि अपने सपने को पूरा कर पाए।
धन्यवाद🙏
साभार:- सोशल मीडिया

मिट्टी का काम (Clay Work, Soil Work) D.El.Ed. 2nd Year. B.S.E.B. Patna.



        पृथ्वी के ऊपरी सतह पर मोटे माध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा, मिट्टी कहते हैं। ऊपरी सतह पर से मिट्टी हटाने पर प्रायः चट्टान (शैल) Rock पाई जाती है। मृदा विज्ञान (Pedology, Another term for soil science.) मिट्टी संबंधी विद्या, भूमि विज्ञान जो कि भौतिक भूगोल (Physical geography, The branch of geography dealing with natural features and processes.) की एक प्रमुख शाखा है जिसके अंतर्गत मृदा के निर्माण, उसकी विशेषताओं एवं धरातल पर उसके वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।
Note:- पृथ्वी की ऊपरी सतह के  कणों को ही (छोटे या बड़े, Big or Smal) Soil कहा जाता है।
भारत में मिट्टी के प्रकार:-
(a) लाल मिट्टी (Red Soil)
(b) काली मिट्टी (Black Soil)
(c) रेतीली मिट्टी (Arid and Dessert Soil) e.t.c.

मूर्तिकला (Sculpture)



मूर्ति+कला:- किसी रूप या आकृति के समान ही ठोस वस्तु से गढ़ी हुई आकृति, जिसको हर दिशा से देखा जा सकता है उस वस्तु को मूर्ति कहते हैं। जब उस मूर्ति में सुंदरता का समावेश हो जाए तब उसे हम मूर्तिकला के नाम से संबोधित करते हैं।

मूर्तिकला निर्माण के तकनीक दो (02) प्रकार के होते हैं:-
(1) Glyptic Medium
(2) Plastic Medium

(1) Glyptic Medium (घटाव माध्यम):- इस माध्यम से तैयार मूर्ति में केवल सामग्री जैसे:- पत्थर, लकड़ी, ठोस पी.ओ.पी. (Plaster of Paris) धातु को काटकर या खुदाई करके बनाया जाता है। इस माध्यम में ऊपर से चिपकाने का गुण नहीं होता ठोस वस्तु को काट-काट कर या घटाकर (Carving) आकृति का निर्माण करते हैं।
              खुदाई या काट कर के मूर्ति बनाने की विधि को Glyptic माध्यम कहते हैं।

16 नंबर की कैलाश नामक ब्राम्हण मंदिर एलोरा में है। मंदिर की लंबाई 50 मीटर, चौड़ाई 33 मीटर, ऊंचाई 30 मीटर है। यह मंदिर 
Glyptic Medium सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

(2) Plastic Medium (प्लास्टिक मीडियम) आकार देने या ढालने योग्य:-  मूर्ति बनाने की कला में ठोस वस्तु जैसे:- मिट्टी, मोम, गीला आटा, इत्यादि। को जोड़-जोड़ कर या तोड़ मरोड़ कर  कभी-कभी काटकर भी मूर्ति बनाने की प्रक्रिया को प्लास्टिक मीडियम कहते हैं।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (B.H.U.) में प्लास्टिक आर्ट से मास्टर डिग्री की पढ़ाई होती है।

Note:- मिट्टी (Soil) गीली मिट्टी Plastic Medium है परंतु मिट्टी के सूख जाने पर इसका प्लास्टिक गुण समाप्त हो जाता है और वह Glyptic माध्यम के अंतर्गत आ जाता है।

मूर्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है- 

(1) Relief Sculpture  (उभरी हुई नक्काशी की मूर्ति)

(2)3D, Round Sculpture (त्रिआयामी मूर्ति)

Note:- Relief Sculpture के भी 02 भाग होते हैं-

(i) Low Relief:- अपने सतह से कम उभरी हुई मूर्ति को Low Relief की श्रेणी में रखते हैं इस मूर्तिकला की विशेषताएं यह होती है की मूर्ति पृष्ठ भूमि (सतह) से अनिवार्य रूप से जुड़ी रहती है। जैसे:- सिक्का (Coin) Mobile Key, etc.

(ii) High Relief:- अपनी सतह से अधिक ऊंची उठी हुई मूर्ति जो करीब-करीब वस्तु के वास्तविक रूप के समतुल्य हो जाती है परंतु पृष्ठभूमि के साथ जुड़ी हुई होती है उसे High Relief कहते हैं।

(2) 3D, Round Sculpture:- त्रिआयामी मूर्ति वह मूर्तिकला है जिसको हर दिशा से देखा जा सकता है। त्रिआयामी मूर्ति में लंबाई, चौड़ाई, मोटाई और ऊंचाई के परिमाप होते हैं।

"मिट्टी की मूर्ति"

        संसार की सबसे सस्ती वस्तु मिट्टी है। हम मिट्टी से मूर्तियां, खिलौने एवं बर्तनों का निर्माण करते हैं। मिट्टी की मूर्तियों के लिए दो प्रकार की मिट्टी का उपयोग किया जाता है।

(1) Terra-Cotta (टेरा-कोटा) पक्की मिट्टी
(2) Modelling. (मॉडलिंग)

(1) Terra-Cotta (टेरा-कोटा):-  टेराकोटा बनाने के लिए मिट्टी में थोड़ी सी बालु मिला देते हैं जिसके कारण टेरा-कोटा की चिकनाई कम हो जाती है और उसके बाद उस कलाकृति को आग में पका कर लाल कर लिया जाता है।

(2) Modelling:- इसकी प्रक्रिया टेराकोटा के ठीक विपरीत होती है मॉडलिंग की मिट्टी चिकनी तथा बालू रहित रखनी होती है।

सामान्य ज्ञान:- चित्रित मिट्टी के बर्तन के लिए सिवान जिले का नाम आता है। पटना संग्रहालय में इसके कुछ बर्तन उदाहरण स्वरूप रखे गए हैं। 

Pottery Wheel:- चाक
Potter's Wheel:- कुम्हार का चाक
Chariot Wheel:- रथ का चक्का

गुरुवार, 24 जून 2021

SEP-2 विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-2 : इन्टर्नशिप School Experience Programme -2 : Internship D.El.Ed.2nd Year. B.S.E.B. Patna.

 SEP-2 

विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-2 : इन्टर्नशिप 

School Experience Programme -2 : Internship 

           गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के केन्द्र में एक सजग, सक्रिय और प्रतिबद्ध शिक्षक का होना आवश्यक है। साथ ही यह भी जरूरी है कि वह शिक्षक स्कूली गतिविधि के विभिन्न आयामों को न सिर्फ समीक्षात्मक ढंग से समझे बल्कि वह कुशलतापूर्वक इससे जुड़ी गतिविधियों को अंजाम भी दे सके। पिछले दो-तीन दशकों में सिद्धांत और व्यवहार का अर्थपूर्ण संबंध स्थापित कर उन्हें एक दूसरे की कसौटी पर कसने की प्रक्रियाएँ लगातार बढ़ी हैं। कहने को प्रत्येक शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम में शिक्षण-अभ्यास  उसका एक अनिवार्य हिस्सा होता है, पर ऐसा कम ही हो पाता है कि शिक्षायी चिंतन को सक्रिय रूप से शिक्षण अभ्यास का हिस्सा बनाया जाए। नतीजतन शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सिद्धांतों को जपने की प्रवृत्ति तो बढ़ती ही है साथ ही शिक्षण अभ्यास एक हस्तक्षेपकारी अनुभव होने की बजाय महज एक अकादमिक कवायद बनकर रह जाती है। शिक्षण अभ्यास को शिक्षा के सिद्धांतों, शिक्षणशास्त्र व शिक्षायी चिंतन से अलग करके नहीं देखा जा सकता है। कोशिश यह है कि शिक्षण-अभ्यास के अनुभव शिक्षायी विमर्श को समझने का आधार बने तथा शिक्षायी विमर्श, शिक्षण-अभ्यास को और समीक्षात्मक बनाने में मददगार बने। 

                विद्यालय अनुभव कार्यकम से तात्पर्य है विद्यालय में होने वाले कार्यों व गतिविधियों का समग्र अनुभव। इसका मूल उद्देश्य प्रशिक्षुओं में शिक्षण अभ्यास के साथ-साथ विद्यालय से जुड़ी अन्य गतिविधियों की समझ भी विकसित करना है। साथ ही, इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षु अपने शिक्षण व विद्यालय में अपनी भूमिका के प्रति एक आलोचनात्मक व मननशील दृष्टिकोण भी विकसित कर पाएंगे। वैसे तो इस डी.एल.एड (दूरस्थ शिक्षा) कार्यक्रम के अंतर्गत उन्हीं प्रशिक्षुओं का नामांकन किया जाता है जो पहले से ही विद्यालयों में शिक्षण कर रहे हैं। अतः विद्यालय के विभिन्न आयामों का अनुभव उनको स्वतः ही हो जाता है। लेकिन क्या वे उन विद्यालयी अनुभव का प्रयोग अपने शिक्षण को बेहतर बनाने के लिए कर पाने में सक्षम हैं या नहीं, यह मुख्य सवाल है। इसलिए विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के माध्यम से उनके अनुभवों को उपयोगी एवं सार्थक बनाने पर विशेष बल दिया जाएगा।

 उद्देश्य

विद्यालय अनुभव कार्यक्रम को करने के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार से हैं:- 

  • प्रथम वर्ष के विद्यालय अनुभव कार्यकम से प्राप्त समझ को विस्तारित करना। 
  • कक्षा-कक्ष में विभिन्न विषयों के शिक्षण से सम्बंधित योजना निर्माण, शिक्षण-अभ्यास तथा अपने शिक्षण के मूल्यांकन की समझ विकसित करना। 
  • विद्यालयी विषयों के शिक्षण के अंतर्गत आनेवाली समस्याओं का एक्शन रिसर्च के माध्यम से समाधान करना। 
  • अपनी कक्षा के बच्चों के सीखने के विकास का अध्ययन करना । 
  • बच्चों के सह-शैक्षिक पक्षों के विकास का केस स्टडी करना। 
  • विद्यालय और आस-पास के समुदाय के अंतर्सम्बंध को समझना तथा उसे सुदृढ़ बनाने के लिए सामुदायिक सेवा कार्यक्रमों में भागीदारी करना।

अवधि:-

        विद्यालय अनुभव कार्यक्रम न्यूनतम सोलह (16) सप्ताह का है, जिसे द्वितीय वर्ष के उत्तरार्द्ध महीनों (Latter months) के दौरान किया जाना है। प्रशिक्षु अपने आवंटित विद्यालयों में विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के अंतर्गत निर्धारित कार्यों को करना शुरू करेंगे। सोलह में से चौदह सप्ताह का कार्यक्रम विद्यालय के अंदर की गतिविधियों के लिए तथा बाकी दो सप्ताह को समुदाय से सम्बंधित कार्यों को करने के लिए रखा गया है।

 विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के मूल्यांकन की रूपरेखा

 विद्यालय अनुभव कार्यकम -2 400 अंक का हैं।
इसके मूल्यांकन के दो चरण होंगे। 
चरण -1 के अंतर्गत मूल्यांकन में सम्बंधित प्रशिक्षण केन्द्र की प्रमुख भूमिका होगी
चरण -2 के अंतर्गत अंतसंस्थागत Inter institutional मूल्यांकन की तुलनात्मक व्यवस्था होगी। इससे प्रशिक्षण केन्द्रों के मध्य अंतःकिया को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही, प्रशिक्षुओं को भी अपने कार्य पर मेन्टर के अलावा एक अन्य विशेषज्ञ का फीडबैक मिल सकेगा। चरण -2 के निर्धारण में राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद् की प्रमुख भूमिका होगी।
 

1. शिक्षण अभ्यास (Teaching Experience)

          शिक्षण अभ्यास के क्रम में आलोचनात्मक शिक्षणशास्त्र को समझना और उसे अभ्यास क्रम का हिस्सा बनाना इस पाठ्यचर्या का प्रमुख उद्देश्य है। यहाँ ज़रूरत होती है कि हम शिक्षण-अभ्यास के क्रम में अपनी जिम्मेदारी (अकादमिक, शैक्षिक व सामाजिक) को शिक्षा के वृहत्तर परिणाम व लोकतांत्रिक समाज के संदर्भ में समझें। कक्षा के भीतर की प्रक्रिया कोई पृथक घटना नहीं है, बल्कि इसका गहरा जुड़ाव विभिन्न सामाजिक व ऐतिहासिक प्रक्रियाओं से होता है। शिक्षक अपने सार्थक कर्म के माध्यम से असमान सामाजिक व्यवस्थाओं के विरुद्ध हस्तक्षेप करता है। उसकी यह भूमिका एक सांस्कृतिक कर्मी की तरह होती है। शिक्षण-अभ्यास में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि प्रशिक्षु शिक्षक न सिर्फ शिक्षा के तकनीकी पक्ष को समझ पायें बल्कि वे अपनी हस्तक्षेपकारी भूमिका को भी साकार रूप दे सकें। कोशिश यह होनी चाहिए कि वे अनुभवों के जरिये रूढ़ीवादी समाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं को तार्किक ढंग से चुनौती दे सकें। इस क्रम में वे न सिर्फ शिक्षण योजना बनाएँ बल्कि वहाँ पढ़ाए जाने वाले विषयों पर एक आलोचनात्मक समझ भी विकसित करने की कोशिश करें। सीखने की योजना (लर्निग प्लान) को विद्यालय में कियान्वित करने से पहले उसकी तैयारी करनी होगी। तैयारी के अंतर्गत सीखने की योजना को लिखकर अपने साधनसेवी सह मेन्टर से सुझाव लेना, प्रशिक्षण केन्द्र पर प्रति विषय कम से कम एक लर्निंग प्लान का सभी प्रशिक्षुओं के सामने डेमोन्स्ट्रेशन , प्रति विषय कम से कम एक एक्शन रिसर्च को करना शामिल है। इसके अलावा विद्यालय में लर्निंग प्लान का क्रियान्वयन-प्रमुख तौर पर किया जाएगा। 

अवधि : - 

  • लगातार चौदह सप्ताह (द्वितीय वर्ष के दौरान)  
  • प्रति सप्ताह पाँच (05) दिन (सोमवार-शुक्रवार) शनिवार व रविवार को योजना निर्माण, तैयारी व परामर्श सत्र के लिये प्रशिक्षण केन्द्र पर विचार-विमर्श 
सीखने की योजना (लनिंग प्लान) : - 
  • कुल मिलाकर न्यूनतम (75) लर्निंग प्लान का निर्माण एवं शिक्षण 
  • प्रति विषय न्यूनतम पंद्रह (15) लर्निग प्लान का निर्माण एवं शिक्षण। (प्राथमिक स्तर के चार विषय तथा उच्च प्राथमिक स्तर का एक विषय , कुल मिलाकर पांच विषय) 
  • प्रति विषय न्यूनतम दो (02) लर्निग प्लान के लिखित प्रारूप का सम्बंधित साधनसेवी द्वारा समीक्षा
  • प्रति विषय न्यूनतम एक (01) लर्निग प्लान का प्रशिक्षण केन्द्र पर प्रशिक्षु द्वारा डेमोन्स्ट्रेशन-शिक्षण पर आलोचनात्मक समीक्षा 
  • प्रति विषय न्यूनतम दो (02) लर्निग प्लान का विद्यालय में शिक्षण का पर्यवेक्षण तथा समीक्षा 
  • प्रति विषय न्यूनतम एक-एक लर्निंग प्लान के लिखित प्रारूप तथा कक्षा-शिक्षण का बाह्य मूल्यांकन 
  • प्रति सप्ताह न्यूनतम पाँच (05) और अधिकतम आठ (05) लर्निग प्लान का निर्माण एवं शिक्षण 
          एक सीखने की योजना या लर्निग प्लान से तात्पर्य एक अध्याय अथवा इकाई से नहीं है। बल्कि, एक लनिंग प्लान से तात्पर्य है एक कालांश (Period) के लिये शिक्षण की रूपरेखा। एक ही अध्याय अथवा इकाई में इसके कई शीर्षकों व अवधारणाओं को लेकर कई लनिंग प्लान बनाए जा सकते हैं। लर्निंग प्लान का निर्माण कैसे किया जाए, इसकी चर्चा आप कई विषयों में समझ चुके हैं। इसकी विस्तृत चर्चा कार्यशाला के माध्यम से भी की जाएगी। प्रशिक्षु अपना स्व-मूल्यांकन कैसे करेंगे, रिफलेक्टीव डायरी कैसे लिखेंगे, इन सब की चर्चा भी कार्यशाला में की जाएगी।

बच्चों के सीखने के विकास का अध्ययन 

          हर शिक्षक या शिक्षिका का शिक्षण कार्य तभी सार्थक है जब उसके कारण बच्चों के सीखने पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हो। अतः अपने शिक्षण की समझ के साथ-साथ सभी प्रशिक्षुओं को विभिन्न विषयों में बच्चों के सीखने के विकास का आकलन करना भी आना आवश्यक है। तभी वे यह समझ पाएंगे कि उनके द्वारा शिक्षण का बच्चों के सीखने पर क्या असर पड़ा है या अपने शिक्षण में किस तरह का नवाचार करें जिससे बच्चों के सीखने में सकारात्मक बदलाव आ सके। यह प्रदत्त कार्य इसी आलोक में दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत प्रशिक्षुगण अपने-अपने विद्यालय के किसी एक कक्षा का चयन कर उसमें पढनेवाले सभी बच्चों के सीखने के स्तर को कक्षा सापेक्ष समझेंगे। इसके लिए ये विभिन्न विषयों के संदर्भ में कुछ संकेतक या सीखने की कसौटियों को ध्यान में रखकर आकलन की योजना बनाएँ तथा उसके आधार पर बच्चों के सीखने का आकलन करें। आकलन की प्रक्रिया से निकलकर आए आँकड़ों का विश्लेषण एवं रिपोर्ट के अंदर उसकी प्रस्तुति अवश्य करनी होगी। यह कार्य वे विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के शुरूआती दो सप्ताह के अंदर कर लें। यह इस प्रदत कार्य का पहला भाग होगा। यह अपेक्षा है कि प्रशिक्षुगण अपना शिक्षण-अभ्यास का अधिकतम हिस्सा इसी चयनित कक्षा में करेंगे और अपने द्वारा बनाए जानेवाले विभिन्न विषयों के 'सीखने की योजना' में उन कसौटियों का ध्यान अवश्य रखेंगे जिनके आधार पर बच्चों का आकलन किया है। ताकि बच्चों के सीखने के स्तर को और बेहतर बनाने का उद्देश्य उनके शिक्षण के केन्द्र में रहे। बारहवें-तेरहवें सप्ताह में जब शिक्षण अभ्यास का समेकन होनेवाला होगा तो प्रशिक्षुगण पुनः उस कक्षा के बच्चों का पहले निर्धारित कसौटियों पर आकलन करें। आकलन के दौरान निकलकर आए आँकड़ों का विश्लेषण एवं रिपोर्ट के अंदर उसकी प्रस्तुति अवश्य करनी होगी। यह इस प्रदत कार्य का दूसरा भाग होगा। अंत में प्रशिक्षुओं को पहले और दूसरे भाग से निकलकर आए आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण करना होगा। इसके अंतर्गत वे यह समझ पाने में समर्थ होंगे कि उनके द्वारा किए गए शिक्षण का उन बच्चों के सीखने के विकास पर कितना असर पड़ा। उपरोक्त सभी कार्यों का करके एक विस्तृत रिपोर्ट अपने प्रशिक्षण केन्द्र पर जमा करें। पूरे कार्य को करने के दौरान आप अपने साधनसेवियों, विशेषकर अपने मेंटर से अवश्य सुझाव लेते रहें।
 
3. बच्चों के सह-शैक्षिक विकास का अध्ययन 
           
           विभिन्न विषयों के शिक्षण के साथ-साथ बच्चों के सह-शैक्षिक (को-स्कोलास्टिक ) विशेषताओं को प्रोत्साहित करना भी शिक्षण कार्य का ही भाग है। बच्चों में कई तरह की सृजनात्मक क्षमताएँ होती है जो अक्सर किताबी ज्ञान पर जोर देने के कारण निखर नहीं पाती। एक तरह से देखें तो यह बच्चों के सर्वांगीण विकास के खिलाफ है। अतः शिक्षकों को ऐसी समझ होनी चाहिए जिससे वे बच्चों के सह-शैक्षिक पक्षों विकास को प्रोत्साहित कर सकें। कला, खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, सृजनात्मक कार्य आदि इसके उदाहरण हैं। इस प्रदत कार्य के अंतर्गत प्रशिक्षुओं को अपने विद्यालय के कम से कम दस बच्चों के सह-शैक्षिक पक्षों का विस्तृत अध्ययन करना होगा। यह विश्लेषण करें कि उन बच्चों के कौन से सह-शैक्षिक पक्ष बहुत मजबूत है। आप जो निष्कर्ष निकालेंगे उसके लिए तथ्य / आँकड़े / प्रमाण भी दें। साथ ही यह विश्लेषण करें कि उन सह-शैक्षिक पक्षों को आपके विद्यालयी गतिविधियों / शिक्षण के अंतर्गत कितना महत्व दिया जाता है। उपरोक्त सभी विश्लेषणों के आधार पर उन बच्चों के सह-शैक्षिक पक्षों को और निखारने के दृष्टिकोण से प्रशिक्षुगण स्वयं क्या कर सकते हैं। उसकी योजना बनाएँ तथा उसका कियान्वयन करें। अंत में इन सभी कार्यों को लेकर एक रिपोर्ट तैयार करें तथा अपने प्रशिक्षण केन्द्र पर जमा करें। पूरे कार्य को करने के दौरान आप अपने साधनसेवियों (Resource Persons), विशेषकर अपने मेंटर से अवश्य सुझाव लेते रहे।

4. सामुदायिक कार्य 

              शिक्षक का सम्बंध केवल विद्यालय के साथ ही नहीं बल्कि समुदाय के साथ भी होना उतना ही जरूरी है। अतः विद्यालय अनुभव कार्यकम के अंतर्गत प्रशिक्षुओं को अपने विद्यालय के आस-पास के समुदाय की प्रकृति, उनकी अपेक्षाएँ, चुनौतियाँ, आदि। को समझने तथा उनके बेहतरी के लिए कुछ सामुदायिक सेवा कार्यों को करना होगा। यह इसलिए भी आवश्यक है ताकि हर प्रशिक्षु अपने विद्यालय के आस-पास के समुदाय को समझे तथा उसके प्रति संवेदनशील बने। इसके अंतर्गत यह अपेक्षा है कि हर प्रशिक्षु अपने विद्यालय के आस-पास के समुदाय में कोई वैसा सामाजिक कार्य करे जिसकी जरूरत वहाँ हो। इस कार्य को प्रशिक्षु अपने विद्यालय के अन्य शिक्षकों तथा बच्चों के साथ सामुहिक रूप से कर सकते हैं। प्रशिक्षण केन्द्र के कुछ प्रशिक्षु आपस में मिलकर भी कोई सामुदायिक कार्य कर सकते है। 
         उपरोक्त सामुदायिक कार्य के साथ-साथ प्रशिक्षुओं से व्यक्तिगत तौर पर यह अपेक्षा है कि वे अपने घर के आस-पड़ोस के किसी एक परिवार का चयन कर उसके शैक्षिक स्थिति का विश्लेषण करें। यह जानने-समझने की कोशिश करें कि उस परिवार में किस तरह की शिक्षा की आकांक्षाएँ हैं, परिवार के सदस्यों ने कहाँ तक की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की है, शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्होंने किस तरह की चुनौतियों का सामना किया है, आदि। उस परिवार में शिक्षा की जो स्थिति है, उसके पीछे के कारणों का विश्लेषण करें। अपने विश्लेषण के आधार पर आप उस परिवार के आगामी शैक्षिक विकास के लिए कुछ सुझाव भी प्रस्तुत करें। उपरोक्त दोनों कार्यों को करने से पूर्व यह अपेक्षा है कि प्रशिक्षुगण इसकी चर्चा अपने साधनसेवी से जरूर कर लें। 

कालावधि:-

              विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के अंतर्गत सोलह सप्ताह में से दो सप्ताह सामुदायिक कार्य के लिए है। चतुर्थ सत्र के किसी भी दो सप्ताह में यह कार्य प्रशिक्षुओं द्वारा किया जाए तथा चतुर्थ सत्र के अंत में इसकी एक रिपोर्ट प्रशिक्षु द्वारा प्रशिक्षण केन्द्र पर जमा की जाएगी। रिपोर्ट में प्रशिक्षु इस बात को विशेष तौर पर लिखें कि उनके द्वारा किए गए सामुदायिक कार्य के कारण समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ा या पड़ने का अनुमान है। इसी रिपोर्ट के दूसरे भाग में वे अपने द्वारा किए गए किसी परिवार के शैक्षिक स्थिति का विश्लेषण भी प्रस्तुत करें।

बुधवार, 23 जून 2021

SEP-1 (School Experience Program-1) विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 D.El.Ed.1st Year. B.S.E.B. Patna.

 SEP-1 

विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 

School Experience Programme-1


             विद्यालय की पाठ्यचर्या में शिक्षकों के लिए हर रोज सीखने के बहुत सारे अवसर होते हैं। यदि कक्षायी शिक्षण से लेकर विद्यालय की तमाम गतिविधियों के सजग विश्लेषण का कौशल प्रशिक्षुओं में विकसित कर दिया जाए तो वे अपने कार्यों में कई नवाचार ला सकते हैं। विद्यालय अनुभव कार्यक्रम के इस पहले भाग में प्रशिक्षुओं में कुछ ऐसे कौशलों को विकसित करने की अपेक्षा है जिससे ये अपने कार्य का स्वयं से विश्लेषण करके समस्याओं का समाधान कर सकें। इसके अंतर्गत प्रशिक्षुओं को न्यूनतम चार सप्ताह (लगभग 01 महीना) के लिए अपने विद्यालय में कुछ कार्यों को करना है, जिनकी रूपरेखा निम्नलिखित है:-

 SEP विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 100 अंक: इसमें पूर्णतः आंतरिक मूल्यांकन की योजना है। अर्थात प्रशिक्षुओं द्वारा किए जानेवाले अपेक्षित गतिविधियों का मूल्यांकन उसी प्रशिक्षण केन्द्र/संस्थान के साधनसेवी या प्रशिक्षकगण करेंगे। इसके अंतर्गत साधनसेवियों को लगभग समान संख्या में प्रशिक्षु आवंटित कर दिए जाएंगे। इस तरह  हर साधनसेवी के पास मेंटरिंग के लिए लगभग 15-20 प्रशिक्षु आएँगे। हर साधनसेवी सह मेंटर का यह कार्य होगा कि वह निम्नलिखित गतिविधियों को करने के लिए अपने प्रशिक्षुओं को सुझाव दें और फिर उनका मूल्यांकन करें । 

1. कक्षायी शिक्षण व गतिविधियों का अवलोकन एवं विश्लेषण

           कक्षा में हो रहे शिक्षण का अवलोकन एक जटिल कार्य है जिसमें शिक्षक और बच्चे दोनों की गतिविधियाँ साथ-साथ चलती है। अतः अवलोकन का केन्द्र केवल शिक्षक द्वारा किया जा रहा शिक्षण कार्य ही नहीं बल्कि बच्चों द्वारा की जानेवाली गतिविधियों भी होगी। इस कार्य के माध्यम से प्रत्येक प्रशिक्षु में कक्षायी शिक्षण का गहन अवलोकन करने की क्षमता का विकास करना है ताकि वे कक्षायी शिक्षण के विभिन्न आयामों की पहचान कर सके तथा उनका विश्लेषण डी.एल.एड. कार्यक्रम के विभिन्न विषयपत्रों जैसे:- F-1 समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ, F-2 बचपन और बाल विकास, F-5 भाषा की समझ और आरम्भिक भाषा विकास, F-4 विद्यालय संस्कृती, परिवर्तन और शिक्षक विकास, आदि। से प्राप्त समझ के आधार पर कर सकें।

           कक्षा के प्रत्यक्ष तत्वों का अवलोकन करना भी उतना सरल नहीं है जैसा प्रतीत होता है। इसके लिए भी कुछ अपेक्षित कौशलों की अनिवार्य आवश्यकता होती है। इस कार्य के अंतर्गत कक्षायी शिक्षण का अवलोकन मुख्यतः दो तरीकों से किया जाएगा। 

     पहला:- शुरुआती अवलोकन के लिए प्रत्येक प्रशिक्षु द्वारा अवलोकन सूची का विकास किया जाएगा जिसमें अवलोकन के विभिन्न पक्षों को दर्ज किया जाएगा। अवलोकन करने से पूर्व इस सूची को प्रत्येक प्रशिक्षु अपने मेंटर से समीक्षा करवाएंगे और प्राप्त सुझावों के आधार पर अवलोकन सूची को सम्वर्धित (Enhanced) करके विद्यालय में अवलोकन हेतु ले जाएँगे। चार सप्ताह में से दो सप्ताह का अवलोकन, प्रशिक्षु द्वारा विकसित अवलोकन सूची के आधार पर किया जाएगा। यह स्पष्ट किया जा रहा है कि प्रत्येक प्रशिक्षु को अपना अवलोकन सूची स्वयं विकसित करना है। अतः सभी के अवलोकन सूची में कुछ विभिन्नताएँ हो सकती हैं। 

             दूसरे प्रकार के अवलोकन के लिए प्रशिक्षु को सीधा-सीधा कक्षा में जाना है और यह लिखते जाना है कि कक्षा में वे क्या-क्या अवलोकित कर रहे हैं। इस प्रकार के अवलोकन के लिए कोई प्रारूप नहीं होगा। लेकिन यह अपेक्षा है कि प्रशिक्षु में अवलोकन के कुछ सामान्य बिन्दुओं की समझ पहलेवाले अवलोकन सूची के आधार पर अवलोकन करने से विकसित हो गई होगी जिसका इस्तेमाल अब वे खुले तौर पर अवलोकन करने के दौरान करेंगे। बिना किसी प्रारूप का अवलोकन तीसरे और चौथे सप्ताह के दौरान किया जाना चाहिए। 

कालावधि (Duration):- 

  • प्रथम अकादमिक वर्ष के पाँचवे, छठे, आठवें और नवें महीने में एक -एक सप्ताह 
  • प्रति सप्ताह पाँच (05) दिन (सोमवार-शुक्रवार) 
  • शनिवार व रविवारः अवलोकन का योजना निर्माण, तैयारी व परामर्श सत्र के लिये प्रशिक्षण केन्द्र पर विचार-विमर्श।
अवलोकन की अपेक्षाएं Requirements of Observation:- 

  • प्रति सप्ताह, प्रति दिन अधिकतम तीन कक्षाओं में शिक्षण का अवलोकन 
  • कक्षा 01 से 05 तक के प्रत्येक कक्षा से न्यूनतम पाँच-पाँच अवलोकन  
  • प्राथमिक स्तर के प्रत्येक कक्षा के प्रत्येक विषय से न्यूनतम एक अवलोकन 
  • अवलोकन सूची के माध्यम से न्यूनतम पंद्रह और बिना अवलोकन सूची के न्यूनतम दस अवलोकन  
  • कुल मिलकर न्यूनतम 25 कक्षाओं का अवलोकन 
  • न्यूनतम दो अवलोकन के विश्लेषण की समीक्षा मेंटर द्वारा 
        यह बेहतर होगा यदि प्रत्येक प्रशिक्षु अपने कक्षायी अवलोकन के लिए एक अलग कॉपी बनाए जिसमें प्रत्येक अवलोकन के बाद उसका विश्लेषण किया जाए। अतः केवल अवलोकन करना महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उसका उपयोगी विश्लेषण करना भी जरूरी है। अवलोकन और विश्लेषण का कार्य साथ-साथ चलना चाहिए। अर्थात, जैसे ही प्रशिक्षु किसी कक्षा का अवलोकन करके उसके प्रमुख बिन्दुओं को अपनी कॉपी में दर्ज करता या करती है। उसके बाद, उन बिन्दुओं का विश्लेषण भी किया जाना अनिवार्य है। अतः यह कतई नहीं होना चाहिए कि अवलोकन का विश्लेषण पच्चीस अवलोकन करने के बाद हो। यह अपेक्षा है कि प्रशिक्षु प्रत्येक सप्ताह अवलोकन करके तथा उनका विश्लेषण करके अपने प्रशिक्षक सह मेंटर से उसकी चर्चा करेंगे।

2. एक्शन रिसर्च, क्रिया-शोध (Action Research):-

हर शिक्षक को विद्यालय में शिक्षण के दौरान कई समस्याओं व चुनौतियों का अनुभव होता है। साथ ही उनके मन में शिक्षा से सम्बंधित कई जिज्ञासायें भी जागृत होती है। एक कुशल शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी शिक्षण समस्याओं, चुनौतियों व जिज्ञासाओं का समाधान वैज्ञानिक विधि (Scientific Method) के माध्यम से करें। अतः प्रशिक्षुओं को शिक्षण के साथ-साथ शोध-कार्य करना भी महत्त्वपूर्ण है, ताकि उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हो सके। इसी उद्देश्य के अंतर्गत, विद्यालय अनुभव कार्यक्रम में एक्शन रिसर्च को भी रखा गया है ताकि प्रशिक्षुओं में विभिन्न विषयों के अंतर्गत एक्शन रिसर्च करने की क्षमता विकसित हो सके।

 एक्शन रिसर्च का विषय:-

           एक्शन रिसर्च को कक्षा में किसी विषय (गणित, हिन्दी, अंग्रेजी, पर्यावरण अध्ययन में से किसी एक) की अवधारणा को सीखने-सिखाने से संबंधित समस्याओं के संदर्भ में लिया गया है। एक्शन रिसर्च का विषय आपके कक्षा-शिक्षण व कक्षायी गतिविधियों के अवलोकन के विश्लेषण से स्वतः ही निकल जाएगा। आप एक्शन रिसर्च के विषय के लिए बच्चों से विभिन्न विषयों की अवधारणाओं पर बातचीत, उनकी कॉपियों का विश्लेषण आदि कर सकते हैं। यदि बच्चों को किसी विषय के किसी खास अवधारणा को समझने में समस्या आ रही हो तो वह एक्शन रिसर्च का एक विषय होगा। उदाहरण के तौर पर, कई बच्चे ठीक तरह से जोड़ या घटाव नहीं कर पा रहे हैं तो उसके पीछे उनकी समझ में क्या कमी है इसकी पड़ताल करके और उसके आधार पर उन्हें पुनः समझाना व उनकी समस्या को दूर करना एक एक्शन रिसर्च होगा। यहाँ किसी भी एक विषय से एक्शन रिसर्च का केवल एक विषय चुनना है, जिसे करके रिपोर्ट बनाना होगा और प्रशिक्षण केन्द्र पर जमा करना होगा। एक्शन रिसर्च को करने के दौरान वे कक्षा शिक्षण भी कर सकते हैं। यह एक एक्शन रिसर्च का अभ्यास प्रशिक्षुओं को इसका कौशल सिखाने के लिए है। इसके बाद द्वितीय वर्ष के विभिन्न विषयों में आवश्यकतानुसार प्रशिक्षुओं को एक्शन रिसर्च निरन्तर करते रहना होगा। 

कालावधि (Duration, Period): प्रशिक्षुओं से अपेक्षा है कि वे विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 के शुरू होने के पहले महीने के अंत तक अपने एक्शन रिसर्च के विषय के बारे में प्रशिक्षण केन्द्र पर सूचित करें तथा अगले महीने से उस पर कार्य करना शुरू करें तथा उसे पूरा करके विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 के अंत में प्रशिक्षण केन्द्र पर अपने साधनसेवी सह मेंटर को जमा करें। मेंटर की यह जिम्मेवारी होगी कि वह आवश्यकतानुसार उस साधनसेवी को भी सुझाव देने या मुल्यांकन करने में शामिल करे जिस विषय का एक्शन रिसर्च प्रशिक्षु ने किया हो। 

3. विद्यालय उन्नयन योजना (School upgradation plan) 

           प्रशिक्षुओं का विद्यालय विशेष के संदर्भ में कई अनुभव रहे होंगे। उन अनुभवों में उनके विद्यालय से जुड़े तमाम आंकड़े भी शामिल होंगे। यदि उन आँकड़ों को व्यवस्थित करके विश्लेषण किया जाए तो विद्यालय के विकास में मदद मिल सकती है। अतः इस कार्य के अंतर्गत, प्रशिक्षु अपने विद्यालय के संदर्भ में आंकड़ों का योजनानुसार ये उस विद्यालय में कार्य करेंगे। विश्लेषण करके विद्यालय के लिए एक उन्नयन योजना का निर्माण करेंगे। फिर अपने द्वारा बनायी गयी योजनानुसार ये उस विद्यालय में कार्य करेंगे। 

कालावधि: इसकी प्रक्रिया के लिये प्रशिक्षु विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 के दौरान का समय लेंगे तथा अपने विद्यालय के वास्तविक स्थिति का विश्लेषण कर उसके आधार पर अपने विद्यालय के लिये उन्नयन योजना का निर्माण करेंगे। फिर उस योजना में दिए गए कार्यों को पूरा करने का प्रयास करेंगे। ऐसी व्यवस्था बने कि दूसरे सत्र के पहले महीने में प्रशिक्षुगण अपने विद्यालय की स्थिति का विश्लेषण कर उसके विकास के लिए एक उन्नयन योजना बना लें। फिर आगामी चार -पाँच महीने उस योजना के आधार पर कार्य करें और विद्यालय अनुभव कार्यक्रम-1 की समाप्ति पर एक समग्र रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

4. विद्यालय में बच्चों से बातचीत का विश्लेषण 

       विद्यालय में उत्साही और भयमुक्त माहौल के निर्माण हेतु, शिक्षकगणों और बच्चों के मध्य निरन्तर संवाद होना जरूरी है। अक्सर शिक्षकगणों और बच्चों के बीच की बातचीत केवल कक्षा-कक्ष के सवालों-जवाबों तक ही सिमट कर रह जाती है, जिसके कारण शिक्षकों का बच्चों के साथ वैसा सम्पर्क नहीं बन पाता है जिससे वे अभिप्रेरित हो सकें और अपने चुनौतियों को शिक्षकों से साझा कर सकें। 

        इस कार्य के अंतर्गत, प्रशिक्षु को अपने विद्यालय के किसी भी कक्षा के बच्चों के एक समूह के साथ सामान्य बातचीत करनी है जो किसी विषय के शिक्षण से सम्बंधित न हो। ऐसे संवाद का विषय बच्चों के समूह के मुताबिक और उनके पसन्द का हो। स्कूल के बाहर के किसी प्रसंग, किसी तात्कालीन घटना, कल घर पर क्या किया, गांव-शहर में होनेवाले किसी आयोजन, त्योहार, आदि। से सम्बंधित किसी भी प्रसंग पर खुली बातचीत की जाए। ध्यान रहे कि यह बातचीत सवाल-जवाब का स्वरूप ना ले ले। जिसमें शिक्षक सवालकर्ता हो जाए और बच्चे जवाब देते रहें। जिस प्रकार बच्चे कोई बात कर रहे हो, ऐसा होना चाहिए कि शिक्षक या शिक्षिका भी उसमें समान रूप से भागेदारी निभाए।

          इस तरह प्रत्येक प्रशिक्षु अपने विद्यालय के बच्चों से न्यूनतम दो चर्चाएं करेंगे और उस चर्चा में बच्चों ने क्या-क्या साझा किया और उसके आधार पर बच्चों के विषय में प्रशिक्षु ने क्या जाना-समझा। इसपर एक रिपोर्ट बनाकर द्वितीय सत्र के अंत में प्रशिक्षण केन्द्र पर अपने निर्धारित साधनसेवी को जमा कराएंगे। विश्लेषण के दौरान, प्रशिक्षु अपनी उस समझ का इस्तेमाल जरूर करें जो उन्होंने डी.एल.एड. कार्यक्रम के आधार विषयपत्रों जैसे- F-1 'समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ', F-2 'बचपन और बाल विकास, F-5 'भाषा की समझ और आरम्भिक भाषा विकास', F-4 'विद्यालय संस्कृति, परिवर्तन और शिक्षक विकास' आदि। के माध्यम से पाया है। 


विद्यालय अनुभव कार्यकम-1 के अंतर्गत किए गए प्रदत्त कार्य केवल डी.एल.एड. कार्यक्रम के दौरान औपचारिक तौर पर करने के लिए नहीं है। बल्कि मूल उद्देश्य यह है कि ये सभी कार्य प्रशिक्षुओं के विद्यालयी कामकाज के स्वाभाविक हिस्से बन जाएँ । अतः अपेक्षा है कि हर प्रशिक्षु अपने विद्यालय में शिक्षण पर्यन्त इनका निरन्तर प्रयोग करते रहेंगे , जिसके पीछे कोई औपचारिक निर्देश नहीं बल्कि अपने शिक्षण के प्रति संवेदनशीलता एवं प्रतिबद्धता की अभिप्रेरणा होगी।

मंगलवार, 22 जून 2021

भोजपुरी अश्लील बन गई। लेकिन क्यों ? आइये इस लेख में जानते हैं।

 


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हम, इस लेख की शुरुआत कर रहे हैं- साठ के दशक से, उस समय मनोरंजन के इतने साधन नही थे। ले-देकर दशहरा के समय दरभंगा और अयोध्या से आने वाली रामलीला मण्डली का ही आसरा रहता था। कहीं से गाँव के चुल्हा बाबा को पता चलता कि इस महीने गाँव में होने वाले यज्ञ में वृन्दावन से रासलीला मण्डली आ रही है तो फिर उनके चेहरे की ख़ुशी देखते बनती थी।
उधर गाँव के नौजवानों को शादी-ब्याह के मौसम में आने वाले लौंडा नाच और मेले-ठेले में होने वाली नौटँकी का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता था। उधर गाँव के कुछ उत्साही लइकन के द्वारा दशहरा-दीपावली में ड्रामा भी किया जाता था।
उस समय तक गाँव-जवार में बिजली अभी ठीक से आई नहीं थी। दूरदर्शन के दर्शन की कल्पना भी बेमानी थी। किसी गाँव में डेढ़ मीटर लम्बा रेडियो यदि आ जाए तो आस-पास के गाँव वाले साइकिल से उसे देखने एवं सुनने पहुंच जाते थे।
तब भोजपुरी के पहले सुपरपस्टार यानी भिखारी ठाकुर की लोकप्रियता आसमान छू रही थी। बलिया से लेकर बंगाल और आसाम से लेकर आसनसोल तक। वो जहाँ भी जिस मौके पर जाते, वहाँ खुद-ब-खुद मेला लग जाता था। भिखारी ठाकुर जी कहते थे यदि कहीं मेरा कार्यक्रम हो और दो-चार लोग कुआँ और पोखर में ना गिरे तो कार्यक्रम सफल नहीं हुआ। यानी कहने का अर्थ उनका यह था कि रात के अन्हरिया में लोग कार्यक्रम देखने के लिए आते थे और भीड़ इतनी ज्यादा होती थी कि आते समय लोग कुआँ और पोखर में गिर जाते थे। उनके इंतजार में लोग ऊँगली पर दिन गिनना शुरू कर देते थे। उनका नाटक गबरघिचोर हो या गंगा स्नान, बिदेसिया हो या बेटीबेचवा। लोग हंसते-हंसते कब रोने लगते किसी को कुछ पता ही नहीं चलता था।
“करी के गवनवा भवनवा में छोड़ी करs
अपने परइलs पुरूबवा बलमुआ..”
ये गीत बच्चे-बच्चे को जबानी याद था। क्योंकि इन नाटकों के गीत महज गीत नहीं होते थे। इन नाटकों के संवाद महज संवाद नहीं थे। वो मनोरंजन भी केवल मनोरंजन नहीं था बल्कि वो मनोरंजन का सबसे उदात्त स्वरूप था जहाँ भक्ति, प्रेम और वात्सल्य के साथ हास्य-व्यंग्य का उच्चस्तरीय स्तर मौजूद था। जहाँ स्त्री विमर्श की गहन पड़ताल थी, तो सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों पर एक साथ चोट की जा रही थी। कुल मिलाकर तब भिखारी सिर्फ एक कलाकार न होकर एक समाज-सुधारक की भूमिका में थे।
वही दौर था भिखारी के समकालीन छपरा के महेंदर मिसिर का, दोनों में खूब दोस्ती थी। गाँव का बच्चा-बच्चा जानता था कि भिखारी खाली समय में अगर कुतुबपुर में नहीं हैं तो वो पक्का मिश्रौलिया में होंगे। अपने समय के दो महान कलाकारों की इस गाढ़ी मित्रता की कल्पना मेरे जैसे कई कला के विद्यार्थियों के चित्त को आनंदित करती है
“अंगूरी में डसले बिया नगिनिया रे,
ए ननदी संइयाँ के बोलाइ दs..”
भला कौन पूरबिया होगा जिसे इतना याद न होगा..???
लेकिन साहेब भिखारी-महेंदर मिसिर के बाद एक झटके में जमाना बदला। तब सिनेमा जवान हो रहा था। भोजपुरी में भी तमाम फिल्में बननें लगीं थी। गाजीपुर के नाजिर हुसैन और गोपालगंज के चित्रगुप्त नें चित्रपट में ऐसा जादू उतारा कि आज भी वो फ़िल्में, वो संगीत मील का पत्थर हैं।
लेकिन हम इस लेख में मुम्बई और सिनेमा की बात नही करेंगे क्योंकि तब गाँव में धड़ल्ले से नाच पार्टी खुल रहीं थीं। हर जिले में ढोलक के साथ बीस जोड़ी झाल लेकर गवनई पार्टी वाले व्यास जी लोग आ गए थे। ये व्यास जी लोग "मोटकी गायकी" के व्यास कहे जाते थे। ये व्यास लोग रात भर रामायण, महाभारत की कथा को वर्तमान सन्दर्भों के साथ जोड़कर सुनाते। सवाल-जबाब का लम्बा-लम्बा प्रसंग चलता। बिहार के गायत्री ठाकुर जब हवा में झाल लहरा के गाते...
" डहरिया पीचलतरा जाला पाँव रे
जोन्हीयो से दूर बा बलमुआ के गाँव रे..."
तो श्रोताओं के हाथ अपने आप जुड़ जाते थे, क्योंकि इस गीत में बलमुआ का मतलब उनके पतिदेव से नहीं, बल्कि ईश्वर से था। इधर उनके जोड़ीदार बलिया यूपी के बिरेन्द्र सिंह ‘धुरान’ भी माथे पर पगड़ी बांध, मूँछों पर ताव देकर ललकारते...तो अस्सी साल के बूढों की बन्द पड़ी धमनियों का रक्त-संचरण अपने आप बढ़ जाता।
ये जोड़ी पुरे भोजपुरिया जगत में प्रसिद्ध थी। इन दोनों के चाहने वालों की लिस्ट में टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार भी शामिल थे और इन गायत्री-धुरान नामक दो घरानों नें भोजपुरी को सैकड़ों गायक दिए। ये परम्परा आज वटवृक्ष का आकार ले चुकी है।
फिर आते हैं, भोजपुरी की मेहीनी परम्परा में। धीरे-धीरे समय बदला अस्सी का दशक आया, मुन्ना सिंह और नथुनी सिंह का। भला कौन होगा, जिसे ये गाना याद न होगा ?
"जबसे सिपाही से भइले हवलदार हो
नथुनिए पर गोली मारे संइयाँ हमार हो..”
तब टेपरिकार्डर और आडियो कैसेट मार्किट में आ गए थे। शहरों से निकलकर गाँव-गाँव इनकी पहुंच आसान हो गई थी। उस समय कैसेट गायकों को बड़े ही सम्मान के साथ देखा जाता था। क्योंकि गायक बनना आसान नहीं था और कैसेट कलाकार बनना तो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी। तब वीनस और टी-सीरीज जैसी म्यूजिक कम्पनियाँ कलाकारों को बुलाकर रिकॉर्डिंग करातीं थीं और ये म्यूजिक कम्पनियां उन्ही गायकों का कैसेट बनातीं थीं जिनकी आवाज में कुछ ख़ास होता था। जिनको दो-चार हजार लोग जानते-पहचानते थे। शायद इसी वजह से जिस गायक का बाजार में कैसेट होता था उसका मार्केट टाइट हो जाता था। उसे फटाफट दूर-दूर से प्रोग्राम के ऑफर आने लगते थे। बाकी लोग उससे हड़कते थे

"अरेs मरदे कैसेट के कलाकार हवन...दूर रहा...”

उसी समय कुछ अच्छे गाने वाले हुए। बिहार में शारदा सिन्हा जी का गाना।
"पटना से बैदा बोलाई दs हो,
नज़रा गइली गुईयाँ"
जब कुसुमावती चाची सुनतीं तो उनका चेहरा ऐसा खिल जाता, मानों किसी ने उनके दिल की बात कह दी हो। उसी दौर में भरत शर्मा व्यास जब गाते...
“कबले फिंची गवना के छाड़ी,
हमके साड़ी चाहीं."
तो बलिया जिला के रेवती गाँव में गवना करा के आई मनोहर बो (मनोहर की पत्नी) अपने मनोहर को याद करके चार दिन तक खाना-पीना छोड़ देतीं। वहीं नया-नया दहेज में हीरो-होंडा पाया सिमंगल तिवारी का रजेसवा जब गांजा के बाद ताड़ी पीने में महारत हासिल कर लेता तो कहीं दूर हार्न से भरत शर्मा की आवाज आती..
“बन्हकी धराइल होंडा गाड़ी
हमार पिया मिलले जुआड़ी."
फिर इन्हीं भरत शर्मा की ऊँगली थामकर निकले कुछ और गायक। जिनमे बलिया की शान मदन राय, गोपाल राय और रविन्द्र राजू जैसे गायक। आज भी गोपाल राय गाते हैं...
"झुमका झुलनी चूड़ी कंगन हार बनवनीs,
उपरा से निचवा ले तहके सजवनीs।
सोनरा के सगरो दोकान लेबु का हो,
काहें खिसियाईल बाड़ू जान लेबू का हो.!!"

तो मन करता है कि इसी खरमास में कोई बढ़िया दिन देखकर बियाह कर ले और तब इस गाने की अगली लाइन सुनें...!!!!
इसमें कोई शक नही है कि आज भी भरत शर्मा के साथ-साथ मदन राय, गोपाल राय, विष्णु ओझा भोजपुरी के सर्वकालिक लोकप्रिय गायक हैंकोई स्टार बने या बिगड़े न इनका महत्व कभी कम हुआ हैं और न ही होगाआज भोजपुरी संगीत में जो कुछ भी सुंदर हैं, वो सब इन्हीं जैसे गायकों की देन है।
लेकिन आइये इधर,
नब्बे का दशक बीत रहा था। ठीक उसी उसी समय एकदम लीक से हटकर एक और गायक कम नेता जी आ गए। वो थे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में बीपीएड की पढ़ाई कर रहे मनोज तिवारी ‘मृदुल’ इनके आते ही दो शैली यहाँ हो गयी भोजपुरी में

एक भरत शर्मा व्यास वाली शैली
दूसरी मनोज तिवारी वाली शैली

शर्मा जी वाली शैली में अभी भी गायत्री ठाकुर और व्यास शैली का प्रभाव था लेकिन मनोज तिवारी ने लीक बदल कर वो गाने लगे
“लल्लन संगे खीरा खाली सुनें प्रभुनाथ गाली,
घायल मनोज से बुझाली बगलवाली जान मारेली..!!!”
गायकी के इस नए अंदाज नें युवाओं के बीच धूम ही मचा दिया। धीरे-धीरे इसमें स्टेज पर लेडिज डांसर के संग नृत्य का तड़का भी दिया जाने लगा और ये क्रम लम्बा चलता रहा।

फिर साहेब आ जातें है सीधे 2002 में...

मार्केट में आडियो और वीसीआर को चुनौती देने के लिए आ गया सीडी कैसेट। अब हाल ये हुआ कि टाउन डिग्री कालेज से पढ़ाई करके गाँव के मनोजवा,करिमनावा, मोहनावां चट्टी-चौराहे पर सीडी की दुकानें खोलने लगे। यहां तक कि चट्टी के गुप्त रोग स्पेशलिस्ट सुखारी डाक्टर के मेडिकल स्टोर पर भी फ़िल्म सीडी मिलने लगी। जहाँ सुविधानुसार हर तरह की फिल्में यानी लाल, पिली, नीली किस्म की फिल्में आसानी से मिल जातीं थीं।
मुझे अच्छे से याद नहीं कि कितनी बार नानी का गेंहू बेचकर भाड़े पर मिथुन चक्रवर्तीया और सनी देवलवा की कितनी फिल्में देखीं होंगी। तब जिनके यहाँ गाँव में पहली दफा सीडी आई थी, उनके यहाँ बिजली आते ही मेला लग जाता था। इस माहौल को ध्यान रखते हुए उस समय भोजपुरी की म्यूजिक कम्पनियों ने एक नया ट्रेंड निकाला और वो था- भोजपुरी म्यूजिक वीडियो सीडी...!!!
टी-सीरीज तब भी इस मामले में नम्बर एक थी। उसने मनोज तिवारी के सुपरहिट एल्बम अगल वाली, बगल वाली, सामने वाली, ऊपर वाली, नीचे वाली, पूरब के बेटा, आदि सबका वीडियो बना डाला..!!!! फिर हुआ क्या कि लोग जिसे आज तक आडियो में सुनते थे..और कैसेट के रैपर पर छपे गायक को बड़े ध्यान से देर तक देखते थेलोग उसे वीडियो में नाँचते-और झूमते देखने लगे। इसी चक्कर में टी-सीरीज ने भरत शर्मा और मदन राय के तमाम पुराने गीतों का इतना घटिया फिल्मांकन किया, जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते हैंवो घटिया इस मामले में कि गाने का भाव कुछ और, वीडियो में कुछ और दिखाया जाने लगा।
तब तक आँधी की तरह असम से आ गई कल्पना
“एगो चुम्मा ले लs राजाजी, बन जाई जतरा..!!!"
बिहार के भूतपूर्व कला संस्कृति मंत्री श्री बिनय बिहारी जी के इस गीत ने मार्केट में तहलका मचा दिया और करीब एक साल तक इस गीत का जबरदस्त प्रभाव रहा। इसी क्रम में आते हैं- डायमंड स्टार गुडडू रंगीला, सुपर स्टार राधेश्याम रसिया और सुनील छैला "बिहारी" इन सभी के ऊपर लेख फिर कभी
लेकिन आतें हैं..जिला गाजीपुर के दिनेश लाल यादव “निरहुआ” पर...
“बुढ़वा मलाई खाला बुढ़िया खाले लपसी,
केहू से कम ना पतोहिया पिए पेपसी !!"
दिनेश लाल के इस खांटी नए अंदाज को जनता नें हाथो-हाथ लिया। फिर क्या था ? टी-सीरिज ने झट से इस मौके को लपका और मार्किट में आ गया उनका अगला एल्बम....

“निरहुआ सटल रहे”

इस कैसेट के आते ही समूचे भोजपुरिया जगत में धूम मच गई और हाल ये हुआ कि कुछ दिन पहले महज कुछ हजार लेकर घूम-घूम बिरहा गाने वाले दिनेश लाल यादव रातों-रात स्टार हो गए। ठीक उसी समय कुलांचे भरने लगा आरा जिला का एक और सीधा-साधा सा गायक। जिसकी आवाज किसी निमोनिया के मरीज की आवाज की तरह लगती थी। आज दुनिया उसको पवन सिंह के नाम से भले जानती है, लेकिन पवन अपने शुरुवाती दिनों में सबसे मरीज किस्म के गायक हुआ करते थे। शायद इसे ईश्वर की कृपा ही कहेंगे कुछ ही सालों में पवन की आवाज में निखार और भाव आना शुरू हुआ और वो मार्किट में टी सीरिज से वीडियो सीडी लेकर आ गए
“खा गइलs ओठलाली”.
एकदम आर्केस्ट्रा के अंदाज में, मूंछो वाले दुबले-पतले पवन सिंह एक्टिंग और डांस के नाम पर दाएं और बाएं हाथ को हिलाते हुए गाते कि..
“रहेलाs ओहि फेरा में बहुते बाड़ा बवाली”
तो हम जैसे कक्षा सात में पढ़ने वाले लड़कों को भी इस बेचारे गायक पर तरस आता। लेकिन “निरहुआ सटल रहे” की ऊब के बाद पवन ने मार्केट में एक नए किस्म का टेस्ट दे दियाउनका एल्बम तब बजाया जाता, जब लोग "निरहुआ सटल रहे" दो-चार बार सुनकर ऊब जातेउधर समय बदला निरहुआ स्टार होकर फिल्मों में चले गए मनोज तिवारी स्टार हो चुके थेएक के बाद एक उनकी फिल्में सुपरहिट हो रहीं थींतब तक पवन सिंह फिर आ गए।

“कमरिया करे लपालप लॉलीपॉप लागेलू"

ज़ाहिद अख़्तर के लिखे इस एक गीत ने मार्केट में धूम मचा ही दियासिर्फ राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये आज भी भोजपुरी का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है जिस पर हमें समझ नहीं आता कि गर्व करें या शर्म करें...!!!
लेकिन ठीक इसी गीत से शुरु हुआ भोजपुरी संगीत का "पवन सिंह युग उर्फ़ लॉलीपॉप युग" जो लगातार पांच साल तक अनवरत चला। देखते ही देखते पवन ने म्यूजिक का ट्रेंड ही बदल दिया। एकदम बम्बइया सालिड डीजे टाइप का म्यूजिक और हर एल्बम में हर वर्ग के लिए हर किस्म के गाने गाएये दौर ऐसा चला कि नवरात्र हो या सावन, होली हो या चैता। जहाँ भी जाइए बस पवन सिंह, नही तो पवन सिंह टाइप के गानेंहाल ये हुआ कि भोजपुरी मने पवन सिंह हो गया। पवन ने कुछ साल तक एकछत्र राज किया और झट से फिल्मों में मनोज तिवारी, निरहुआ के बाद तीसरे गायक अभिनेता हो गए औऱ उनकी फ़िल्म आई
"रंगली चुनरिया तोहरे नाम"
इसके बाद पवन की स्टाइल में कुछ बाल गायक भी पैदा हुये जैसे- कल्लू और सनिया

"लगाई दिही चोलिया में हुक राजा जी...और ओही रे जगहिया दांते काट लिहले राजा जी"

ये एक साल तक खूब बजा!!! जिसका असर ये हुआ कि बड़े-बड़े लोग अपने बेटे-बेटी को पढ़ाई छुड़ा के अश्लील गायक बनाने लगे। खेत बेचके एल्बम की शूटिंग होने लगी क्योंकि लोगों के दिलो में ये बात समा गयी की एक बार बेटा चमक गया तो हम जीवन भर बैठकर खाएंगे। इधर पवन के फिल्मों की तरफ जानें के बाद कुछ ही साल में आ गए सिवान के खेसारी लाल यादवएकदम देशी अंदाज, शादी-ब्याह में औरतों के गाए जाने वाले गीतों की धुन!!! उन्हीं के अंदाज में। बस जरा-सी अश्लीलता की छौंक और गवनई का तड़का
अब जो पवन सिंह ने भोजपुरी को धूम-धड़ाका और डीजे में बदल दिया थाउसे खेसारी लाल ने एकदम देहाती संगीत यानी झाल, ढोलक, बैंजो, क्लीयोरनेट वाले युग की तरफ़ मोड़ दियाइस मुड़ाव के बाद हुआ क्या कि पांच साल से रस-परिवर्तन खोज रही जनता ने इसे भी हाथों-हाथ ले लियाकौन ऐसा भोजपुरिया कोना होगा जहां “संइयाँ अरब गइले ना” नहीं बजा होगा” कौन ऐसा रिक्शा, ठेला, जीप, बस, ट्रक वाला नही होगा जो खेसारी के गीतों से अपनी मेमोरी को फूल न कर लिया होगा
इधर कुछ सालों में फिर समय बदला हैमनोज तिवारी, निरहुआ, पवन सिंह के बाद खेसारी लाल यादव, राकेश मिश्रा, रितेश पांडेय, कलुआ सब फिल्मी दुनिया के हीरो हो गए हैं और इस ट्रेंड नें स्ट्रगल कर रहे भोजपुरिया गायकों के दिमाग एक बात भर दिया कि “गायकी में हीट तो फिलिम में फीट” अब हर भोजपुरी गायक खुद को गायक नहीं हीरो मानने लगा है।

वर्तमान में आडियो गया, वीडियो सीडी गया, हाथों-हाथ आ गया स्मार्ट फोन🤳, पेनड्राइव, लैपटाप, झट से डाऊनलोड और ना पसंद आये तो डिलीट। पन्द्रह सेकेंड के शॉर्ट्स वीडियोज और रील का जमानाइसी चक्कर में भोजपुरी की म्यूजिक इंडस्ट्री भी एकदम से बदल गयी है। कई छोटी म्यूजिक कम्पनियां बिक गयीं। कारण बस ये कि आज हर जिले में एक दर्जन म्यूजिक कम्पनी हैं तो डेढ़ दर्जन रिकॉर्डिंग स्टूडियो जिनमें हर जिले के हज़ारों भोजपुरी गायक गा रहे हैं, तो क़रीब लाखो अभी रियाज कर रहें हैं। हर गांव में आपको पच्चीस गायक/अभिनेता हैं जो एक घण्टे में हिट होकर मनोज,निरहुआ, पवन और खेसारी की तरह मोनालिसा के कमर में हाथ डालना चाहतें हैं। इस हीरो बनने के चक्कर में इनके गाने सुनिए तो वो सीधे सम्भोग से शुरू होते हैं और सम्भोग पर ही आकर खत्म हो जातें हैं। (ऐसे शब्दों के लिए क्षमा करे🙏🏻 लेकिन हकीकत यही है।) यानी “तेल लगा के मारम, त पीछे से फॉर देम, त तहरा चूल्हि में लवना लगा देम, त सकेत बा ए राजा अब ना जाइ, त खोलs की ढुकाइ !!!! यानी ऐसे-ऐसे गाने की लिखते हुए मुझे शर्म आ रही है लेकिन ये तो बस छोटी सी बानगी भर है। आप यू ट्यूब खोलिये तब आपको पता चले कि जो जितना नीचे गिर सकता है, उतना ही वो सुपरहिट है
इसका बस एक ही कारण है..वो है "व्यूज"
आज भोजपुरी में सफलता का मानक मिलियन व्यूज बन गया है। किसका कौन सा गाना कितनी देर यूट्यूब इंडिया की टाइम लाइन पर ट्रेडिंग में हैं, ये तय कर रहा है। किस गीत पर कितने मिलियन शॉर्ट्स वीडियोज और रील बन रहे हैं, ये भोजपुरी की सफलता तय कर रहा है और इस मिलियन व्यूज की सत्ता उन लोगों के हाथ मे चली गई है जो सामान्यतः अनपढ़ हैं और बिहार से बाहर किसी राज्य में मजदूरी कर रहे हैं

ऐसे गायकों को ना तो भोजपुरी की लोक-संस्कृति का ज्ञान है और न ही संस्कारों कान ही अपने घर से डर है, न ही समाज से। इनके लिए हर हाल में व्यूज महत्वपूर्ण है। इस खेल में पहले सिर्फ टी-सीरीज और वीनस थे अब बड़े-बड़े कारपोरेट इसमें कूद पड़े हैं, सबको हर हाल में व्यूज चाहिए। इनके गाने हर हफ़्ते बनते हैं, इन्हें बस विषय मिलना चाहिए
इसलिए अब सारी बड़ी कंपनीयाँ उसी गीत-संगीत में पैसा लगाना चाहतीं हैं जो इंटरनेट पर जल्दी-जल्दी पापुलर हो जाए। जिसको अपना यूटयूब चैनल बड़ा करना है, उसकी जरूरत ये भोजपुरी स्टार पूरी करते हैंआज एक-एक गीत गाने के तीन से पाँच लाख रुपये मिल रहे हैंम्यूजिक कम्पनियो की चांदी का समय अब आया है।
यूट्यूब पर ताजा आया खेसारी का गीत "चाची के बाची" और "खेसरिया के बेटी" इसी व्यूज के भेड़ियाधसान से निकली एक घटना है। भोजपुरी के एक लाख से अधिक गायक जो स्टार बनने का सपना पाले हुए हैंवो यही काम कर रहें हैं, व्यूज लाने के लिए कुछ भी गाने का कामजिसे सुनकर आप कहेंगे कि हाय!!! ये महेंद्र मिसिर, भिखारी ठाकुर, भरत शर्मा, शारदा सिन्हा, मदन राय और गोपाल राय की भोजपुरी को क्या हो गया ???

लेकिन समाधान कैसे होगा ?

जी, समाधान तो तब होगा जब इन्हीं के अंदाज में इन्हीं के हथियारों से इन्हीं के खिलाफ इनसे लड़ा जाएगा लेकिन लड़ाई होगी तो कैसे ? महज दो-चार लोग इन लाखों का सामना कैसे करेंगे ??
ये भी हो सकता था, लेकिन कौन समझाने जाए हर जनपद में बने उन भोजपुरी अस्मिता के तथाकथित संगठनों को जिनमें दूर-दूर तक कहीं एकता नहीं है। कोई किसी के प्रयास को बर्दास्त नहीं कर सकता है। दरअसल इनकी गलती भी नहीं है। भोजपुरी के नाम पर बने ये संगठन छठ घाट पर भोजपुरी की अस्मिता से ज्यादा व्यक्तिगत राजनीति चमकाने वाली दूकान बनकर रह गए हैं। भोजपुरी भाषा, भोजपुरीया बुद्धिजीवियों और भोजपुरीया अनपढ़ गायकों की संयुक्त मार से आहत है। बुद्धिजीवी ये समझते हैं कि समस्त भोजपुरी बेल्ट की जनता उनकी तरह ही बुद्धिजीवी हैंये अनपढ़ ये समझते हैं की सब लोग मूर्ख हैंचाची के बाची में क्या बुराई है ?
अब चाची के बाची वालों ने अपनी बर्बादी की तरफ कदम रख दिया है लेकिन उनको रिप्लेस कौन करेगा ? कैसे होगा ? किसी को पता नहीं ये अलग विषय है, जिस पर एक अलग से लेख लिखूँगा✍🏻

बस आपको और हमसबको मिलकर बेहतर और साफ़-सुथरा कंटेंट प्रमोट करना पड़ेगा क्योंकि आज भी अच्छा सुनने वालों की कमी नहीं हैवरना भोजपुरी तो अश्लीलता का पर्याय बन ही चुकी है
आज नही तो कल भोजपुरी संविधान की आठवी अनुसूची में भी शामिल हो ही जाएगी लेकिन फायदा क्या होगा जब भोजपुरी में से भोजपुरी की मिठास गायब हो जाएगी, शरीर से आत्मा ही निकल जाएगी और रह जायेगा मृतक शरीर के रूप में अश्लीलता सिर्फ अश्लीलता...!!!

साभार:- Atul Kr. Rai.
Editor & Modify:- Bishwajeet Verma